आज भी गांवों में छूआ-छूत हावी
एक गांव में एक कार्यक्रम में जाने का मौका मिला। वहां पर जब हम लोग खाना खा रहे थे तो एक छोटी सी बच्ची आ गई और वो भी खाना देने वालों का हाथ बटाने के लिए आगे आई तो उसे वहां से भगाया तो नहीं गया लेकिन उसको समझा कर वापस भेज दिया गया। बाद में मालूम हुआ कि वह लड़की छोटी जात की थी और खाना खाने के लिए जो लोग बैठे थे उनमें कुछ ब्राम्हण थे। अगर वह लड़की खाना देने का काम करती तो वो लोग खाना नहीं खाते। हमें आश्चर्य हुआ कि आज आधुनिक कहे जाने वाले समाज में भी इस तरह का प्रचलन कायम है।
हम अपने एक मित्र के साथ एक कार्यक्रम में गांव गए थे। वहां पर हम लोग जब दोपहर में खाने के लिए बैठे तो गांवों की परंपरा के मुताबिक सबको नीचे बिठाकर खाना परोसा जाने लगा। वैसे इसमें कोई दो मत नहीं है कि नीचे बैठकर खाने की परंपरा जरूर अच्छी है। अभी हम इस अच्छी परंपरा की सोच से ऊबर भी नहीं पाए थे कि अचानक एक ऐसी बात हमारे सामने आ गई जिसकी हमने कल्पना नहीं की थी। हम इससे पहले भी कई कार्यक्रमों में गए हैं, पर ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। खाने के कार्यक्रम में जब एक छोटी सी लड़की आ गई और वह भी खाना परोसने का काम करने में जुटने लगी तो उसे वहां से चलता कर दिया गया। उसे समझाया गया कि बेटा तुम अभी जाओ जरूरत हुई तो तुम्हें बुला लेंगे। बालसुलभ मन बात समझ गया और चला गया। लेकिन हमें यह बात खटक गई। हमने वहां पर उपस्थित एक सज्जन से पूछा कि उस लड़की का मन था खाना परोसने का तो उसे मना क्यों किया गया। इस पर उन सज्जन ने जो जवाब दिया वह इस बात का परिचायक है कि आज भी हमारे गांवों में छूआ-छूत हावी है।
उन सज्जन ने हमें बताया कि भाई साहब वह लड़की छोटी जात की है और यहां पर खाने खाने जो लोग बैठे हैं, उनमें कई लोग ब्राम्हण हैं, अगर वह लड़की खाना परोसती तो ये लोग खाना छोड़कर उठ जाते। हमें उनकी बात सुनकर बहुत अफसोस हुआ कि आज भी ऐसे लोग हैं। कहने को आज हम आधुनिक समाज में जी रहे हैं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या वास्तव में हम इतने आधुनिक हो पाए हैं कि ऊंच-नीच को पीछे छोड़े दें। गांवों के बारे में भी कहा जाता है कि गांवों में लोग पढ़े-लिखे और आधुनिक हो गए हैं, लेकिन इस एक घटना के बाद हमें तो नहीं लगता है कि गांवों में ऐसा कुछ हुआ है।
हम अपने एक मित्र के साथ एक कार्यक्रम में गांव गए थे। वहां पर हम लोग जब दोपहर में खाने के लिए बैठे तो गांवों की परंपरा के मुताबिक सबको नीचे बिठाकर खाना परोसा जाने लगा। वैसे इसमें कोई दो मत नहीं है कि नीचे बैठकर खाने की परंपरा जरूर अच्छी है। अभी हम इस अच्छी परंपरा की सोच से ऊबर भी नहीं पाए थे कि अचानक एक ऐसी बात हमारे सामने आ गई जिसकी हमने कल्पना नहीं की थी। हम इससे पहले भी कई कार्यक्रमों में गए हैं, पर ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। खाने के कार्यक्रम में जब एक छोटी सी लड़की आ गई और वह भी खाना परोसने का काम करने में जुटने लगी तो उसे वहां से चलता कर दिया गया। उसे समझाया गया कि बेटा तुम अभी जाओ जरूरत हुई तो तुम्हें बुला लेंगे। बालसुलभ मन बात समझ गया और चला गया। लेकिन हमें यह बात खटक गई। हमने वहां पर उपस्थित एक सज्जन से पूछा कि उस लड़की का मन था खाना परोसने का तो उसे मना क्यों किया गया। इस पर उन सज्जन ने जो जवाब दिया वह इस बात का परिचायक है कि आज भी हमारे गांवों में छूआ-छूत हावी है।
उन सज्जन ने हमें बताया कि भाई साहब वह लड़की छोटी जात की है और यहां पर खाने खाने जो लोग बैठे हैं, उनमें कई लोग ब्राम्हण हैं, अगर वह लड़की खाना परोसती तो ये लोग खाना छोड़कर उठ जाते। हमें उनकी बात सुनकर बहुत अफसोस हुआ कि आज भी ऐसे लोग हैं। कहने को आज हम आधुनिक समाज में जी रहे हैं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या वास्तव में हम इतने आधुनिक हो पाए हैं कि ऊंच-नीच को पीछे छोड़े दें। गांवों के बारे में भी कहा जाता है कि गांवों में लोग पढ़े-लिखे और आधुनिक हो गए हैं, लेकिन इस एक घटना के बाद हमें तो नहीं लगता है कि गांवों में ऐसा कुछ हुआ है।
4 टिप्पणियाँ:
हद है भई वो भी आज के युग में ऐसी सोच!
