ग्रामीण खिलाडिय़ों से सरोकार ही नहीं
प्रदेश के ज्यादातर खेल संघों का ग्रामीण खिलाडिय़ों से कोई सरोकार ही नहीं है। छत्तीसगढ़ बनने के दस साल बाद भी राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाने जाने वाली टीमों में चंद शहरों के खिलाडिय़ों को ही स्थान दिया जाता है। संभवत: ग्रामीण खिलाडिय़ों की उपेक्षा से प्रदेश सरकार के साथ केन्द्र सरकार भी अनभिज्ञ नहीं है यही वजह है कि केन्द्र सरकार ने पायका योजना के माध्यम से ग्रामीण खिलाडिय़ों को एक मंच देने की पहल की है। प्रदेश में पहले चरण में अब ९८२ गांवों के खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद यहां के ग्रामीण खिलाडिय़ों को इस बात की उम्मीद थी कि कम से कम अब उनके साथ अपने राज्य में पक्षपात नहीं होगा और उनको भी शहरी खिलाडिय़ों की तरह बराबर राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाने का मौका मिलेगा। ग्रामीण खिलाडिय़ों की इस बात को उस समय और बल मिला था जब प्रदेश की खेलनीति में ग्रामीण खिलाडिय़ों पर ध्यान देने की बात की गई थी। इसके बाद गांव के खिलाडिय़ों को पूरी उम्मीद थी कि उनके साथ जरूर न्याय होगा। लेकिन आज राज्य बनने के १० साल बाद भी ग्रामीण प्रतिभाएं राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए तरस रही हंै। यह बात कम से कम खेल संघों के साथ तो जरूर लागू है। ग्रामीण खिलाडिय़ों को थोड़ा बहुत स्कूली स्पर्धाओं में खेलने का मौका जरूर मिल जाता है। लेकिन खेल संघों की बात करें तो खेल संघों की जब टीमें बनती हैं तो इन टीमों में चंद शहरों के ही खिलाड़ी होते हैं।
रायपुर-भिलाई में बंट गए खेल संघ
राज्य बनने के बाद प्रदेश में इस समय खेल विभाग से मान्यता प्राप्त ३३ खेल संघ हैं। इन खेल संघों में एक ताइक्वांडो को छोड़ दिया जाए तो बाकी खेल संघ रायपुर और भिलाई में बंटे हुए हैं। भिलाई में ही ज्यादातर राज्य खेल संघों के कार्यालय और पदाधिकारी हैं। ऐसे में जब भी राज्य की टीमों का चयन होता है तो उन टीमों में ज्यादातर खिलाड़ी भिलाई के ही होते हैं। जिन खेल संघों की कमान रायपुर के पदाधिकारियों के पास हैं, उन टीमों में रायपुर के खिलाडिय़ों की भरमार होती है। इन टीमों में भी भिलाई के खिलाडिय़ों को न चाहते हुए इसलिए स्थान देना पड़ता है कि जब भी राज्य स्पर्धा का आयोजन होता है तो उस स्पर्धा में मुकाबला रायपुर और भिलाई के बीच होता है। इसी के साथ भिलाई में सुविधाएं ज्यादा होने के कारण निश्चित रूप से वहां के खिलाड़ी रायपुर के खिलाडिय़ों से ज्यादा अच्छे होते हैं। रायपुर और भिलाई के बाद टीमों में राजनांदगांव के खिलाडिय़ों को स्थान मिलता है। वहां पर भी खेल की कुछ सुविधाएं के साथ कई खेल संघों से जुड़े पदाधिकारी वहां हैं। इसी के साथ वहां पर साई का एक प्रशिक्षण केन्द्र भी है। इन तीन शहरों के अलावा कभी कभार किसी खेल की टीम में बिलासपुर, रायगढ़, महासमुन्द या धमतरी के इका-दुका खिलाड़ी को मौका मिल जाता है। अगर आदिवासी क्षेत्र बस्तर और अम्बिकापुर की बात की जाए तो यहां के खिलाडिय़ों को कोई टीम में लेना ही नहीं चाहता है।
कागजों में भी खेल संघ
कई खेल संघों के तो आदिवासी जिलों बस्तर और सरगुजा में खेल संघ भी नहीं हैं। जहां पर जिला संघ हैं, वे महज कागजों में चल रहे हैं। कागजों में खेल संघ बनाने की इसलिए मजबूरी है कि खेल विभाग से मान्यता लेने के लिए ११ जिलों में जिला खेल संघों का होना जरूरी है। इसी के साथ खेल विभाग से मिलने वाली एक लाख की प्रेरणा निधि के लिए भी कागजों में खेल संघ बनाए गए हैं। प्रेरणा निधि के लिए यह अनिवार्य है कि राष्ट्रीय स्पर्धा में सफलता पाने वाली टीम में कम से कम सात जिलों के खिलाड़ी हों। ऐसे में जिन खेलों को प्रेरणा निधि मिलने की उम्मीद रहती है ऐसे खेलों की टीमों में कागजों में ही सात जिलों के खिलाडिय़ों को दर्शाने का काम किया जाता है। इसी के साथ यह भी जरूरी रहता है कि राज्य स्पर्धा में कम से ८ जिलों की टीमें खेलें।
