छत्तीसगढ़ की मेजबानी में ३७वें राष्ट्रीय खेल २०१३-१४ में होंगे। इन खेलों की तैयारी प्रदेश के खेल विभाग ने अभी से प्रारंभ कर दी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ सभी चाहते हैं कि जहां यहां के खेल ऐतिहासिक हों, वहीं छत्तीसगढ़ को पदक तालिका में पहला स्थान नहीं तो कम से कम सम्मानजनक स्थान तो जरूर मिले। अब सोचने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ को पदक तालिका में महत्वपूर्ण स्थान मिल सके इसके लिए क्या होना चाहिए। इसी बात को लेकर प्रदेश ओलंपिक संघ के उपाध्यक्ष और भारतीय वालीबॉल संघ के संयुक्त सचिव और प्रदेश वालीबॉल संघ के महासचिव मो. अकरम खान ने बात की गई तो उन्होंने साफ कहा कि खिलाडिय़ों को रोजगार दिए बिना सफलता संभव नहीं है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि हर खेल को गोद दिलाने की जरूरत होगी। उनसे की गई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं।
० छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में ज्यादा पदक मिले इसके लिए क्या करना होगा?
०० छत्तीसगढ़ को ज्यादा से ज्यादा मिल सके इसके लिए पहले तो आपको खिलाडिय़ों के भविष्य को सुरक्षित करना होगा। अपने राज्य में खिलाडिय़ों के पास रोजगार ही नहीं है। जब खिलाडिय़ों का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा तो उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कैसे की जा सकती है। इसी के साथ यह भी जरूरी है कि हर खेल के लिए एक प्रायोजक हो। मेरे कहने का मतलब यह है कि हर खेल को किसी न किसी उद्योग को गोद दिलाने का काम करना होगा।
० इसके अलावा और कुछ करना होगा?
०० हर खेल को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कोच की जरूरत होगी। ये कोच पेशेवर होने चाहिए जिनको अनुबंध के आधार पर बुलाया जाए।
० तैयारी कितने समय पहले से होनी चाहिए?
०० हमारे पास वैसे भी समय नहीं है, अगर अपने राज्य के खेल समय पर होते हैं तो हमारे पास तीन से चार साल का ही समय है। ऐसे में हमें तैयारी में अभी से जुटना होगा। हर खेल के लिए खिलाडिय़ों का चयन करके उनके प्रशिक्षण शिविर अभी से लगाने होंगे। दीर्घकालीन योजना के बिना पदक मिलने संभव नहीं होंगे।
० खेल संघों के लिए क्या होना चाहिए?
०० खेल संघों को मजबूत किए बिना कुछ संभव नहीं है। असम में हुए राष्ट्रीय खेलों की बात करें तो वहां के खेलों में अहम भूमिका निभाने वाले वहां के पूर्व खेल सचिव प्रदीप हजारिका यहां आए थे तो उन्होंने ही बताया था कि असम सरकार ने खेल संघों को मजबूत करने के लिए दो-दो लाख की राशि दी थी। छत्तीसगढ़ सरकार को भी ऐसा कुछ करना चाहिए। खेल विभाग खेल संघों की एक बैठक करके उनसे पूछे कि वे क्या चाहते हैं।
० प्रदेश में वालीबॉल की क्या स्थिति है?
०० वैसे तो अपने राज्य में वालीबॉल की स्थिति ठीक है। हमारे पास अच्छे खिलाडिय़ों की कमी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की बात करें तो आशीष अरोरा के पास छत्तीसगढ़ के दो खिलाड़ी ए. संतोष और हेमन्द्र कुमार जहां भारतीय टीम से खेल चुके हैं, वहीं भारत की संभावित जूनियर टीम में दिलीप कोहिवाल, अमन दीप सिंग और बालेन्द्र सिंह शामिल हैं। लेकिन जहां तक राष्ट्रीय खेलों में सफलता का सवाल है तो उसके लिए बहुत ज्यादा अच्छे खिलाडिय़ों की जरूर पड़ेगी। अच्छे खिलाड़ी तैयार करने प्रायोजक जरूरी है।
० वालीबॉल के लिए प्रदेश संघ ने क्या किया है?
०० हमारा वालीबॉल संघ ही प्रदेश का ऐसा पहला खेल संघ है जिसने अपने दम पर भारतीय टीम के कोच रहे चंदर सिंह को यहां बुलाकर राष्ट्रीय सीनियर चैंपियनशिप से पहले टीम को प्रशिक्षण दिलाया था। हमारा प्रयास प्रदेश के खिलाडिय़ों को अच्छा प्रशिक्षण दिलाने का है।
० प्रदेश में प्रशिक्षकों की क्या स्थिति है?
०० अपने राज्य में प्रशिक्षकों की बहुत कमी है। किसी भी जिले में कोई प्रशिक्षक नहीं है। हर जिले में कम से कम एक एनआईएस प्रशिक्षक जरूरी है। यह स्थिति वालीबॉल की ही नहीं हर खेल की है। हर खेल में प्रशिक्षकों का टोटा है।
० प्रदेश में कोई इंडोर स्टेडियम है?
०० वालीबॉल का खेल आज इंडोर में होता , लेकिन अफसोस कि अपने राज्य में एक भी इंडोर स्टेडियम नहीं है। राजधानी में जरूर एक इंडोर स्टेडियम बन रहा है। इसके बनने से खेल का जरूर भला होगा।
० भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) का कोई ऐसा केन्द्र राज्य में है जहां पर वालीबॉल का प्रशिक्षण दिया जाता हो?
०० पूर्व में राजनांदगांव में एक डे-बोर्डिंग प्रशिक्षण केन्द्र था। पर अब वह भी नहीं है। जहां तक मेरा मानना है कि राजधानी रायपुर से ज्यादा वालीबॉल के खिलाड़ी और कहीं नहीं हैं। इस खेल के लिए यहां पर प्रशिक्षण केन्द्र जरूरी है। अब तो स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स में जो साई का सेंटर खुलने वाला है, उस सेंटर में वालीबॉल को भी रखा गया है, इसी के साथ राजनांदगांव के भी साई सेंटर में वालीबॉल रहेगा। इन सेंटरों के खुलने से प्रदेश के खिलाडिय़ों का बहुत भला होगा।
० अपने खेल जीवन के बारे में कुछ बताए?
०० मैं राष्ट्रीय स्तर पर १९८५ से ९२ तक मप्र की टीम से खेला हूं। इसी के साथ दो बार भारतीय विश्वविद्यालय की टीम से खेलने का मौका मिला है। प्रदेश संघ के साथ भारतीय वालीबॉल संघ से जुड़े रहने के कारण मुङो सात बार भारतीय टीम को विदेश लेकर जाने का मौका मिला है। विदेश के अनुभव का लाभ मैंने प्रदेश के खिलाडिय़ों को देने का हमेशा प्रयास किया है।
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