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रविवार, अक्टूबर 31, 2010

राज्योत्सव में भी कामनवेल्थ जैसा भ्रष्टाचार

छत्तीसगढ़ में राज्योत्सव ने नाम पर हर साल कामनवेल्थ जैसा भ्रष्टाचार किया जाता है, पर इसके खिलाफ बोलने वाला कोई नहीं है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कभी इस तरफ ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझी। कारण साफ है कि उसे भी मामलूम है कि अगर वह कभी सत्ता में आई तो उसके पास भी ऐसा भ्रष्टाचार करने के लिए रास्ता खुला रहेगा। राज्योत्सव में होने वाले बेतहाशा खर्च का किसी के पास हिसाब नहीं रहता है। इस मेले से आखिर किसका भला होता है। कुल मिलाकर मंत्रियों और उनके इशारों पर जिनको ठेका मिलता है, उनकी ही चांदी रहती है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर जब सलमान खान जैसे नामी स्टार आते हैं तो वे स्टार आम जनों के लिए बल्कि वीआईपी के लिए होते हैं।
राज्योत्सव की इस समय छत्तीसगढ़ में धूम है और कल उसका अंतिम दिन है। हमें कल ही हमारे एक आईपीएस मित्र ने बताया कि उनके विभाग का एक डोम राज्योत्सव में लगा है। उस डोम के लिए ठेका देने वाली कंपनी से जब नीचे कारपेड लगाने की बात की गई तो मालूम हुआ कि डोम में जितनी जगह है उस जगह में कारपेड लगाने का किराया एक सप्ताह का करीब साढ़े तीन लाख रुपए लगेगा। जब बाजार में उतनी जगह के लिए नए कारपेड की कीमत मालूम की गई तो मालूम हुआ कि ढाई लाख में नया कारपेड आ जाएगा। उन अफसर ने यह सब सुनकर अपना सिर पकड़ लिया और कहने लगे कि यार भ्रष्टाचार की तो हद हो गई।
वास्तव में यह तो एक महज उदाहरण है, ऐसे ही और न जाने कितने सामानों में क्या-क्या नहीं होता है। राज्योत्सव के नाम पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जाते हैं और इसका विरोध कोई नहीं करता है। विरोध करेगा भी कौन। अब आम जनता तो विरोध करने से रही, क्योंकि जनता के विरोध से कुछ होता नहीं है। अब रही बात विरोधी पार्टी कांग्रेस की तो वह भला क्यों कर विरोध करेगी। उसे अच्छी तरह से मालूम है कि आज नहीं तो कल उसकी बारी भी आएगी और जब बारी आएगी तो वह भी कूद-कूद कर राज्योत्सव के नाम पर कमाई करेगी। ऐसे में जबकि चोर-चोर मौसेरे भाई हैं तो फिर भला विरोध कैसे होगा। कुल मिलाकर आम जनता के खून-पसीने की कमाई को बर्बादी हो रही है और सब तमाश देख रहे हैं। जनता को लूभाने के नाम पर जब सलमान खान जैसे स्टार बुलाए जाते हैं तो आम जनता के हिस्से में आती हैं पुलिस की लाठियां और सलमान खान को गोद में बिठाने का काम वीआईपी करते हैं। ऐसे आयोजनों पर विराम लगना चाहिए। राज्योत्सव के नाम पर खर्च किए जाने वाले करोड़ों को अगर राज्य में विकास के कामों में लगाया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।

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शनिवार, अक्टूबर 30, 2010

मुख्यमंत्री की किट से मिली खेल को ऊंचाई

राज्य के सर्वोच्च खेल पुरस्कार गुंडाधूर के लिए चुने गए अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी मृणाल चौबे का कहना है कि उनके खेल को आज जो ऊंचाईंयों ङ्क्षमली हंै, वह सब मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा दी गई किट की बदौलत है। मृणाल याद करते हुए बताते हैं कि उनको मुख्यमंत्री के निर्देश पर पांच साल पहले खेल विभाग ने न्यूजीलैंड से गोलकीपर की अंतरराष्ट्रीय स्तर की किट मंगवा कर दी थी।
छत्तीसगढ़ के इस खिलाड़ी ने कहा कि उनको यकीन था कि उनको राज्य का गुंडाधूर पुरस्कार भी मिलेगा। वे कहते हैं कि मैं इस पुरस्कार के सारे नियमों पर ख्ररा उतरता हूं। वे पूछने पर बताते हैं कि वे छत्तीसगढ़ से ही लगातार खेले हैं। छत्तीसगढ़ से खेलने की वजह से ही मुङो पहले शहीद कौशल यादव, फिर शहीद राजीव पांडे और अब गुंडाधूर पुरस्कार मिला है। वे बताते हैं कि मैं गुंडाधूर पुरस्कार के लिए तय शर्त कि मैं छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल से अध्ययनरत हूं या नहीं पर भी खरा उतरता हूं। वे बताते हैं कि उनकी स्कूली शिक्षा जहां राजनांदगांव के युंगातर और रायल किट्स में हुई है, वहीं कॉलेज की पढ़ाई दिग्विजय सिंह कॉलेज राजनांदगांव से की है। वर्तमान में वे ग्लोबल ओपन विवि भिलाई से एमबीए कर रहे हैं।
मृणाल ने पूछने पर बताया कि वे आज जिस अंतरराष्ट्रीय मुकाम पर पहुुंचे हैं उसका सबसे बड़ा Ÿोय राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को जाता है। वे याद करते हुए बताते हैं कि आज से करीब पांच साल पहले मैं जब अपने पापा के साथ मुख्यमंत्री से मिला था, तो उन्होंने पूछा कि खेल में किसी तरह की कमी या परेशानी हो तो बताओ। मैंने उनको बताया था कि मेरे पास गोलकीपर की अंतरराष्ट्रीय किट नहीं है। उन्होंने इसके लिए तत्काल खेल विभाग को निर्देशित किया कि किट जल्द मंगवाई जाए। खेल विभाग ने एक माह के अंदर ही न्यूजीलैंड से किट मंगवा कर दी थी। मैं आज उसी किट की मदद से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाने में सफल हो रहा हूं। उन्होंने पूछने पर बताया कि मैं हमेशा छत्तीसगढ़ के लिए खेला हूं। वे बताते हैं कि पिछले चार-पांच साल से ही राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी का आयोजन न होने से मैं नहीं खेल पा रहा हूं। गुंडाधूर पुरस्कार को लेकर विवाद के बारे में वे कहते हैं कि मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं इस पुरस्कार के लिए पात्र हूं इसलिए मुङो इसके लिए चुना गया है। कोई और दावा कर रहा है तो मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं। लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूं कि इसके लिए दावा करने वाली खिलाड़ी कभी छत्तीसगढ़ से नहीं खेली हैं।

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शुक्रवार, अक्टूबर 29, 2010

सलमान का सम्मान-छत्तीसगढ़ का अपमान

सलमान खान के छत्तीसगढ़ में किए गए सम्मान को लेकर राज्य में बवाल मच गया है। बवाल इसलिए मचा है क्योंकि सलमान की वजह से एक तरह से राज्य का अपमान हो गया है। राज्य का अपमान इस तरह से की राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक को सलमान के कारण कतार में रहना पड़ा। सलमान को छत्तीसगढ़ की जमीं पर लाने वाले वीडियोकान कंपनी के निदेशक अनिरूद्द धूत ही सरकारी मंच पर छाए रहे। सलमान तो 10 मिनट के लिए दो करोड़ लेकर चले गए, लेकिन पीछे छोड़कर हैं सिर्फ बवाल। उनका जिस तरह से मंच पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री से सम्मान करवाया गया, उसको कांग्रेसी राज्य का अपमान मान रहे हैं। वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि जिस सलमान खान पर कई तरह के आरोप हैं। ऐसे अपराधी का सम्मान करने से पहले राज्य सरकार के नुमाइंदों ने सोचा क्यों नहीं।
सलमान खान का छत्तीसगढ़ आना राज्य के सलमान प्रेमियों के लिए एक सौगात थी, लेकिन यह सौगात किसी को रास नहीं आई है। एक तो सलमान का महज 10 मिनट के लिए आना सबको नागवार लगा, फिर उपर से यह हुआ कि एक अपराधी का जिस तरह से मंच पर सम्मान किया गया, वह बात किसी के गले नहीं उतरी रही है। यह बात जग जाहिर है सलमान पर हिरण का शिकार करने के आरोप के साथ मुंबई में अपनी कार से कुछ लोगों को कुचलने का आरोप है। वैसे भी सलमान खान हमेशा विवादों में रहे हैं। सलमान को एक कलाकार के रूप में बुलाना गलत नहीं था। लेकिन सरकार की इतनी भी क्या मजबूरी थी कि सलमान खान को मंच पर वीडियोकान के निदेशक लेकर आए और राज्यपाल शेखर दत्त, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ दो और राज्यों के मुख्यमंत्री नीचे बैठे रहे। फिर ऐसी क्या मजबूरी रही कि सलमान का सम्मान राज्यपाल और मुख्यमंत्री से करवाया गया। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल शेखर दत्त के साथ तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मंच पर सलमान खान की वजह से कतार में रहना पड़ा। वास्तव में यह शर्म की बात है कि एक अपराधी के लिए मुख्यमंत्री कतार में खड़े थे। क्या इनको खुद अपने पर शर्म नहीं आई। मुख्यमंत्रियों की बात छोड़ भी दी जाए, क्या अपने राज्यपाल ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि वे क्या करने जा रहे हैं। शेखर दत्त तो बहुत सुलझे हुए माने जाते हैं, फिर वे कैसे एक अपराधी का सम्मान करने के लिए सामने आ गए।
सलमान के सम्मान को लेकर कांग्रेसियों ने मोर्चा खोल दिया है, उनका  यह मोर्चा गलत नहीं है। एक तो सलमान महज 10 मिनट के लिए आए तो दो करोड़ का चुना लगा कर चले गए, उपर से राज्य का मान बढ़ाने की बजाए अपमान हो गया। खबर तो यह भी है कि माना विमानतल में सलमान के सुरक्षा गार्डों ने माना विमानतल के एक कर्मचारी के साथ ही सलमान के प्रशंसकों की पिटाई भी की है। इस मामले की कोई लिखित शिकायत तो नहीं हुई है, लेकिन खबर सच जरूर है। यानी सलमान के दंबग सुरक्षा गार्डों ने दंबगई के साथ नंगाई भी दिखाई और साफ बचकर चले गए। 

