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रविवार, जनवरी 30, 2011

चयनकर्ता भगवान: कांबली

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर विनोद कांबली का मानना है कि भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ता तो भगवान हैं। मुझे ही बिना वजह एक बार नहीं बल्कि 9 बार टीम से बाहर किया गया और बाहर करने का कारण भी नहीं बताया गया। विश्व कप में भारत के 99 प्रतिशत जीतने की उम्मीद के साथ वे कहते हैं कि टीम में एक-दो खिलाड़ियों का न हो खल रहा है।
यहां पर चर्चा करते हुए एक सवाल के जवाब में उन्होंने बरसों पुरानी भड़ास निकालते हुए कहा कि चयनकर्ता तो भगवान होते हैं। बकौल श्री कांबली उनको एक बार नहीं बल्कि टीम में वापस आने के लिए 9 बार परीक्षा देनी पड़ी। मुझे हमेशा बिना किसी कारण के टीम से बाहर किया गया। वे मोहिन्दर अमरनाथ द्वारा चयनकर्ताओं को जोकर कहे जाने के बारे में कहते हैं उन्होंने चयनकर्ताओं को ऐसा संभवत: आक्रोश में कहा होगा। एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि उनको लगता है कि महेन्द्र सिंह धोनी की टीम विश्व कप जीतने में सफल होगी। उन्होंने कहा कि मेरी भी दिली तमन्ना है कि हमारी टीम 1983 का इतिहास दोहराए और इस बार विश्व कप जीतकर मेरे बचपन के सखा सचिन तेंदुलकर का सपना पूरा करे। वे कहते हैं कि फाइनल मुंबई में होना है और अगर हमारी टीम वहां पर फाइनल जीतती है इससे ज्यादा सुखद सचिन के लिए और कुछ नहीं हो सकता है। वे कहते हैं कि हम सब अपनी टीम का हौसला बढ़ाने का काम करें और दुआ करें कि टीम 1996 की तरह बाहर न हो।
श्रीसंत को टीम में होना था
श्री कांबली का कहना है कि   भारतीय टीम वैसे तो ठीक है, लेकिन टीम में जहां एक लेग स्पिनर की कमी खल रही है, वहीं एक बल्लेबाज और होना था। वे पूछने पर कहते हैं कि श्रीसंत को टीम में होना था। एक विकेटकीपर रखना क्या जुआ नहीं है? के सवाल पर वे कहते हैं कि ऐसा नहीं है। 1992 और 96 के विश्व कप में भी एक ही विकेटकीपर टीम में थे। 99 में जरूर दो विकेटकीपर थे। वे कहते हैं कि भगवान न करे महेन्द्र सिंह धोनी धायल हों।
मैच फिक्सिंग का दाग धोया जाए
मैच फिक्सिंग पर श्री कांबली कहते हैं कि यह क्रिकेट के लिए एक बदनुमा दाग है, इसको जल्द से जल्द धोने का काम आईसीसी को करना चाहिए। पूछने पर वे कहते हैं कि उनको कभी ऐसा आॅफर नहीं मिला था। वे कहते हैं कि उन्होंने हमेशा दिल से अपने देश के लिए खेलने का काम किया है। श्री कांबली कहते हैं कि मैच फिक्सिंग में शामिल क्रिकेटरों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
सौरभ के साथ गलत हुआ
एक सवाल के जवाब में श्री कांबली कहते हैं कि सौरभ गांगुली के साथ गलत हुआ है। लेकिन चूंकि आईपीएल की टीमें फ्रेंचाइजी हैं ऐसे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। वे पूछने पर कहते हैं कि चीयर गर्ल्स के बारे में अब मैं क्या कह सकता हूं, मैं तो कभी आईपीएल में खेला नहीं हूं। क्या खेलने की इच्छा है, के सवाल पर वे कहते हैं खेलना तो चाहता हूं। फिर हसंते हुए कहते हैं कि लेकिन चीयर गर्ल्स के लिए नहीं।
रायपुर के बारे में राजेश ने बताया था
रायपुर के बारे में उन्होंने कहा कि वे रायपुर के बारे में अपने मित्र राजेश चौहान से बहुत तारीफ सुन चुके थे। आज पहली बार यहां आने का मौका मिला है, यहां आकर अच्छा लगा। उन्होंने कहा कि मैं हीरा ग्रुप का आभारी हूं जिन्होंने मुझे यहां बुलाया। उन्होंने पूछने पर कहा कि मैंने यहां के अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के बारे में सुना है। मेरा मानना है कि इतना अच्छा स्टेडियम है तो जरूर यहां पर अंतरराष्ट्रीय मैच होने चाहिए। लेकिन इसके लिए बीसीसीआई ही कुछ कर सकती है।  

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शनिवार, जनवरी 29, 2011

इंसानियत भी खो दी है पत्रकारिता ने

आज की गला काट प्रतिस्पर्धा के चलते लगता है कि अब पत्रकारिता ने इंसानित से भी नाता तोड़ दिया है। एक अखबार से जुड़े किसी इंसान का निधन हो जाता है तो दूसरे अखबार वाले उसकी खबर को भी प्रकाशित करना जरूरी नहीं समझते हैं।
हम जिस अखबार दैनिक हरिभूमि में काम करते हैं उस अखबार के प्रमुख और आर्य समाजी, उद्योगपति चौधरी मित्रसेन आर्य का 27 जनवरी को निधन हो गया। उनके निधन का समाचार राजधानी के अखबारों से गायब रहा। एक अखबार नेशनल लूक को छोड़कर और किसी ने इस खबर को प्रकाशित करना जरूरी नहीं समझा। हम इस बात का उल्लेख यहां पर कदापि इसलिए नहीं कर रहे हैं कि यह हमारे अखबार के प्रमुख से जुड़े होने का मामला है। सवाल इस बात का नहीं है। सोचने वाली बात है कि क्या आज की गला काट प्रतिस्पर्धा में अखबार इतने अंधे हो चुके हैं कि उनको इंसानित से भी कोई लेना-देना नहीं है। वैसे इसमें कोई दो मत नहीं है कि वास्तव में अखबार इंसानित खो चुके हैं। चाहे वह किसी दूसरे अखबार से जुड़े किसी पत्रकार की हत्या का मामला हो या और कोई मामला हो।
छत्तीसगढ़ में हाल ही में दो पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। बिलासपुर के एक पत्रकार सुशील पाठक के बाद ग्रामीण पत्रकार छुरा के उमेश राजपूत की हत्या हुई है। वे जिस अखबार दैनिक नई दुनिया से जुड़े हैं, उनके लिए पत्रकार की हत्या होना लगता है चिंतन का विषय नहीं है, वे अपने इस पत्रकार की हत्या के बाद ये बताने में लगे हैं कि वे पूर्णकालिक नहीं अंशकालिक पत्रकार थे। भाई पत्रकार तो पत्रकार होता है। इस मुद्दे पर हमारे पत्रकार मित्र अहफाज रसीद ने बहुत अच्छा लिखा है। उन्होंने पत्रकारिता की दुकान चलाने वालों को आड़े हाथों लिया है। अहफाज और उनके साथियों ने छुरा का दौरा भी किया। इसके लिए उनकी पूरी टीम साधुवाद की पात्र है। चलो हमारे कुछ पत्रकारों ने समय निकाल कर छुरा के मृतक पत्रकार के घर जाकर अपनी संवेदना तो दिखाई। जिस अखबार में पत्रकार मित्र उमेश राजपूत काम करते थे, उस अखबार के लोगों ने भी वहां जाना जरूरी नहीं समझा।
उमेश राजपूत की हत्या की खबर के साथ एक बात जरूरी अच्छी हुई कि इस खबर को इस बार कम से कम सभी अखबारों ने प्रकाशित किया। वरना इसके पहले सुशील पाठक की हत्या की खबर को भास्कर के प्रतिद्वंद्वी अखबार पत्रिका ने प्रकाशित करना जरूरी नहीं समझा था।
बहरहाल वास्तव में यह एक चिंतन का विषय है कि आज की पत्रकारिता की दिशा कहां जा रही है। देखा जाए तो पत्रकारिता पर पूरी तरह से अखबारों का प्रबंधन हावी हो गया है, बिना प्रबंधन की इजाजत के मजाल है कि कोई खबर प्रकाशित करने का काम किसी अखबार का संपादक और पत्रकार कर ले। लिखने को तो बहुत कुछ है, लेकिन शेष अगली बार लिखेंगे। फिलहाल इतना ही।  

