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शुक्रवार, जून 11, 2010

एक संपादक ने किया पत्रकारिता को शर्मसार

पत्रकारिता जगत के इतिहास का कल का दिन एक काला दिन था। काला दिन इसलिए कि एक संपादक की करतूत के कारण सारा पत्रकारिता जगत शर्मसार हो गया है। कम से कम हमारे ढाई दशक की पत्रकारिता में तो हमने ऐसा न कभी देखा और न सुना है। बात दरअसल यह है कि लखनऊ से प्रकाशित एक राष्ट्रीय दैनिक ने अपने अखबार के संपादक को ही बर्खास्त करने की खबर पहले पेज पर लगाई और उन पर आरोप लगा आर्थिक के साथ चारित्रिक। वास्तव में यह दुखद घटना है। हमारे लिए यह घटना और भी दुखद इसलिए है कि हमने उन संपादक महोदय के साथ एक साल काम किया है। हमें लगता था वे बड़बोले हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते थे कि वे इतने ज्यादा गिरे हुए हैं। एक बात तो जरूर हमें मालूम हो गई थी कि वे पैसों के मामले में कैसे है। एक बात और यह कि वे हमेशा ईमानदारी की बात करते थे। यह बात तो तय है कि जो इंसान खुद को ईमानदार बताने का ढिढ़ोरा पीटता है, वह दरअसल में ईमानदार होता नहीं है।
कल हमें एक पत्रकार मित्र ने बताया कि हम जिन संपादक के साथ काम कर चुके हैं उनको उनके ही अखबार ने बर्खास्त कर दिया है। संपादक के बर्खास्त होने पर हमें हैरानी नहीं हुई, लेकिन हमारे मित्र ने जब यह बताया कि उनको बर्खास्त करने की खबर भी अखबार ने लगाई है तो जरूर हैरानी हुई। हमारे ख्याल से हमने अपने पत्रकारिता जीवन के 25 सालों के लंबे सफर में ऐसा वाक्या पहले कभी नहीं देखा है कि किसी अखबार ने अपने अखबार के संपादक को ही बर्खास्त किया हो और उनके खिलाफ खबर भी लगाई हो और वह भी पहले पेज पर। लेकिन ऐसा कल हुआ है। हमारे लिहाज से तो यह वास्तव में पत्रकारिता इतिहास का एक काला दिन है, जब किसी संपादक पर आर्थिक के साथ चारित्रिक आरोप लगा है और उसे सार्वजनिक किया गया है। इस घटना से अपना पत्रकारिता जगत शर्मसार हो गया है।
हमने जब उस अखबार के पहले पेज पर खबर देखी को हमें यकीन ही नहीं हुआ कि ये क्या हो गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पत्रकारिता जगत भी यौन शोषण जैसे मामलों से अछूता नहीं है, लेकिन कोई मामला इतना ज्यादा हो जाएगा कि उसके लिए एक संपादक को अपना पद खोने के साथ अखबार की सुर्खियों में स्थान मिल जाएगा, यह सोचा नहीं था। वैसे जो हुआ है वह अच्छा हुआ है। किसी के साथ भी खिलवाड़ करने वालों को बेनकाब होना ही चाहिए, फिर चाहे वह किसी अखबार का संपादक ही क्यों न हो। हम तो उस अखबार के मालिक की हिम्मत की दाद देते हैं जिन्होंने अपने संपादक के कारनामों को सार्वजानिक करके का साहस दिखाया है। वास्तव में यह बहुत बड़ी बात है। हमारा ऐसा मानना है कि अखबार ने अगर अपने संपादक पर चारित्रक आरोप लगाया है तो जरूर उसके पास कोई प्रमाण होगा।
बहरहाल हम इसे अपना सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि हम उन संपादक महोदय को जानते हैं। उनके साथ हमें एक साल काम करने का मौका मिला है। जब उनसे हमारी पहली मुलाकात हुई थी, तब हमें एक बात अच्छी तरह से समझ आ गई थी कि वे बहुत बड़बोले हैं। इसी के साथ एक और बात यह भी समझ आई थी कि ईमानदारी की बातें करने वाला यह इंसान ईमानदार नहीं हो सकता है। और यह बात आगे चलकर उस समय साबित भी हो गई थी जब वे यहां का अखबार छोड़कर न सिर्फ भागे थे बल्कि कई लोगों से रुपए लेकर गए थे। यानी कई लोगों को चुना लगाकर गए थे। हमें उस समय बहुत दुख हुआ था जब हमें मालूम हुआ था कि वे एक गरीब पत्रकार के पांच हजार रुपए लेकर चले गए थे। इस पत्रकार का कसूर इतना था कि उसने अपने संपादक पर भरोसा करके उनका मोबाइल अपने पैसों से बनवा कर दिया और पैसे वापस लेने के लिए उनको भारी पापड़ बेलने पड़े। कहते हैं कि इन दुनिया में जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही भुगतना पड़ता है तो उन संपादक महोदय ने भी जैसे कर्म किए उसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ा है, लेकिन यह पत्रकारिता जगत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। हमारा ऐसा मानना है कि ऐसे लोगों को पत्रकारिता जगत से बाहर कर देना चाहिए जिनके चरित्र पर सवाल उठते हैं, एक बार आर्थिक गड़बड़ी करने वाले को इसलिए बर्दाश्त किया जा सकता है क्योंकि आज अपना पूरा देश सिर से लेकर पैर तक भ्रष्टाचार में डूबा है, लेकिन चारित्रिक रूप से खराब इंसान को बर्दाश्त करना और वो भी पत्रकारिता जैसे पेश में गलत बात है। हम ऐसे कई संपादकों और पत्रकारों को जानते हैं जिन्होंने अपने पद का गलत फायदा उठाते हुए साथ काम करने वाली महिला पत्रकारों का हमेशा शोषण किया है। इसी के साथ हम ऐसी महिला पत्रकारों को भी जानते हैं जिन्होंने शार्टकट में सफलता पाने के लिए अपने बॉस के साथ अंतरंग रिश्ते बनाकर सफलता पाने का काम किया है। इसी के साथ हम  कुछ ऐसी महिला पत्रकारों को भी जानते हैं जिन्होंने शार्टकट के ऑफर को लात मारते हुए अपनी नौकरी को भी लात मारी है। यह सब किस्से फिर कभी बताएंगे फिलहाल तो एक संपादक की करतूत पर पत्रकारिता शर्मसार है।

