आएंगे तब जब साथ चलोगी
जी भर कर देख लो आज
फिर न हमें देख पाओगी।।
चले जाएंगे हम तो कल
हमें देखने को तरस जाओगी।।
बहुत तडफ़ाया है हमें
अब तडफ़ का अहसास जानोगी।।
दूर हो जाएंगे जब हम
हमारे प्यार को पहचानोगी।।
पास थे तो बहुत सताया
अब किसे तुम सताओगी।।
जुदा हो जाएंगे जब हम
तुम हमें याद करके रोओगी।।
पास नहीं आएंगे हम
तुम दीवारों से सर फोड़ोगी।।
फिर भी नहीं आएंगे हम
जब हाथ तुम जोड़ोगी।।
आएंगे हम तभी तुम्हारे पास
साथ जब तुम हमारे चलोगी।।
फिर न हमें देख पाओगी।।
चले जाएंगे हम तो कल
हमें देखने को तरस जाओगी।।
बहुत तडफ़ाया है हमें
अब तडफ़ का अहसास जानोगी।।
दूर हो जाएंगे जब हम
हमारे प्यार को पहचानोगी।।
पास थे तो बहुत सताया
अब किसे तुम सताओगी।।
जुदा हो जाएंगे जब हम
तुम हमें याद करके रोओगी।।
पास नहीं आएंगे हम
तुम दीवारों से सर फोड़ोगी।।
फिर भी नहीं आएंगे हम
जब हाथ तुम जोड़ोगी।।
आएंगे हम तभी तुम्हारे पास
साथ जब तुम हमारे चलोगी।।
5 टिप्पणियाँ:
आयेंगे तब जब साथ चलोगी। शायद आपके ब्लोग मे हम पहली बार कविता देखे। बढ चले हैं इस ओर कदम……………स्वागत।
सूर्यकांत जी
हम आपको बता दें कि हमने पहले भी अपने ब्लाग में कविता लिखी है। वैसे हमारे लेखन की शुरुआत दो दशक से कुछ और पहले कविताओं से ही हुई थी।
बढ़िया रचना |
....प्रतिभाएं कहां छिपी रहती हैं समझना पडता है .... आप तो बहुमुखी लग रहे हैं राजकुमार भाई !!!
achchha kiya, ki ras parivartan kar diyaa. kavitaa man ko aur sars kar deti hai.
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