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शुक्रवार, जनवरी 28, 2011

ब्लागरों को कुछ नहीं आता- फर्जी आईडी वाले ही हैं बड़े ज्ञाता

अपने ब्लाग जगत में लगता है फर्जी आईडी बनाकर टिप्पणी करने वाले अपने को सबसे बड़ा ज्ञाता और तोप की नाल समझते हैं। इनको लगता है कि इनका जन्म ही दूसरों को ज्ञान बांटने के लिए हुआ है। अरे भाई अगर आप इतने ही बड़े ज्ञाता हैं तो क्यों कर गुमनामी में रहना चाहते हैं अरे अपने असली नाम से सामने आएंगे तो कम से कम लोग आप जैसे महान इंसानों की पूजा तो करेंगे कि आप लोगों ने कई भटके हुए लोगों को रास्ता दिखाया, जैसा कि आप लोगों को लगता है कि आप ऐसा काम कर रहे हैं। वैसे हमारा पहले भी ऐसा मानना था और आज भी है कि ऐसे लोग विकृत मानसिकता वाले होते हैं।
हमें एक बात बहुत अच्छी तरह से समझ में आ गई है कि अगर आपको ब्लाग जगत में रहना है कि तो किसी न किस गुट का हिस्सा बनकर रहना ही होगा। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो यह मानकर चलिए कि यहां पर ऐसे-ऐसे महान ज्ञाता हैं जो फर्जी आईडी बनाकर आपको इतना ज्यादा परेशान कर देंगे कि या तो आप ब्लाग लिखना बंद कर देंगे या फिर आप अपने ब्लाग में मॉडरेशन लगा देंगे, नहीं तो हो सकता है कि आप अपने ब्लाग में टिप्पणी का रास्ता बंद कर दें। हमने जब से गुटबाजी से किनारा किया है, तभी से हमारे ब्लाग में करीब एक साल से कोई बड़े ज्ञाता लगातार नाम बदल-बदल कर टिप्पणी करते हैं। एक बार उनको किसी नाम से फटकार लगाने की देर नहीं होती है कि फिर से नए नाम से अवतरित हो जाते हैं। इसका मलतब साफ है कि कोई एक या फिर ज्यादा लोग हैं जो हमारे गुटबाजी से किनारा करने की वजह से खफा हैं। अरे भाई आपको अगर गुटबाजी पसंद है तो गुटबाजी में लगे रहे हमारा क्या जाता है, लेकिन जो लोग गुटबाजी में रहना पसंद नहीं करते हैं उनको क्यों कर ऐसे कीचड़ में खींचने का काम कर रहे हैं। वैसे यह बात भी है यह मानवीय प्रवृति है कि जो इंसान जैसा होता है, वो सोचता है कि दूसरे भी उनके जैसे हो जाएं। लेकिन जब कोई उनके बताए रास्ते पर नहीं चलता है तो वे ऐसे लोगों के रास्ते में बाधा बनने का काम करते हैं।
अब जिनका काम गंदगी करना है वे तो गंदगी ही करेंगे। अपने ब्लाग जगत में तो महिलाओं के साथ भी बड़ा गंदा सलूक किया जाता है। ऐसे में कई बार लगता है कि हम कहां गलत जगह आ गए हैं यार। फिर सोचते हैं कि जिनकी मानसिकता विकृत है वे तो गलत काम ही करेंगे, हमें तो बस अपना काम करना चाहिए। यही सोचकर हम अपना काम करते हैं। लेकिन हम भी इंसान हैं, जब कोई बार-बार बिना वजह हमें परेशान करने का काम करेगा तो गुस्सा आना स्वाभाविक है। जब गुस्सा ज्यादा हो जाता है तो कुछ न कुछ लिखना पड़ता है। हम जानते हैं कि ऐसे लोगों की मानसिकता यही रहती है कि उनके खिलाफ लिखा जाए, ऐसा करके हम उनका मकसद ही पूरा करते हैं, लेकिन बर्दाश्त करने की भी एक सीमा होती है। लेकिन हम जानते हैं कि कुछ लिखने से कुछ होने वाला नहीं है क्योंकि एक कहावत है कि कुत्ते की पूछ को 12 साल भी नली में डाल कर रखा जाए तो वो सीधी नहीं होती है, तो फिर ये विकृत मानसिकता वाले कैसे सीधे हो सकते हैं, इनमें और कुत्ते की पूछ में अंतर तो होता नहीं है। संभव है हमारी बात किसी को बुरी लगे, लेकिन जब आप किसी को लगातार परेशान करेंगे तो उसके गुस्से का लावा तो फूटेगा ही। जब लावा निकलता है तो उसकी आग कहीं न कहीं तो लगेगी। अब आग लगे या भूचाल आए विकृत मानकिसता वालों के खिलाफ हम हमेशा लड़ते रहे हैं और लड़ते रहेंगे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा हमें अपने ब्लाग में टिप्पणी का रास्ता बंद करना पड़ेगा, फिर क्या करेंगे ऐसी विकृत मानसिकता वाले। हमारे अखबार के पते पर टिप्पणियों को पोस्ट करने का भी काम किया गया, हमने उन पत्रों को कचरे की पेटी का रास्ता दिखा दिया है। इनका पास जब कोई रास्ता ही नहीं होगा  तो क्या करेंगे ऐसे बड़े ज्ञाता।  

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गुरुवार, जनवरी 27, 2011

फेडरेशन कप बास्केटबॉल में जीतेंगे सोना

राजधानी रायपुर में होने वाले फेडरेशन बास्केटबॉल में हमारी दावेदारी कम से कम महिला वर्ग में बहुत ज्यादा मजबूत है। हमारी टीम जरूर सोना जीतने में सफल होगी। हमारी टीम इसके पहले दो बार स्वर्ण पदक जीत चुकी है। मेजबान होने का भी टीम को फायदा मिलेगा। इसी के साथ झारखंड में होने वाले राष्ट्रीय खेलों का भी यह एक तरह से पूर्वाभ्यास होगा।
ऐसा मानना है कि छत्तीसगढ़ की महिला बास्केटबॉल टीम के अंतरराष्ट्रीय कोच राजेश पटेल का। वे कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि हमारी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सक्षम है। हमारी टीम में आधा दर्जन खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय हैं। इसी के साथ टीम में सभी खिलाड़ी अनुभवी हैं। महिला टीमों के बारे में श्री पटेल बताते हैं कि महिला वर्ग में मेजबान छत्तीसगढ़ के साथ द. रेलवे चेन्नई, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और पंजाब की टीमें हैं। उन्होंने पूछने पर बताया कि इन टीमों में से रेलवे की टीम झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में नहीं खेल पाएगी। उसके स्थान पर मेजबान टीम को प्रवेश मिल जाएगा। उन्होंने बताया कि अंतर रेलवे स्पर्धा की विजेता टीमों को महिला के साथ पुरुष वर्ग में भी फेडरेशन कप में स्थान दिया जाता है। श्री पटेल कहते हैं कि रायपुर में होने वाला फेडरेशन कप हमारे लिए इस मायने में भी महत्वपूर्ण होगा कि यहां से हमारी टीम सीधे झारखंड के राष्ट्रीय खेलों में खेलने जाएगी।  यहां जीतने के बाद हमारा मकसद झारखंड में भी स्वर्ण जीतने रहेगा।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ के 10 सालों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि पुरुष टीम को राष्ट्रीय खेलों के साथ फेडरेशन कप में खेलने की पात्रता मिली है। हमारी पुरुष टीम के सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीद है। इस टीम से पदक की उम्मीद तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन टीम पदक जीतने का जरूर प्रयास करेगी।
प्रदेश की संभावित 16 महिला खिलाड़ी इस प्रकार है । अंजू लकड़ा,  सीमा सिंह, भारती नेताम, एम. पुष्पा, आकांक्षा सिंह, अरुणा किन्डो, एल दीपा, शोषण तिर्की, निकीता गोदामकर, कविता सभी दपूमध्य रेलवे बिलासपुर ,कविता, जेलना जोस, रंजीता कौर, पुष्पा निषाद सभी भिलाई इस्पात संयंत्र, पूजा देशमुख रायपुर जिला, महिला टीम के मुख्य प्रशिक्षक राजेश पटेल  भिलाई इस्पात संयंत्र, तथा सहायक प्रशिक्षक के रुप में इकबाल अहमद खान, सरजीत चक्रवर्ती, एवं एमवीवीजे सूर्यप्रकाश सभी भिलाई हैं।
संभावित पुरुष वर्ग की टीम इस प्रकार है- अजय प्रताप सिंह, अंकित पाणिग्रही, पवन तिवारी, समीर राय, केÞ राजेश कुमार सभी भिलाई इस्पात संयंत्र, किरण पाल सिंह, लुमेन्द्र साहु, मनोज सिंह, शिवेन्द्र निशाद, श्रवण कुमार  सभी दपूमध्य रेलवे, बिलासपुर, आशुतोष सिंह, जानकी रामनाथ कुमार, आनंद सिंह, सभी दुर्ग जिला, नलिन शर्मा रायपुर जिला, शशांक राजनांदगांव जिला। पुरुष टीम के मुख्य प्रशिक्षक आरएस गौर  भिलाई इस्पात संयंत्र, एवं सहायक प्रशिक्षक एस दुर्गेश राजु  भिलाई इस्पात संयंत्र हैं।

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सोमवार, जनवरी 24, 2011

भारत में भी खेल कानून अधिकरण बनेगा

भारत में भी जल्द खेल कानून के लिए एक भारतीय खेल अधिकरण बनेगा। इसको बनाने की जिम्मेदारी भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) को दी गई है। अगर आईओए ने इस मामले में कोताही की तो उसकी मान्यता अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक परिषद समाप्त कर देगा। राष्ट्रीय खेलों के समय 12 फरवरी को झारखंड में होने वाली सामान्य सभा में इस अधिकरण के बनाने का प्रस्ताव मंजूर कर दिया जाएगा।
ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए खेल कानून के ज्ञाता दिल्ली के अमरेश कुमार ने कहीं। उन्होंने कहा कि यह वास्तव में बहुत ही दुर्भाग्यजनक है कि खेल कानून की नींव भारत में ही 1994 में रखी गई थी, लेकिन इसके बाद भी भारत में अब तक खेल कानून के लिए अधिकरण का गठन नहीं हो सका है। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक परिषद के अंर्तगत अंतरराष्ट्रीय खेल कानून अधिकरण है। इस अधिकरण का मुख्यालय लूसान (स्विटजरलैंड) में है। कई देशों में तो इसकी शाखाएं हैं, लेकिन भारत में अब तक इसकी शाखा नहीं बन पाई है। अब अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक परिषद ने इसके लिए भारतीय ओलंपिक संघ को गंभीरता से पहल करने के लिए कहा है। भारतीय ओलंपिक संघ से जल्द से जल्द अधिकरण बनाने कहा गया है। उन्होंने बताया कि इस बारे में अंतरराष्ट्रीय परिषद को आईओए ने सूचित किया है कि झारखंड के राष्ट्रीय खेलों के समय 12 फरवरी को होने वाली सामान्य सभा में इस अधिकरण को बनाने का प्रस्ताव मंजूर कर लिया जाएगा। यहां यह बताना लाजिमी है कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक परिषद से मिले निर्देशों के मुताबिक इसी सामान्य सभा में राज्य ओलंपिक संघों का भी भविष्य तय होना है।
विवादों का तुंरत होगा निपटारा
अमरेश कुमार ने बताया कि भारत में अधिकरण बनने के बाद यहां पर खेल संघों के बीच जो विवाद होते हैं उनका जल्द निपटारा होगा। उन्होंने बताया कि अपने देश में एक दर्जन से ज्यादा ऐसे खेल हैं जिनके दो-दो राष्ट्रीय संघ हैं । ऐसे में इनके मामले कोर्ट में चल रहे हैं। कोर्ट के मामले लंबे समय तक चलने के कारण खिलाड़ियों को नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय खेल कानून परिषद में जब कोई मामला जाता है तो उसका निराकण 48 घंटे में कर दिया जाता है। ओलंपिक, एशियाड, कामनवेल्थ और अन्य अंतरराष्ट्रीय आयोजन में अधिकरण के कोर्ट लगाए जाते हैं। कोई मामला कठिन लगता है तो उसके लिए लूसान के मुख्यालय में अपील की जाती है। इस अपील पर फैसला करने के लिए अधिकतम 48 दिनों की समय सीमा तय है। उन्होंने बताया कि जब भारत में भी अधिकरण बनाया जाएगा तो यहां भी वही नियम लागू होगा। उन्होंने बताया कि एक खेल संघ का मामला तो 1988 से चल रहा है इसका फैसला अभी तक नहीं हो सका है।
खेल कानून के जानकार कम 
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया है जहां तक भारत में खेल कानून के जानकारों की बात है तो अपने देश में इस समय मेरे अलावा दो और जानकार हैं। उन्होंने बताया कि एक और जानकार दिल्ली और एक मुंबई में हैं। उन्होंने बताया कि खेल कानून के जानकारों की संख्या बढ़ाने के लिए दिल्ली में खेल कानून पर एक सेमिन्नार का आयोजन 26 फरवरी को किया जा रहा है। इसमें खेल कानून के अंतरराष्ट्रीय जानकारों को बुलाया जा रहा है जिसमें कोरिया के एक जानकार और इंग्लैंड के डॉ. लिंक क्रिस को बुलाया गया है। इनके द्वारा जो खेल कानून से जुड़ना चाहते हैं उनको जानकारी दी जाएगी। उन्होंने बताया कि भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी के साथ महासचिव राजा रणधीर सिंह भी खेल कानून अधिकरण बनाने के लिए गंभीर है। इसके पहले पूर्व केन्द्रीय खेल मंत्री एमएस गिल भी इस अधिकरण को बनाने की सिफारिश कर चुके हैं।