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गुरुवार, अक्टूबर 28, 2010

स्कूली खेलों का भी जम्बो बजट

छत्तीसगढ़ ओलंपिक के मिनी महाकुंभ के लिए रायपुर जिले के स्कूली शिक्षा विभाग ने १२ खेलों के लिए ४५ लाख के जम्बो बजट का प्रस्ताव बनाकर खेल विभाग को थमा दिया है। इसके पहले रायपुर के खेल विभाग ने २८ खेलों के लिए ४० लाख रुपए का प्रस्ताव बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन यह योजना खटाई में पड़ गई है।
राज्य निर्माण के दस वर्ष पूरे होने के मौके पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की घोषणा पर खेल विभाग राज्य में एक मिनी ओलंपिक करवाने की तैयारी में  जुटा है। इसके लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में अंडर १९ साल की स्कूली स्पर्धाओं के आयोजन के साथ १९ साल से ज्यादा उम्र के खिलाडिय़ों के लिए ओपन स्पर्धाएं करवाने पर सहमति बनी थी। इस सहमति के बाद से खेल विभाग के निर्देश पर राज्य के जिलों में दोनों स्तर पर योजनाएं बनाने का काम चल रहा है। ऐसे में रायपुर के जिलाधीश के बैठक लेने के बाद रायपुर जिले के स्कूली शिक्षा विभाग ने १२ खेलों एथलेटिक्स, बास्केटबॉल, फुटबॉल, हैंडबॉल, वालीबॉल, हॉकी, कबड्डी, खो-खो, बैंडमिंटन, टेबल टेनिस, नेटबॉल, और क्रिकेट के लिए ४५ लाख से ज्यादा के बजट का प्रस्ताव तैयार किया है। इस प्रस्ताव में तीन स्तरों पर खेलों के आयोजन की योजना है। पहले स्तर पर विकासखंड को रखा गया है, दूसरे स्तर पर क्षेत्रीय और तीसरे स्तर पर जिले को रखा गया है।
विकासखंड स्तर पर १२ खेलों के लिए शिक्षा विभाग ने अनुमानित एक विकासखंड का खर्च एक लाख पचास हजार रुपए माना है। एक विकासखंड में आयोजन में ५०० खिलाड़ी आएंगे। इन खिलाडिय़ों के खाने की लिए ५० रुपए की दर से बजट बनाया गया है। खिलाडिय़ों को ७० रुपए की दर से यात्रा व्यय के साथ पुरस्कारों के लिए भी राशि रखी गई है। इसी के साथ खेल मैदान बनाने, आयोजन, टेंट और आवास का खर्च जोड़ा गया है। एक विकासखंड के हिसाब से शिक्षा जिले के १६ विकासखंडों के लिए २४ लाख एक हजार दो सौ रुपए का अनुमानित बजट है।
विकासखंड स्तर के बाद क्षेत्रीय स्तर के लिए एक समूह का बजट तीन लाख २१ हजार दो सौ अस्सी रुपए बनाया गया है। रायपुर जिले को चार समूहों में बांटा गया है। ऐसे में समूह स्तर के लिए १२ लाख ८५ हजार एक सौ बीस रुपए का अनुमानित बजट है। इस समूह स्तर में ८६४ खिलाडिय़ों के आने की संभावना के लिहाज से बजट बनाया गया है। अंत में जिला स्तर के लिए ८ लाख ३२ हजार एक सौ रुपए का बजट बनाया गया है। जिला स्तर पर १२ खेलों के ११२० खिलाडिय़ों के आने की संभावना के हिसाब से खिलाडिय़ों के भोजन के लिए सौ रुपए प्रति खिलाड़ी के हिसाब से तीन दिनों के लिए ३ लाख ३६ हजार का बजट बनाया गया है। खिलाडिय़ों और कोच-मैनेजर के आने-जाने का व्य ८९ हजार ६०० रुपए माना गया है। तीनों स्तरों को मिलाकर कुल ४५ लाख का बजट बनाया गया है।
विकासखंड से आयोजन के कारण बजट बढ़ा
इतने बड़े बजट के बारे में जिला शिक्षा अधिकारी आर. बाम्बरा का कहना है कि जिलाधीश के निर्देश पर विकासखंड स्तर से आयोजन की योजना बनी है जिसकी वजह से बजट बढ़ा है। उन्होंने बताया कि हमने तो तीन स्तरों के बारे में पूरी जानकारी खेल विभाग को भेज दी है। अब शासन स्तर पर जिस तरह से निर्देश होंगे उस हिसाब से आयोजन करवाया जाएगा। उन्होंने पूछने पर बताया कि स्कूली शिक्षा विभाग के आयोजन में कम इसलिए रहता है क्योंकि खिलाडिय़ों के खाने और आने-जाने का खर्च विभाग वहन नहीं करता है।

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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010

सलमान के 10 मिनट के लिए फूंकें लाखों रुपए

छत्तीसगढ़ सरकार ने सलमान के महज 10 मिनट के लिए ही लाखों रुपयों की बर्बादी कर दी। राज्योत्सव में बुलाए गए सलमान खान मंच पर बमुश्किल दस मिनट रहे और चले गए। सलमान तो आकर चले गए, पर उनके प्रशंसकों को उनके लिए पुलिस की लाठियां तक खानी पड़ीं। इसी के साथ सलमान के आने के कारण रास्ते बंद होने से आम जनों को परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार में बैठे मंत्रियों और प्रशासकों ने सलमान को राज्य की जनता के लिए बल्कि अपने लिए बुलाया था। वैसे भी कोई भी स्टार कभी जनता के लिए नहीं बल्कि बुलाने वालों के लिए होता है। जनता तो बेचारी दूर से भी बड़ी मुश्किल से उनका नजारा कर पाती है।
छत्तीसगढ़ के दस साल पूरे होने पर सरकार ने भी दस का दम दिखाने के लिए सलमान खान को बुला लिया। जब सलमान के आने की बात हुई तो लगा कि यार वास्तव में सरकार दस का दम दिखाना चाहती है। लेकिन सलमान के आकर चले जाने के बाद मालूम हुआ कि वास्तव में सरकार ने दस का दम दिखाया। लेकिन यह दम इस तरह से नहीं जिस तरह से सोचा गया था, बल्कि इस तरह से कि सलमान ने भी महज दस मिनट मंच पर रहकर दस का दम दिखाया और चले गए। इस बीच वे मंच पर मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्रियों और प्रशासिनक अधिकारियों से ही घिरे रहे। आम जनता पर सलमान ने कुछ डायलाग बोलकर अहसान किया और चले गए जनता का लाखों रुपए बर्बाद करके।
सलमान खान को बुलाने के लिए सरकार ने कितना पैसा खर्च किया इसका खुलासा तो नहीं किया गया है, लेकिन इतना तय है कि सलमान जिस विशेष विमान से रायपुर आए और लौटे हैं उसका खर्च भी सरकार ने किया होगा। इसी के साथ उनको भी लाखों की राशि दी गई होगी। कुल मिलाकर लाखों रुपए का खर्च सलमान के पीछे सरकार ने अपने लिए ही तो किया। सलमान के आने से किसका फायदा हुआ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। उनसे मिलने का मौका तो बस सरकारी नुमाइंदों को ही मिला। आम जनता और उनके प्रशंसक तो उनकी एक झलक भी ठीक से नहीं देख पाए। जिन्होंने विमानतल और साइंस कॉलेज में उनको करीब से देखने की कोशिश की उनको पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं। वैसे भी आम जनता तो पुलिस की लाठियां खाने के लिए ही होती है। अब यह बात अलग है कि आम जनता यह जानते हुए भी ऐसी कोशिश करती है कि उनको अपने एक चहेते कलाकार की एक झलक देखने का मौका मिल जाए। वास्तव में ऐसी दीवानगी तो अब अपने देश में संभव है कि यहां के युवा फिल्म स्टारों के पीछे पागल हैं। वरना विदेशों में बड़े-बड़े से स्टार सहज रूप से आम लोगों से मिल लेते हैं। वहां न तो कोई सुरक्षा और न ही कोई ताम-झाम होता है।  लेकिन यह अपना इंडिया है जनाब। यहां के स्टार तो बस वीआईपी के लिए बने हैं, क्योंकि वे खुद भी तो वीआईपी हैं।

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मंगलवार, अक्टूबर 26, 2010

चवन्नी जानेमन-अठन्नी दिलरूबा

चवन्नी जानेमन-अठन्नी दिलरूबा
बेचारा दो का नोट बीमार पड़ गया
बीमार पड़ गया डॉक्टर आ गया
डाक्टर आ गया, सुई लगा गया
सुई थी गलत ,बेचारा मर गया
बेचारा मर गया, भूत बन गया
भूत बन गया, सबको खा गया
सबको खा गया, पंडित आ गया
पंडित आ गया, मंत्र पढ़ गया
मंत्र था क्या
ओम जय जदगीश सहरे
स्वामी जय जगदीश सहरे
पंडित जी पेड पर चढ़े
पेड़ था दुबला-पतला
पंडित जी नीचे गिरे
ओम जय जगदीश सहरे

