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शुक्रवार, अप्रैल 30, 2010

पूरा होगा हमारा सपना....


तेरी यादें साथ लिए जा रहे हैं हम

करना न दिल से प्यार कभी कम।।

हम तुम्हें दिल में बसाए रखेंगे हरदम

तुम भी अपने दिल में हमें रखना सनम।।

हमने जो खाई है प्यार की कसम

याद रखना उसे मेरी जान हरदम।।

कभी न कोई ऐसा काम करना

प्यार को न अपने बदनाम करना।।

बस तुम थोड़ा सा इंतजार करना

पूरा होगा एक दिन हमारा सपना ।।

(नोट: यह कविता भी हमारी 20 साल पुरानी डायरी से ली गई है। यह डायरी एक बार फिर से खो गई है, कल ही मिली तो सोचा आज एक कविता पोस्ट कर दी जाए।)

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गुरुवार, अप्रैल 29, 2010

मैच नहीं खिलाड़ी होते हैं फिक्स

पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर विजय      भारद्वाज  से बातचीत
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सितारे विजय भारद्वाज का कहना है कि मैच तो किसी कीमत पर फिक्स नहीं हो सकते हैं। लेकिन यह बात जरूर है कि खिलाड़ी फिक्स हो जाते हैं। आईपीएल के विवाद के सवाल पर वे उठकर खड़े हो गए और पत्रकारों से बात किए बिना चले गए।
यहां पर छत्तीसगढ़ के क्रिकेटरों को क्रिकेट के गुर सिखाने आए श्री भारद्वाज सुबह को खेल पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। मैच फिक्स होने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह सब मीडिया की उपज है, कोई भी मैच फिक्स नहीं हो सकता है। उनको जब मनोज प्रभाकर द्वारा लगाए गए आरोपों का हवाला दिया गया तो उन्होंने कहा कि इस बात से भले इंकार नहीं किया जा सकता है कि खिलाड़ी फिक्स होते हैं। किसी बल्लेबाज या गेंदबाज को फिक्स करने का मतलब मैच का फिक्स होना नहीं है। खिलाडिय़ों के फिक्स होने को मीडिया ने ही मैच फिक्सिंग का नाम दे दिया है।
छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी प्रतिभाशाली
छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों को पिछले दो दिनों से प्रशिक्षण दे रहे श्री भारद्वाज ने पूछने पर कहा कि इनमें कोई दो मत नहीं है कि यहां के खिलाड़ी प्रतिभाशाली हैं। उन्होंने कहा कि वे अभी अंडर १९ साल की टीम को तैयार करने का काम कर रहे हैं। इस टीम में कई खिलाड़ी प्रतिभावान हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ को रणजी खेलने के लिए कम से कम तीन साल तो इंतजार करना ही होगा। यहां की प्रतिभाओं के कारण मैं ऐसा कह रहा हूं, अन्यथा पांच साल से पहले नए राज्य की टीम को मौका नहीं मिलता है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि छत्तीसगढ़ में क्रिकेट अकादमी जरूरी है। अब यह तो यहां के संघ पर निर्भर करता है कि वह कब अकादमी प्रारंभ करता है।
ऐसा स्टेडियम देखा नहीं कहीं
भारतीय क्रिकेट अकादमी (एनसीए)के कोच विजय भारद्वाज ने परसदा के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने ऐसा स्टेडियम देश में और कहीं नहीं देखा है। उन्होंने कहा कि इस स्टेडियम का उपयोग होना जरूरी है। उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि इस स्टेडियम में जब तक अंतरराष्ट्रीय मैच की मंजूरी बीसीसीआई से नहीं मिलती है तब तक घरेलू क्रिकेट रणजी, दिलीप, ईरानी, देवधर ट्रॉफी के मैच करवाने चाहिए। जितने ज्यादा मैच यहां होंगे स्टेडियम की पिच भी अच्छी होगी। उन्होंने प्रदेश के क्रिकेट संघ की तारीफ करते हुए कहा कि यहां का संघ बहुत अच्छा काम कर रहा है। संघ ने पिछले साल यहां पर अंडर १९ की स्पर्धा करवाई। उन्होंने संघ को सलाह देते हुए कहा कि यहां पर जितनी ज्यादा स्पर्धाएं होंगी और यहां के खिलाडिय़ों को जितनी बार बाहर खेलने के लिए भेजा जाएगा, यहां की प्रतिभाओं को निखरने का मौका मिलेगा। उन्होंने पूछने पर बताया कि वे यहां के खिलाडिय़ों को १० मई तक प्रशिक्षण देंगे। उन्होंने बताया कि ३० खिलाडिय़ों के साथ वे यहां के प्रशिक्षकों को भी मार्गदर्शन देने का काम कर रहे हैं ताकि वे आगे चलकर खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम कर सके। उन्होंने कहा कि एनसीए ने उनको यहां भेजा है तो वे यहां से प्रशिक्षण देने के बाद वहां जाकर अपनी रिपोर्ट देंगे कि यहां पर किस तरह की सुविधाएं और होनी चाहिए। इसी के साथ वहां से भी यहां के लिए मार्गदर्शन दिया जाएगा ताकि जो काम हमने आज प्रारंभ किया है, नियमित रूप से जारी रहे।
ओलंपिक में आ सकता है क्रिकेट
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि क्रिकेट को २०२० में ओलंपिक में शामिल करने पर विचार तो चल रहा है। उन्होंने कहा कि २०-२० क्रिकेट जरूर ओलंपिक में शामिल हो सकता है। उन्होंने कहा कि वैसे आईसीसी के जो एसोसिएट सदस्य हैं उनमें स्तरीय क्रिकेट नहीं है, ऐसे में ओलंपिक में जब क्रिकेट को शामिल किया जाएगा तो देखने वाली बात होगी कि इसको कितने देश खेलते हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि असली क्रिकेट तो वे टेस्ट क्रिकेट को ही मानते हैं।
आईपीएल के सवाल पर उठ गए
आईपीएल विवाद पर सवाल किए जाने पर श्री भारद्वाज उठकर चले गए। उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे पर कोई बात नहीं करना चाहते हैं। यहां यह बताना लाजिमी है कि पूरे देश में आईपीएल को लेकर बवाल मचा हुआ है और इसस बवाल में ललित मोदी को अपना पद भी खोना पड़ा है।