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रविवार, जनवरी 23, 2011

व्यावसायिक शिक्षा ने की संस्कृति चौपट

संसदीय सचिव विजय बधेल का कहना है कि आज की व्यावसायिक शिक्षा ने पूरी तरह से भारतीय संस्कृति को चौपट कर दिया है। एक समय वह था जब स्कूल और कॉलेजों में व्यावाहारित शिक्षा भी दी जाती थी, लेकिन काफी समय से इसको बंद कर दिया गया है। आज हर क्षेत्र पूरी तरह से पेशेवर हो गया है। खेल के क्षेत्र में जिस खेल में ज्यादा पैसे हैं उसी खेल की तरफ खिलाड़ी भागते हैं।
श्री बधेल यहां पर शारीरिक शिक्षा के राष्ट्रीय सेमिनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज समाज में जब कोई अपनी लड़की की शादी के बारे में सोचता है तो वह यह देखता है कि लड़का कितना कमाता है। भले बाद में लोग लड़के के अवगुणों के कारण अपने साथ लड़की की किस्मत को कोसते हैं। उन्होंने कहा कि आज की व्यावसायिक शिक्षा ने व्यावहारिक शिक्षा का समाप्त कर दिया है। एक समय वह था जब स्कूलों में शारीरिक शिक्षा के साथ बागवानी के विषय होते थे। इसी के साथ बड़ों से कैसे शिष्टाचार से पेश आना है, यह भी सिखाया जाता था, लेकिन अब स्कूलों में ऐसी पढ़ाई नहीं होती है।
उन्होंने कहा कि आज खेल की भी बात करें तो खेल भी पूरी तरह से पेशेवर हो गया है। आज खिलाड़ी भी उसी खेल से नाता जोड़ते हैं जिस खेल में ज्यादा पैसा है। कबड्डी के खिलाड़ी रहे श्री बधेल ने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि जब हम लोग खेलते थे तो विजेता टीम को 71 रुपए का इनाम मिलता था। आज यह राशि बहुत ज्यादा हो गई है।
खिलाड़ियों का भविष्य सुरक्षित  करने में लगी है सरकार
श्री बधेल ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर राज्य के खिलाड़ियों का भविष्य सुरक्षित करने में लगी है। एक तरफ जहां राज्य के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को नौकरी देने की पहल की जा रही है, वहीं खेलों को निजी उद्योगों को गोद दिलाने के साथ इनको खिलाड़ियों को नौकरी देने के लिए भी कहा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों का भविष्य सुरिक्षत करना जरूरी है क्योंकि अपने देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को कई बार पदक बेचने पड़ जाते हैं। खिलाÞड़ी अपना परिवार नहीं चला पाते हंै। कार्यक्रम को साइंस कॉलेज के प्राचार्य केएन बापट के साथ देश भर के राज्यों से आए शारीरिक शिक्षा के विशेषज्ञों ने संबोधित करते हुए अपने विचार रखे।
पायका के बाद अब मायका
सेमिनार में विशेषक्ष शिवनाथ मुखर्जी ने बताया कि केन्द्र सरकार की पायका योजना के बाद अब मायका योजना आने वाली है। यह योजना नगर पालिकाओं के लिए होगी। उन्होंने कहा पायका से ग्रामीण खिलाड़ियों को सामने आने का मौका मिल रहा है। खेल की ज्यादातर प्रतिभाएं गांवों में रहती हैं। इन प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए। देश में 1982 में हुए एशियाड के बाद खेल नीति बनी थी। खेलों के आयोजन से जागरूकता बढ़ती है। ऐसे आयोजन ज्यादा हो इसका ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में शारीरिक शिक्षा के कॉलेज तो जरूर खुल गए हैं, लेकिन उनका स्तर ठीक नहीं है। स्तर को ठीक करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ज्यादातर पालक अपने बच्चों को शारीरिक शिक्षा में भेजने से कतराते हैं। पालकों को अपने बच्चों को इस क्षेत्र में भेजना चाहिए।

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शनिवार, जनवरी 22, 2011

मैदान पर भिड़े गौरी-किरण

अखिल भारतीय हिन्द स्पोर्टिंग फुटबॉल के उद्घाटन में मैदान पर ही खनिज निगम के अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल और महापौर किरणमयी नायक फुटबॉल मैदान को लेकर भिड़ गए। दोनों के बीच चले शब्द भेदी बाणों से आयोजनों को भी लगा कि उन्होंने दो अलग-अलग पार्टी के नेताओं को एक मंच पर बिठाकर गलती कर दी है।
लाखेनगर के मैदान में फुटबॉल के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता कर रही महापौर किरणमयी नायक को जब उद्बोधन के लिए बुलाया गया तो उन्होंने सीधे सरकार और खेल विभाग को निशाना बनाते हुए कहा कि मैदानों को बनाने का काम खेल विभाग का है, लेकिन राज्य बनने के दस साल बाद भी खेल विभाग ने एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम को छोड़कर और कोई मैदान नहीं बनाया है। हिन्द स्पोर्टिंग एसोसिएशन के पदाधिकारियों को चाहिए कि इस मैदान में स्टेडियम बनवाने के लिए वे खेल विभाग से संपर्क करें और विभाग से कहा जाए कि अगर उनके बजट में पैसे न हो तो अगले बजट में यहां पर स्टेडियम बनाने के लिए बजट मांगा जाए। महापौर ने कहा कि जो काम खेल विभाग को करना चाहिए, वह नहीं कर रहा है लेकिन निगम निजी कंपनियों से जरूर मदद लेकर राजधानी के मैदानों को बचाने और बनाने के प्रयास में जुटा है। उन्होंने कहा कि निगम चाहता है कि मैदानों को खेल के लिए ही सुरक्षित रखा जाए, लेकिन इसका क्या किया जाए कि अपने बीच के लोग की सिफारिश लेकर आ जाते हैं कि नियमों को शीथिल करके दूसरे आयोजनों के लिए मैदान दिए जाए। उन्होंने कहा कि राजधानी में आयोजनों के लिए वैसे भी स्थानों की कमी है, ऐसे में हिन्द स्पोर्टिंग के मैदान को बनाते समय अगर इस बात का  ध्यान रखा जाए कि यहां पर खेल के समय खेल हो और बाकी समय में दूसरे आयोजनों के लिए इसका उपयोग हो तो अच्छा रहेगा। उन्होंने कहा कि यह मेरा सुझाव है।
खेल मैदान में राजनीति न हो
महापौर के उद्बोधन के बाद जब मुख्यअतिथि खनिज निगम के अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के बोलने की बारी आई तो उन्होंने महापौर पर हमला बोलते हुए कहा कि खेल के मैदान में राजानीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नियम कानून भी कोई चीज होती है या नहीं। उन्होंने कहा कि जहां तक मुझे नियमों की जानकारी है, उसके मुताबिक चूंकि हिन्द स्पोर्टिंग का मैदान निजी संपति है ऐसे में यहां पर खेल विभाग निर्माण नहीं करवा सकता है। उन्होंने कहा कि यह बात अलग है कि खेल भावना को देखते हुए सरकार और निगम का अमला बैठकर कोई रास्ता निकाले ताकि यहां पर स्टेडियम बन सके। उन्होंने कहा कि सरकार पर यह आरोप लगाना ठीक नहीं है कि सरकार ने दस साल में सिर्फ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम दिया है। सरकार ने राज्य के हर विकासखंड में एक-एक स्टेडियम बनाने की मंजूरी दी है और ये स्टेडियम बन भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में जो इंडोर स्टेडियम बनकर तैयार है, उसके लिए निगम एजेंसी है, बाकी बजट तो सरकार ने दिया है। उन्होंने कहा कि भाजपा के शासन काल में जितना विकास खेलों की दिशा में हुआ है, उतना पहले नहीं हुआ। श्री अग्रवाल ने अंत में एक बार फिर से कहा कि मेरा ऐसा मानना है कि खेल के मैदान में राजनीति होनी ही नहीं चाहिए।

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बुधवार, जनवरी 19, 2011

रणजी की मैच फीस डेढ़ सौ से डेढ़ लाख हो गई

रणजी में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले हरियाणा के पूर्व क्रिकेटर अमरजीत केपी का कहना है कि रणजी की मैच फीस डेढ़ सौ रुपए से अब डेढ़ लाख हो गई है। उनके जमाने में 20 साल पहले काफी कम पैसे मिलते थे।
अंडर 19 एसोसिएट क्रिकेट के मैच रेफरी के रुप में यहां आए अमरजीत ने पूछने पर बताया कि जब वे लोग 20 साल पहले खेलते थे, तो उस जमाने में एक सौ पचास रुपए एक मैच के लिए मिलते थे, लेकिन अब तो क्रिकेट में पैसो की बारिश होने लगी है। आज रणजी के एक मैच में क्रिकेटरों को मैच फीस के रूप में करीब डेढ़ लाख मिल जाते हंै। उन्होंने बताया कि उन्होंने रणजी 109 मैचों में रिकॉर्ड 7624 रन बनाए थे। उनके इस रिकॉर्ड को कुछ समय पहले अमोल मजूमदार ने तोड़ा है। वे बताते हैं कि उनके रणजी के रिकॉर्ड रनों के कारण भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने उनका पिछले साल सम्मान किया था।
यहां पर मैच रेफरी के रूप में आए अमरजीत ने एक सवाल के जवाब में कहा कि ऐसा सुंदर और अच्छा स्टेडियम भारत में और कहीं नहीं है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोगों की तारीफ करते हुए कहा कि उनको यहां के लोग बहुत अच्छे लगे। एक सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि उनको छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने बुलाया जाएगा तो वे जरूर आएंगे। वे कहते हैं कि वे अपने राज्य के खिलाड़ियों को भी तराशने का काम करने वाले हैं। बकौल अमरजीत उन्होंने अपने खेल जीवन में जो सीखा है उसको दूसरे खिलाड़ियों को न बताया जाए तो क्या मतलब है। वे कहते हैं कि इसी के साथ यह बी जरूरी है कि उनसे जो गलतियां हुई है कम से कम वैसी गलती आज के क्रिकेटर न करेें।

