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मंगलवार, अक्तूबर 19, 2010

१० रुपए से पांच लाख हो गई मैच फीस

जब १९५८ में मैं डेविस कप टीम से भारत के लिए खेलता था तो मुझे एक मैच के लिए फीस के रुप में महज दस रुपए मिलते थे। आज मेरा बेटा जीशान अली खेलता है तो उसे एक मैच के पांच लाख रुपए मिलते हैं। आज लॉन टेनिस में बहुत ज्यादा पैसा हो गया है।
ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए ७२ वर्षीय राष्ट्रीय कोच अख्तर अली ने कहीं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि वे डेविस कप टीम से १९५८ से ६४ तक खेले हैं। उस समय उनके साथ भारतीय टीम में जयदीप मुखर्जी, रामानाथन कृष्णनन, प्रेमजीत लाल और नरेश कुमार खेलते थे। श्री अली पूछने पर बताते हैं कि उन लोगों को तब एक मैच के लिए दस रुपए मिलते थे। उन्होंने कहा कि एक वह जमाना था और एक आज का जमाना है। आज तो टेनिस में पैसों की बारिश हो रही है। आज जब मेरा बेटा जीशान अली खेलता है तो उन्हें एक मैच के लिए पांच लाख रुपए मिलते हैं। उन्होंने बताया कि जब विम्बलडन में रामानाथन कृष्णन खेले थे तो सेमीफाइनल में पहुंचने पर उनको ७५ पौंड मिले थे। आज तो दस हजार पौंड मिलते हैं। अगर कोई खिलाड़ी ग्रैंड स्लैम के पहले चक में भी हार जाता है तो उसे पांच सौ पौंड की रकम मिलती है। पहले चक्र के बाद पैसे ही पैसे हैं।
खेल हो गया है व्यापार
श्री अली कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज खेल पूरी तरह से व्यापार में बदल गया है। इसी के साथ इसमें ग्लैमर भी आ गया है। वे कहते हैं कि खेल का पेशेवर होना गलत नहीं है। आज किसी भी खेल की सफलता के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह खेल पेशेवर हो। खेल के पेशेवर होने पर ही खिलाड़ी उसमें आते हैं और प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। आज लॉन टेनिस अमीरों का खेल नहीं रह गया है। इसमें पैसे आने के कारण अब इस खेल में मध्यमवर्गीय के साथ गरीबी तबके के लोग भी अपने बच्चों को भेजने लगे हैं।
गुरुओं की इज्जत तो अपने देश में है
भारत के राष्ट्रीय कोच होने के साथ कई देशों के राष्ट्रीय कोच रह चुके श्री अली कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि गुरुओं की इज्जत अपने देश में ही होती है। वे कहते हैं कि बाहर के देशों में पैसे तो बेशक हैं, लेकिन वैसा सम्मान वहां नहीं मिल पाता जैसा सम्मान अपने देश में प्रशिक्षकों को मिलता है। वे बताते हैं कि वे बेल्जियम में १९८० से ८५ तक राष्ट्रीय कोच रहे हैं। इसी के साथ वे १९९० से ९४ तक मलेशिया में मुख्य कोच रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन देशों में प्रशिक्षकों को पैसे तो बहुत मिल जाते हैं, लेकिन सम्मान नहीं मिलता है। अपने देश में अख्तर अली को सभी जानते हैं, लेकिन मैं विदेशों में कितने भी साल प्रशिक्षक का काम कर लूंगा तो मुझे वहां जानने वाला कोई नहीं मिलेगा। इसी के साथ विदेश में एक दिक्कत यह भी है कि वहां कोई मर जाए तो उसे कंघे देने वाले नहीं मिलते हैं।
चयन में राजनीति होती है
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि चयन में राजनीति होने से मैं इंकार नहीं कर सकता हूं। उन्होंने बताया कि एक बार डेविस कप टीम के चयन में वे चयनकर्ता थे। उस समय विजय अमृतराज युवा खिलाड़ी थे। मैंने उनका चयन कर लिया था, पर मुङा पर शशि मेेनन को रखने के लिए दबाव  बनाया जा रहा था। मैंने विजय अमृतराज और शशि मेनन का मैच करवा दिया। विजय ने शशि को ६-०, ६-० से पीट दिया। इसके बाद मैंने विजय को टीम में रख लिया। उस समय विजय अमृतराज को अस्थमा था। दूसरे दिन अखबारों में खबर छप गई कि राष्ट्रीय चयनकर्ता ने अस्थमा के मरीज को टीम में रख लिया। उस समय किसी ने विजय की प्रतिभा नहीं देखी।
पालकों की रूचि से बनते हैं बड़े खिलाड़ी
श्री अली ने सानिया मिर्जा के बारे में बताया कि आज अगर वह बड़ी खिलाड़ी हैं तो इसके पीछे उनकी मां का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने बताया कि बंगाल में एक बार उनकी मां ने उनसे कहा था कि अख्तर भाई मैं सानिया को बड़ी खिलाड़ी बनाना चाहती हूं। इसी के साथ पारख बहनों की माता ने मुझसे कहा था कि मैं अपनी लड़कियों को अमरीका की अकादमी में भेजना चाहती हूं ताकि उनको छात्रवृत्ति मिल सके। सानिया की मां चाहती थी इसलिए आज सानिया बड़ी खिलाड़ी हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी खेल में पालकों की रूचि के बिना खिलाड़ी बड़ा नहीं बन सकता है।
भारत में आते हैं बी ग्रेड के कोच
अख्तर अली का मानना है कि भारत में लॉन टेनिस हो या फिर क्रिकेट या फिर कोई भी खेल। हर खेल में जो भी विदेशी कोच आते हैं सभी बी या सी ग्रेड के होते हैं। एक ग्रेड को कोच को बुलाना भारत के बस में नहीं है। वे बताते हैं कि लॉन टेनिस में अमरीका के एक ए ग्रेड के कोच नीक बॉल थ्री एक घंटे के लिए दो हजार डॉलर लेते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जो विदेशी कोच आते हैं उनसे खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण दिलाने की बजाए प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण दिलाना चाहिए। श्री अली का कहना है कि भारत में स्कूल स्तर में खेलों पर ध्यान देने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी  अच्छे हैं उनके लिए यह सौभाग्य की बात है कि उनको विक्रम सिसोदिया जैसे प्रमोटर मिला है। उन्होंने बताया कि श्री सिसोदिया पिछले छह माह से उनके पीछे पड़े थे कि उनको रायपुर आना है। उन्होंने कहा कि उनको जानकारी मिली है कि छत्तीसगढ़ में३७वें राष्ट्रीय खेल होंगे। ऐसे में तय है कि यहां पर मैदानों की कमी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि खेल से जितने ज्यादा लोगों को हो सके जोडऩा है। जितने खिलाड़ी जुड़ते हैं, उससे डबल उनके पालक खेलों से जुड़ते हैं। पालकों का खेलों से लगाव ही खिलाडिय़ों को आगे ले जाने का काम करता है।

2 टिप्पणियाँ:

उम्मतें मंगल अक्तू॰ 19, 02:02:00 pm 2010  

बढ़िया जानकारियों के साथ पोस्ट डाली है आपने !

ASHOK BAJAJ बुध अक्तू॰ 20, 01:06:00 am 2010  

आपका विचार उत्तम है ,अति-सुन्दर पोस्ट .

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