रोज 59 महिलाओं से दुष्कर्म और 111 से होती है छेड़छाड़
कहने को आज अपने देश में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दे दिया गया है लेकिन लगता नहीं है कि ऐसा हो पाया है। महिलाओं के साथ लगातार होने वाली घटनाएं यह बताती हैं कि महिलाएं आज भी अत्याचार की आग में जल रही हैं। एक जानकारी के मुताबिक अपने देश में हर रोज जहां 59 महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं, वहीं 63 का अपहरण होता है और 111 छेड़छाड़ की शिकार होती हैं। आज आधुनिक बन चुके भारतीय समाज में हर घंटे एक युवती की देहज के कारण हत्या होती है। पिछले छह सालों में महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं में लगातार इजाफा हुआ है। जो आंकड़े सामने आए हैं वो वास्तव में चिंतनीय है। न जाने अपना समाज आज कहां जा रहा है। क्या कभी वास्तव में अपने समाज में नारी को सही दर्जा मिल पाएगा और उनका भी सम्मान पुरुषों के बराबर होगा।
अचानक एक खबर पर नजरें पड़ीं तो हमारा दिमाग भी घुम गया कि अपने देश में यह क्या हो रहा है। इन आंकड़ों पर नजरें पडऩे से पहले हम तो यही समझते थे कि अपने देश में आज नारी पहले से ज्यादा सम्मानीय और सुरक्षित हैं। लेकिन लगता है कि हम भ्रम में जी रहे थे। संभवत: और लोग भी ऐसे होंगे जिनको यह भ्रम होगा कि आज नारी का सम्मान समाज में पहले से ज्यादा हो रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि नारी अपने को समाज में साबित करने के लिए लगातार संघर्ष कर रही है और इसमें सफल भी हो रही है, लेकिन भारत के पुरुष प्रधान समाज में लगता है कि पुरुषों की मानसिकता नारी को आगे लाने की नहीं है। तभी तो आज अपने देश में हर रोज जहां 59 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं, वहीं 63 युवतियों का अपहरण हो रहा है। इसी के साथ कम से कम 111 किशोरियां, युवतियां और महिलाएं छेड़छाड़ की शिकार हो रही हैं।
आज लगता है कि अपना देश बहुत आधुनिक हो गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि हमारे देश का समाज खुलेपन में तो आधुनिक हो गया है लेकिन लालच के मामले में आज भी सभी इसमें जकड़े हुए हैं। ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि आज भी दहेज जैसी प्रथा से हमारे समाज का मोह भंग नहीं हुआ है। आज अपने देश में हर घंटे औसतन एक युवती को दहेज के कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है।
महिलाओं के साथ होने वाले अपराध की बात करें तो अपराध का आंकड़ा 2004 के बाद लगातार बढ़ते गया है। इस साल महिलाओं के साथ होने वाले अपराध की संख्या 154333 थी। अगले साल यानी 2005 में यह संख्या 155553 हो गई। 2006 में यह आंकड़ा 16 लाख के पार हो गया और 164765 तक पहुंच गया। 2007 में यह आंकड़ा 18 लाख के पार हो गया और 185312 हो गया। 2008 में आंकड़ों के सारे रिकॉर्ड पार हो गए। इस साल 195856 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद के आंकड़ों की जानकारी तो नहीं मिल पाई है, लेकिन इतना तय है कि 2009 में ये आंकड़े 20 लाख को पार गए होंगे।
सोचने वाली बात है कि अगर हर साल 20 लाख महिलाओं के साथ अन्याय और अत्याचार हो रहा है तो हम कैसे कह सकते हैं कि हमने नारी को बराबरी का दर्जा दे दिया है। भले संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया है, लेकिन इससे क्या महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर अंकुश लग सकता है। जब तक महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में इजाफा होते रहेगा हम कैसे कह सकते हैं कि हमने महिलाओं को बराबरी का दर्जा दे दिया है। संसद में बैठे नेता और मंत्रियों को इस बात की चिंता पहले करनी चाहिए कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर कैसे अंकुश लगाया जाए।