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मंगलवार, जनवरी 18, 2011

विश्व कप हम जीतेंगे: अनिल कुम्बले

भारत के स्टार स्पिनर अनिल कुम्बले का कहना है कि भारत के पास इस बार मौका है विश्व कप जीतने का। हमारी टीम 2003 में फाइनल में भले हार गई थी, लेकिन इस बार टीम बहुत ही संतुलित लग रही है। हम इस बार विश्व कप जीतेंगे, इसकी मुझे पूरी उम्मीद है।
यहां पर परसदा के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में उन्होंने कहा कि विश्व कप के लिए तय की गई भारतीय टीम बहुत ज्यादा संतुलित है। टीम में तीन स्पिनरों का रहना टीम के लिए फायदेमंद रहेगा। पूछने पर उन्होंने कहा कि टीम में एक विकेट कीपर के होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, किसी भी विकेट कीपर के घायल होने की संभावना कम होती है। उन्होंने कहा कि विश्व कप के भारत में होने का भारतीय टीम को जरूर फायदा मिलेगा। उन्होंने पूछने पर कहा कि मेरे हिसाब से तो 20 खिलाड़ी टीम में रहने के पात्र थे, लेकिन टीम तो 15 की ही बननी है, ऐसे में किसी न किसी को तो बाहर होना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अब हम इन 15 खिलाड़ियों से उम्मीद कर रहे हैं कि ये भारत के लिए 1983 की तरह विश्व कप जीतने का कारनामा करेंगे।
रायपुर के स्टेडियम के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि वास्तव में यह बहुत अच्छा स्टेडियम है यहां पर जरूर अंतरराष्ट्रीय मैच होने चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे स्टेडियम अपने देश में बहुत कम हैं।
राजेश चौहान को किया याद
जब उनसे पूछा गया कि एक जमाने में आपकी, राजेश चौहान और वेंकटपति राजू की जैसी स्पिन तिकड़ी थी, वैसी तिकड़ी फिर नहीं बन पाई तो उन्होंने जहां यह कहा कि हर समय एक जैसा नहीं होता, वहीं राजेश चौहान के बारे में पूछा कि वे क्या कर रहे हैं। उनको बताया गया कि वे भिलाई में अपनी अकादमी चला रहे हैं। श्री कुम्बले ने कहा कि वैसे तीन स्पिनर तो विश्व कप की टीम में भी रखे गए हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ से कोई प्रस्ताव आएगा तो कर्नाटक की टीम से साथ मैच के बारे में जरूर सोचा जाएगा।
कर्नाटक को प्रतिनिधित्व न मिलने से निराश
विश्व कप की टीम में कर्नाटक के किसी खिलाड़ी को मौका न मिलने से अनिल कुम्बले बहुत निराश दिखे। वे हाल ही में कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने हैं। उन्होंने साफ कहा कि पांच विश्व कपों में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व रहा है, पहली बार कर्नाटक के किसी खिलाड़ी को टीम में स्थान नहीं मिल पाया है। उनको मुरली विजय के टीम में आने की उम्मीद थी, लेकिन उनको मौका नहीं मिल सका।
छत्तीसगढ़ आना अच्छा लगा
पहली बार छत्तीसगढ़ आए श्री कुम्बले ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उनको छत्तीसगढ़ आना अच्छा लगा। उन्होंने पूछने पर कहा कि उनको जब भी याद किया जाएगा, वे यहां जरूर आएंगे।

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सोमवार, जनवरी 17, 2011

दौड़-दौड़ कर खरीदा ट्रेक्टर

राज्य मैराथन में दौड़-दौड़ कर बस्तर की कश्यप बहनों ने अपने परिवार के लिए एक ट्रेक्टर खरीदा और परिवार जिंदगी को ही बदल दिया। कश्यप बहनें मैराथन में इतना दौड़ी की उन पर लगातार पैसों की बारिश होती रही। इनामी राशि से इन्होंने अपने पापा के लिए बाइक भी खरीदी है। परिवार की पांच बहनों में से तीन बहनें ललिता, प्रमिला और चन्द्रावती ने अब तक राज्य मैराथन में ही आठ लाख की इनामी राशि जीत ली है। इस राशि से परिवार की बदहाली दूर हो गई है।
पाटन में राज्य मैराथन का खिताब एक बार फिर से जीतने के साथ एक लाख की इनामी राशि पर कब्जा जमाने वाली ललिता ने बताया कि वह अब तक राज्य मैराथन में जहां तीन बार विजेता बनीं हैं, वहींं एक बार दूसरे और तीसरे स्थान के साथ एक बार सातवें स्थान पर रहीं हैं। इसी के साथ उनकी बहनें प्रमिला और चन्द्रावती भी राज्य मैराथन में नकद राशि जीतती रही है। कुल मिलाकर कश्यप बहनों ने अब तक 8 लाख की राशि जीती है।
ललित कहती हैं कि उनकी तमन्ना अपने देश के साथ विश्व में छत्तीसगढ़ का नाम रौशन करने की है। पूछने पर वह कहती हैं कि अगर उनके बस्तर में सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षक की व्यवस्था कर दें तो मेरी जैसी और कई खिलाड़ी राज्य को मिल सकती हैं। वह बताती हैं कि उनको बचपन से धर्मपाल सैनी ही प्रशिक्षण दे रहे हैं। ललिता एक बार दिल्ली की एक मैराथन में भाग ले चुकी हैं, वहां उनको तीसरा स्थान मिला था। ललिता ने बताया कि बड़ौदा में एक बार पैदल चाल में भी उनको तीसरा स्थान मिला था।
इन खिलाड़ियों के कोच और माता रुकमणी सेवा संस्थान के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी बताते हैं कि उनके आश्रम में बचपन से पढ़ाई करने वाली कश्यप बहनों ने 8 लाख की इनामी राशि जीतकर अपने परिवार की बदहाली को दूर किया है। इनको मिली इनामी राशि से परिवार ने न सिर्फ एक ट्रेक्टर खरीदा है, बल्कि कश्यप बहनों ने अपने पिता के लिए एक बाइक खरीदी है। अपने घर को पक्का बनाने के साथ एक छोटी सी दुकान भी खोल ली है। श्री सैनी ने बताया कि ललिता का परिवार संगकरमरी गांव में रहता है। यह गांव जंगल में है।

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रविवार, जनवरी 16, 2011

उडऩ तश्तरी आज रायपुर की जमीं पर

अचानक कल शाम को अनिल पुसदकर का फोन आया कि राजकुमार उडऩ तश्तरी कल सुबह को 11 बजे प्रेस क्लब में उतरने वाली है। आप सभी ब्लागर मित्र समझ तो गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। जी, हां बिलकुल वही उडऩ तश्तरी यानी समीर लाल।
समीर भाई से काफी पहले वादा किया था कि उनकी उडऩ तश्तरी जरूर एक दिन रायपुर की जमीं पर आएगी, और आज वह दिन आ गया है। अनिल भाई से सूचना मिलने के बाद हम उनसे मिलने तो बेताब हो गए हैं। बस अब कुछ ही देर बाद हम यह छोटी सी पोस्ट लिखकर प्रेस क्लब जाएंगे। समीर भाई के पूरे कार्यक्रम की तो फिलहाल हमें भी जानकारी नहीं है, लेकिन जितना मालूम है उसके मुताबिक उनका रायपुर में बड़ा की व्यस्त कार्यक्रम है। बहरहाल अब बाकी बातें कल होंगी उनकी समीर भाई की तस्वीरों के साथ।

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शनिवार, जनवरी 15, 2011

लाल बत्ती मिलने पर भी नहीं बदले अशोक बजाज

अपने ब्लागर मित्र अशोक बजाज को छत्तीसगढ़ सरकार में लाल बत्ती मिल गई है। वे वेयर हाउसिंग के अध्यक्ष हैं। लेकिन इसके बाद भी वे नहीं बदले हैं और उनका व्यवहार आज भी पहले की तरह सामान्य है। एक कार्यक्रम में उनसे मुलाकात होने पर वे अपने पुराने अंदाज में ही मिले और हमसे गले मिलकर एक फोटो भी खींचवाई।
राजधानी में राज्य तीरंदाजी के समापन अवसर पर भाई अशोक बजाज आए और जैसे ही उनकी नजरें हम पर पड़ीं वे अपने पुराने अंदाज में बोले और आदरणीय क्या हाल है।
हमने कहा ठीक है।
उन्होंने हमें गले लगाया और फोटोग्राफर से कहा कि यार एक फोटो खींचो।
हमने उनसे मजाक में कहा कि क्या ब्लाग में फोटो डालनी है।
वे जवाब में मुस्कुरा दिए।
इसके बाद कार्यक्रम के मंच पर उनसे कुछ देर तक चर्चा हुई।
हमने उनसे कहा कि, मानना पड़ेगा आप तो पक्के ब्लागर हंै, इतनी व्यस्तता के बाद भी आप नियमित लिख रहे हैं। वास्तव में यह अपने आप में बड़ी बात है कि लाल बत्ती मिलने के साथ अशोक बजाज का काम बहुत बढ़ गया है लेकिन इसके बाद भी वे लगातार लिख रहे हैं। उनकी इस लगन को हम सलाम करते हैं। ब्लाग जगत को ऐसेे ब्लागर मित्रों की ही जरूरत है। बजाज जी एक नहीं बल्कि चार-चार ब्लाग हैं।
बहरहाल हम अशोक बजाज को बरसों से जानते हैं, वे पुराने रेडियो श्रोता हंै और भी वे रेडियों श्रोताओं के बहुत करीब हैं। उनके मार्गदर्शन में यहां कई श्रोता सम्मेलन भी हो चुके हैं। श्री बजाज पहले जितने सरल और सहज थे, आज भी लालबत्ती मिलने के बाद वे उतने ही सरल हैं। वरना कहां, जब किसी के हाथ में पॉवर आ जाता है तो वे आसमान में उडऩे लगते हैं, लेकिन अपने बजाज जी के कदम अब भी जमीन पर हैं। इसी को कहते हैं असली शालीनता। इंसान को कभी पॉवर में आने पर उडऩा नहीं चाहिए, क्योंकि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। इंसान का व्यवहार ही उनके काम आता है। जिनका व्यवहार शालीन होता है उनको सब पसंद करते हैं।
बजाज जी भी शायद इसलिए अपने मित्रों के दिलों में बसते हैं। बजाज जी से कुछ समय चर्चा के बाद हमने कहा कि अब हम इजाजत चाहते हैं क्योंकि हमें प्रेस जाना है। उन्होंने कहा कि चलो ठीक है फिर मिलते हैं। बजाज जी से अक्सर किसी न किसी कार्यक्रम में मुलाकात हो ही जाती है, जब भी मिलना होता है एक अलग ही आनंद मिलता है। अब देखें उनसे कब मुलाकात होती है।