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बुधवार, अप्रैल 28, 2010

खिलाडिय़ों को रोजगार देने से ही बरसेंगे पदक

छत्तीसगढ़ की मेजबानी में ३७वें राष्ट्रीय खेल २०१३-१४ में होंगे। इन खेलों की तैयारी प्रदेश के खेल विभाग ने अभी से प्रारंभ कर दी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ सभी चाहते हैं कि जहां यहां के खेल ऐतिहासिक हों, वहीं छत्तीसगढ़ को पदक तालिका में पहला स्थान नहीं तो कम से कम सम्मानजनक स्थान तो जरूर मिले। अब सोचने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ को पदक तालिका में महत्वपूर्ण स्थान मिल सके इसके लिए क्या होना चाहिए। इसी बात को लेकर प्रदेश ओलंपिक संघ के उपाध्यक्ष और भारतीय वालीबॉल संघ के संयुक्त सचिव और प्रदेश वालीबॉल संघ के महासचिव मो. अकरम खान ने बात की गई तो उन्होंने साफ कहा कि खिलाडिय़ों को रोजगार दिए बिना सफलता संभव नहीं है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि हर खेल को गोद दिलाने की जरूरत होगी। उनसे की गई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं।
० छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में ज्यादा पदक मिले इसके लिए क्या करना होगा?
०० छत्तीसगढ़ को ज्यादा से ज्यादा मिल सके इसके लिए पहले तो आपको खिलाडिय़ों के भविष्य को सुरक्षित करना होगा। अपने राज्य में खिलाडिय़ों के पास रोजगार ही नहीं है। जब खिलाडिय़ों का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा तो उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कैसे की जा सकती है। इसी के साथ यह भी जरूरी है कि हर खेल के लिए एक प्रायोजक हो। मेरे कहने का मतलब यह है कि हर खेल को किसी न किसी उद्योग को गोद दिलाने का काम करना होगा।
० इसके अलावा और कुछ करना होगा?
०० हर खेल को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच की जरूरत होगी। ये कोच पेशेवर होने चाहिए जिनको अनुबंध के आधार पर बुलाया जाए।
० तैयारी कितने समय पहले से होनी चाहिए?
०० हमारे पास वैसे भी समय नहीं है, अगर अपने राज्य के खेल समय पर होते हैं तो हमारे पास तीन से चार साल का ही समय है। ऐसे में हमें तैयारी में अभी से जुटना होगा। हर खेल के लिए खिलाडिय़ों का चयन करके उनके प्रशिक्षण शिविर अभी से लगाने होंगे। दीर्घकालीन योजना के बिना पदक मिलने संभव नहीं होंगे।
० खेल संघों के लिए क्या होना चाहिए?
०० खेल संघों को मजबूत किए बिना कुछ संभव नहीं है। असम में हुए राष्ट्रीय खेलों की बात करें तो वहां के खेलों में अहम भूमिका निभाने वाले वहां के पूर्व खेल सचिव प्रदीप हजारिका यहां आए थे तो उन्होंने ही बताया था कि असम सरकार ने खेल संघों को मजबूत करने के लिए दो-दो लाख की राशि दी थी। छत्तीसगढ़ सरकार को भी ऐसा कुछ करना चाहिए। खेल विभाग खेल संघों की एक बैठक करके उनसे पूछे कि वे क्या चाहते हैं।
