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शुक्रवार, मई 14, 2010

क्या सेना में दम है नक्सलियों से निपटने का

छत्तीसगढ़ की नक्सली समस्या के विकराल होते रूप के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने भी यह बात कह दी है कि इस समस्या से निपटने के लिए सेना का सहारा लेना पड़ेगा। अब तक तो इस बारे में विपक्षी ही कहते रहे हैं, पर खुद गृहमंत्री यह मानने लगे हैं कि नक्सलियों से निपटना पुलिस के बस में नहीं है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या नक्सल समस्या सेना के बुलाने से समाप्त हो जाएगी। इसका सीधा सा जवाब है कि सेना के बस में नक्सलियों से निपटना है ही नहीं। ऐसा हम कोई हवा में नहीं कह रहे हैं। बस्तर में लंबे समय तक रहने वाले पुलिस के एक आला अधिकारी का कहना है कि सेना और पुलिस की कार्रवाई में बहुत अंतर है। सेना आतंकवादियों से तो एक बार निपट सकती है, पर नक्सलियों से निपटना उसके बस में नहीं है।
छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या को लेकर केन्द्र सरकार तो पिछले कुछ समय से गंभीर दिख रही है। केन्द्र सरकार इस समस्या को समाप्त करना चाहती है ऐसा उसका कहना है। लेकिन हमें तो नहीं लगता है कि केन्द्र सरकार इस समस्या के प्रति गंभीर है। अगर ऐसा होता तो यह समस्या इतने विकराल रूप में कभी सामने नहीं आती। हमने पहले भी लिखा है, एक बार फिर से याद दिलाने चाहेंगे कि छत्तीसगढ़ में जब नक्सलियों ने पैर पसारने प्रारंभ किए थे, तब से लेकर अब तक लगातार केन्द्रीय गृह मंत्रालय के पास जानकारी भेजी जाती रही है, पर केन्द्र सरकार ने इस दिशा में गंभीरता दिखाई ही नहीं। केन्द्र सरकार के साथ पहले मप्र और अब छत्तीसगढ़ की सरकार भी गंभीर नहीं लगती है। हर सरकार के नुमाईदें महज हवा में बातें करते हैं कि नक्सलियों का नामो-निशा मिटा देंगे। अरे भई कैसे मिटा देंगे कोई योजना है? नहीं तो फिर कैसे मिटा देंगे, कुछ बताएंगे। इसका जवाब नहीं है खाली बयानबाजी करनी है तो कर रहे हैं। अपने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस तरह का राग अलापते हैं। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकी राम कंवर भी ऐसा कह चुके हैं। इस बार ननकी राम ने यह कह दिया है कि नक्सल समस्या से निपटने के लिए सेना को बुलाना चाहिए। उनके इस बयान से यह बात तय है कि अब उनको भी अपने राज्य की पुलिस पर भरोसा नहीं रहा है।

केन्द्रीय और राज्य के मंत्री बयान तो दे देते हैं और सरकारें कुछ नहीं करती हैं। इनके बयानों का असर यह होता है कि नक्सली खफा हो जाते हैं और कहते हैं कि अरे तुम क्या हम लोगों का नामों निशा मिटा दोगे हम लोग तुम लोगों को मिटा देंगे और करने लगते हैं बेगुनाहों का खून। मंत्रियों और अफसरों के जब-जब बयान आएं हैं, उन बयानों के बदले में नक्सलियों ने हमेशा बेगुनाहों का खून बहाया ही है। अरे भाई अगर कुछ करने का मादा है तो चुपचाप उसी तरह से करो न जैसे नक्सली करते हैं। नक्सलियों ने निपटने के लिए उनके जैसी सोच चाहिए।

अब राजनीति देखिए कि कहा जा रहा है कि बस्तर को सेना के हवाले कर दिया जाए। यह बात आज से नहीं काफी समय से कांग्रेसी करते रहे हैं। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या सेना में इतना दम है कि वह नक्सलियों का सफाया कर सकती है। सेना का काम नक्सलियों ने निपटने का नहीं है। बस्तर में लंबे समय तक रहने वाले पुलिस के आला अधिकारी की बातें मानें तो सेना की अपनी अलग कार्यप्रणाली है, उनके बस में नक्सलियों से निपटना नहीं है। उनको ऐसा प्रशिक्षण ही नहीं दिया जाता है कि नक्सलियों से वे दो-दो हाथ कर सकें। इन अफसर महोदय ने बताया कि बस्तर में कुछ समय पहले सीआरपीएफ की फोर्स रखी गई थी, यह फोर्स वहां पर तीन माह तक रहकर भी कुछ नहीं कर पाई। इस फोर्स को जब कही भेजा जाता था तो इनकी सुरक्षा के लिए पुलिस वाले जाते थे। अब ऐसे में यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि सेना नक्सलियों से निपट सकती है। नक्सलियों पर बस्तर में एक नागा बटालियन भारी पड़ी थी, पर उसको हटा दिया गया। इस बटालियन के जवानों पर कई तरह के आरोप भी लगे थे।