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शुक्रवार, जनवरी 14, 2011

नंगे पैर एक लाख की दौड़

बस्तर की आदिवासी बालाएं नंगे पैर एक लाख की दौड़ लगाने का काम कर रही हैं। इनके सामने जूते पहनने वाली  खिलाड़ी फेल हो जाती हैं। वैसे अब बस्तर बालओं को भी  जूतों की आदत डालने की पहल की जा रही है। इनके लिए जूतों का इंतजाम खेल विभाग माता रुकमणी सेवा संस्थान के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी की मांग पर कर रहा है। संभवत: अगली मैराथन में बस्तर बालाएं भी जूते पहनकर दौड़ती नजर आएंगी।
पाटन की राज्य मैराथन ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि बस्तर बालाओं के नंगे पैरों में जो जान है, वह जान जूते पहनकर दौड़ने वाली खिलाड़ियों में भी नहीं है। वैसे राज्य मैराथन में ज्यादातर महिला और पुरुष खिलाड़ी नंगे पैर ही दौड़ते नजर आए। मैराथन में नंगे पैर दौड़ने का सिलसिला मैराथन के प्रारंभ होने वाले साल 2001 से ही चल रहा है। महिला मैराथन की जहां तक बात है तो इसका आगाज 2003-04 से हुआ है। पहले साल तो इस पर दल्लीराजहरा की टी. संजू ने कब्जा जमाया था। इसके बाद अगले साल रेलवे की कमलेश बघेल जीती। बस्तर बालाओं का जलजला 2005 से प्रारंभ हुआ। इसके बाद हालांकि दो साल खिताब तक बस्तर बालाएं नहीं पहुंची पार्इं, लेकिन 2007-08 से बस्तर बालाओं का दबदबा कायम है। अब तो आलम यह है कि बस्तर बालाएं टॉप 20 से ज्यादातर स्थानों पर बाजी मार रही हैं। पाटन मैराथन में टॉप 20 में से 14 स्थानों पर बस्तर बालाओं का कब्जा रहा।
जिन बस्तर बालाओं ने खिताब जीते उनमें से कोई भी ऐसी नहीं हैं जो जूते पहनकर दौड़ती हैं। पहले पहला स्थान प्राप्त करने वाली ललिता कश्यप ने तीन बार एक लाख का खिताब जीता, लेकिन वह कभी भी जूते पहनकर नहीं दौड़ती हैं। जूतों से बस्तर की हर खिलाड़ी को परहेज है। बस्तर बालाओं के साथ चाहे वह सरगुजा के खिलाड़ी हों, या फिर जशपुर, रायगढ़ या किसी भी जिले के ग्रामाणी क्षेत्र के खिलाड़ी हों, सबके साथ यही परेशानी है कि वे जूते पहनकर नहीं दौड़ पाते हैं। कुछ शहरी क्षेत्र से जुड़े खिलाड़ी जूते पहनकर दौड़ते हैं। लेकिन इनकी दाल नंगे पैर दौड़ने वाले खिलाड़ियों के सामने नहीं गल पाती है। पाटन मैराथन में एक बात यह भी देखने को मिली गांव के कुछ खिलाड़ी जूते जैसी दिखने वाली चप्पल के साथ पीटी करने वाले जूते पहनकर दौड़ते नजर आए।
बस्तर बालाओं को जूते देने की पहल
बस्तर बालाएं राज्य मैराथन में तो नंगे पैर दौड़कर एक लाख की इनामी राशि तक पहुंच जा रही हैं,लेकिन इनकी प्रतिभा का फायदा राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर नहीं मिल पा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि राष्ट्रीय मैराथन में बिना जूतों के धावकों को दौड़ने नहीं दिया जाता है। ऐसे में खेल विभाग के संचालक जीपी सिंह ने माता रुकमणी सेवा संस्थान के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी की मांग पर धावकों के लिए जूते देना मंजूर कर लिया है।

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गुरुवार, जनवरी 13, 2011

पत्र भी आएगा तो कचरा पेटी में जाएगा

कल एक बार फिर से हमारे अखबार के पते पर एक पत्र आया जिसमें फर्जी आईडी वाले किसी बंदे की टिप्पणियां थीं। इन टिप्पणियों के साथ साफ लिखा था कि हमारा मकसद आपको परेशान करना और टेंशन देना है। अगर आप टिप्पणियों का प्रकाशन नहीं करेंगे तो हम पत्र से भेजेंगे। हम ऐसी विकृत मासिकता वाले उस घटिया इंसान को बताना चाहते हैं कि उसके पत्रों का हाल भी वही होगा जो उनकी टिप्पणियों का होता है। यानी वो सारे पत्र भी बिना पढ़े कचरे की पेटी में चले जाएंगे।
न जाने किस की ये घटिया और विकृत मानसिकता है कि वह साफ-साफ कहता है कि हम आपको परेशान कर रहे हैं और परेशान करते रहेंगे। अगर आप हमारी टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं करेंगे, तो हम पत्र से भेजेंगे। बेशक पत्र से टिप्पणियों को भेजने का काम करके अपने पैसे बर्बाद करें, हमें इससे कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। हमने कल के पत्र के बाद अपने अखबार की डाक लाने वाले बंदे से साफ कह दिया है कि अगर हमारे नाम का कोई भी पत्र आता है तो उसे हमसे पूछे बिना कचरे की पेटी में डाल दिया करें। हमारे नाम से कभी अखबार के पते पर कोई पत्र आता नहीं है। हमारे मित्रों को पहले तो पत्र लिखने की जरूरत पड़ती नहीं है। आज का जमाना वैसे भी पत्र का नहीं है। एक तो मोबाइल पर बात हो जाती है, दूसरे किसी को पत्र भेजना रहता है तो वह ई-मेल कर देता है।

हम जानते हैं कि उस विकृत मानसिकता वाले बंदे के दिमाग में जरूर यह ख्याल आ रहा होगा कि वे भी फर्जी आईडी से ई-मेल कर सकते हैं, तो बेशक करें। हम ऐसे किसी भी ई-मेल को भी कचरे की पेटी का रास्ता दिखा देते हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं। कुल मिलाकर यह तय है कि हमें किसी भी हालत में परेशान करना संभव नहीं है। हमें जिस दिन लगेगा कि हम वास्तव में परेशान हो गए हैं तो उस दिन हम अपने ब्लागों में टिप्पणियों का रास्ता बंद भी कर सकते हैं। वैसे भी हम ब्लाग जगत में कोई पैसा कमाने तो आए नहीं है कि ब्लाग नहीं लिखने से हमारी रोजी-रोटी छिन जाएगी। हमारे ब्लाग लिखने न लिखने से हमें फर्क पडऩे वाला नहीं है। जब तक समय है लिखेंगे, समय नहीं रहेगा तो बंद भी कर देंगे। वैसे ब्लाग लेखन कभी बंद करने का हमारा अब तक कोई इरादा नहीं है। और खासकर किसी विकृत मानसिकता वाले इंसान के कारण तो कताई नहीं। तो जनाब आप अपने काम में पूरी ईमानदारी से लगे रहें आपके काम का अंजाम कचरा पेटी ही है, यह जान लें।