फर्जी टीमें भी बनती हैं
राज्य स्पर्धा में कम से कम ८ जिलों की टीमों की खेलने की अनिवार्यता के चलते खेल विभाग से अनुदान लेने के लिए कई खेल संघों के पदाधिकारी दूसरे जिलों के नाम से फर्जी टीमें बनाकर स्पर्धा में खिलाने का काम करते हैं ताकि उनको अनुदान मिल सके। अब तो राज्य का खेल विभाग ही राज्य स्तर की सब जूनियर और जूनियर स्पर्धाओं का आयोजन कर रहा है तो कम से कम ऐसी फर्जी टीमों पर अंकुश लगा है। लेकिन सीनियर वर्ग की स्पर्धा में अनुदान लेने के लिए यह काम आज भी किया जाता है।
पायका ने दी ग्रामीण खिलाडिय़ों को राह
प्रदेश में दस साल से उपेक्षित खिलाडिय़ों को अब केन्द्र सरकार की पायका योजना ने एक नई राह दिखाई है। इस योजना के कारण अब प्रदेश के ग्रामीण खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर आने का मौका मिल रहा है। वैसे तो पूर्व में भी ग्रामीण खिलाडिय़ों के लिए राज्य के साथ राष्ट्रीय स्तर पर हर खेल की स्पर्धाएं होती थीं, लेकिन इन स्पर्धा में भी ग्रामीण की बजाए शहरी खिलाडिय़ों को रखा लिया जाता था, लेकिन पायका योजना में ऐसा होना संभव नहीं है क्योंकि इसमें पंचायत स्तर से लेकर विकासखंड फिर जिला स्तर और फिर राज्य स्तर के बाद टीमों को राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाना है। पायका योजना में हर गांव के लिए क्रीड़ाश्री भी बनाए गए हैं ताकि वे अपने-अपने गांवों की प्रतिभाओं को सामने लाने का काम कर सके। प्रदेश में पहले चरण में ९८२ गांवों को पायता से जोड़ा गया है। न गांवों के खिलाडिय़ों को अब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद यहां के ग्रामीण खिलाडिय़ों को इस बात की उम्मीद थी कि कम से कम अब उनके साथ अपने राज्य में पक्षपात नहीं होगा और उनको भी शहरी खिलाडिय़ों की तरह बराबर राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाने का मौका मिलेगा। ग्रामीण खिलाडिय़ों की इस बात को उस समय और बल मिला था जब प्रदेश की खेलनीति में ग्रामीण खिलाडिय़ों पर ध्यान देने की बात की गई थी। इसके बाद गांव के खिलाडिय़ों को पूरी उम्मीद थी कि उनके साथ जरूर न्याय होगा। लेकिन आज राज्य बनने के १० साल बाद भी ग्रामीण प्रतिभाएं राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए तरस रही हंै। यह बात कम से कम खेल संघों के साथ तो जरूर लागू है। ग्रामीण खिलाडिय़ों को थोड़ा बहुत स्कूली स्पर्धाओं में खेलने का मौका जरूर मिल जाता है। लेकिन खेल संघों की बात करें तो खेल संघों की जब टीमें बनती हैं तो इन टीमों में चंद शहरों के ही खिलाड़ी होते हैं।
रायपुर-भिलाई में बंट गए खेल संघ
राज्य बनने के बाद प्रदेश में इस समय खेल विभाग से मान्यता प्राप्त ३३ खेल संघ हैं। इन खेल संघों में एक ताइक्वांडो को छोड़ दिया जाए तो बाकी खेल संघ रायपुर और भिलाई में बंटे हुए हैं। भिलाई में ही ज्यादातर राज्य खेल संघों के कार्यालय और पदाधिकारी हैं। ऐसे में जब भी राज्य की टीमों का चयन होता है तो उन टीमों में ज्यादातर खिलाड़ी भिलाई के ही होते हैं। जिन खेल संघों की कमान रायपुर के पदाधिकारियों के पास हैं, उन टीमों में रायपुर के खिलाडिय़ों की भरमार होती है। इन