दूध मत पीयो, सब्जी मत खाओ
महंगाई कम करने का तो सरकार में दम नहीं है, लेकिन महंगाई बढऩे के दोष से अपने को बचाने के लिए सरकार तरह तरह के बहाने बनाने में जरूर उस्ताद है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की बात सरकार माने तो वह तत्काल कम से कम ग्रामीणों के दूध पीने और सब्जी खाने पर रोक लगा दे। अपने अहलूवालिया साहब देश में महंगाई के लिए गांव वालों का दूध ज्यादा पीना और सब्जी ज्यादा खाना मानते हैं। तो क्या अहलूवालिया साहब यह चाहते हैं कि गांव वाले दूध की जगह शराब पीए ताकि सरकार का राजस्व बढ़ सके।
आज देश में महंगाई की हालत क्या है, यह बात किसी से छुपी नहीं है। एक आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। महंगाई से आम जनों को निजात दिलाने की दिशा में तो अपनी सरकार कुछ नहीं कर रही है, लेकिन सरकार के नुमाइदें अपनी वाहियात बातों से जरूर और आम जनों का दिमाग खराब करने का काम कर रहे हैं। अब योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलूवालिया साहब के बयान पर ही नजरें डालें तो यह बयान ही हास्यप्रद लगता है। जनाब अहलूवालिया साहब को देश में महंगाई बढऩे का कारण ग्रामीणों का ज्यादा दूध पीना और ज्यादा सब्जी खाना लगता है। ग्रामीण यह सब इसलिए करते हैं क्योंकि उनकी आमदनी बढ़ गई है। शुक्र है कि ग्रामीणों की आमदनी बढ़ी है तो वे अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए दूध पीने के साथ सब्जी ही खाने का काम कर रहे हैं। तो क्या अहलूवालिया साहब चाहते हैं कि ग्रामीणों की आमदनी बढ़ी है तो दूध की जगह शराब पीने का काम करें और सब्जी के स्थान पर फालतू चीजों का सेवन करें, ताकि सरकार का राजस्व बढ़ सके।
वास्तव में ग्रामीणों से तो प्ररेणा लेनी चाहिए कि अगर आदमी की आमदनी में इजाफा हो तो वह दूध और सब्जियों का ही सेवन ज्यादा करें। आज अहलूवालिया ने ग्रामीणों को निशाना बनाया, कल वे कहेंगे कि शहर के लोग अब ज्यादा खाना खाने लग गए हैं जिसकी वजह से महंगाई बढ़ गई है। तो क्या लोग खाना बंद करे देंगे या सरकार खाने पर भी प्रतिबंध लगा देगी।
अहलूवालिया का बयान पूरी तरह से बचकाना और वाहियात लगता है। हम इतना जानते हैं कि यह संभव ही नहीं है कि ग्रामीणों के ज्यादा दूध पीने और सब्जी खाने से महंगाई बढ़ जाए। वैसे भी गांवों में ज्यादातर घरों में जहां दूध देने वाली गायें होती हैं, वहीं घर-घर में सब्जियां लगार्इं जाती हैं। ग्रामीण अपनी बाड़ी की सब्जी खाना और अपने घर का ही दूध पीना पसंद करते हैं। लगता है अपने अहलूवालिया साहब कभी किसी गांव में नहीं गए हैं, वरना वे ऐसी बातें नहीं करते। हमें लगता है कि अहलूवालिया का बस चले तो वे सरकार से कहकर ग्रामीणों के दूध पीने और सब्जी खाने पर ही प्रतिबंध लगवा देंगे।
आज देश में महंगाई की हालत क्या है, यह बात किसी से छुपी नहीं है। एक आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। महंगाई से आम जनों को निजात दिलाने की दिशा में तो अपनी सरकार कुछ नहीं कर रही है, लेकिन सरकार के नुमाइदें अपनी वाहियात बातों से जरूर और आम जनों का दिमाग खराब करने का काम कर रहे हैं। अब योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलूवालिया साहब के बयान पर ही नजरें डालें तो यह बयान ही हास्यप्रद लगता है। जनाब अहलूवालिया साहब को देश में महंगाई बढऩे का कारण ग्रामीणों का ज्यादा दूध पीना और ज्यादा सब्जी खाना लगता है। ग्रामीण यह सब इसलिए करते हैं क्योंकि उनकी आमदनी बढ़ गई है। शुक्र है कि ग्रामीणों की आमदनी बढ़ी है तो वे अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए दूध पीने के साथ सब्जी ही खाने का काम कर रहे हैं। तो क्या अहलूवालिया साहब चाहते हैं कि ग्रामीणों की आमदनी बढ़ी है तो दूध की जगह शराब पीने का काम करें और सब्जी के स्थान पर फालतू चीजों का सेवन करें, ताकि सरकार का राजस्व बढ़ सके।
वास्तव में ग्रामीणों से तो प्ररेणा लेनी चाहिए कि अगर आदमी की आमदनी में इजाफा हो तो वह दूध और सब्जियों का ही सेवन ज्यादा करें। आज अहलूवालिया ने ग्रामीणों को निशाना बनाया, कल वे कहेंगे कि शहर के लोग अब ज्यादा खाना खाने लग गए हैं जिसकी वजह से महंगाई बढ़ गई है। तो क्या लोग खाना बंद करे देंगे या सरकार खाने पर भी प्रतिबंध लगा देगी।
अहलूवालिया का बयान पूरी तरह से बचकाना और वाहियात लगता है। हम इतना जानते हैं कि यह संभव ही नहीं है कि ग्रामीणों के ज्यादा दूध पीने और सब्जी खाने से महंगाई बढ़ जाए। वैसे भी गांवों में ज्यादातर घरों में जहां दूध देने वाली गायें होती हैं, वहीं घर-घर में सब्जियां लगार्इं जाती हैं। ग्रामीण अपनी बाड़ी की सब्जी खाना और अपने घर का ही दूध पीना पसंद करते हैं। लगता है अपने अहलूवालिया साहब कभी किसी गांव में नहीं गए हैं, वरना वे ऐसी बातें नहीं करते। हमें लगता है कि अहलूवालिया का बस चले तो वे सरकार से कहकर ग्रामीणों के दूध पीने और सब्जी खाने पर ही प्रतिबंध लगवा देंगे।
2 टिप्पणियाँ:
अब क्या कहें अहलुवालिया जी कुछ ज्यादा ही सोच रहें हैं ..हा हा..अच्छा जोक मार लेते हैं वो भी...उन्हें शायद सबक की आवश्यकता है...
क्या कहें अब ?
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