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मंगलवार, जनवरी 11, 2011

उत्कृष्ट खिलाड़ियों से खिलवाड़

प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाड़ियों के लिए खेल विभाग के दरवाजे भी अब बंद हो गए। विभाग ने सेटअप के मंजूर न होने का हवाला देते हुए विभाग में आवेदन करने वाले खिलाड़ियों को सूचित किया है कि वे अपनी नौकरी के लिए सामान्य प्रशासन विभाग में संपर्क करें। पिछले एक साल के खिलाड़ी नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं। राजपत्र में नियम प्रकाशित होने के एक माह बाद भी विभागों से खिलाड़ियों को एक ही जवाब मिल रहा है कि उनके पास किसी भी तरह से खिलाड़ियों को नौकरी देने की कोई जानकारी नहीं आई है।
प्रदेश के खेल विभाग में नौकरी की चाह रखने वाले उत्कृष्ट खिलाड़ियों को तब जोर का झटका जोर से लगा जब उनको विभाग ने एक पत्र थमाते हुए कह दिया कि उनके विभाग का सेटअप अब तक मंजूर न होने के कारण विभाग किसी भी खिलाड़ी को नौकरी देने में सक्षम नहीं है। खिलाड़ियों को विभाग ने जो पत्र दिया है, वह वही पत्र है जो विभाग ने ेसामान्य प्रशासन को भेजा है। इसी पत्र की प्रति खेल विभाग में नौकरी का आवेदन लगाने वाले खिलाड़ियों को दी गई है और उनसे कहा गया है कि वे अब सामान्य प्रशासन में संपर्क करके मालूम करें कि उनको कहां नौकरी मिल सकती है। कई खिलाड़ियों ने बताया कि वे सामान्य प्रशासन विभाग में चक्कर लगाकर देख चुके हैं, वहां से यही जवाब मिलता है कि उनके पास खेल विभाग का ऐसा कोई पत्र नहीं आया है।
राजपत्र में नियम प्रकाशन की जानकारी नहीं
खिलाड़ियों को इस बात को लेकर बहुत ज्यादा परेशानी हो रही  है कि वे जिस भी विभाग में जाते हैं, उनको एक ही जवाब मिलता है कि उनके विभाग में खिलाड़ियों को नौकरी देने के बारे में न तो कोई निर्देश मिले हैं और न ही उनको राजपत्र में खिलाड़ियों को नौकरी देने के नियमों के प्रकाशन के बारे में कोई जानकारी हैं। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि राजपत्र में सात दिसंबर को खिलाड़ियों को नौकरी देने के नियमों का प्रकाशन किया गया है और साफ कहा गया है कि जिस दिन से राजपत्र में इसका प्रकाशन हुआ है, उसी दिन से ये नियम लागू होंगे। राजपत्र में जिन विभागों में खिलाड़ियों को नौकरी देने की बात लिखी गई है, उन विभागों में पुलिस विभाग, (होमगार्ड सहित) वनविभाग, जेल विभाग, वाणिज्यि कर विभाग के अंतर्गत आबकारी विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा विभाग, अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, खेल एवं युवा कल्याण विभाग शामिल हैं। इन सारे विभागो में खिलाड़ी चक्कर काट कर देख चुके हैं लेकिन उनको कहीं से सही जानकारी नहीं मिल पा रही है।
हम कहां जाएं
खिलाड़ियों को सही जानकारी न मिलने के कारण ही खिलाड़ी परेशान हैं। खिलाड़ी एक स्वर में कहते हैं कि हम कहां जाए। न तो हमारे खेल संघों के पदाधिकारियों के पास कोई सही जानकारी हैं कि हमें नौकरी के लिए किससे मिलना चाहिए, वहीं खेल विभाग से भी कोई जानकारी नहीं मिल पाती है। अखबारों में प्रकाशित खबरों के आधार पर जब हम लोग उन विभागों में जाते हैं जहां पर नौकरी देने की बात सरकार ने कहीं है तो वहां से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है। 
एक साल से भटक रहे हैं
खिलाड़ियों का कहना है कि पिछले साल जब हम लोगों को खेल विभाग ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के हाथों प्रमाणपत्र दिलवाए थे तो लगा था कि अब हम   लोगों को जल्द ही नौकरी मिल जाएगी, लेकिन एक साल तक भटकने के बाद भी हालत यह है कि हम लोगों को यह मालूम नहीं है कि हम लोग आखिर अपनी नौकरी के लिए किसके पास जाएं। खिलाड़ी कहते हैं कि हम लोग एक साल से भटकते हुए बहुत ज्यादा निराश हो गए हैं।
एक कोच को नौकरी दे रहे हैं
खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि हमारे विभाग में 2002 के सेटअप के मुताबिक जो पद खाली हैं वे पद प्रशिक्षकों के ही हैं। प्रशिक्षकों के पद के लिए एक साल का एनआईएस कोच का डिप्लोमाा जरूरी है। इस योग्यता पर एक ही उत्कृष्ट खिलाड़ी खरे उतर रहे हैं जिनको जल्द ही विभाग में नौकरी दे दी जाएगी। इनको नौकरी देने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। उन्होंने पूछने पर बताया कि और कोई खिलाड़ी पात्र नहीं है जिसके कारण से और किसी खिलाड़ी को नौकरी देना संभव नहीं है।

सामान्य प्रशासन को पत्र लिखा है
 खेल संचालक ने पूछने पर बताया कि उनके विभाग ने खिलाड़ियों की भलाई के लिए ही सामान्य प्रशासन को एक पत्र लिखकर यह आग्रह किया है कि उनके विभाग में खिलाड़ियों ने जो आवेदन किए हैं उनको वे वहां भेज रहे हैं, सामान्य प्रशासन ये आवेदन उन विभाग को भेज दे जहां पद रिक्त हैं ताकि खिलाड़ियों को नौकरी मिल सके।

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सोमवार, जनवरी 10, 2011

फर्जी आईडी पर लगे प्रतिबंध

ब्लाग जगत में हम जबसे आए हैं देख रहे हैं यहां काड़ी करने वाले काड़ीबाजों की कमी नहीं है। मालूम नहीं उनको ऐसा करके क्या मिलता है, लेकिन इतना तय है कि ये काड़ीबाज दिमागी रूप से विकलांग होते हैं। इनके पास सोचने-समझने की शक्ति तो होती नहीं है। बस दिमाग में यही बात रहती है कि किसी के भी अच्छे काम में अपनी टांग जरूर अड़ाए और उसे परेशान करने का काम करें। सो ये ऐसा ही करते हैं। इनका मकसद होता है लोगों को परेशान करना और लोग परेशान होते हैं। जब लोग परेशान होते हैं तो इनको बड़ा मजा आता है। मजा इसलिए आता है क्योंकि इनकी मानसिकता ही ऐसी रहती है। ऐसी  मौज लेने वाले हमेशा फर्जी आईडी बनाकर ही यह काम करते हैं, फर्जी आईडी पर वास्तव में प्रतिबंध जरूरी है, क्योंकि फर्जी आईडी से ही बड़े-बड़े अपराध भी हो रहे हैं।
अक्सर हमने देखा है कि ब्लाग जगत में लोग फर्जी आईडी बनाकर टिप्पणी करने का काम करते हैं। ऐसा काम करने वाले निश्चित रूप से मानसिक रूप से विकलांग होते हैं। अगर ये ऐसे नहीं होते हैं तो ये भी कुछ अच्छा करने के लिए सोचते न कि किसी के अच्छे काम में टांग अड़ाने का काम करते। लेकिन नहीं इनको ऐसा करके ही मजा आता है और ये अपने मजे के लिए दूसरों को परेशान करते हैं। हमें तो लगता नहीं है कि ऐसे मानसिक रूप से विकलांगों से कभी ब्लाग जगत को मुक्ति मिल पाएगी। कारण साफ है कि यहां आईडी बनाने के लिए किसी को अपने आईडी यानी पहचान बनाते की जरूरत नहीं होती है और जब तक यह सिलसिला चलता रहेगा मानसिक विकलांगों की मौज होती रहेगी।
हमारी समझ में नहीं आता है कि क्यों कर बिना किसी पहचान के नेट में किसी को भी फर्जी आईडी बनाने की छूट देकर रखी गई है। ऐसी फर्जी आईडी की वजह से अपराध भी पनप रहे हैं इसके बाद क्यों कर इसके ऊपर रोक लगाने का काम किया जाता है। लगता है कि किसी बड़े हादसे का इंतजार है। अगर कभी कोई बड़ा हादसा हो गया तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा। वैसे कुछ बड़े हादसे तो हो चुके हैं। किसी की भी फर्जी आईडी बनाकर किसी को भी धमकी दे दें या फिर कहीं पर बम होने की सूचना दे दें। देश में जितने ब्लास्ट हुए हैं उनके पीछे भी फर्जी आईडी रही है, फिर क्यों कर मेल की सुविधा देने वाली कंपनियां बिना किसी पहचान पत्र के मेल आईडी बनाने पर प्रतिबंध नहीं लगाती है।

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रविवार, जनवरी 09, 2011

50 साल में नहीं मिला कोई शिष्य

छत्तीसगढ़ में तीरंदाजी के अर्जुन माने जाने वाले 85 वर्षीय गोदूराम वर्मा को इस बात का मलाल है कि उनको 50 साल में कोई ऐसा शिष्य नहीं मिला जो उनकी उम्मीदों पर खरा उतरता।
शब्द भेदी बाण चलाने वाले इस धनुधर ने यहां पर कहा कि उनको 35 साल की उम्र में शब्द भेदी बाण के साथ तीरंदाजी की कला सिखाने का काम  उप्र के गुरुकुल आश्रम कागड़ा के बालाकृष्ण शर्मा ने किया था। इसके बाद से ही वे इस कला के लिए कोई शिष्य तलाश रहे हैं, लेकिन उनको कोई ऐसा शिष्य नहीं मिला जो उनकी इस कला के लिए चाय, पान, सिरगरेट,, गुटखा और शराब का त्याग कर सके। श्री वर्मा कहते हैं कि इस कला के लिए यह जरूरी है। वे बताते हैं कि अब तो इतनी ज्यादा उम्र हो गई है कि वे अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। उनको अंतर रेलवे तीरंदाजी में सम्मानित किया गया। एक समय वह था जब श्री वर्मा एक पतले धागे को भी अपने तीरों से भेद देते थे। इसी के साथ वे आईने में देखकर लक्ष्य पर निशाना लगाते थे।

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शनिवार, जनवरी 08, 2011

अब तेरा क्या होगा रे पीलिया .....

हूं... कितने ब्लागर थे?
सरदार एक ब्लागर
एक ब्लागर ...
और तुम साले इतनी बार फर्जी आईडी बनाने के बाद भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके।
इसकी सजा मिलेगी.. बराबर मिलेगी
बोलो कितनी गोली है इसके अंदर
सरदार छह गोली...
गोली छह और फर्जी आईडी के नाम न जाने कितने
बहुत बेइंसाफी है ये..
तेरा क्या होगा पीलिया...
सरदार मैंने आपके कहने से ही ये नाम रखा था
तो अब नाम बदल डाला
बदल डाला सरदार
क्या नया नाम रखा है रे
सरदार जब बार-बार काड़ीबाज.. काड़ीबाज कहा जा रहा है तो इस बार काड़ीबाज के नाम से ही आईडी बना ली है।
हां...हां.. हां..
बहुत खूब
कोई असर हुआ इस नाम का..
सरदार अब तक तो नहीं हुआ
क्यों...
सरदार उसने दूसरे ब्लाग में भी मॉडरेशन लगा लिया है।
क्या इसका कोई तोड़ नहीं है
नहीं है सरदार..
कोई बात नहीं... तुम अपना काम करते रहो
या तो तुम परेशान हो जाओगे या वो ब्लागर परेशान हो जाएगा
ठीक है सरदार मैं अपना काम जारी रखूंगा
अगर वो परेशान न हो तो कोई दूसरा ब्लागर तलाश लेना
यहां बहुत से ऐसे मुर्गे हैं जो परेशान किए जा सकते हैं।

