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सोमवार, जून 07, 2010

आएंगे तब जब साथ चलोगी

जी भर कर देख लो आज
फिर न हमें देख पाओगी।।
चले जाएंगे हम तो कल
हमें देखने को तरस जाओगी।।
बहुत तडफ़ाया है हमें
अब तडफ़ का अहसास जानोगी।।
दूर हो जाएंगे जब हम
हमारे प्यार को पहचानोगी।।
पास थे तो बहुत सताया
अब किसे तुम सताओगी।।
जुदा हो जाएंगे जब हम
तुम हमें याद करके रोओगी।।
पास नहीं आएंगे हम
तुम दीवारों से सर फोड़ोगी।।
फिर भी नहीं आएंगे हम
जब हाथ तुम जोड़ोगी।।
आएंगे हम तभी तुम्हारे पास
साथ जब तुम हमारे चलोगी।।

5 टिप्पणियाँ:

सूर्यकान्त गुप्ता सोम जून 07, 08:09:00 am 2010  

आयेंगे तब जब साथ चलोगी। शायद आपके ब्लोग मे हम पहली बार कविता देखे। बढ चले हैं इस ओर कदम……………स्वागत।

राजकुमार ग्वालानी सोम जून 07, 08:16:00 am 2010  

सूर्यकांत जी
हम आपको बता दें कि हमने पहले भी अपने ब्लाग में कविता लिखी है। वैसे हमारे लेखन की शुरुआत दो दशक से कुछ और पहले कविताओं से ही हुई थी।

कडुवासच सोम जून 07, 04:40:00 pm 2010  

....प्रतिभाएं कहां छिपी रहती हैं समझना पडता है .... आप तो बहुमुखी लग रहे हैं राजकुमार भाई !!!

girish pankaj सोम जून 07, 05:20:00 pm 2010  

achchha kiya, ki ras parivartan kar diyaa. kavitaa man ko aur sars kar deti hai.

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