यह पैरोडी हमारी बिटिया स्वप्निल राज ग्वालानी और सागर राज ग्वालानी ने बताई है।

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सोमवार, अक्टूबर 25, 2010

भारोत्तोलन संघ पर होगा अपराध दर्ज

छत्तीसगढ़ भारोत्तोलन संघ पर अब खेल विभाग को गुमराह करके गलत जानकारी देने के आरोप में अपराध दर्ज होने की संभावना है। डोपिंग के दोषी खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा का नाम राज्य के खेल पुरस्कार के लिए प्रस्तावित करने के मामले में पूर्व अध्यक्ष गुरमीत धनई की शिकायत पर खेल संचालक जीपी सिंह ने शिकायती पत्र और पूरा प्रकरण पुलिस अधीक्षक दुर्ग को भेज दिया है। इस मामले की शिकायत प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री के साथ खेलमंत्री और डीजीपी से भी की गई है।
भारोत्तोलन संघ के महिला विग की पूर्व अध्यक्ष गुरमीत धनई ने बताया कि छत्तीसगढ़ भारोत्तोलन संघ ने धोखाधड़ी करते हुए डोपिंग के दोषी खिलाड़ी भिलाई के सिद्धार्थ मिश्रा का नाम राज्य के खेल पुरस्कार के लिए भेज दिया था। इस मामले में खेल पत्रकारों की सजगता की वजह से अंतत: दोषी खिलाड़ी को न सिर्फ पुरस्कार से वंचित किया गया, बल्कि गलत जानकारी देने वाले संघ की मान्यता खेल विभाग ेने समाप्त कर दी। श्रीमती धनई ने कहा कि जिस तरह से प्रदेश संघ ने गलती मानते हुए खेल विभाग से माफी मांगी थी, उससे यह बात साफ है कि संघ को सारी जानकारी होने के बाद उसने एक गलत काम किया है। ऐसे में कायदे से खेल विभाग को इस मामले में प्रदेश संघ के उन पदाधिकारियों के खिलाफ अपराध दर्ज करवाना था जिन्होंने सरकार को अंधेरे में रखते हुए एक गलत खिलाड़ी को पुरस्कार दिलवाने का काम करने का प्रयास किया था। इसी के साथ एक सही खिलाड़ी अनिता शिंदे का हक मारा जा रहा था। लेकिन खेल विभाग ने ऐसा नहीं किया। अगर  खेल विभाग और सरकार को लगता है कि कोई गलती करके माफी मांगकर बच सकता है तो मेरे साथ हर किसी को एक गलती करने की छूट देनी चाहिए।
श्रीमती धनई ने बताया कि उन्होंने इस मामले में खेल संचालक जीपी सिंह से मिलकर उनको इस मामले में अपराध दर्ज करवाने का आग्रह किया था, पर उन्होंने लिखित में शिकायत करने कहा है। मैं आज न सिर्फ खेल
संचालक को बल्कि इस मामले के साथ प्रदेश भारोत्तोलन संघ से जुड़े और कई पुराने मामलों की जानकारी देते हुए एक ज्ञापन राज्यपाल शेखर दत्त, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, खेल मंत्री लता उसेंडी के साथ डीजीपी विश्वरंजन को भी इस मामले में कड़ी कार्रवाई करने के आग्रह के साथ दे रही हूं। उन्होंने बताया कि इस मामले की शिकायत केन्द्रीय खेलमंत्री एमएस गिल से भी वह एक नवंबर को दिल्ली जाकर करेंगी।
ओलंपिक संघ के पदाधिकारी कर रहे हैं मदद
श्रीमती धनई ने आरोप लगाया कि भारोत्तोलन संघ को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ से जुड़े कुछ पदाधिकारी मदद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं ऐसे में मैंने उनको इस मामले से अवगत करवा दिया है। उन्होंने कहा कि सिद्धार्थ मिश्रा को पुरस्कार न मिलने की वजह से उनके स्थान पर जिस खिलाड़ी अनिता शिंदे को पुरस्कार मिला है, उनके बारे में प्रदेश संघ के पदाधिकारी कहते हैं कि अब वे अनिता शिंदे को जूनियर भारतीय टीम से खेलने नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि भारोत्तोलन संघ पूरी तरह से दादागिरी पर उतर आया है।
प्रदेश में महिला खिलाड़ी सुरक्षित नहीं
श्रीमती धनई ने साफ शब्दों में कहा कि प्रदेश में महिला खिलाड़ी सुरक्षित नहीं है। किसी ने किसी रूप में खिलाडिय़ों को शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि हर खेल संघ को अनुदान देने वाली सरकार को यह चाहिए कि वह खेल संघों को बाध्य करे कि हर खेल संघ में कम से कम एक महिला प्रतिनिधि को रखा जाए। बाहर जाने वाली टीमों के साथ महिला कोच या मैनेजर को भी भेजना अनिवार्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुर्सी के लिए खेल संघ के पदाधिकारी महिला खिलाडिय़ों की भ्रूण हत्या करने का काम कर रहे हैं।
मामला दुर्ग एसपी के हवाले
इस मामले में खेल संचालक जीपी सिंह ने शिकायत के बाद पूरा प्रकरण दुर्ग पुलिस अधीक्षक के हवाले कर दिया है। उन्होंने कहा कि हमने दुर्ग एसपी को पत्र भेज दिया है और पूरे मामले की जानकारी दे देती है। अगर  पुलिस को लगेगा कि इस मामले में अपराध दर्ज किया जाना चाहिए तो अपराध दर्ज किया जाएगा।

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रविवार, अक्टूबर 24, 2010

2000 पोस्ट हो गई और पता भी नहीं चला

हमारे ब्लागों को मिलाकर कब की 2000 पोस्ट पूरी हो गई है और हमें पता भी नहीं चला। कल रात को कुछ समय मिला तो सोचा कि चलो देखते हैं हम कहां तक पहुंचे तो ब्लागों की पोस्ट जोडऩे पर मालूम हुआ कि 2000 पोस्ट कब की पार हो चुकी है।
हमने ब्लाग जगत में खेलगढ़ और राजतंत्र के माध्यम से पिछले साल फरवरी में कदम रखा था। इन दो ब्लागों के बाद हमने दो साझा ब्लागों में भी लिखना प्रारंभ किया। ये साझा ब्लाग थे, पहला ब्लाग 4 वार्ता और दूसरा ब्लाग चौपाल। ब्लाग 4 वार्ता में तो हमने 29 पोस्ट लिखी लेकिन ब्लाग चौपाल में हम लगातार लिख रहे हैं और ब्लागों की चौपाल सजाने का काम कर रहे हैं। ब्लाग चौपाल में हम अब तक 136 पोस्ट लिख चुके हैं। अब जहां तक राजतंत्र का सवाल है तो इसमें हमने 620 पोस्ट लिखी है। सबसे ज्यादा पोस्ट खेलगढ़ में लिखी गई है। आज की तारीख में इसमें 1235 पोस्ट हो चुकी है। आज की पोस्ट को मिलाकर अब तक हम 2020 पोस्ट लिख चुके हैं। खेलगढ़   में भी हमारी 1200 पोस्ट कब पार हुई मालूम नहीं हो सका। वैसे भी इन दिनों बहुत कम समय मिल रहा है, ब्लागिंग के लिए। लेकिन समय कम होने के बाद भी हम अपने ब्लाग में लगातार लिखने के साथ ब्लाग चौपाल को कायम रखे हुए हैं।

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शनिवार, अक्टूबर 23, 2010

दूध मत पीयो, सब्जी मत खाओ

महंगाई कम करने का तो सरकार में दम नहीं है, लेकिन महंगाई बढऩे के दोष से अपने को बचाने के लिए सरकार तरह तरह के बहाने बनाने में जरूर उस्ताद है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की बात सरकार माने तो वह तत्काल कम से कम ग्रामीणों के दूध पीने और सब्जी खाने पर रोक लगा दे। अपने अहलूवालिया साहब देश में महंगाई के लिए गांव वालों का दूध ज्यादा पीना और सब्जी ज्यादा खाना मानते हैं। तो क्या अहलूवालिया साहब यह चाहते हैं कि गांव वाले दूध की जगह शराब पीए ताकि सरकार का राजस्व बढ़ सके।
आज देश में महंगाई की हालत क्या है, यह बात किसी से छुपी नहीं है। एक आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। महंगाई से आम जनों को निजात दिलाने की दिशा में तो अपनी सरकार कुछ नहीं कर रही है, लेकिन सरकार के नुमाइदें अपनी वाहियात बातों से जरूर और आम जनों का दिमाग खराब करने का काम कर रहे हैं। अब योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलूवालिया साहब के बयान पर ही नजरें डालें तो यह बयान ही हास्यप्रद लगता है। जनाब अहलूवालिया साहब को देश में महंगाई बढऩे का कारण ग्रामीणों का ज्यादा दूध पीना और ज्यादा सब्जी खाना लगता है। ग्रामीण यह सब इसलिए करते हैं क्योंकि उनकी आमदनी बढ़ गई है। शुक्र है कि ग्रामीणों की आमदनी बढ़ी है तो वे अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए दूध पीने के साथ सब्जी ही खाने का काम कर रहे हैं। तो क्या अहलूवालिया साहब चाहते हैं कि ग्रामीणों की आमदनी बढ़ी है तो दूध की जगह शराब पीने का काम करें और सब्जी के स्थान पर फालतू चीजों का सेवन करें, ताकि सरकार का राजस्व बढ़ सके।
वास्तव में ग्रामीणों से तो प्ररेणा लेनी चाहिए कि अगर आदमी की आमदनी में इजाफा हो तो वह दूध और सब्जियों का ही सेवन ज्यादा करें। आज अहलूवालिया ने ग्रामीणों को निशाना बनाया, कल वे कहेंगे कि शहर के लोग अब ज्यादा खाना खाने लग गए हैं जिसकी वजह से महंगाई बढ़ गई है। तो क्या लोग खाना बंद करे देंगे या सरकार खाने पर भी प्रतिबंध लगा देगी।
अहलूवालिया का बयान पूरी तरह से बचकाना और वाहियात लगता है। हम इतना जानते हैं कि यह संभव ही नहीं है कि ग्रामीणों के ज्यादा दूध पीने और सब्जी खाने से महंगाई बढ़ जाए। वैसे भी गांवों में ज्यादातर घरों में जहां दूध देने वाली गायें होती हैं, वहीं घर-घर में सब्जियां लगार्इं जाती हैं। ग्रामीण अपनी बाड़ी की सब्जी खाना और अपने घर का ही दूध पीना पसंद करते हैं। लगता है अपने अहलूवालिया साहब कभी किसी गांव में नहीं गए हैं, वरना वे ऐसी बातें नहीं करते। हमें लगता है कि अहलूवालिया का बस चले तो वे सरकार से कहकर ग्रामीणों के दूध पीने और सब्जी खाने पर ही प्रतिबंध लगवा देंगे।