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शुक्रवार, जनवरी 07, 2011

इंडोर स्टेडियम से खिलाड़ियों के खेल में आएगा निखार

बास्केटबॉल के अंतरराष्ट्रीय कोच राजेश पटेल कहते हैं कि राजधानी रायपुर में तैयार हो गए इंडोर स्टेडियम से न सिर्फ बास्केटबॉल के बल्कि इंडोर में खेले जाने वाले हर खेल के खिलाड़ियों का खेल निखरेगा। इस इंडोर स्टेडियम में 9 फरवरी से फेडरेशन कप बास्केटबॉल का आयोजन हो रहा है। यह आयोजन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मंशा के अनुरुप हमारे संघ ने लिया है। उनसे हुई बात-चीत के अंश प्रस्तुत हैं।
0 रायपुर में तैयार हो गए इंडोर स्टेडियम के बारे में क्या सोचते हैं?
00 यह राज्य बनने के बाद अगर खेल जगत की सबसे बड़ी उपलब्धि है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। प्रदेश में एक भी इंडोर स्टेडियम न होने के कारण खिलाड़ियों को बहुत परेशानी होती थी। अब इस स्टेडियम के बाद जरूर इंडोर में होने वाले खेलों के खिलाड़ियों का खेल निखरेगा।
0 इंडोर में होने वाले फेडरेशन कप बास्केटबॉल के बारे में बताएं?
00 राज्य खेल महोत्सव के आयोजन के साथ मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह चाहते थे कि कोई अच्छी राष्ट्रीय स्पर्धा हो। ऐसे में हमारे खेल के लिए यह सौभाग्य की बात है कि मुख्यमंत्री ने बास्केटबॉल का चयन किया और उनके निर्देश पर हमारे संघ ने भारतीय फेडरेशन से यह स्पर्धा ली।
0 स्पर्धा के बारे में बताएं?
00 राष्ट्रीय फेडरेशन कप में राष्ट्रीय चैंपियनशिप के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली 8 टीमें खेलती हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे राज्य की दोनो टीमें इस समय फेडरेशन कप में खेलने की पात्र हैं। अगर हमारी टीमों को पात्रता नहीं भी होती तो मेजबान होने के कारण हमारी टीमों को खेलने का मौका मिल जाता।
0 छत्तीसगढ़ में बास्केटबॉल की क्या स्थिति है?
00 इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज हमारा खेल राज्य में सबसे ज्यादा पदक जीतने वाला खेल हैं। सब जूनियर, जूनियर, यूथ से लेकर सीनियर वर्ग में हमारी टीमें पदक जीत रहे हैं। 10 साल में हमारी हर टीम ने पदक जीते हैं।
0 सीनियर वर्ग में राज्य की टीमों के बारे में बताएं?
00 एक सीनियर वर्ग ही ऐसा वर्ग है जिसमें हमारी टीमें अब तक स्वर्ण पदक तक नहीं पहुंच पाई हैं।
0 क्या कारण है?
00 सीनियर वर्ग में रेलवे की टीमों के खेलने के कारण इस वर्ग में बास्केटबॉल ही नहीं बल्कि किसी भी खेल में किसी भी राज्य की टीम के लिए स्वर्ण पदक तक पहुंचना कठिन होता है।
0 ऐसा क्यों?
00 ऐसा इसलिए क्योंकि रेलवे की टीम में देश के हर राज्य के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को रखा जाता है।
0 अपने प्रशिक्षण के बारे में कुछ बताएं?
00 करीब तीन दशक से मैं खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रहा हूं। मप्र के रहते भी मैं टीमों को तैयार करता था और छत्तीसगढ़ बनने के बाद दस साल से प्रदेश की हर वर्ग की महिलाओं की टीमों को तैयार कर रहा हूं।
0 खिलाड़ियों को कितने घंटे अभ्यास करवाते हैं?
00 मैं भिलाई के पंत स्टेडियम के मैदान में खिलाड़ियों को रोज कम से कम 6 से 8 घंटे तक अभ्यास करवाता हूं।
0 छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेलों के बारे में क्या कहते हैं?
0 छत्तीसगढ़ में 37वें राष्ट्रीय खेलों के लिए अभी से तैयारी करने पर ही सफलता मिलेगी। जहां तक हमारे खेल का सवाल है तो हमारे खेल में हम अभी से स्वर्ण जीतने की तैयारी में जुट गए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे खेल में महिला के साथ पुरुष वर्ग में भी अपनी मेजबानी में हम स्वर्ण जीतेंगे।

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गुरुवार, जनवरी 06, 2011

विक्षिप्त मानसिकता वाले होते हैं काड़ीबाज

अपने ब्लाग जगत के लिए यह एक गंभीर बात है कि यहां पर फर्जी आईडी बनाकर काड़ी करने वाले काड़ीबाजों की कमी नहीं है। अगर किसी की आपसे किसी बात पर नहीं बनती है तो मानकर चलिए कि वह बंदा आपको जरूर परेशान करेगा। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आपकी जब किसी से नहीं बनेगी तभी कोई आपको परेशान करेगा। यहां तो बिना वजह भी काड़ी करने वालों की कमी नहीं है। हमारी तो किसी के साथ कोई अदावत नहीं है उसके बाद भी न जाने क्यों कर वह कौन सा बंदा है जो लगातार नाम बदल बदलकर हमें परेशान करने का काम कर रहा है। एक बार मन होता है कि अपने ब्लागों से टिप्पणी का रास्ता ही बंद कर दिया जाए। महज माडरेशन लगाने से कुछ नहीं होता है। लेकिन फिर सोचते हैं कि यार किसी एक विक्षिप्त मानसिकता वाले बंदे के कारण दूसरे मित्रों को क्यों कर अपने विचार व्यक्त करने से रोका जाए।
हम काफी समय से देख रहे हैं कि ब्लाग जगत में गंदगी करने वालों की संख्या में लगातार इजाफा होते जा रहा है। आज अगर आपको कोई किसी फर्जी नाम से परेशान कर रहा है और आपने लगातार उनके खिलाफ कुछ लिखा तो संभव है कि वह अपनी हरकतों से बाज आ जाए, लेकिन यहां तो ऐसे बेशर्मों की कमी नहीं है जो कुत्ते की पूंछ को भी मात देने का काम करते हैं।
न जाने ऐसे लोगों की मानसिकता क्या रहती है। हमें तो लगता है कि ऐसे लोग विकृत और विक्षिप्त मानसिकता वाले होते हैं जो लोगों के काम में बिना वजह काड़ी करने का काम करते हैं। ऐसा काम करने के बाद कहते हैं कि हम स्वस्थ्य आलोचना कर रहे हैं। अरे भई अगर स्वस्थ्य आलोचना करने वाले हैं तो अपने असली नाम से करें। क्या अपने असली नाम से आलोचना करने में डर लगता है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर असली नाम से सामने आएं। आलोचना करना अच्छी बात है, लेकिन बिना वजह किसी को परेशान करना अच्छी बात नहीं है। आलोचना से हर लिखने वाले के लेखन में निखार आता है, अगर वह आलोचना वास्तव में स्वस्थ्य आलोचना है तो। अब कोर्ई बिना वजह किसी भी बात पर काड़ी करे और दावा करे कि वह स्वस्थ्य आलोचना कर रहा है तो ऐसे विक्षिप्त मानसिकता वालों से तो भगवान भी डरेगा। क्योंकि कहा जाता है कि नंगों से खुदा भी डरता है। और जो लोग यह मानकर चलते हैं कि हम नंगे हैं अब उनसे भला कौन उलझ सकता है। लेकिन इतना जरूर है कि ऐसे नंगों की बातों का जवाब जरूर देना चाहिए, अगर जवाब भी न दिया जाए तो ये नंगे और ज्यादा नंगाई करने का काम करेंगे। हमने हमेशा गलत बात का विरोध किया है और करते रहेंगे। ऐसे काड़ीबाजों से हमें फर्क नहीं पड़ता है। हम बहुत संयम रखते हैं, लेकिन जब लगता है कि हद पार होते जा रही है, तब लिखना ही पड़ता है। हमने कई बार सोचा कि यार चलो टिप्पणी का रास्ता ही बंद कर दिया जाए ताकि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। लेकिन फिर सोचा कि ऐसा करने का मतलब होगा अपने उन ब्लागर मित्रों के विचारों पर रोक लगाना जो अच्छे विचारों को सांझा करते हैं। ऐसे में फिलहाल यह इरादा हमने बदल दिया है और काड़ीबाजी करने वालों को कचरे का रास्ता दिखाने का काम कर रहे हैं।

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बुधवार, जनवरी 05, 2011

चारुलता को नौकरी से हटाया जाएगा !

वन विभाग के महासमुन्द वन विद्यालय में शारीरिक शिक्षक के पद पर कार्यरत चारुलता गजपाल को नौकरी से हटाने की तैयारी वन विभाग कर रहा है। इनकी नियुक्ति को  गलत मानते हुए विभाग ने उनको कारण बताओ नोटिस भी  जारी किया है। जांच में खिलाड़ी का गलत तरीके से नौकरी पाना पाया गया है।
वन विभाग के महासमुन्द वन विद्यालय में खेल शिक्षक के पद पर कार्यरत शिक्षिका चारुलता गजपाल को विभाग ने एक नोटिस जारी करके उनसे स्पष्टीकरण मांगा है कि उन्होंने गलत तरीके से नौकरी प्राप्त की है, ऐसे में क्यों ने उनकी नियुक्ति को शून्य घोषित करते हुए उनको नौकरी से हटाया जाए।
वन विभाग ने जो नोटिस दिया है उसमें लिखा गया है कि महासमुन्द के वन विद्यालय में खेल शिक्षक की भर्ती करने राजधानी के एक अखबार में विज्ञापन प्रकाशित किया गया था जिसमें यह साफ लिखा गया था कि इस पद के लिए वहीं उम्मीदवार पात्र होंगे जिनको व्यायाम अनुदेशक पद का कम से कम तीन साल का अनुभव होगा। इसी के साथ अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर खेल संघों द्वारा मान्यता प्राप्त स्पर्धाओं में जिन्होंने पदक जीते होंगे। विज्ञापन में आवेदन देने की अंतिम तिथि 5 फरवरी 2009 और साक्षात्कार की तिथि 18 फरवरी थी।
मुख्य वन संरक्षक रायपुर बीके सिंहा द्वारा चारुलता को लिखे गए पत्र में लिखा गया है कि साक्षात्कार की तिथि अचानक बदली गई और साक्षात्कार के महज दो दिन पहले वेबसाइड पर इसकी सूचना दी गई जिसके कारण 25 में से मात्र 15 उम्मीदवार की चयन के लिए आ स्के। नियमानुसार 15 दिन्न पहले पर उम्मीदवारों को साक्षात्कार की सूचना देनी थी। विज्ञापन में उम्मीदवार के लिए दिए गए अनुभव को भी किनारे कर दिया गया। इस शर्त को बिना वजह हटाने के कारण ही आपको फायदा हुआ। अगर अनुभव की शर्त लागू रहती तो आपका चयन होता ही नहीं। चयन प्रक्रिया में एथलेटिक्स के अंकों के आधार पर चयन किया, इससे भी साफ है कि यह सिर्फ आपको फायदा पहुंंचाने के लिए किया गया। पत्र में यह भी लिखा गया है कि महासमुन्द के पद के लिए चयन प्रक्रिया में महासमुन्द के वन मंडलाधिकारी और अनुदेशक महासमुन्द स्कूल को भी शामिल न करना संदेह को जन्म देता है।
कुल मिलाकर वन विभाग ने माना है कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी नहीं और पक्षपात पूर्ण थी जिसके कारण चारुलता का चयन हो गया है। विभाग ने साफ लिखा है कि यह पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में है ऐसे में क्यों ने रायपुर वन वृत्त के आदेश क्रंमाक 108 दिनांक दो मार्च को शून्य घोषित करके आपको नौकरी से पृथक किया जाए। इस मामले में चारुलता से तो संपर्क नहीं हो सका लेकिन उनके कोच आरके पिल्ले का कहना है कि चारुलता ने अपना जवाब विभाग को दे दिया है और विभाग उनके जवाब से संतुष्ट है। इधर इस पद के उम्मीदवारों की दौड़ में शामिल कुछ उम्मीदवारों का कहना है कि विभाग के अधिकारी अपनी गलती छुपाने के प्रयास में अब भी लगे हैं।
डेकाटे- पिल्ले पर भी संदेह
वन विभाग ने इस चयन प्रक्रिया में शामिल किए गए प्रदेश एथलेटिक्स संघ के सचिव और चारुलता के कोच आरके पिल्ले के साथ राजधानी के वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र  डेकाटे को शामिल करने पर भी संदेह जताया है। इस बारे में जहां आरके पिल्ले का कहना है कि मैं चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं था। वहीं श्री डेकाटे ने बताया कि वे साक्षात्कार लेने गए थे इससे ज्यादा वे कुछ नहीं जानते हैं। 