कुल मिलाकर नक्सली समस्या से पुलिस वाले ही मुक्ति दिला सकते हैं। इसके लिए जरूरत यह है कि एक तो पुलिस को मजबूत किया जाए और दूसरे बस्तर में ऐसे अधिकारियों को रखा जाए जो वास्तव में पुलिस के जवानों का मनोबल बढ़ा सके। जबरिया बस्तर भेजे जाने वाले जवान और अधिकारी कभी भी नक्सलियों का सामना नहीं कर सकते हैं। सरकार को तलाशने होंगे ऐसे अफसर और जवान जो नक्सलियों से लोहा लेने की इच्छा रखते हों। अब ये अधिकारी और जवान चाहे छत्तीसगढ़ के हों या फिर देश के किसी भी कोने के हों।

5 टिप्पणियाँ:

honesty project democracy शुक्र मई 14, 08:30:00 am 2010  

सेना में दम क्या ,बेहद दम और ईमानदारी भरा दमदार जज्बा भी है ,लेकिन उनकी असल कमान भ्रष्ट और बेदम लोगों के हाथ में है ,जिससे सारा दम छू मंतर हो जाता है / इन बेदम लोगों से सेना को मुक्त कराने की जरूरत है /

नरेश सोनी शुक्र मई 14, 10:08:00 am 2010  

बस्तर में सेना की तैनाती का मतलब पूरे बस्तर को सेना के हवाले करना होगा। इससे बहुत सी तकनीकी दिक्कतें आने की संभावना है। एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वहां का विकास पूरी तरह प्रभावित हो जाएगा।
दरअसल, सेना की तैनाती का मसला आदिवासियों के वजूद को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा। अलबत्ता, वायुसेना की मदद से नक्सलियों के ठिकानों पर हवाई हमले जरूर हो सकते हैं।

ढपो्रशंख शुक्र मई 14, 01:20:00 pm 2010  

टिप्पणी-१
हम उडनतश्तरी पर राजकुमार सोनी साहब की टिप्पणी का सौ प्रतिशत समर्थन करते हुये अपना बात नीचे रखना चाहूंगा. अगर आप में दम हो तो इसको जस का तस छापिये अऊर अगर आप भी अपने आपको त्रिदेव समझते हो तो रहने दिजिये.

१. यह सत्य है कि आज समीरलाल के इर्द गिर्द या आसपास भी कोई ब्लागर कसी मामले में नही टिकता.

२. जानदत्तवा अऊर अनूपवा का पिराब्लम ही सबसे बडा ई है कि वो दोनो अपने आपको सबका बाप समझते हैं. और समीरलाल की प्रसिद्धि से जलते हैं. समीरलाल ने यह प्रसिद्धि अपने बल पर और मेहनत पर पाई है.

३, जैसा कि उपर सोनी जी ने कहा कि ज्ञानदत्तवा अपने आपको सबसे बडा जज समझता है जो कि खुद कलर्क बनने के काबिल नही है. उसको ये समझना चाहिये कि ये तीन चार साल पुराना ब्लागजगत नही है जो उसकी अफ़सरी को लोग सहन करेंगे बल्कि अब उससे भी बडे बडॆ अफ़सर ब्लागरी कर रहेहैं. अच्छा हुआ रेल का इंजन ब्लाग पर दौडाना छोड दिया अऊर ब्लाग पर हाथ गाल पर टिका के बैठ गया.

क्रमश:......

ढपो्रशंख शुक्र मई 14, 01:21:00 pm 2010  

टिप्पणी-२
४. ज्ञानदत्त ने जो पोस्ट लिखी वो उसकी और फ़ुरसतिया की सोची समझी रणनीती थी. ये दोनों लोग सारे ब्लागरों को बेवकूफ़ समझते हैं. इनको आजकल सबसे बडी पीडा यही है कि इन दोनों का जनाधार खिसक चुका है. समीरलाल को लोकप्रिय होता देखकर ये जलने लेगे हैं.