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शुक्रवार, अक्टूबर 22, 2010

कब तक लुटता रहेगा आम उपभोक्ता

आज का जमाना विज्ञापनों का है। इन विज्ञापनों के चक्कर में उपभोक्ता इस कदर फंस जाता है, कि उसे कई बार सोचने का भी मौका नहीं मिलता है। विज्ञापनों में अंदर कुछ होता है तो बाहर कुछ और होता है। अगर कहीं पर कोई विरोध किया जाता है तो विवाद हो जाता है। ऐसा ही एक विवाद हमारे साथ भी कल हुआ था। बात बहुत छोटी थी, लेकिन हमारा ऐसा मानना है कि उपभोक्ता को अपने हक के लिए लडऩा ही चाहिए। वैसे सोचने वाली बात यह है कि खुले आम उपभोक्ताओं को ठगने वाले दुकानदारों और कंपनियों के खिलाफ सरकार कुछ क्यों नहीं करती है। आखिर कब तक उपभोक्ता इसी तरह से लूटता रहेगा।
कल हमें कुछ कागजातों की फोटो कापी की जरूरत थी। जेएन पाडे स्कूल के पास एक फोटो कापी की दुकान के बाहर बड़ा सा बोर्ड लगा था जिसमें लिखा था 50 पैसे में फोटो कापी करवाए। हमने वहां से 10 फोटो कापी करवाई और इसके लिए पांच रुपए दिए तो दुकानदार और पैसे मांगने लगा। हमने पूछा और पैसे किस बात के तो वह दुकानदार दुकान के अंदर चिपके एक कागज की तरफ इशारा करके बताने लगा कि यहां लिखा है 20 कापी से ज्यादा करवाने पर 50 पैसे लगेंगे। हमारा उस दुकानदार से इसी बात को लेकर विवाद हो गया है कि जब बाहर आपने 50 पैसे में फोटो कापी लिखा है, तो वहीं यह भी लिखना चाहिए था कि 20 कापी से ज्यादा करने पर यह कीमत लगेगी।
यह एक छोटा का वाक्या है। ऐसे वाक्ये हमेशा किसी न किसी के साथ होते रहते हैं। यह तो एक फोटो कापी के दुकान की बात है। बड़ी-बड़ी कंपानियों के विज्ञापन जब बड़े-बड़े अखबारों में प्रकाशित होते हैं तो उसमें किसी भी उत्पाद की जो कीमत लिखी रहती है, दरअसल में वह सही कीमत नहीं होती है। जब कीमत देखकर कोई उपभोक्ता दुकान में वह उत्पाद लेने जाता है, तब मालूम होता है कि उस कीमत पर वह उत्पाद तभी मिलेगा जब आप कोई पुराना उत्पाद देंगे। जो कीमत विज्ञापन में लिखी रहती है, वह दरअसल में एक्सचेंज ऑफर के तहत रहती है। उत्पाद की कीमत तो बड़े-बड़े अक्षरों में रहती है, लेकिन एक्सचेंज ऑफर की बात इतनी छोटे अक्षरों में रहती है कि उस पर नजरें ही नहीं पड़ती हैं। न जाने ऐसे कितने विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को बेवकूफ बनाकर ठगने का काम कई कंपनिया कर रही हैं। सोचने वाली बात यह है कि हमेशा जागो ग्राहक जागो का राग आलापने वालों के पास ऐसे विज्ञापनों को रोकने का क्या कोई रास्ता और कानून नहीं है। क्यों कर सरकार ऐसे ठगने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाने का काम नहीं करती है। देखा जाए तो यह एक तरह से धोखाधड़ी ही तो है। फिर क्यों कर ऐसी कंपनियों पर धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए जाते हैं और क्यों करे उपभोक्ताओं को बेवकूफ बनाने वाले छोटे-बड़े दुकानदारों के खिलाफ अपराध दर्ज किए जाते हैं। आखिर कब तक लुटता रहेगा आम उपभोक्ता।

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गुरुवार, अक्टूबर 21, 2010

क्रिकेटरों के चयन में हो रही राजनीति

रायपुर जिले की क्रिकेट टीमों के चयन में राजनीति करने का आरोप लगाते हुए खिलाडिय़ों ने इस मामले में प्रदेश संघ के हस्तक्षेप करने की मांग की है। खिलाडिय़ों का कहना है कि अंडर १६ के साथ १९ और २२ में भी चयनकर्ताओं का समिति एक ही होने की वजह की चयनकर्ता लगातार मनमर्जी कर रहे हैं। चयन समिति के एक ही होने को राज्य संघ के सचिव राजेश दवे अपना अधिकार मानते हुए कहते हैं कि यह संघ का अधिकार है कि वह चयन समिति में किसे रखता है। जिले के अध्यक्ष विजय शाह ने इस मामले में खिलाडिय़ों ने अन्याय न होने की बात कही है।
रायपुर जिले की अंडर १६ टीम के चयन में पक्षपात करने का आरोप यूं तो कई खिलाड़ी लगा रहे हैं, लेकिन सीधे तौर पर सामने आने की हिम्मत कोई नहीं दिखा रहा है, लेकिन एक खिलाड़ी के परिजन जरूर सामने आए हैं। इस खिलाड़ी के मामा जसपाल सिंह का सीधे तौर पर आरोप है कि चयनकर्ता लगातार उनके भांजे के साथ राजनीति करते हुए एक अच्छे खिलाड़ी को टीम में नहीं रखते हैं, जिसकी वजह के वह बहुत हताश और निराश हो गए हैं। उनका कहना है कि एक उनके भांजे के साथ ही नहीं और कई खिलाडिय़ों के साथ लगातार चयनकर्ता राजनीति कर रहे हैं लेकिन खिलाड़ी डर की वजह से सामने नहीं आ रहे हैं। यहां यह बताना लीजिमी होगा कि जब भी कोई खिलाड़ी सामने आकर शिकायत करता है तो चयनकर्ता उस खिलाड़ी को हमेशा के लिए किनारे लगा देते हैं। अपने भविष्य को देखते हुए ही खिलाड़ी सामने नहीं आ पाते हैं।
कोई पक्षपात नहीं हुआ
इस मामले में जिला संघ के सचिव अवधेश गुप्ता का कहना है कि किसी भी खिलाड़ी के साथ कोई पक्षपात नहीं किया गया है। श्री गुप्ता से जब पूछा गया कि अंडर १६ टीम के चयनकर्ता कौन-कौन हैं, तो वे उनके नाम भी नहीं बता सके। चयनकर्ताओं में रियाज अकादमी से जुड़े लोगों के ज्यादा होने होने की बात पहले उन्होंने कहीं, फिर उन्होंने कहा कि उनको ठीक से मालूम नहीं है कि चयनकर्ता कौन हैं।
हर वर्ग के लिए एक ही चयन समिति
जिले की अंडर १६, १९ और २२ की टीमों को चयन करने के लिए एक ही समिति बनाई गई है। इस समिति में भावेश चन्द्राणा, मुजाहिक हक, विजय नायडू, एचपी सिंह नोगी और रॉबिन को रखा गया है। क्रिकेट के जानकारों का साफतौर पर कहना है कि रायपुर में क्रिकेट के जानकारों की कमी नहीं है, फिर क्यों कर जिले के संघ ने सभी वर्गों के लिए एक ही चयन समिति रखी है, यह बात समङा से परे है। जानकारों की मानें तो एक ही चयन समिति होने की वजह से चयनकर्ताओं की हर वर्ग में मनमर्जी चल रही है।
समिति तय करना हमारा अधिकार
इस सारे में मामले में जब छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ के सचिव राजेश दवे से बात की गई और उनको चयन में गड़बड़ी की बात बताई गई तो पहले तो उन्होंने यह कहा कि यह जिले का मामला है, वे इस मामले में कुछ नहीं कर सकते हैं। जब उनको चयन समिति के बारे में बताया गया तो उन्होंने कहा कि चयन समिति तय करना हमारे संघ का अधिकार है, हम एक ही चयन समिति रखे या अलग-अलग इसके लिए हमें कोई बाध्य नहीं कर सकता है।
खिलाडिय़ों के साथ नहीं होगा अन्याय
इस मामले में जब जिला संघ के अध्यक्ष विजय शाह से बात की गई तो उन्होंने पूरी बात को गंभीरता से सुना और कहा कि अगर कहीं कोई गड़बड़ी हुई है तो उनके पास किसी भी खिलाड़ी के पालक बिना किस डर के आकर मिल सकते हैं। हम किसी भी खिलाड़ी के साथ अन्याय होने नहीं देंगे।
राज्य संघ से हस्तक्षेप का आग्रह
इस मामले में अब पक्षपात के शिकार हुए खिलाड़ी और उनके पालक चाहते हैं कि राज्य संघ को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए। राज्य संघ को यह जानकारी होनी ही चाहिए कि किस तरह से जिले की प्रतिभाओं के साथ चयनकर्ता पक्षपात करके उनकी प्रतिभाओं को समाप्त करने का काम कर रहे हैं।

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बुधवार, अक्टूबर 20, 2010

कांग्रेस का काला चेहरा

कांग्रेसियों का काला चहेरा एक बार फिर छत्तीसगढ़ की राजधानी में तब सामने आया जब कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने अपने ही केन्द्रीय मंत्री नारायण सामी के चेहरे पर कालिख लगाने का काम किया। इस मामले  के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर प्रारंभ हो गया है। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि यह कारनामा करने वाले न तो कांग्रेसी हैं और न ही नेता हैं। भले ये कांग्रेसी न हों और नेता भी न हों, लेकिन कारनामा तो किसी कांग्रेसी के इशारे पर ही किया गया होगा। ऐसा तो नहीं हो सकता है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए आए सामी पर भाजपा के नेताओं ने हमला करवा दिया होगा। अगर कांग्रेसियों का बस चलेगा ेतो ऐसा भी कह सकते हैं। कल यहां जो घटना हुई वह कांग्रेस में ही संभव है। ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है, ऐसा यहां पहले भी हो चुका है। यहां तो पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के फार्म हाउस में मप्र के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पिट भी चुके हैं। वास्तव में कांग्रेस का चेहरा ही काला है।
राजधानी रायपुर में कल सुबह को जब कांग्रेस भवन में 11 बजे प्रदेश के प्रतिनिधियोंं की बैठक लेने नारायण सामी पहुंचे तो उन पर एक युवक  ने स्याही फेंक दी। इससे सामी का चेहरा रंगीन हो गया। इसके बाद उस युवक को पकडऩे की कसरत प्रारंभ हुई। इस पूरे मामले में यूं तो छह युवकों को पकड़ा गया है, पर इन युवकों के बारे में कांग्रेसी ही कह रहे हैं कि ये कांग्रेसी नहीं हैं। सोचने वाली बात यह है कि अगर ये युवक कांग्रेसी नहीं हैं तो फिर कांग्रेस भवन में क्या कर रहे थे? चलो मान लेते हैं कि युवक कांग्रेसी नहीं हैं लेकिन इतना तो तय है कि उन्होंने जो कारनामा किया है उसके लिए तो जरूर उनको किसी कांग्रेसी नेता की शह मिली होगी। इस मामले में वैसे भी पूर्व केन्द्रीय मंत्री से जुड़े एक नेता का नाम सामने आ रहा है। ऐसा हो तो आश्चर्य नहीं है।
सामी के साथ हुई घटना से भी बड़ी घटना उस समय 31 अक्टूबर 2000 को पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के फार्म हाउस में हुई थी जब उस समय मप्र के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की वहां पर कांग्रेसी नेताओं ने पिटाई कर दी थी। जब एक मुख्यमंत्री की पिटाई हो सकती है तो फिर एक केन्द्रीय मंत्री पर कालिख पोतना क्या बड़ा काम है। यह तो कांग्रेस की परंपरा में शामिल लगता है। एक और घटना की याद आती है जून 2001 में आदिवासी नेता केआर शाह के चेहरे पर मेडिकल कॉलेज में आदिवासी समाज की बैठक में कालिख पोत दी गई थी। एक और बड़ी घटना की बात करना भी जरूरी है। यह घटना है 2006 की। उस समय जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रायपुर आए थे तो उनके सामने ही प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समर्थकों ने जमकर हंगामा किया था।
कांग्रेस में ऐेसे ही हंगामा बरपाने वाले नेता ज्यादा हैं। कांग्रेस के इन्ही नेताओं के कारण तो कांग्रेस का चेहरा काला लगता है। वास्तव में बात यह कि कांग्रेसी नेता कुर्सी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। कल भी कांग्रेस भवन में जो कुछ हुआ है उसके पीछे भी तो एक कुर्सी का ही खेल है।

