छत्तीसगढ़ के लिए खेल सकता हूं
ओलंपियन तीरंदाजी मंगल सिंह चाम्पिया का कहना है कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार मुझे ज्यादा सुविधाएँ देती हैं तो मैं छत्तीसगढ़ के लिए खेल सकता हूं। मेरा पहला लक्ष्य लंदन ओलंपिक 2012 में पदक जीतना है।
यहां अंतर रेलवे तीरंदाजी में खेलने आए ईस्टन रेलवे के इस तीरंदाज ने एक सवाल के जवाब में कहा कि खिलाड़ी तो सुविधाएं के भूखे होते हैं, जहां से ज्यादा सुविधाओं की उम्मीद रहती है, वे वहीं से खेलना पसंद करते हैं। उन्होंने बताया कि वे दो साल तक आन्ध्र प्रदेश से खेल चुके हैं। उन्होंने बताया कि दो साल पहले उनको ईस्टन रेलवे में नौकरी दी गई है। उन्होंने कहा कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार उनको ज्यादा अच्छी सुविधाएं दे और साथ ही अच्छी सी नौकरी दे तो वे छत्तीसगढ़ आ जाएंगे और यहां के लिए खेलने लगेंगे।
विदेशी कोच जरूरी
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अपने देश में लिम्बाराम जैसे अच्छे कोच तो हैं, लेकिन इसके बाद भी ओलंपिक जैसी बड़ी स्पर्धा में सफलता के लिए यह जरूरी है कि एशिया के किसी देश के अच्छे कोच की सेवाएं ली जाएं। उन्होंने कहा कि यूरोपियन कोच बुलाने का मतलब नहीं रहेगा। वे कहते हैं कि यूरेपियन खिलाड़ी तीरंदाजी को गंभीरता से नहीं लेते हैं। वे आते हैं खेलकर चले जाते हैं। उन पर जीतने का कोई दबाव नहीं रहता है। हम भारतीय खिलाड़ियों से बहुत ज्यादा उम्मीद की जाती है जिसके कारण हम पर दबाव रहता है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को विदेशी कोच की सेवाएं लेकर खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिलाना चाहिए।
सरकारी सामानों का ठिकाना नहीं होता
2008 के ओलंपिक में खेलने वाले इस खिलाड़ी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि खिलाड़ियों के लिए लगाए जाने वाले प्रशिक्षण शिविरों में तो सरकारी सामानों का ठिकाना नहीं रहता है। कई बार तो शिविर के समाप्त होने पर सामान आते हैं। अगर खिलाड़ी सरकारी सामानों के भरोसे रहेंगे तो कभी सफलता नहीं मिलने वाली है। उन्होंने बताया कि उनके साथ भारत के और तीन खिलाड़ियों को कोरिया की एक कंपनी से मदद मिलती है। लेकिन यह मदद भी तब तक है जब तक हमारा प्रदर्शन विश्व स्तर पर अच्छा है, जिस दिन कंपनी को लगेगा कि हमारा प्रदर्शन स्तरीय नहीं है, वह कंपनी किसी और देश के खिलाड़ियों को मदद करेगी।
निचले स्तर से मिले मदद
मंगल सिंह का कहना है कि हम जैसे विश्व स्तरीय खिलाड़ियों को तो कहीं न कहीं से मदद मिल जाती है, लेकिन सरकार को ग्रामीण स्तर से ही खिलाड़ियों की मदद करने से प्रतिभाएं सामने आएंगी। उन्होंने कहा कि अपने देश में होता यह है कि जब खिलाड़ी पदक जीतने लगते हैं तब मदद की जाती है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि उनको आज तक उनके राज्य झारखंड से कोई मदद नहीं मिली है।
उद्योगों को सामने आना चाहिए
