भटक जाते हैं कदम-जब साथ न दे हमदम
भटक जाते हैं कदम
जब साथ न दे हमदम
फिर तो रहते हैं
जिंदगी में गम ही गम
गम मिटाने लोग पीते हैं रम
लेकिन गम को मिटाने कहां होता है
रम में भी इतना दम
इसलिए कहते हैं हम
कभी भी प्यार न करो
अपने हमदम से कम
ऐसा न हो कि प्यार कम होने से
निकल जाएं आपके हमदम का दम
जब वादा किया है तो
साथ निभाओ उम्र भर सनम
जन्म-जन्म न सही
ठीक कर लो अपना यही जनम
जब साथ न दे हमदम
फिर तो रहते हैं
जिंदगी में गम ही गम
गम मिटाने लोग पीते हैं रम
लेकिन गम को मिटाने कहां होता है
रम में भी इतना दम
इसलिए कहते हैं हम
कभी भी प्यार न करो
अपने हमदम से कम
ऐसा न हो कि प्यार कम होने से
निकल जाएं आपके हमदम का दम
जब वादा किया है तो
साथ निभाओ उम्र भर सनम
जन्म-जन्म न सही
ठीक कर लो अपना यही जनम
6 टिप्पणियाँ:
बहुत सटीक लिखा है आपने
बढि़या कविता, डायरी के पन्ने ऐसे ही सामने लाते रहें.
संजीव जी,
यह कविता डायरी से नहीं ली है आज ही लिखी है।
...क्या बात है ... बिलकुल नई कविता, प्रसंशनीय भावपूर्ण रचना,बधाई!!!!
जब वादा किया है तो
साथ निभाओ उम्र भर सनम
जन्म-जन्म न सही
ठीक कर लो अपना यही जनम
बिलकुल सही बात है आभार्
अच्छी कविता है
जब कभी इंसान को दुसरे की थाली में घी ज्यादा नजर आता है और गलती कर बैठता है। लेकिन चिंतन करने बाद समझ में आता है कि वह गलत कर रहा है तब ऐसी कविता का जन्म होता है।
कहीं मै गलत तो नहीं हूं?
जरा बताना।
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