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मंगलवार, अक्टूबर 19, 2010

१० रुपए से पांच लाख हो गई मैच फीस

जब १९५८ में मैं डेविस कप टीम से भारत के लिए खेलता था तो मुझे एक मैच के लिए फीस के रुप में महज दस रुपए मिलते थे। आज मेरा बेटा जीशान अली खेलता है तो उसे एक मैच के पांच लाख रुपए मिलते हैं। आज लॉन टेनिस में बहुत ज्यादा पैसा हो गया है।
ये बातें यहां पर चर्चा करते हुए ७२ वर्षीय राष्ट्रीय कोच अख्तर अली ने कहीं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि वे डेविस कप टीम से १९५८ से ६४ तक खेले हैं। उस समय उनके साथ भारतीय टीम में जयदीप मुखर्जी, रामानाथन कृष्णनन, प्रेमजीत लाल और नरेश कुमार खेलते थे। श्री अली पूछने पर बताते हैं कि उन लोगों को तब एक मैच के लिए दस रुपए मिलते थे। उन्होंने कहा कि एक वह जमाना था और एक आज का जमाना है। आज तो टेनिस में पैसों की बारिश हो रही है। आज जब मेरा बेटा जीशान अली खेलता है तो उन्हें एक मैच के लिए पांच लाख रुपए मिलते हैं। उन्होंने बताया कि जब विम्बलडन में रामानाथन कृष्णन खेले थे तो सेमीफाइनल में पहुंचने पर उनको ७५ पौंड मिले थे। आज तो दस हजार पौंड मिलते हैं। अगर कोई खिलाड़ी ग्रैंड स्लैम के पहले चक में भी हार जाता है तो उसे पांच सौ पौंड की रकम मिलती है। पहले चक्र के बाद पैसे ही पैसे हैं।
खेल हो गया है व्यापार
श्री अली कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज खेल पूरी तरह से व्यापार में बदल गया है। इसी के साथ इसमें ग्लैमर भी आ गया है। वे कहते हैं कि खेल का पेशेवर होना गलत नहीं है। आज किसी भी खेल की सफलता के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह खेल पेशेवर हो। खेल के पेशेवर होने पर ही खिलाड़ी उसमें आते हैं और प्रतिस्पर्धा बढ़ती है। आज लॉन टेनिस अमीरों का खेल नहीं रह गया है। इसमें पैसे आने के कारण अब इस खेल में मध्यमवर्गीय के साथ गरीबी तबके के लोग भी अपने बच्चों को भेजने लगे हैं।
गुरुओं की इज्जत तो अपने देश में है
भारत के राष्ट्रीय कोच होने के साथ कई देशों के राष्ट्रीय कोच रह चुके श्री अली कहते हैं कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि गुरुओं की इज्जत अपने देश में ही होती है। वे कहते हैं कि बाहर के देशों में पैसे तो बेशक हैं, लेकिन वैसा सम्मान वहां नहीं मिल पाता जैसा सम्मान अपने देश में प्रशिक्षकों को मिलता है। वे बताते हैं कि वे बेल्जियम में १९८० से ८५ तक राष्ट्रीय कोच रहे हैं। इसी के साथ वे १९९० से ९४ तक मलेशिया में मुख्य कोच रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन देशों में प्रशिक्षकों को पैसे तो बहुत मिल जाते हैं, लेकिन सम्मान नहीं मिलता है। अपने देश में अख्तर अली को सभी जानते हैं, लेकिन मैं विदेशों में कितने भी साल प्रशिक्षक का काम कर लूंगा तो मुझे वहां जानने वाला कोई नहीं मिलेगा। इसी के साथ विदेश में एक दिक्कत यह भी है कि वहां कोई मर जाए तो उसे कंघे देने वाले नहीं मिलते हैं।
चयन में राजनीति होती है
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि चयन में राजनीति होने से मैं इंकार नहीं कर सकता हूं। उन्होंने बताया कि एक बार डेविस कप टीम के चयन में वे चयनकर्ता थे। उस समय विजय अमृतराज युवा खिलाड़ी थे। मैंने उनका चयन कर लिया था, पर मुङा पर शशि मेेनन को रखने के लिए दबाव  बनाया जा रहा था। मैंने विजय अमृतराज और शशि मेनन का मैच करवा दिया। विजय ने शशि को ६-०, ६-० से पीट दिया। इसके बाद मैंने विजय को टीम में रख लिया। उस समय विजय अमृतराज को अस्थमा था। दूसरे दिन अखबारों में खबर छप गई कि राष्ट्रीय चयनकर्ता ने अस्थमा के मरीज को टीम में रख लिया। उस समय किसी ने विजय की प्रतिभा नहीं देखी।
पालकों की रूचि से बनते हैं बड़े खिलाड़ी
श्री अली ने सानिया मिर्जा के बारे में बताया कि आज अगर वह बड़ी खिलाड़ी हैं तो इसके पीछे उनकी मां का बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने बताया कि बंगाल में एक बार उनकी मां ने उनसे कहा था कि अख्तर भाई मैं सानिया को बड़ी खिलाड़ी बनाना चाहती हूं। इसी के साथ पारख बहनों की माता ने मुझसे कहा था कि मैं अपनी लड़कियों को अमरीका की अकादमी में भेजना चाहती हूं ताकि उनको छात्रवृत्ति मिल सके। सानिया की मां चाहती थी इसलिए आज सानिया बड़ी खिलाड़ी हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी खेल में पालकों की रूचि के बिना खिलाड़ी बड़ा नहीं बन सकता है।
भारत में आते हैं बी ग्रेड के कोच
अख्तर अली का मानना है कि भारत में लॉन टेनिस हो या फिर क्रिकेट या फिर कोई भी खेल। हर खेल में जो भी विदेशी कोच आते हैं सभी बी या सी ग्रेड के होते हैं। एक ग्रेड को कोच को बुलाना भारत के बस में नहीं है। वे बताते हैं कि लॉन टेनिस में अमरीका के एक ए ग्रेड के कोच नीक बॉल थ्री एक घंटे के लिए दो हजार डॉलर लेते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जो विदेशी कोच आते हैं उनसे खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण दिलाने की बजाए प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण दिलाना चाहिए। श्री अली का कहना है कि भारत में स्कूल स्तर में खेलों पर ध्यान देने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी  अच्छे हैं उनके लिए यह सौभाग्य की बात है कि उनको विक्रम सिसोदिया जैसे प्रमोटर मिला है। उन्होंने बताया कि श्री सिसोदिया पिछले छह माह से उनके पीछे पड़े थे कि उनको रायपुर आना है। उन्होंने कहा कि उनको जानकारी मिली है कि छत्तीसगढ़ में३७वें राष्ट्रीय खेल होंगे। ऐसे में तय है कि यहां पर मैदानों की कमी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि खेल से जितने ज्यादा लोगों को हो सके जोडऩा है। जितने खिलाड़ी जुड़ते हैं, उससे डबल उनके पालक खेलों से जुड़ते हैं। पालकों का खेलों से लगाव ही खिलाडिय़ों को आगे ले जाने का काम करता है।

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सोमवार, अक्टूबर 18, 2010

खुबसूरत बीबी हो तो विदेश में रहना खतरनाक

कल की बात है लॉन टेनिस के एक अंतरराष्ट्रीय कोच अख्तर अली से मिलने का मौका मिला। उनसे काफी बातें हुर्इं। वे कई देशों में घुमें हैं। उनकी उम्र इस समय 72 वर्ष है। उन्होंने एक बात कहीं कि अगर आपकी बीबी खुबसूरत है तो आपके लिए विदेश में रहना खतननाक हो सकता है, क्योंकि कोई भी आपकी बीबी को लेकर उड़ सकता है।
अख्तर अली ने बताया कि उनके पास विदेश में रहने के बहुत ऑफर थे, लेकिन वे वहां नहीं रहे। इसका कारण वे यह बताते हैं कि वहां पर भारत जैसा सम्मान नहीं मिलता है। एक और बात यह भी है कि वहां अगर इंसान मर जाए तो उसको कंघा देने वाले भी नहीं मिलते हैं। लेकिन इसी के साथ वे हंसते हुए यह भी कहते हैं कि विदेश में रहने का एक सबसे बड़ा खतरा यह रहता है कि आपकी बीबी, खासकर उस बीबी को कोई भी उड़ा सकता है जो खुबसबरत हो। वे कहते हैं कि वहां की संस्कृति ही ऐसी है किसका किसके साथ अफेयर हो जाए कोई नहीं जानता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि विदेश की संस्कृति ओपन सेक्स की होने की वजह से यह खतरा वहां पर हर किसी के साथ बना रहता है कि उसकी बीबी का किसी से अफेयर न हो जाए। लेकिन यह बात तय है कि अपनी भारतीय महिला को इतनी आसानी से हाथ लगाना किसी के लिए बस की बात नहीं है। भारतीय नारी वैसे तो पूरी तरह से पति को समर्पित रहती हैं। वह बाहर कदम तभी उठाती हैं जब वह पति से प्रताडि़त होती हैं। लेकिन यह बात भी है कि कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। अख्तर अली साहब की बात अपनी जगह ठीक भी है कि खुबसूरत बीबी के साथ कौन कम्बख्त भला विदेश में जाकर रहना पसंद करेगा। कहीं बीबी किसी गोरे को देखकर बहक गई तो क्या होगा।  यह भी बात है कि जैसा देश वैसा भेष वाली बात भी है, कब विदेशी संस्कृति का रंग किस पर चढ़ जाए कहा नहीं जा सकता है। जब विदेशी संस्कृति के रंग में पुरुष रंग सकते हैं तो फिर महिलाओं के रंगने में कोई अपराध थोड़े ही है।