अचानक एक खबर पर नजरें पड़ीं तो हमारा दिमाग भी घुम गया कि अपने देश में यह क्या हो रहा है। इन आंकड़ों पर नजरें पडऩे से पहले हम तो यही समझते थे कि अपने देश में आज नारी पहले से ज्यादा सम्मानीय और सुरक्षित हैं। लेकिन लगता है कि हम भ्रम में जी रहे थे। संभवत: और लोग भी ऐसे होंगे जिनको यह भ्रम होगा कि आज नारी का सम्मान समाज में पहले से ज्यादा हो रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि नारी अपने को समाज में साबित करने के लिए लगातार संघर्ष कर रही है और इसमें सफल भी हो रही है, लेकिन भारत के पुरुष प्रधान समाज में लगता है कि पुरुषों की मानसिकता नारी को आगे लाने की नहीं है। तभी तो आज अपने देश में हर रोज जहां 59 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं, वहीं 63 युवतियों का अपहरण हो रहा है। इसी के साथ कम से कम 111 किशोरियां, युवतियां और महिलाएं छेड़छाड़ की शिकार हो रही हैं।
आज लगता है कि अपना देश बहुत आधुनिक हो गया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि हमारे देश का समाज खुलेपन में तो आधुनिक हो गया है लेकिन लालच के मामले में आज भी सभी इसमें जकड़े हुए हैं। ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है कि आज भी दहेज जैसी प्रथा से हमारे समाज का मोह भंग नहीं हुआ है। आज अपने देश में हर घंटे औसतन एक युवती को दहेज के कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है।
महिलाओं के साथ होने वाले अपराध की बात करें तो अपराध का आंकड़ा 2004 के बाद लगातार बढ़ते गया है। इस साल महिलाओं के साथ होने वाले अपराध की संख्या 154333 थी। अगले साल यानी 2005 में यह संख्या 155553 हो गई। 2006 में यह आंकड़ा 16 लाख के पार हो गया और 164765 तक पहुंच गया। 2007 में यह आंकड़ा 18 लाख के पार हो गया और 185312 हो गया। 2008 में आंकड़ों के सारे रिकॉर्ड पार हो गए। इस साल 195856 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद के आंकड़ों की जानकारी तो नहीं मिल पाई है, लेकिन इतना तय है कि 2009 में ये आंकड़े 20 लाख को पार गए होंगे।
सोचने वाली बात है कि अगर हर साल 20 लाख महिलाओं के साथ अन्याय और अत्याचार हो रहा है तो हम कैसे कह सकते हैं कि हमने नारी को बराबरी का दर्जा दे दिया है। भले संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया है, लेकिन इससे क्या महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर अंकुश लग सकता है। जब तक महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में इजाफा होते रहेगा हम कैसे कह सकते हैं कि हमने महिलाओं को बराबरी का दर्जा दे दिया है। संसद में बैठे नेता और मंत्रियों को इस बात की चिंता पहले करनी चाहिए कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर कैसे अंकुश लगाया जाए।
5 टिप्पणियाँ:
जब तक महिलाओं की सुरक्षा के लिए समाज के निडर और इमानदार लोग आगे नहीं आयेंगे और ये भर्ष्ट और गुंडा टायप नेता महिलाओं की सुरक्षा की ढोंगी बातें करेंगे,ऐसी स्थिति में सुधार नहीं होगा / बहुत ही अच्छा विषय चुना है आपने ग्वालानी जी ,आप भी इस दिशा में कुछ ठोस प्रयास कीजिये /
महिलाओ की सुरक्षा आज भी हासिये पर है
यह आँकड़े वह हैं, जो दर्ज़ करवाये जा सके हैं ।
इसको क्यों न एक मनोविकृत समाज का पैमाना माना जाये ?
हमारे नीति-नियँताओं को भला ऎसे भयावह मुद्दों से सरोकार ही क्या ?
hum sabhyata se duur ja rahe hain....Its our misfortune.
अभी अमेरिका का सा महिला सशक्तिकरण बाक़ी है मेरे दोस्त वहां के आंकने तो बेहोश ही कर देंगे
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