० प्रदेश में वालीबॉल की क्या स्थिति है?
०० वैसे तो अपने राज्य में वालीबॉल की स्थिति ठीक है। हमारे पास अच्छे खिलाडिय़ों की कमी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात करें तो आशीष अरोरा के पास छत्तीसगढ़ के दो खिलाड़ी ए. संतोष और हेमन्द्र कुमार जहां भारतीय टीम से खेल चुके हैं, वहीं भारत की संभावित जूनियर टीम में दिलीप कोहिवाल, अमन दीप सिंग और बालेन्द्र सिंह शामिल हैं। लेकिन जहां तक राष्ट्रीय खेलों में सफलता का सवाल है तो उसके लिए बहुत ज्यादा अच्छे खिलाडिय़ों की जरूर पड़ेगी। अच्छे खिलाड़ी तैयार करने प्रायोजक जरूरी है।
० वालीबॉल के लिए प्रदेश संघ ने क्या किया है?
०० हमारा वालीबॉल संघ ही प्रदेश का ऐसा पहला खेल संघ है जिसने अपने दम पर भारतीय टीम के कोच रहे चंदर सिंह को यहां बुलाकर राष्ट्रीय सीनियर चैंपियनशिप से पहले टीम को प्रशिक्षण दिलाया था। हमारा प्रयास प्रदेश के खिलाडिय़ों को अच्छा प्रशिक्षण दिलाने का है।
० प्रदेश में प्रशिक्षकों की क्या स्थिति है?
०० अपने राज्य में प्रशिक्षकों की बहुत कमी है। किसी भी जिले में कोई प्रशिक्षक नहीं है। हर जिले में कम से कम एक एनआईएस प्रशिक्षक जरूरी है। यह स्थिति वालीबॉल की ही नहीं हर खेल की है। हर खेल में प्रशिक्षकों का टोटा है।
० प्रदेश में कोई इंडोर स्टेडियम है?
०० वालीबॉल का खेल आज इंडोर में होता , लेकिन अफसोस कि अपने राज्य में एक भी इंडोर स्टेडियम नहीं है। राजधानी में जरूर एक इंडोर स्टेडियम बन रहा है। इसके बनने से खेल का जरूर भला होगा।
० भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) का कोई ऐसा केन्द्र राज्य में है जहां पर वालीबॉल का प्रशिक्षण दिया जाता हो?
०० पूर्व में राजनांदगांव में एक डे-बोर्डिंग प्रशिक्षण केन्द्र था। पर अब वह भी नहीं है। जहां तक मेरा मानना है कि राजधानी रायपुर से ज्यादा वालीबॉल के खिलाड़ी और कहीं नहीं हैं। इस खेल के लिए यहां पर प्रशिक्षण केन्द्र जरूरी है। अब तो स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स में जो साई का सेंटर खुलने वाला है, उस सेंटर में वालीबॉल को भी रखा गया है, इसी के साथ राजनांदगांव के भी साई सेंटर में वालीबॉल रहेगा। इन सेंटरों के खुलने से प्रदेश के खिलाडिय़ों का बहुत भला होगा।
० अपने खेल जीवन के बारे में कुछ बताए?
०० मैं राष्ट्रीय स्तर पर १९८५ से ९२ तक मप्र की टीम से खेला हूं। इसी के साथ दो बार भारतीय विश्वविद्यालय की टीम से खेलने का मौका मिला है। प्रदेश संघ के साथ भारतीय वालीबॉल संघ से जुड़े रहने के कारण मुङो सात बार भारतीय टीम को विदेश लेकर जाने का मौका मिला है। विदेश के अनुभव का लाभ मैंने प्रदेश के खिलाडिय़ों को देने का हमेशा प्रयास किया है।