14 टिप्पणियाँ:

36solutions शुक्र जून 11, 07:06:00 am 2010  

बहुत सुन्‍दर भाई साहब आपने अपने पेशे से संबंधित अहम समाचार पर कलम चलाया.

इसी के साथ हम ऐसी महिला पत्रकारों को भी जानते हैं जिन्होंने शार्टकट में सफलता पाने के लिए अपने बॉस के साथ अंतरंग रिश्ते बनाकर सफलता पाने का काम किया है। सहीं कहा भाई साहब आपने इसी के साथ कई अन्‍य जानकारियां जनता भी जानती है पर चुप रहती है।

Gyan Darpan शुक्र जून 11, 07:09:00 am 2010  

आजकल तो हर क्षेत्र में यही हाल है बस ख़बरें दब जाती है

संजय पाराशर शुक्र जून 11, 08:22:00 am 2010  

bhaiyaji ab is bat pr bhi nazar rakhne ke lie samay nikalna ki jiske bare me chhpa hai uske mathe pr joo bhi rengi hai....kyoki mera ye anubhav rha hai ki esse log is prakar ki durghtnao ki taiyari me rahte hai aur unhe koi fark nhi padta. kuchh din bad ve fir jeevan ki samany line pakad lete hai aur aap nhi... aap jese achhe logo ke sath dhumdham se rahte nazar aate hai. mai sochta hoo ese logo ka uchit istar pr bhiskar ho...

निर्मला कपिला शुक्र जून 11, 08:22:00 am 2010  

सही किया ऐसे लोगों की पोल खोल कर धन्यवाद्

सूर्यकान्त गुप्ता शुक्र जून 11, 09:24:00 am 2010  

आपका यह लेख वातावरण मे परिवर्तन लाये। एकदम ठीक लिखा आपने।

girish pankaj शुक्र जून 11, 06:42:00 pm 2010  

tumhari post parh kar mujhe apne hi upanyas ''mithalabaraa'' ki rah-ra kar yaad aatee rahee, pataa nahi tumne parhaa hai ya nahi. khair parh lenaa. bhai lalit sharmaake saujany se bahut jald usakaa internet sansakaran aa rahaa hai.adhikaansh sampadak ''langot'' ke kamajor hote hai. kuchh sasure to langot hi nahi pahanate. tumharaa bhootpoorv sampaadak isi gotra kaa trhaa shayad..

अजित गुप्ता का कोना शनि जून 12, 01:16:00 am 2010  

चलो कहीं से शुरुआत तो हुई, क्‍या कभी उन सम्‍पादकों और पत्रकारों पर भी कार्यवाही होगी जो किसी का चरित्रहनन करते फिरते हैं। शायद ऐसी कार्यवाही न हो क्‍यों‍कि अधिकांश का यही काम है। भला किस किस को निकालेंगे?

राम त्यागी शनि जून 12, 02:37:00 am 2010  

पत्रकार शब्द , नेता शब्द की तरह किसी इज्जत का कायल कहाँ रहा है अब

Rohit Singh शनि जून 12, 04:49:00 am 2010  

बातें सारी आपकी ठीक है। सहमत भी हूं पूरी तरह से। । पर इस लाइन से सौ फीसदी सहमत नहीं......यह बात तो तय है कि जो इंसान खुद को ईमानदार बताने का ढिढ़ोरा पीटता है, वह दरअसल में ईमानदार होता नहीं है.....आजकल जो हड़का कर बताए नहीं, तो लोग मानते भी नहीं है। बाकी जिसको जो कहना है वो तो सही ही है।

Arvind Mishra शनि जून 12, 06:01:00 am 2010  

कम से कम अखबार की उस खबर का लिंक तो दे दिए होते -यह भी हो सकता है प्रबंध तंत्र से लड़ाई के चलते उनके साथ यह हतप्रभ करने वाला व्यवहार किया गया हों -प्रबंध तंत्र यानी मालिकान तो और भी गिरे हुए लोग हैं -एक सम्पादक विचारे की औकात ही क्या है ?

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