श्री चाम्पिया का कहना है कि टाटा ने जिस तरह से खेलों को बढ़ाने का काम देश में किया है, वैसा काम आज तक और किसी उद्योग ने नहीं किया है। टाटा की तरह ही और उद्योग अगर सामने आ जाएं तो देश में खेल और खिलाड़ियों का बहुत भला हो जाएगा। आज टाटा कि कई खेलों की अकादमी है। इन अकादमियों ने ही देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी मिलते हैं।
अभ्यास के लिए छुट्टी मिलनी चाहिए
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि रेलवे में बाकी सब तो ठीक है लेकिन अभ्यास के लिए छुट्टी में परेशानी होती है। वे कहते हैं कि किसी भी स्पर्धा के समय आधे दिन की छुट्टी मिलती है, इतनी छुट्टी पर्याप्त नहीं होती है। उन्होंने बताया कि किसी भी बड़ी स्पर्धा के समय 8 से 10 घंटे अभ्यास करना पड़ता है।
2012 ओलंपिक है लक्ष्य
एक सवाल के जवाब में श्री चाम्पिया ने कहा कि उनका लक्ष्य अब 2012 का ओलंपिक है। उन्होंने पूछने पर बताया कि वे 2008 के ओलंपिक में दूसरे चक्र में हार गए थे। कारण के बारे में उन्होंने बताया कि उनको दूसरे चक्र में बी कोर्ट में खेलने के कारण बाहर होना पड़ा। इस कोर्ट में हवा का बहावा अनुकुल न होने के कारण हार गया। पूछने पर उन्होंने बताया कि खिलाड़ियों को यह मालूम रहता है कि उनको किसी भी कोर्ट में खेलना पड़ सकता है, लेकिन उस कोर्ट के अनुसार अभ्यास कम होने के कारण मैं चूक गया था। लेकिन अब हर तरह की स्थिति का सामना करने के लिए मैं तैयार हूं। उन्होंने कहा कि खेल के साथ किस्मत का भी साथ जरूरी होती है। हवा का एक झोंका तीर की दिशा बदल देते है और अच्छे से अच्छे खिलाड़ी इसकी वजह से मात खा जाते हैं। किस्मत ने साथ दिया तो ओलंपिक में पदक जरूर जीतूंगा।
यहां अंतर रेलवे तीरंदाजी में खेलने आए ईस्टन रेलवे के इस तीरंदाज ने एक सवाल के जवाब में कहा कि खिलाड़ी तो सुविधाएं के भूखे होते हैं, जहां से ज्यादा सुविधाओं की उम्मीद रहती है, वे वहीं से खेलना पसंद करते हैं। उन्होंने बताया कि वे दो साल तक आन्ध्र प्रदेश से खेल चुके हैं। उन्होंने बताया कि दो साल पहले उनको ईस्टन रेलवे में नौकरी दी गई है। उन्होंने कहा कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार उनको ज्यादा अच्छी सुविधाएं दे और साथ ही अच्छी सी नौकरी दे तो वे छत्तीसगढ़ आ जाएंगे और यहां के लिए खेलने लगेंगे।
विदेशी कोच जरूरी
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अपने देश में लिम्बाराम जैसे अच्छे कोच तो हैं, लेकिन इसके बाद भी ओलंपिक जैसी बड़ी स्पर्धा में सफलता के लिए यह जरूरी है कि एशिया के किसी देश के अच्छे कोच की सेवाएं ली जाएं। उन्होंने कहा कि यूरोपियन कोच बुलाने का मतलब नहीं रहेगा। वे कहते हैं कि यूरेपियन खिलाड़ी तीरंदाजी को गंभीरता से नहीं लेते हैं। वे आते हैं खेलकर चले जाते हैं। उन पर जीतने का कोई दबाव नहीं रहता है। हम भारतीय खिलाड़ियों से बहुत ज्यादा उम्मीद की जाती है जिसके कारण हम पर दबाव रहता है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को विदेशी कोच की सेवाएं लेकर खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिलाना चाहिए।