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मंगलवार, अप्रैल 27, 2010

मोह लेते हैं मन-बस्तर के सुंदर वन

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सोमवार, अप्रैल 26, 2010

आईये देखिए महाशय-ये है दुधवा जलाशय - बस्तर यात्रा -13

बस्तर यात्रा के आखिर पड़ाव में हम लोग कांकेर से करीब 20 किलो मीटर दूर स्थित दुधवा जलाशय देखने गए। वहां पर भरी गर्मी के कारण पानी तो बहुत कम था, लेकिन  नजारों ने जरूर वहां भी मन मोह लिया और हमारे कैमरे ने कुछ तस्वीरें कैद कर लीं। इन्हीं तस्वीरों को आपके साथ साझा करने का प्रयास कर रहे हैं।

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रविवार, अप्रैल 25, 2010

हम बनाते हैं भगवान - बस्तर यात्रा -12

बस्तर यात्रा में जब हम लोग कांकेर के पास स्थित दुधवा बांध से लौट रहे थे तो रास्ते में एक गांव में एक स्थान पर भारी भीड़ देखकर हमने कार रोकी। कार रोककर जब हम लोग वहां गए जहां पर भीड़ लगी थी तो देखा कि वहां एक आदमी भगवान बनाने का काम कर रहा है। हमने उनसे पूछा कि इनको कैसे बनाते हैं तो उन्होंने बताया कि अगर आपके पास कोई भी पुराना बर्तन है तो हम उसे भगवान का रूप दे सकते हैं। हमने उनको बताया कि हम तो रायपुर के हैं हमारे पास ऐसा कोई बर्तन नहीं है, आपने ये जो भगवान सजा रखे हैं, उनमें से कुछ हमें भी पैसे लेकर दे दें, तो उन्होंने इंकार कर दिया और कहा कि आप हमें रायपुर का पता दे दें हम वहां पर जाते रहते हैं आपके घर पर ही आकर भगवान बना देंगे। हमने उन्हें पता तो दे दिया है, अब देखते हैं कि वो कलाकार सज्जन कब आते हैं हमारे घर भगवान बनाने के लिए।

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शनिवार, अप्रैल 24, 2010

बंदर हनुमान के रूप होते हैं- बस्तर यात्रा -11

बस्तर यात्रा में कई अच्छी बातों से दो-चार होने का मौका मिला। जब हम लोग तीरथगढ़ जलप्रपात का आनंद ले रहे थे तो वहां पर स्थित मंदिरों के पास हमें एक बंदर नजर आया। ऐसे में हमने उसके कुछ पोज कैमरे में कैद कर लिए। तब तक हमें यह मालूम नहीं था कि जब हम वहां से वापस लौटेंगे तो बाहर एक ऐसा स्लोगन देखने को मिल जाएगा जिसका बंदरों से संबंध होगा। हम जैसे ही तीरथगढ़ के नीचले हिस्से से लंबी-चौड़ी सीढिय़ां चढ़कर ऊपर पहुंचे तो देखा कि वहां पर एक पत्थर में लिखा था कि बंदर हनुमान के रूप होते हैं। इसको देखते ही हमारा कैमरा चमक उठा और वह स्लोगन भी कैमरे में हो गया कैद। इसमें कोई दो मत नहीं है कि बंदर वास्तव में हनुमान का रूप होते हैं। इस बारे में हमारी ब्लाग बिरादरी के मित्र क्यो सोचते हैं जरूर बताएं।