टीमों में भी भिलाई के खिलाडिय़ों को न चाहते हुए इसलिए स्थान देना पड़ता है कि जब भी राज्य स्पर्धा का आयोजन होता है तो उस स्पर्धा में मुकाबला रायपुर और भिलाई के बीच होता है। इसी के साथ भिलाई में सुविधाएं ज्यादा होने के कारण निश्चित रूप से वहां के खिलाड़ी रायपुर के खिलाडिय़ों से ज्यादा अच्छे होते हैं। रायपुर और भिलाई के बाद टीमों में राजनांदगांव के खिलाडिय़ों को स्थान मिलता है। वहां पर भी खेल की कुछ सुविधाएं के साथ कई खेल संघों से जुड़े पदाधिकारी वहां हैं। इसी के साथ वहां पर साई का एक प्रशिक्षण केन्द्र भी है। इन तीन शहरों के अलावा कभी कभार किसी खेल की टीम में बिलासपुर, रायगढ़, महासमुन्द या धमतरी के इका-दुका खिलाड़ी को मौका मिल जाता है। अगर आदिवासी क्षेत्र बस्तर और अम्बिकापुर की बात की जाए तो यहां के खिलाडिय़ों को कोई टीम में लेना ही नहीं चाहता है।
कागजों में भी खेल संघ
कई खेल संघों के तो आदिवासी जिलों बस्तर और सरगुजा में खेल संघ भी नहीं हैं। जहां पर जिला संघ हैं, वे महज कागजों में चल रहे हैं। कागजों में खेल संघ बनाने की इसलिए मजबूरी है कि खेल विभाग से मान्यता लेने के लिए ११ जिलों में जिला खेल संघों का होना जरूरी है। इसी के साथ खेल विभाग से मिलने वाली एक लाख की प्रेरणा निधि के लिए भी कागजों में खेल संघ बनाए गए हैं। प्रेरणा निधि के लिए यह अनिवार्य है कि राष्ट्रीय स्पर्धा में सफलता पाने वाली टीम में कम से कम सात जिलों के खिलाड़ी हों। ऐसे में जिन खेलों को प्रेरणा निधि मिलने की उम्मीद रहती है ऐसे खेलों की टीमों में कागजों में ही सात जिलों के खिलाडिय़ों को दर्शाने का काम किया जाता है। इसी के साथ यह भी जरूरी रहता है कि राज्य स्पर्धा में कम से ८ जिलों की टीमें खेलें।
फर्जी टीमें भी बनती हैं
राज्य स्पर्धा में कम से कम ८ जिलों की टीमों की खेलने की अनिवार्यता के चलते खेल विभाग से अनुदान लेने के लिए कई खेल संघों के पदाधिकारी दूसरे जिलों के नाम से फर्जी टीमें बनाकर स्पर्धा में खिलाने का काम करते हैं ताकि उनको अनुदान मिल सके। अब तो राज्य का खेल विभाग ही राज्य स्तर की सब जूनियर और जूनियर स्पर्धाओं का आयोजन कर रहा है तो कम से कम ऐसी फर्जी टीमों पर अंकुश लगा है। लेकिन सीनियर वर्ग की स्पर्धा में अनुदान लेने के लिए यह काम आज भी किया जाता है।
पायका ने दी ग्रामीण खिलाडिय़ों को राह
प्रदेश में दस साल से उपेक्षित खिलाडिय़ों को अब केन्द्र सरकार की पायका योजना ने एक नई राह दिखाई है। इस योजना के कारण अब प्रदेश के ग्रामीण खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर आने का मौका मिल रहा है। वैसे तो पूर्व में भी ग्रामीण खिलाडिय़ों के लिए राज्य के साथ राष्ट्रीय स्तर पर हर खेल की स्पर्धाएं होती थीं, लेकिन इन स्पर्धा में भी ग्रामीण की बजाए शहरी खिलाडिय़ों को रखा लिया जाता था, लेकिन पायका योजना में ऐसा होना संभव नहीं है क्योंकि इसमें पंचायत स्तर से लेकर विकासखंड फिर जिला स्तर और फिर राज्य स्तर के बाद टीमों को राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाना है। पायका योजना में हर गांव के लिए क्रीड़ाश्री भी बनाए गए हैं ताकि वे अपने-अपने गांवों की प्रतिभाओं को सामने लाने का काम कर सके। प्रदेश में पहले चरण में ९८२ गांवों को पायता से जोड़ा गया है। न गांवों के खिलाडिय़ों को अब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा।
1 टिप्पणियाँ:
खिलाड़ियों के साथ हमेशा खिलवाड़ होता रहेगा जब तक सरकार लगाम नहीं लगाएगी
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