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रविवार, अक्टूबर 17, 2010

ब्लागर भी मारे मन के रावण को

आज विजयदशमी का पर्व है। इस अवसर पर हम पूरे ब्लाग बिरादरी के मित्रों से एक आग्रह करना चाहते हैं कि ब्लाग जगत से गुटबाजी को लात मारते हुए मन के रावण को समाप्त करके सभी एक परिवार की तरह रहने का संकल्प लें। वैसे हम जानते हैं कि यह आसान नहीं है, लेकिन एक प्रयास करने में क्या जाता है।
वैसे हमें लगता नहीं है कि अपने ब्लाग जगत में कभी गुटबाजी समाप्त होगी। हमने इस गुटबाजी को समाप्त करने का जब एक प्रयास ब्लाग चौपाल के माध्यम से किया तो हमें अहसास हो गया कि जो लोग कभी हमें अपना मित्र समझते थे, हम उनकी आंंखों में भी खटकने लगे। अगर ऐसा है भी तो हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे मतलबी दोस्त वैसे भी काम के नहीं होते हैं। इतना तो तय है कि आज की दुनिया बहुत ज्यादा स्वार्थी है और जब किसी का किसी से कोई स्वार्थ होता है तो उस समय वो यह नहीं देखता है कि वह उनका दोस्त है या दुश्मन।
हमें ब्लाग जगत में आए करीब डेढ़ साल हो गए हैं। इस दरमियान हमने यही महसूस किया है कि यहां पर अति गुटबाजी है। पहले पहल जब हम ब्लाग जगत में आए थे, तो जो भी ब्लागर मिलता था हम उन्हें अपना दोस्त समझते थे। वैसे आज भी कम से कम हम तो हर ब्लागर को अपना मित्र समझते हैं। लेकिन धीरे-धीरे हमें यह बात मालूम हुई की जो ब्लागर हमसे मित्रता कर रहा है, वह बस और बस यही चाहता है कि हम उनके गुट के साथ जुड़कर रहे। इस गुटबाजी को हमने कई बार चरम पर पहुंचते देखा तो हमने अंत में इससे किनारा करने का मन बना लिया और आज हम किसी भी तरह की गुटबाजी से अलग हैं।
एक तरफ हमने गुटबाजी से किनारा किया तो दूसरी तरफ एक प्रयास किया कि हम कुछ ऐसा करें जिससे गुटबाजी समाप्त हो जाए। हमने करीब चार माह पहले ब्लाग चर्चा के लिए एक ब्लाग चौपाल का आगाज किया। इस चौपाल को हम निरंतर कायम रखे हुए हैं। अब यह बात अलग है कि इस चौपाल के कारण हमारे वे परम मित्र खफा नजर आते हैं जो गुटबाजी में भरोसा करते हैं। उनको हमारा यह प्रयास रास नहीं आया है इसका आभास हमें पहले दिन से ही हो गया था। लेकिन इससे हमें कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। जिनको जो समझना है, वह समझने के लिए स्वतंत्र हंै। हम किसी को रोकने वाले कौन होते हैं। क्योंकि हम हर ब्लागर को अपना मित्र समझते हैं इसलिए किसी को भी समझाना अपना फर्ज समझते हैं। लेकिन समझाने का मलतब यह कदापि नहीं है कि हम अपनी बात किसी पर थोपें। अगर किसी को गुटबाजी करके ही संतोष मिलता है तो हम क्या कर सकते हैं। हमारा ऐसा मानना है कि ब्लाग जगत एक परिवार की तरह है, इसमें मतभेद भले रहे लेकिन मनभेद नहीं होने चाहिए। लेकिन यहां तो मनभेद ज्यादा नजर आते हैं। हमें नहीं लगता है कि कभी ब्लाग जगत से गुटबाजी समाप्त हो पाएगी। लेकिन हम आज विजयदशमी के दिन सभी ब्लागर मित्रों से एक विनम्र अपील कर रहे हैं कि सभी अपने मन के रावण को मारकर एक होने का संकल्प लें। अगर ब्लाग एक हो गए तो ब्लाग जगत एक नई शक्ति के रूप में सामने आ सकता है और हम राज्य के साथ राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

अंत में सभी ब्लागर मित्रों को विजयदशमी की बधाई और शुभकामनाएं

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शनिवार, अक्टूबर 16, 2010

कामनवेल्थ में खेलना सपने जैसा

कामनवेल्थ के पैरालंपिक की तैराकी में खेलकर लौटीं प्रदेश की अंजनी पटेल को कामनवेल्थ में खेलना सपने जैसा लगता है। वह कहती हैं कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उनको कामनवेल्थ जैसी बड़ी स्पर्धा में खेलने का मौका मिलेगा।  वह कहती हैं कि अगर मुङो सुविधाएं मिलती तो मैं जरूर वहां से पदक लेकर लौटतीं।
दिल्ली से लौटने के बाद यहां पर चर्चा करते हुए अंजनी ने बताया कि वह कामनवेल्थ की तैराकी के ५० मीटर के साथ १०० मीटर की फ्रीस्टाइनल में खेलीं। यहां उनको दोनों वर्गों में आठवां स्थान मिला। पूछने पर वह कहती हैं कि उनको पदक इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि अपने राज्य में तैराकी की उतनी सुविधाएं नहीं हैं। वह बताती हैं कि वह जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव  बलौदा के गरीब परिवार से संबंध रखने वाली खिलाड़ी हैं। वह बताती हैं कि उनको अभ्यास करने के लिए बिलासपुर में रहना पड़ता है। बकौल अंजनी उनको बिलासपुर के जिलाधीश सोनमणी बोरा से बहुत मदद मिली है जिसकी वजह से उनका कामनवेल्थ में खेलने का सपना पूरा हुआ। वह बताती हैं कि उनको श्री बोरा की वजह से हर माह दो हजार पांच सौ रुपए की खेलवृत्ति मिलती है।
अंजनी पूछने पर कहती हैं कि जिन स्थानों पर उनके जैसे खिलाड़ी रहते हैं वह सरकार को सुविधाएं दिलानी चाहिए। उनको इस बात का भी मलाल है कि राज्य के विकलांग तैराकी संघ को अब तक राज्य सरकार ने मान्यता नहीं मिली है। वह बताती हैं कि अब तो राज्य में पैरालंपिक संघ भी बन गया है ऐसे में सरकार को हमारे संघ को मान्यता देनी चाहिए। वह बताती हैं कि उनके जिले जांजगीर में ही ६० से ज्यादा विकलांग तैराक हैं। अंजनी ने पूछने पर बताया कि वह २००५ से तैराकी कर रही हैं और कई बार राष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेल चुकी हैं। वह कहती हैं कि उनकी जैसी खिलाडिय़ों को अगर राज्य सरकार से सुविधाएं मिले तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम राज्य का नाम रौशन कर सकती हैं। उन्होंने पूछने पर कहा कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनको कामनवेल्थ में खेलने का मौका मिलेगा।

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शुक्रवार, अक्टूबर 15, 2010

कामनवेल्थ जैसा बजट

छत्तीसगढ़ ओलंपिक के आयोजन का बजट कामनवेल्थ के बजट जैसा लगने लगा है। अकेले रायपुर जिले ने ही ३१ खेलों के लिए ४० लाख का प्रस्ताव बना दिया है। अगर रायपुर की तर्ज पर बाकी जिले भी बजट मांगेंगे तो जिले के आयोजन का ही बजट करीब सात करोड़ हो जाएगा। रायपुर का बजट इतना ज्यादा होने का कारण यह है कि  खेल संघ बहती गंगा में हाथ धोने की तैयारी में हैं। जिला स्तर पर खेल संघों की मांग का आलम ऐसा रहा कि जिला खेल विभाग को जिला स्तर के आयोजन के लिए ही ४० लाख का बजट मांगना पड़ रहा है। अब यह बात अलग है कि इतना बजट देने के लिए राज्य का खेल विभाग सहमत नहीं है। खेल सचिव सुब्रत साहू साफ कहते हैं कि कोई अपनी मर्जी से जितना चाहेगा उतना बजट मांगेगा तो उतना दे थोड़े देंगे।
प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य में छत्तीसगढ़ ओलंपिक के नाम से खेलों का महाकुंभ करवाने की घोषणा क्या की है, सभी खेल संघों के पदाधिकारी इस महाकुंभ में कुंभ स्नान करने की तैयारी में जुट गए हैं। रायपुर जिले में आयोजन के लिए खेल संघों के पदाधिकारियों ने जिस तरह की मांग सामने रखी है, उससे खेल विभाग के अधिकारी हैरान हैं, लेकिन चूंकि मुख्यमंत्री की घोषणा का सवाल है ऐसे में कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहता है और खेल संघों की सभी तरह की मांग को लेकर रायपुर जिले के लिए ३१ खेलों के लिए कुल ४० लाख का बजट बनाकर खेल विभाग को भेजा जा रहा है।
इनामी राशि के साथ निर्णायकों को भी चाहिए पैसे
रायपुर के आयोजन के लिए खेल संघों के पदाधिकारियों ने खिलाडिय़ों के लिए पूरी किट, आने-जाने का खर्च तो मांगा ही है, साथ ही प्रस्ताव रखा गया है कि हर खेल में पहला इनाम १५ हजार, दूसरा १० हजार और तीसरा इनाम पांच हजार रखा जाए। इसी के साथ निर्णायकों के लिए हर मैच के लिए पांच सौ रुपए की मांग रखी गई है।
राष्ट्रीय खेलों के बाहर वाले खेल भी शामिल
रायपुर के जिला खेल विभाग ने जिन ३१ खेलों का प्रस्ताव बनाकर भेजने की तैयारी की है, उन खेलों में  म्यूथाई, थांग-ता, कैरम, जंप रोप, टेनीक्वाइट, साफ्टबॉल रग्बी फुटबॉल सहित कई खेल ऐसे हैं जो राष्ट्रीय खेलों में शामिल नहीं हैं। इसके बाद भी इन खेलों के प्रस्ताव बनाकर भेजे जा रहे हैं। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि खेलमंत्री लता उसेंडी ने साफ कहा है कि छत्तीसगढ़ ओलंपिक में राष्ट्रीय खेलों में शामिल ३४ खेलों को शामिल किया जाएगा। खेलमंत्री की इस बात के बाद भी खेल विभाग ने जिस तरह का प्रस्ताव बनाया है उससे साफ है कि जिला खेल विभाग को खेलमंत्री की बातों से कोई सरोकार नहीं है।
एक खेल पर सवा लाख का खर्च
रायपुर जिले ने जो बजट बनाया है उसके हिसाब से तो एक खेल के पीछे कम से कम सवा लाख का खर्च होना है। इतने खर्च की बात से खेलों के जानकार हैरान हंै। शेरा क्लब के मुश्ताक अली प्रधान कहते हैं कि किसी भी खेल की राष्ट्रीय स्पर्धा के लिए खेल विभाग खेल संघों को एक लाख का अनुदान देता है। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि जिला स्तर में एक खेल के आयोजन के लिए कैसे सवा लाख का बजट बनाया गया है। यहां यह भी बताना लाजिमी होगा कि पायका के लिए जिला स्तर के आयोजन के लिए एक खेल के लिए २० हजार का ही बजट रखा गया है।
खेल संघों की मांग से बढ़ा बजट
राजधानी के वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे कहते हैं कि खेल संघों ने जिस तरह की मांगे रखीं हैं उसी की वजह से बजट बढ़ा है। उन्होंने कहा कि हमारा काम है खेल संचालनालय को प्रस्ताव बनाकर भेजना जो हम कर रहे हैं अब इस प्रस्ताव पर निर्णय राज्य के खेल मंत्रालय को लेना है।
मनमाना बजट नहीं देंगे:खेल सचि
रायपुर जिले द्वारा मांगे गए ४० लाख के बजट पर खेल सचिव सुब्रत साहू कहते हैं कि कोई भी जिला अपनी मर्जी से कितना भी बजट मांगेगा तो उसे दे थोड़े देंगे। उन्होंने कहा कि इसका निर्णय शासन स्तर पर होगा कि किस जिले में कितने खेल होने हैं और उसको कितना बजट देना है।