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शुक्रवार, अप्रैल 23, 2010

भोले-भाले आदिवासी- बस्तर यात्रा -10

बस्तर यात्रा में जब हमने बारसूर से चित्रकूट के बीच 46 किलो मीटर की एक ऐसे रास्ते में यात्रा की जो कि पूरी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र है तो आधे रास्ते में हमारी मुलाकात एक मंदिर में एक आदिवासी पुजारी और उनके बच्चे से हुई। वे हम लोगों को उस रास्ते में देखकर बहुत खुश हुए क्योंकि उस रास्ते में प्राय: कोई जाना पसंद नहीं करता है। हम लोग जब मंदिर से सामने पहाड़ी पर बने हवान कुंड के पास जाकर ऊपर से फोटो ली तो पुजारी और उनका बेटा भी आ गया। ऐसे में हमने उनके साथ फोटो खींचवाने में विलंब नहीं किया। जब हम उनके साथ फोटो खींचवा रहे थे तो हमने उनके कंघे पर हाथ रखा तो पुजारी बाबा खुश हो गए और उन्होंने भी हम पकड़कर फोटो खींचवाया। उनका आत्मीयता और भोलापन देखकर हमें बहुत खुशी हुई। हमने उनके साथ वहां पर करीब आधे घंटे का वक्त बिताया और उनसे विदा लेकर अपनी मंजिल की तरफ चल पड़े। इसके पहले उन्होंने हम लोगों को प्रसाद दिया। और हमारी मंगलमय यात्रा के लिए दुआ भी की। संभवत: यह उनकी दुवाओं का ही असर था जो हमारी यात्रा उस नक्सल प्रभावित रास्ते में भी सुखद रही।

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गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

ये है तीरथगढ़ जलप्रपात- बस्तर यात्रा -9

जगदलपुर से करीब 40 किलो मीटर की दूरी पर गीदम रोड़ में तीरथगढ़ जलप्रपात है। भरी गर्मी की वजह से यहां पर पानी तो काफी कम था, लेकिन  फिर भी यहां नजारे देखने नायक है। यहां पर अगर ठंड के मौसम में जाए तो अद्भूत नजारा देखने को मिलता है।

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बुधवार, अप्रैल 21, 2010

ये है कांगेर धारा-जिसका नजारा लगता है प्यारा- बस्तर यात्रा -8

बस्तर की कुटुमसर गुफा जाने के रास्ते में 6 किलो मीटर की दूरी पर एक कांगेर धारा है। यहां का नजारा वास्तव में आंखों को प्यारा लगता है। अब यह बात अलग है कि हम जब वहां गए थे तो वहां पानी कम था, लेकिन जितनी गर्मी में हम वहां गए थे, उस गर्मी में कम पानी ने भी हमें बहुत सकुन दिया। चारों तरफ हरियाली और कल-कल करती बहती धारा मानो कहती है कि जिस सकुन की तुम्हें तलाश है, वह तो तुम्हें मेरे ही पास मिल सकता है। सच में वहां इतना अच्छा लग रहा था कि मन हो रहा था कि वहां पर घंटों बैठा जाए, लेकिन क्या करते समय कम था, ऐसे में हम वहां बुमश्किल आधे घंटे ही रूक सके क्योंकि साथ में एक गाइड था जिनको हमें कुटुमसर गुफा दिखाने के बाद दूसरे पर्यटकों को भी गुफा का भ्रमण करवाना था। ऐसे में उनके समय का तो हमें ख्याल रखना ही था। फिर सोचा था कि वापसी में एक बार इसका नजारा किया जाएगा, लेकिन वापसी के बाद हमें तीरथगढ़ जलप्रपात भी जाना था। सो हम वहां फिर न जा सके। हम आपको कल तीरथगढ़ जलप्रपात का नजारा करवाएंगे फिलहाल कांगेर धारा का नजारा करके अपनी गर्मी भगाने का काम करें।

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