ज्ञानदत्त ने जानबूझकर अपनी पोस्ट मे समीरलाल के लेखन को इस लिये निकृष्ट बताया कि उसको मालूम था इस पर बवाल मचेगा ही. और बवाल का फ़ायदा सिर्फ़ और सिर्फ़ मिलेगा ज्ञानदत्त अऊर अनूप को. और वही हुआ जिस रणनीती के तहत यह पोस्ट लिखी गई थी. समीरलाल के साथ साथ ज्ञानदत्त अऊर अनूप भी त्रिदेवों में शामिल होगये. अबे दुष्टों क्या हमारे त्रिदेव इतने हलकट हैं कि तुम जैसे चववन्नी छाप लोग ब्रह्मा विष्णु महेश बनेंगे? अपनी औकात मत छोडो.

५. ज्ञानदत अऊर अनूप ऐसे कारनामे शुरु से करते आये हैं. इसके लिये हमारी पोस्ट 'संभाल अपनी औरत को नहीं तो कह चौके में रह' का अवलोकन कर सकते हैं. और इनकी हलकटाई की एक पोस्ट आँख की किरकिरी की पढ सकते हैं. ज्ञानदत्तवा के चरित्तर के बारें मा आप असली जानकारी बिगुल ब्लाग की "ज्ञानदत्त के अनाम चमचे ने जारी की प्रेस विज्ञप्ति" इस पोस्ट पर पढ सकते हैं जो कि अपने आप मे सौ टका खरी बात कहती है.

६. अब आया जाये तनिक अनूप शुक्ल पर = इस का सारा चरित्तर ही घिनौना और हलकट है. इसकी बानगी नीचे देखिये और अब तो आप को हम हमेशा ढूंढ ढूंढ कर बताता ही रहूंगा.

शेष भाग अगली टिप्पणी में....

ढपो्रशंख शुक्र मई 14, 01:22:00 pm 2010  

टिप्पणी-४
अब हमार ई लेक्चर बहुते लंबा हुई रहा है. हम इहां टिप्पू चच्चा से अपील करूंगा कि चच्चा आप जहां कहीं भी हो अब लौट आवो. अब तो अनूपवा भी पिंटू को बुला रहा है वैसन ही हम तौका बुलाय रहे हैं. हम तुम मिलकर इस अनूपवा, ज्ञानदत्तवा और इन छर्रे लोगों की अक्ल ठीक कर देंगे, लौट आवो चच्चाजी..आजावो..हम आपको मेल किया हूं बहुत सारा...आपका जवाब नाही मिला इस लिये आपको बुलाने का लिये ई टिप्पणी से अपील कर रहा हूं. अनूपवा भी अपना दूत भेज के ऐसन ही टिप्पणी से पिंटू को बुलाय रहा है. त हमहूं सोच रहे हैं कि आप जरुर लौट आवोगे.

चच्चाजी सारा ब्लाग्जगत तुम्हरे साथ है. आकर इन दुष्टों से इस ब्लाग जगत को मुक्त करावो. सोनी जी के शब्दों मे तटस्थता भी अपराध है. हे चच्चा टिप्पू सिंह जी आपके अलावा अऊर किसी के वश की बात नाही है. अब तक केवल अनूपवा अऊर उसका छर्रा ही था अब त एक बहुत बडा हाथ मुंह पर धरे बडका आफ़सर भी न्याया धीश बन बैठा है. आवो च्च्चा टिप्पूसिंह जी...औ हम आपको मेल किया हूं. मुझे आपकी टिप्पणी चर्चा मे चर्चा कार बनावो. क्योंकि मेरी पोस्ट पर तो इन लोगों के दर से कोई आता ही नही है.

अब हम अपने बारे मा बता देत हूं... हम सबसे पुराना ब्लागर हूं. जब अनूपवा भी नही थे ज्ञानदत्तवा भी नाही थे और समीरलालवा भी नाही थे. ई सब हमरे सामने पैदा भये हैं. अब हम आगया हूं अऊर चच्चा टिप्पू सिंह का इंतजार कर रहा हूं. अब आरपार की बात करके रहेंगे.

इस हिसाब से हम आप सबके दद्दाजी लगते हैं औ हमे दद्दा ढपोरसिंह के नाम से पुकारा जाये.

छर्रे का मतलब ज्ञानदत्तवा स्टाइल मा समझा देत हैं.

छर्रे = pupil = प्युपिल = चेलवा = शिष्य = पढा जाये :- अव्यस्क व्यक्ति

श्रंखला जारी रहेगी............

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