बाइक का बेचना किसी को पसंद नहीं आया
हमने अपनी 12 साल पुरानी बाइक तीन दिन पहले बेच दी। इस बाइक से हमको ही नहीं हमारे पूरे परिवार को बहुत लगावा था। लेकिन काफी पुरानी होने के कारण कुछ-कुछ परेशानियां लगातार आ रही थीं। ऐसे में काफी समय से सोच रहे थे कि इसको बेचकर नई बाइक ली जाए।पर न जाने क्यों इसको बेचने का मन ही नहीं होता था। लेकिन अंतत: हमने उस बाइक को बेच दी दिया। पर पुरानी बाइक का बेचने किसी को पसंद नहीं आया।
वास्तव में कहते हैं कि घर की बेजान चीजों से भी इंसान को इतना लगाव हो जाता है कि उसका जाना खल ही जाता है। यही हमारे साथ भी हुआ। अचानक तीन दिन पहले हमारी बाइक बनाने वाला मिस्त्री आया और उसने कहा कि भईया आपकी बाइक हमारे एक मित्र को चाहिए। हम उस बाइक को बेचने के पक्ष में नहीं थे, पर उस मिस्त्री ने ही हमारी बाइक को प्रारंभ से ठीक करने का काम किया था। उस मिस्त्री ने काफी मिन्नतें कीं कि भईया यही समझे कि बाइक आपके छोटे भाई के घर जा रही है। अंत में हमने वह बाइक उसे बेच दी। हमारे बाइक बेचने से सबसे ज्यादा दुखी हमारी बिटिया स्वप्निल राज ग्वालानी हुईं। उनको इस बाइक से कुछ ज्यादा ही लगाव था। और होता भी कैसे न। हमने उनको कई बार बताया था कि बेटा जितनी आपकी उम्र है उतनी ही इस बाइक की भी। हमने यह बाइक स्वप्निल के 12 फरवरी 1998 को पैदा होने के बाद 17 जून 1998 को खरीदी थी।
बहरहाल हमारे बाइक बेचने से हमारी पत्नी श्रीमती अनिता ग्वालानी को भी दुख हुआ। जब हम दूसरे दिन नई बाइक लेकर आए और हमारी श्रीमती जी दोपहर को बाहर गईं तो उन्होंने वापस आकर कहा कि बाहर भले नई बाइक खड़ी है लेकिन उसको देखकर वह अपनापन नहीं लग रहा है जैसा पुरानी बाइक को देखकर लगता था। यह बात तो सच है कि हमारे पूरे परिवार को उस पुरानी बाइक से बहुत लगाव था, लेकिन इस दुनिया में जब एक न एक दिन इंसान को जाना पड़ता है तो फिर तो वह बाइक थी। वैसे हम एक बात बता दें कि हमारी उस बाइक ने हमारा बहुत साथ दिया था, हमने उसमें लंबा-लंबा सफर तय किया, पर कभी उस बाइक ने हमें धोखा नहीं दिया था। हम कई बार रात को उस बाइक से अकेले 200 किलो मीटर से भी ज्यादा सा सफर तय करके आए, पर मजाल है कि हमें धोखा मिला हो। आशा है कि हमारी नई बाइक भी हमारा साथ देगी। इसी उम्मीद के साथ हमने बजाज की डिसकवर खरीदी है। इस नई को पाकर वैसे तो सभी खुश हैं, पर हमारा छह साल का बेटा सागर राज ग्वालानी कुछ ज्यादा ही खुश है। वह जब इस पर बैठा तो कहने लगा कि पापा ये बाइक तो बहुत तेज चलती है।
8 टिप्पणियाँ:
पुराणी चीजांसे म्हणे भी घणो लगाव छे. जीमे म्हारो प्यारी मोटरसाइकिल तो म्हू खदे न बेचूं
थांकी बाइक जाबा को घणो अफ़सोस छे
नई बाईक की बधाई राजकुमार्।
वाकई बेजान चीजों से भी मोहब्बत हो जाती है, नई बाइक की बधाई
पुरानी के लिए अफसोस न करें राजकुमार जी..
नई की खुशियां मनाएं।
पार्टी-शाल्टी कब दे रहे हैं जल्द बताएं।
... वाह.. ये तो शेर हो गया।
वाह!
नरेश सोनी जी ने मेरे मन की बात कह दी
... लगता है अकेले-सकेले ही पार्टी हो जायेगी !!!
धीरे धीरे नई बाईक से भी अपनापन हो जायेगा. बहुत बधाई.
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