सरकारी सामानों का ठिकाना नहीं होता
2008 के ओलंपिक में खेलने वाले इस खिलाड़ी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि खिलाड़ियों के लिए लगाए जाने वाले प्रशिक्षण शिविरों में तो सरकारी सामानों का ठिकाना नहीं रहता है। कई बार तो शिविर के समाप्त होने पर सामान आते हैं। अगर खिलाड़ी सरकारी सामानों के भरोसे रहेंगे तो कभी सफलता नहीं मिलने वाली है। उन्होंने बताया कि उनके साथ भारत के और तीन खिलाड़ियों को कोरिया की एक कंपनी से मदद मिलती है। लेकिन यह मदद भी तब तक है जब तक हमारा प्रदर्शन विश्व स्तर पर अच्छा है, जिस दिन कंपनी को लगेगा कि हमारा प्रदर्शन स्तरीय नहीं है, वह कंपनी किसी और देश के खिलाड़ियों को मदद करेगी।
निचले स्तर से मिले मदद
मंगल सिंह का कहना है कि हम जैसे विश्व स्तरीय खिलाड़ियों को तो कहीं न कहीं से मदद मिल जाती है, लेकिन सरकार को ग्रामीण स्तर से ही खिलाड़ियों की मदद करने से प्रतिभाएं सामने आएंगी। उन्होंने कहा कि अपने देश में होता यह है कि जब खिलाड़ी पदक जीतने लगते हैं तब मदद की जाती है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि उनको आज तक उनके राज्य झारखंड से कोई मदद नहीं मिली है।
उद्योगों को सामने आना चाहिए
श्री चाम्पिया का कहना है कि टाटा ने जिस तरह से खेलों को बढ़ाने का काम देश में किया है, वैसा काम आज तक और किसी उद्योग ने नहीं किया है। टाटा की तरह ही और उद्योग अगर सामने आ जाएं तो देश में खेल और खिलाड़ियों का बहुत भला हो जाएगा। आज टाटा कि कई खेलों की अकादमी है। इन अकादमियों ने ही देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी मिलते हैं।
अभ्यास के लिए छुट्टी मिलनी चाहिए
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि रेलवे में बाकी सब तो ठीक है लेकिन अभ्यास के लिए छुट्टी में परेशानी होती है। वे कहते हैं कि किसी भी स्पर्धा के समय आधे दिन की छुट्टी मिलती है, इतनी छुट्टी पर्याप्त नहीं होती है। उन्होंने बताया कि किसी भी बड़ी स्पर्धा के समय 8 से 10 घंटे अभ्यास करना पड़ता है।
2012 ओलंपिक है लक्ष्य
एक सवाल के जवाब में श्री चाम्पिया ने कहा कि उनका लक्ष्य अब 2012 का ओलंपिक है। उन्होंने पूछने पर बताया कि वे 2008 के ओलंपिक में दूसरे चक्र में हार गए थे। कारण के बारे में उन्होंने बताया कि उनको दूसरे चक्र में बी कोर्ट में खेलने के कारण बाहर होना पड़ा। इस कोर्ट में हवा का बहावा अनुकुल न होने के कारण हार गया। पूछने पर उन्होंने बताया कि खिलाड़ियों को यह मालूम रहता है कि उनको किसी भी कोर्ट में खेलना पड़ सकता है, लेकिन उस कोर्ट के अनुसार अभ्यास कम होने के कारण मैं चूक गया था। लेकिन अब हर तरह की स्थिति का सामना करने के लिए मैं तैयार हूं। उन्होंने कहा कि खेल के साथ किस्मत का भी साथ जरूरी होती है। हवा का एक झोंका तीर की दिशा बदल देते है और अच्छे से अच्छे खिलाड़ी इसकी वजह से मात खा जाते हैं। किस्मत ने साथ दिया तो ओलंपिक में पदक जरूर जीतूंगा।
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