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गुरुवार, जून 17, 2010

सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफा

गम की शाम ढ़ल ही जाती है
जख्म दिल के मिटा ही जाती है।।
खुले रखो दिल के दरवाजे तो
फिर नई मंजिल मिल ही जाती है।।
सभी खूबसूरत चेहरे होते नहीं बेवफा
मिल ही जाती है तलाशने से वफा।।
चलता रहता है यूं ही ये सिलसिला
जब तक रहता है जिदंगी का कारवां।। 

नोट-यह कविता हमारी 20 साल पुरानी डायरी की।

7 टिप्पणियाँ:

36solutions गुरु जून 17, 08:29:00 am 2010  

नोट काबिले तारीफ है भाई साहब.

मतलब ये कि आप भी कविता लिखते थे ... अब निकालिये डायरी और अपनी कवितायें राजतंत्र में प्रस्‍तुत कीजिए.

Unknown गुरु जून 17, 08:32:00 am 2010  

बीस साल पूर्व लिखी यह रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है...वस्तुत जिन्दगी के सकारात्मक पहलू का संदेश देती कोई भी रचना कभी अप्रासंगिक हो ही नही सकती...सुन्दर,सशक्त व सार्थक रचना हेतु बधाई।

आशा जोगळेकर गुरु जून 17, 08:36:00 am 2010  

गम की शाम ढ़ल ही जाती है
जख्म दिल के मिटा ही जाती है ।
कितना सही लिखा था आपने तब भी ।

मनोज कुमार गुरु जून 17, 09:34:00 pm 2010  

इस रचना ने मन मोह लिया।

सूर्यकान्त गुप्ता गुरु जून 17, 11:12:00 pm 2010  

गद्य पद्य सभी ओर प्रशन्सनीय प्रयास।

अजित गुप्ता का कोना शुक्र जून 18, 02:51:00 am 2010  

बधाई, बीस साल तक डायरी सम्‍भाल कर रखी गयी।

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