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गुरुवार, अक्टूबर 14, 2010

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर आएंगे रायपुर

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष को पत्र लिखकर राजधानी रायपुर में अंतरराष्ट्रीय क्रिकटरों का एक मैत्री मैच करवाने का आग्रह किया है। यह मैच राज्य के दस वर्ष पूरे होने के अवसर पर करवाए जा रहे छत्तीसगढ़ ओलंपिक के मौके पर होगा।
प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनते ही यह घोषणा की थी कि राज्य के दस वर्ष पूरे होने पर छत्तीसगढ़  ओलंपिक के नाम से खेलों का एक मिनी महाकुंभ आयेजित किया जाएगा। इस मिनी ओलंपिक में राज्य स्तर की विभिन्न खेलों की स्पर्धाओं के साथ राष्ट्रीय बास्केटबॉल और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों का एक बड़ा मैच करवाने की बात मुख्यमंत्री ने कही थी। मुख्यमंत्री ने इसके लिए अब प्रयास प्रारंभ कर दिए हैं। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बीसीसीआई के अध्यक्ष शरद पवार को एक पत्र लिखकर उनसे इस मैच के लिए अनुमति मांगी है। वैसे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कुछ समय पहले जब दिल्ली गए थे तो उन्होंने मौखिक रूप से इस मैच के बारे में शरद पवार से चर्चा की थी। अब उनको पत्र लिखकर मैच करवाने का आग्रह किया है। पत्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों की दो टीमें बनाकर मैच करवाने की बात लिखी गई है। इसके पहले भी राजधानी के परसदा स्टेडियम में स्टेडियम के उद्घाटन अवसर पर एक मैत्री मैच करवाया गया था। उस मैच को देखने के लिए राज्य के एक लाख से ज्यादा खेल प्रेमी स्टेडियम में जुटे थे। एक बार फिर से मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की मंशा है कि राज्य के खेल प्रेमियों को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों का जलवा दिखाया जाए। मैच में कौन-कौन से खिलाड़ी आएंगे यह अभी तय नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि नए-पुराने खिलाडिय़ों को मिलाकर दो टीमें बनाई जाएंगी। प्रदेश क्रिकेट संघ के सचिव राजेश दवे ने बताया कि बीसीसीआई के पास उस समय जो खिलाड़ी उपलब्ध होंगे वहीं मिल पाएंगे। 
 

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बुधवार, अक्टूबर 13, 2010

हर तरफ हो हरियाली - तो हर दिन हो दीपावली

तीन दिन पहले हमें रविवार के दिन छुरा जाने का मौका मिला। रास्ते में चारों तरफ हरियाली देखकर हमारे मन में एक ही विचार आया कि काश ऐसी ही हरियाली से अपने देश का हर शहर भी हरा-भरा होता तो कितना अच्छा होता। हम सोचते हैं कि अगर हर तरफ हो हरियाली तो हर दिन हो दीपावली।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि शहरों से हरियाली गायब होने की वजह से ही इंसान ज्यादा बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। गांवों में आज भी हरियाली होने की वजह से गांव में रहने वाले इंसान शहरी इंसानों की तुलना में ज्यादा स्वस्थ्य रहते हैं। अब यह बात अलग है कि आधुनिकता की दौैड़ के साथ काम की तलाश में गांव वालों को शहरों की तरफ भागना पड़ रहा है। हमें तो जब भी समय मिलता है, हम हरियाली के दर्शन करने के लिए निकल पड़ते हैं कि किसी भी गांव की तरफ। वास्तव में हरियाली से दो-चार होकर जितना सकुन मिलता है, उसको शब्दों में बया नहीं किया जा सकता है।

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मंगलवार, अक्टूबर 12, 2010

ग्रामीण खेल में फिर शहरी खिलाड़ी

सरकार ने ग्रामीण खिलाडिय़ों के लिए पायका योजना बनाई है। पहले यह योजना ग्रामीण खेलों के नाम से चलती थी। इस योजना में विकासखंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक  होने वाली स्पर्धाओं में ग्रामीण खिलाडिय़ों को ही रखा जाना है। लेकिन अपने राज्य में लगातार यह बात सामने आ रही है कि ग्रामीण के स्थान पर शहरी खिलाडिय़ों को टीम में रख लिया जाता है। ताजा उदाहरण छुरा में खेली गई रायपुर जिले की स्पर्धा में सामने आया है। यहां पर खेली गई छह खेलों की स्पर्धा में से वालीबॉल में रायपुर के खिलाडिय़ों के खेले जाने की शिकायत बकायदा राजधानी के वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे से की गई है। शिकायत करने वालों ने हरिभूमि को बताया कि जब खेल अधिकारी से शिकायत की गई तो उन्होंने कहा कि अगर एक-दो प्रतिशत शहरी खिलाड़ी होंगे तो उनका आगे राज्य स्पर्धा के लिए चयन नहीं किया जाएगा।
इस संबंध में सपंर्क करने पर श्री डेकाटे ने बताया कि उनके पास शिकायत आई है आौर वे इस मामले में देख रहे हैं कि क्या वास्तव में कोई शहरी खिलाड़ी खेला है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि गांव में रहने का प्रमाणपत्र बनवाकर कोई खिलाड़ी खेलने में सफल हो गया हो। उन्होंने कहा कि सच्चाई जानने के बाद ऐसे किसी खिलाड़ी का चयन आगे नहीं किया जाएगा। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि अक्सर शहरी खिलाड़ी आस-पास के किसी गांव में रहने का प्रमाणपत्र वहां के सरपंच से बनवा लेते हैं और इसी आधार पर खेलने में सफल हो जाते हैं। ऐसे खिलाडिय़ों के बारे में सभी जानते हैं लेकिन अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए सभी चुप रहते हैं।
शिकायत मिली तो जांच करेंगे
इस संबंध में खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि पायका में किसी भी कीमत में शहरी खिलाडिय़ों को खेलने की मनाही है। अगर रायपुर की जिला स्पर्धा में शहरी खिलाड़ी खेले हैं और इसकी शिकायत उन तक आती है तो इसकी जांच करवाने के बाद कार्रवाई की जाएगी।

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सोमवार, अक्टूबर 11, 2010

नक्सली नहीं तो ग्रामीणों को ही मारा डालो

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक आ पहुंचे नक्सली आतंक से निपटने में तो अपने राज्य की पुलिस में दम नहीं है। ऐसे में पुलिस वाले वाह-वाही लूटने के लिए ग्रामीणों को ही निशाना बनाने का काम कर रहे हैं। अब महासुमन्द क्षेत्र की ही बात सामने आई है कि वहां पर दो ग्रामीण को पुलिस ने नक्सली बताते हुए गोलियों से भून डाला। वाह रे अपनी पुलिस। अगर इतना ही दम है तो क्यों नहीं रोक पा रहे हैं नक्सली आतंक को। हमारी पुलिस बस योजना ही बनाते रहेगी और एक दिन वह भी आ जाएगा, जब नक्सली रायपुर में भी वारदात करके निकल जाएंगे और पुलिस सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का काम करती रहेगी।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर पर बरसों से नजरें लगाए बैठे नक्सलियों ने मंसूबे लगता है अब पूरे होने वाले हैं। नक्सली अब रायपुर से लगे महासुमन्द जिले में आ धमके हैं। महासमुन्द राजधानी से महज 55 किलो मीटर की दूरी पर है। नक्सली महासमुन्द जिले तक आ पहुंचे हैं वो इस बात का प्रतीक है अपने राज्य की खुफिया पुलिस का तंत्र कितना कमजोर है। इस कमजोर तंत्र की जब पोल खुल गई है तो पुलिस इतनी ज्यादा बदहवास हो गई है कि उसने नक्सलियों की आड़ में महासमुन्द जिले के लेडग़ीडीपा में दो ग्रामीणों को ही नक्सली बताते हुए गोलियों से भून दिया।
शनिवार को महासमुन्द क्षेत्र में घुसी नक्लसियों की टोली से पुलिस की भिडं़त हुई। इस भिड़ंत में पुलिस के हाथ सफलता तो जरूर लगी, लेकिन इस सफलता के साथ एक बार फिर से एक बड़ा दाग यह लगा कि एसटीएफ के जवानों ने गांव के गौतम पटेल और उनके नौकर कोंदा को मार डाला। पुलिस ने इनको नक्सली करार देता हुए मार गिराया। जबकि हकीकत यह है कि इनका नक्सलियों से कोई लेना-देना नहीं है। एसटीएफ के जवानों के सामने गौतम पटेल के परिवार वाले फरियाद करते रहे कि वे नक्सली नहीं हैं, लेकिन इनकी एक नहीं सुनी गई और इनको गोलियों से भून दिया गया। बाद में पुलिस को जब यह लगा कि मामला खुलने वाला है तो यह बताया कि इनको नक्सलियों से मार दिया है।  यह एक घटना नहीं है। ऐसा कई घटनाएं नक्सली प्रभावित क्षेत्र में होती रहती हैं। जब भी पुलिस नक्सलियों से निपटने में कामयाब नहीं होती है, वह बेगुनाह ग्रामीणों को निशाना बनाना का काम करती है।
इधर जिस तरह से नक्सलियों के कदम राजधानी के करीब आ गए हैं, उससे यह तय है कि अगर अब भी राज्य की पुलिस और अपना खुफिया तंत्र सही तरीके से काम नहीं करेगा तो राजधानी में किसी भी दिन बड़ा हादसा हो सकता है।

