भोले-भाले आदिवासी- बस्तर यात्रा -10
बस्तर यात्रा में जब हमने बारसूर से चित्रकूट के बीच 46 किलो मीटर की एक ऐसे रास्ते में यात्रा की जो कि पूरी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र है तो आधे रास्ते में हमारी मुलाकात एक मंदिर में एक आदिवासी पुजारी और उनके बच्चे से हुई। वे हम लोगों को उस रास्ते में देखकर बहुत खुश हुए क्योंकि उस रास्ते में प्राय: कोई जाना पसंद नहीं करता है। हम लोग जब मंदिर से सामने पहाड़ी पर बने हवान कुंड के पास जाकर ऊपर से फोटो ली तो पुजारी और उनका बेटा भी आ गया। ऐसे में हमने उनके साथ फोटो खींचवाने में विलंब नहीं किया। जब हम उनके साथ फोटो खींचवा रहे थे तो हमने उनके कंघे पर हाथ रखा तो पुजारी बाबा खुश हो गए और उन्होंने भी हम पकड़कर फोटो खींचवाया। उनका आत्मीयता और भोलापन देखकर हमें बहुत खुशी हुई। हमने उनके साथ वहां पर करीब आधे घंटे का वक्त बिताया और उनसे विदा लेकर अपनी मंजिल की तरफ चल पड़े। इसके पहले उन्होंने हम लोगों को प्रसाद दिया। और हमारी मंगलमय यात्रा के लिए दुआ भी की। संभवत: यह उनकी दुवाओं का ही असर था जो हमारी यात्रा उस नक्सल प्रभावित रास्ते में भी सुखद रही।
4 टिप्पणियाँ:
आभार...आपके साथ साथ हम भी घूम ले रहे हैं.
bahut acchha prayas hai .
dhanyabad
बस आप ऐसे ही अपने साथ हम लोगों को भी घुमाते रहिये।
बड़े भाई, तस्वीरें देखकर लगने लगा है कि एक बार फिर बस्तर घूम आऊं।
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