अबे तुम पत्रकार क्या घुटना दिमाग होते हो? - बे-बात पर ही खफा होगा
''राज़''-ब्लाग चौपाल- राजकुमार ग्वालानी
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सभी को नमस्कार करता है आपका *राज*
अबे तुम पत्रकार क्या घुटना दिमाग होते हो?
एक मित्र का फोन आया और उसने एक सवाल दाग दिया कि क्या तुम पत्रकार घुटना
दि...
13 वर्ष पहले
6 टिप्पणियाँ:
नोट काबिले तारीफ है भाई साहब.
मतलब ये कि आप भी कविता लिखते थे ... अब निकालिये डायरी और अपनी कवितायें राजतंत्र में प्रस्तुत कीजिए.
गम की शाम ढ़ल ही जाती है
जख्म दिल के मिटा ही जाती है ।
कितना सही लिखा था आपने तब भी ।
Ummeed, Badhiya !
इस रचना ने मन मोह लिया।
गद्य पद्य सभी ओर प्रशन्सनीय प्रयास।
बधाई, बीस साल तक डायरी सम्भाल कर रखी गयी।
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