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शुक्रवार, जनवरी 14, 2011

नंगे पैर एक लाख की दौड़

बस्तर की आदिवासी बालाएं नंगे पैर एक लाख की दौड़ लगाने का काम कर रही हैं। इनके सामने जूते पहनने वाली  खिलाड़ी फेल हो जाती हैं। वैसे अब बस्तर बालओं को भी  जूतों की आदत डालने की पहल की जा रही है। इनके लिए जूतों का इंतजाम खेल विभाग माता रुकमणी सेवा संस्थान के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी की मांग पर कर रहा है। संभवत: अगली मैराथन में बस्तर बालाएं भी जूते पहनकर दौड़ती नजर आएंगी।
पाटन की राज्य मैराथन ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि बस्तर बालाओं के नंगे पैरों में जो जान है, वह जान जूते पहनकर दौड़ने वाली खिलाड़ियों में भी नहीं है। वैसे राज्य मैराथन में ज्यादातर महिला और पुरुष खिलाड़ी नंगे पैर ही दौड़ते नजर आए। मैराथन में नंगे पैर दौड़ने का सिलसिला मैराथन के प्रारंभ होने वाले साल 2001 से ही चल रहा है। महिला मैराथन की जहां तक बात है तो इसका आगाज 2003-04 से हुआ है। पहले साल तो इस पर दल्लीराजहरा की टी. संजू ने कब्जा जमाया था। इसके बाद अगले साल रेलवे की कमलेश बघेल जीती। बस्तर बालाओं का जलजला 2005 से प्रारंभ हुआ। इसके बाद हालांकि दो साल खिताब तक बस्तर बालाएं नहीं पहुंची पार्इं, लेकिन 2007-08 से बस्तर बालाओं का दबदबा कायम है। अब तो आलम यह है कि बस्तर बालाएं टॉप 20 से ज्यादातर स्थानों पर बाजी मार रही हैं। पाटन मैराथन में टॉप 20 में से 14 स्थानों पर बस्तर बालाओं का कब्जा रहा।
जिन बस्तर बालाओं ने खिताब जीते उनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो जूते पहनकर दौड़ती हैं। पहले पहला स्थान प्राप्त करने वाली ललिता कश्यप ने तीन बार एक लाख का खिताब जीता, लेकिन वह कभी भी जूते पहनकर नहीं दौड़ती हैं। जूतों से बस्तर की हर खिलाड़ी को परहेज है। बस्तर बालाओं के साथ चाहे वह सरगुजा के खिलाड़ी हों, या फिर जशपुर, रायगढ़ या किसी भी जिले के ग्रामाणी क्षेत्र के खिलाड़ी हों, सबके साथ यही परेशानी है कि वे जूते पहनकर नहीं दौड़ पाते हैं। कुछ शहरी क्षेत्र से जुड़े खिलाड़ी जूते पहनकर दौड़ते हैं। लेकिन इनकी दाल नंगे पैर दौड़ने वाले खिलाड़ियों के सामने नहीं गल पाती है। पाटन मैराथन में एक बात यह भी देखने को मिली गांव के कुछ खिलाड़ी जूते जैसी दिखने वाली चप्पल के साथ पीटी करने वाले जूते पहनकर दौड़ते नजर आए।
बस्तर बालाओं को जूते देने की पहल
बस्तर बालाएं राज्य मैराथन में तो नंगे पैर दौड़कर एक लाख की इनामी राशि तक पहुंच जा रही हैं,लेकिन इनकी प्रतिभा का फायदा राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर नहीं मिल पा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि राष्ट्रीय मैराथन में बिना जूतों के धावकों को दौड़ने नहीं दिया जाता है। ऐसे में खेल विभाग के संचालक जीपी सिंह ने माता रुकमणी सेवा संस्थान के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी की मांग पर धावकों के लिए जूते देना मंजूर कर लिया है।

2 टिप्पणियाँ:

आपका अख्तर खान अकेला शुक्र जन॰ 14, 08:48:00 am 2011  

gvalaani ji bhtrin jaankari ,mkr skraanti ki bdhayi. akhtar khan akela kota rajsthan

उम्मतें शनि जन॰ 15, 07:27:00 am 2011  

शायद जूतों से उनकी परफार्मेंस बिगड़ेगी ? उन्हें इसका अभ्यास नहीं है ! उनके यश की कामना करता हूं !

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