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मंगलवार, जनवरी 04, 2011

छत्तीसगढ़ के लिए खेल सकता हूं

ओलंपियन तीरंदाजी मंगल सिंह चाम्पिया का कहना है कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार मुझे ज्यादा सुविधाएँ देती हैं तो मैं छत्तीसगढ़ के लिए खेल सकता हूं। मेरा पहला लक्ष्य लंदन ओलंपिक 2012 में पदक जीतना है।
यहां अंतर रेलवे तीरंदाजी में खेलने आए ईस्टन रेलवे के इस तीरंदाज ने एक सवाल के जवाब में कहा कि खिलाड़ी तो सुविधाएं के भूखे होते हैं, जहां से ज्यादा सुविधाओं की उम्मीद रहती है, वे वहीं से खेलना पसंद करते हैं। उन्होंने बताया कि वे दो साल तक आन्ध्र प्रदेश से खेल चुके हैं। उन्होंने बताया कि दो साल पहले उनको ईस्टन रेलवे में नौकरी दी गई है। उन्होंने कहा कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार उनको ज्यादा अच्छी सुविधाएं दे और साथ ही अच्छी सी नौकरी दे तो वे छत्तीसगढ़ आ जाएंगे और यहां के लिए खेलने लगेंगे।
विदेशी कोच जरूरी
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अपने देश में लिम्बाराम जैसे अच्छे कोच तो हैं, लेकिन इसके बाद भी ओलंपिक जैसी बड़ी स्पर्धा में सफलता के लिए यह जरूरी है कि एशिया के किसी देश के अच्छे कोच की सेवाएं ली जाएं। उन्होंने कहा कि यूरोपियन कोच बुलाने का मतलब नहीं रहेगा। वे कहते हैं कि यूरेपियन खिलाड़ी तीरंदाजी को गंभीरता से नहीं लेते हैं। वे आते हैं खेलकर चले जाते हैं। उन पर जीतने का कोई दबाव नहीं रहता है। हम भारतीय खिलाड़ियों से बहुत ज्यादा उम्मीद की जाती है जिसके कारण हम पर दबाव रहता है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को विदेशी कोच की सेवाएं लेकर खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिलाना चाहिए।
सरकारी सामानों का ठिकाना नहीं होता
2008 के ओलंपिक में खेलने वाले इस खिलाड़ी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि खिलाड़ियों के लिए लगाए जाने वाले प्रशिक्षण शिविरों में तो सरकारी सामानों का ठिकाना नहीं रहता है। कई बार तो शिविर के समाप्त होने पर सामान आते हैं। अगर खिलाड़ी सरकारी सामानों के भरोसे रहेंगे तो कभी सफलता नहीं मिलने वाली है। उन्होंने बताया कि उनके साथ भारत के और तीन खिलाड़ियों को कोरिया की एक कंपनी से मदद मिलती है। लेकिन यह मदद भी तब तक है जब तक हमारा प्रदर्शन विश्व स्तर पर अच्छा है, जिस दिन कंपनी को लगेगा कि हमारा प्रदर्शन स्तरीय नहीं है, वह कंपनी किसी और देश के खिलाड़ियों को मदद करेगी।
निचले स्तर से मिले मदद
मंगल सिंह का कहना है कि हम जैसे विश्व स्तरीय खिलाड़ियों को तो कहीं न कहीं से मदद मिल जाती है, लेकिन सरकार को ग्रामीण स्तर से ही खिलाड़ियों की मदद करने से प्रतिभाएं सामने आएंगी। उन्होंने कहा कि अपने देश में होता यह है कि जब खिलाड़ी पदक जीतने लगते हैं तब मदद की जाती है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि उनको आज तक उनके राज्य झारखंड से कोई मदद नहीं मिली है।
उद्योगों को सामने आना चाहिए
श्री चाम्पिया का कहना है कि टाटा ने जिस तरह से खेलों को बढ़ाने का काम देश में किया है, वैसा काम आज तक और किसी उद्योग ने नहीं किया है। टाटा की तरह ही और उद्योग अगर सामने आ जाएं तो देश में खेल और खिलाड़ियों का बहुत भला हो जाएगा। आज टाटा कि कई खेलों की अकादमी है। इन अकादमियों ने ही देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी मिलते हैं।
अभ्यास के लिए छुट्टी मिलनी चाहिए
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि रेलवे में बाकी सब तो ठीक है लेकिन अभ्यास के लिए छुट्टी में परेशानी होती है। वे कहते हैं कि किसी भी स्पर्धा के समय आधे दिन की छुट्टी मिलती है, इतनी छुट्टी पर्याप्त नहीं होती है। उन्होंने बताया कि किसी भी बड़ी स्पर्धा के समय 8 से 10 घंटे अभ्यास करना पड़ता है।
2012 ओलंपिक है लक्ष्य
एक सवाल के जवाब में श्री चाम्पिया ने कहा कि उनका लक्ष्य अब 2012 का ओलंपिक है। उन्होंने पूछने पर बताया कि वे 2008 के ओलंपिक में दूसरे चक्र में हार गए थे। कारण के बारे में उन्होंने बताया कि उनको दूसरे चक्र में बी कोर्ट में खेलने के कारण बाहर होना पड़ा। इस कोर्ट में हवा का बहावा अनुकुल न होने के कारण हार गया। पूछने पर उन्होंने बताया कि खिलाड़ियों को यह मालूम रहता है कि उनको किसी भी कोर्ट में खेलना पड़ सकता है, लेकिन उस कोर्ट के अनुसार अभ्यास कम होने के कारण मैं चूक गया था। लेकिन अब हर तरह की स्थिति का सामना करने के लिए मैं तैयार हूं। उन्होंने कहा कि खेल के साथ किस्मत का भी साथ जरूरी होती है। हवा का एक झोंका तीर की दिशा बदल देते है और अच्छे से अच्छे खिलाड़ी इसकी वजह से मात खा जाते हैं। किस्मत ने साथ दिया तो ओलंपिक में पदक जरूर जीतूंगा।

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सोमवार, जनवरी 03, 2011

वकीलों की टीम में छोटा राजन

वकीलों की राष्ट्रीय क्रिकेट स्पर्धा के एक मैच में छोटा राजन और चुलबुल पांडे भी खेले। दरअसल हुआ यह कि जिस दिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में इंदौर और इलाहाबाद के बीच फाइनल मैच खेला गया, यह मैच पहले सत्र में ही कम स्कोर के कारण समाप्त हो गया। इसके बाद एक मजाकिया मैच खेला गया। इस मजाकिया मैच में ही कमेंट्री कर रहे कमेंट्रेटर लगातार बोलते रहे कि छोटा राजन और चुलबुल पांडे बल्लेबाजी कर रहे हैं। इनकी इस कमेंट्री के कारण ही मैदान में उपस्थित चंद दर्शक भ्रमित हो गए थे कि वकीलों की टीम में ये कौन लोग आ गए हैं। बाद में  दर्शकों को मालूम हुआ कि वे जो मैच देख रहे हैं कि वह फाइनल मैच नहीं बल्कि मुन्नी बदनाम टाइप का मैच है।

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रविवार, जनवरी 02, 2011

ओरिजनल चाय...

छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग में अधिकारियों के पास मिलने जाने वालों को ओरिजनल चाय का स्वाद तब नसीब होता है जब वहां के अधिकारी चपरासी को संकेत देते हैं कि जो मिलने आए हैं, वे खास हैं, इनके लिए ओरिजनल चाय लाए। इस ओरिजनल चाय का खुलासा एक अधिकारी ने इस तरह से किया कि शिक्षा विभाग के नीचे चाय दुकानों में जो चाय मिलती है, वह दो किस्म की होती है। एक चाय वह जिसकी कीमत पांच रुपए है, उसे ओरिजनल कहा जाता है। दूसरी चाय वह जिसकी कीमत तीन रुपए है, वह काम चलाऊ चाय है। यानी काम चलाऊ लोगों के लिए यह चाय आती है, और खास लोगों के लिए ओरिजनल चाय। एक जमाना वह था जब किसी भी दफ्तर में जब चाय नहीं मंगानी रहती थी तो चपरासी से कहा जाता था, चाय लाना ना। यानी चाय मंगवाने के लिए बस कहा गया है, लाने के लिए नहीं।

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शनिवार, जनवरी 01, 2011

नव वर्ष की नई सुबह

नव वर्ष की नई सुबह
ऐसी लाए खुशहाली 
खुशियों ने घर-आंगन महके
रहे न कोई झोली खाली
हर इंसान साल भर चहके
हर दिन हो दीपावली
गरीबों को भी रोज खाना मिले
भगवान की रहमत हो ऐसी निराली
हमने तो साल के पहले दिन
यही दुआ है दिल से निकाली
चलिए नव वर्ष की खुशी में
पीए अब गरम चाय की एक प्याली
हमने तो सुबह उठते साथ
आज यह रचना लिख डाली


सभी ब्लागर मित्रों और स्नेहिल पाठकों को नववर्ष की प्यार भरी बधाई...

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