हम आपको बताना चाहते हैं कि हमने तो सोचा था कि इस देश से जाति-पांति खत्म हो गई है लेकिन आपके ब्लॉग से पता चला कि ये परंपरा आज भी हमारे देश में ज़िंदा है और ये हमारे लिये बड़े शर्म की बात है। हम आपको धन्यवाद देना चाहते हैं कि आपने उस एक ज्वलंत मुद्दे की तरफ देश का ध्यान खींचा है जिसके बारे में हमारे जैसे लोग समझ रहे थे कि ये बुराई खत्म हो चुकी है। हम इसी वजह से रोज़ सुबह राजतंत्र ब्लॉग पर आते हैं क्योंकि यहां पर आने से हमको तमाम ऐसी जानकारियां मिलती हैं जो राष्ट्रीय चैनलों और राष्ट्रीय समाचार पत्रों तक में नहीं मिल पाती हैं। हम आपको बताना चाहते हैं कि आज जो आपने मुद्दा उठाया है, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिये और जल्द से जल्द एक आयोग बनाकर इस घटना की जांच होनी चाहिये। हमारा मानना ये है कि जब तक नीचे के स्तर से इस तरह के मामलों की पड़ताल नहीं होगी देश से ये बीमारी खत्म ही नहीं हो सकती है। बल्कि हमारा मानना तो ये है कि आपको खुद इस मामले की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवानी चाहिये। आप हमको आज्ञा दें तो हम इस मामले को दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के सामने उठाने के लिये शिकायत करने को तैयार हैं। लेकिन उसके लिये आपको संबंधित लोगों के नाम जल्द से जल्द ब्लॉग पर डालने होंगे। उम्मीद है आप जल्द से जल्द ये नाम ब्लॉग पर डालेंगे क्योंकि सिर्फ लिख देने से कोई समस्या खत्म नहीं होती है। हमारा मानना है कि आपको इस बुराई को खत्म करने में आगे आना होगा। हमारे जैसे तमाम लोग आपके साथ हैं। हमारा मानना ये है कि रायपुर से सांसद रहे श्री केयूर भूषण इस तरह के मामले पहले भी उठाते रहे हैं अब आपको ये ज़िम्मेदारी संभालनी होगी। हम आपको ये बताना चाहते हैं कि आपकी ये पोस्ट पढ़कर हमको बड़ा दुख हुआ है कि आज भी देश इस हालात में है। वरना हम तो मान बैठे थे कि ये सब कुछ खत्म हो चुका है। हम इसके लिये आपको साधुवाद और धन्यवाद देना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं भविष्य में भी आप इस तरह के मुद्दे उठाते रहेंगे जिनको टीवी की भाषा में Exclusive कहा जाता है।
बाद में मालूम हुआ कि वह लड़की छोटी जात की थी और खाना खाने के लिए जो लोग बैठे थे उनमें कुछ ब्राम्हण थे। .......brahmano ka desh ke nirmaan me sirf ekmatra yahi yogdaan hai.brahmanavaad aaj ke samaaj ki saree buraaiyon ka mul hai.
.... ऎसे लोगों को तो ....!!!
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