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शनिवार, अक्टूबर 09, 2010

कामनवेल्थ से लेंगे प्रेरणा

कामनवेल्थ के लिए जिस तरह के स्टेडियम बनाए गए हैं और वहां पर जिस तरह की ऐतिहासिक सुरक्षा व्यवस्था की गई है, उससे छत्तीसगढ़ में होने वाले राष्ट्रीय खेलों के लिए हम प्रेरणा लेंगे।
यह बातें यहां पर चर्चा करते हुए अध्ययन दल के साथ नोडल अधिकारी के रूप में गए प्रदेश ओलंपिक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गुरुचरण सिंह होरा ने कहीं। उन्होंने बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और खेलमंत्री लता उसेंडी के निर्देश पर ही कामनवेल्थ में छत्तीसगढ़ का एक अध्ययन दल भेजा गया था। इस अध्ययन दल में खुद मुख्यमंत्री के साथ खेलमंत्री भी शामिल थीं। इसके अलावा खेल संचालक जीपी सिंह, प्रदेश लॉन टेनिस संघ के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के ओएसडी विक्रम सिंह सिसोदिया, प्रदेश ओलंपिक संघ के सचिव बशीर अहमद खान और खेल अधिकारी अजीत टोपो भी शामिल थे। श्री होरा ने बताया कि वास्तव में जैसी ऐतिहासिक व्यवस्था कामवनेल्थ में की गई है, वैसी व्यवस्था इससे पहले किसी भी अंतरराष्ट्रीय आयोजन में देखने को नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि वे दक्षिण अफ्रीका में हुए टी-२० के विश्व कप में भी गए थे, पर वहां पर भी ऐसी व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने बताया कि आयोजन को सफल बनाने के लिए दिल्ली में तीन हजार वालेनटियर रखे गए हैं। अंतरराष्ट्रीय आयोजन होने की वजह से एमबीए वालों को इसकी जिम्मेदारी दी गई है।
श्री होरा ने बताया कि हमारे अध्ययन दल ने दिल्ली में सभी खेल परिसरों के साथ खेलगांव को भी देखा। उन्होंने बताया कि अध्ययन दल के साथ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जहां लॉन टेनिस के मैदान में लिएंडर पेस और सानिया मिर्जा का मैच देखा, वहीं खेलमंत्री लता उसेंडी ने जिम्नास्टिक, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, लॉन टेनिस, हॉकी के भी मुकाबले देखे।
श्री होरा ने बताया कि दिल्ली की व्यवस्था को देखकर आस्ट्रेलिया की लॉन टेनिस टीम के साथ आए एक कोच ने तो यहां तक कह दिया कि भारत में ओलंपिक होना चाहिए। उन्होंने बताया कि उद्घाटन समारोह में छत्तीसगढ़ की माटी की महक उस समय महसूस हुई जब वहां पर बस्तर बैड की धुन गूंजी इसी के साथ पंडवानी का कार्यक्रम हुआ। उन्होंने बताया कि वहां की व्यवस्था से अध्ययन दल सरकार को अवगत कराएगा और राज्य में होने वाले ३७वें राष्ट्रीय खेलों के लिए बनने वाले स्टेडियम और खेलगांव में  इससे मदद मिलेगी। उन्होंने पूछने पर कहा कि दिल्ली जैसी सुरक्षा की जरूरत छत्तीसगढ़ में नहीं पड़ेगी, लेकिन मैदानों के लिए जिस तरह की व्यवस्था की गई है, उससे जरूर हमारे राज्य को मदद मिलेगी।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय खेलों के लिए सबसे पहले राजधानी में ओलंपिक संघ का कार्यालय प्रारंभ करना है। इसके बाद राष्ट्रीय खेलों के लिए सचिवालय को प्रारंभ करवाना है। इसको जल्द प्रारंभ करने की मांग सरकार से की जाएगी, ताकि राष्ट्रीय खेलों की तैयारी प्रारंभ की जा सके। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय खेलों का सारा संचालन खेल सचिवालय से होना है, इसके बिना काम में तेजी नहीं आएगी। 

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शुक्रवार, अक्टूबर 08, 2010

पायका में हॉकी पर लगा ब्रेक

भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी का छत्तीसगढ़ में क्रेज न होने के कारण इस खेल को पायका से अलग करना पड़ा है। इसके स्थान पर तैराकी और हैंहबॉल के स्थान पर सायक्लिंग को शामिल किया गया है। राष्ट्रीय खेल की आज इसलिए दुर्गति हो रही है क्योंकि पिछले तीन साल से राष्ट्रीय फेडरेशन में विवाद चल रहा है। हॉकी को पायका से बाहर करने का अहम कारण यह है कि केन्द्र सरकार के नए निर्देशों के कारण अब किसी भी जिले में ८ टीमों का बन पाना संभव नहीं है।
केन्द्र सरकार ने इस बार पायका योजना में शामिल खेलों के लिए एक नया फरमान जारी किया है कि किसी भी खेल में जब तक जिला स्तर पर ८ टीमें खेलने नहीं आएंगी, वह खेल स्पर्धा में शामिल नहीं किया जाएगा। इस नए फरमान के बाद प्रदेश के सभी १८ जिलों के खेल अधिकारी परेशानी में पड़ गए और उन्होंने साफतौर पर खेल संचालक से बैठक में कह दिया था कि अगर इस फरमान पर अमल किया गया तो कई खेल बंद करने पड़ेंगे। ऐसे में खेल संचालक जीपी सिंह ने खेल बंद करने के स्थान पर खेलों को बदलने का सुझाव दिया था। इसी सुङााव पर अमल करते हुए रायपुर में हॉकी के स्थान पर तैराकी और हैंडबॉल के स्थान पर सायक्लिंग को रखा गया है। रायपुर के साथ राज्य के बाकी जिलों में भी हॉकी और हैंडबॉल को हटा दिया गया है। इस बारे में जिलों के खेल अधिकारी कहते हैं कि अब जिस खेल में ८ टीमें नहीं बन पाएगी तो उन खेलों को बदलने के अलावा हमारे पास चारा क्या है।
चार टीमों का पैमाना रखना था
खेलों के जानकारों का कहना है कि केन्द्र सरकार ने हर खेल के लिए ८ टीमों का पैमाना तय किया है जो कि सही नहीं है। इनका कहना है कि एक तो अपने राज्य में कई जिले ऐसे हैं जिन जिलों में ८ विकासखंड ही नहीं हैं, ऐसे में किसी भी खेल की ८ टीमें कैसे बन सकती है। यहां पर खेलों के जानकार छत्तीसगढ़ ओलंपिक के लिए तय किए गए पैमाने का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि इसके लिए यह तय किया गया है कि जिस जिले में किसी भी खेल की चार टीमें होंगी, उन खेलों को शामिल किया जाएगा। चार टीमें बनाना भी वैसे आसान नहीं होता है, लेकिन फिर भी इतनी टीमें बन जाती है।
ग्रामीण स्तर पर ८ टीमें संभव नहीं
खेलों के जानकार साफ कहते हैं कि पायका योजना ग्रामीण क्षेत्र के लिए हैं, ऐसे में हॉकी में भी ८ टीमों का बन पाना संभव नहीं है। इनका कहना है कि अगर शहरी खिलाडिय़ों को रखने की छूट होती तो एक बार जरूर ८ तो नहीं लेकिन चार टीमें जरूर बन जाती। लेकिन शहरी खिलाड़ी पायका में पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। यह योजना ग्रामीण खिलाडिय़ों को आगे लाने के लिए बनाई गई है।
फेडरेशन के विवाद का असर
छत्तीसगढ़ में आज अगर हॉकी पूरी तरह से खत्म नजर आ रही है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण राष्ट्रीय फेडरेशन का विवाद बताया जा रहा है। पिछले तीन साल से राष्ट्रीय स्तर पर विवाद चल रहा है और आज तक इस विवाद का हल नहीं निकल पाया है। जिस राष्ट्रीय संघ को केन्द्र सरकार ने मान्यता दी है, उसे विश्व फेडरेशन से मान्यता नहीं है और जिसे विश्व फेडरेशन मान रहा है, उसे केन्द्र सरकार नहीं मान रही है। ऐसे में भला अपना राष्ट्रीय खेल का कैसे भला हो सकता है। हॉकी से जुड़े लोग साफतौर पर कहते हैं कि एक तो स्कूली स्तर पर ही इस खेल की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है ऐसे में कहां से टीमें निकलेंगी। यह बात को सच है कि स्कूल स्तर पर ही नहीं बल्कि कॉलेज स्तर पर भी हॉकी का बुरा हाल है। जब स्कूली टीमों का चयन करने के लिए ट्रायल होता है को मुश्किल से रायपुर जिले में ही चार टीमें नहीं आ पाती हैं, यही हाल कॉलेज स्तर का रहता है। कॉलेज में दो-तीन टीमों से ज्यादा टीमें नहीं आ पाती हैं।

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गुरुवार, अक्टूबर 07, 2010

26 से 43 फिर 43 से 23

आप सोच रहे होंगे कि हम कोई पहेली तो नहीं बूझ रहे हैं। यह पहेली तो नहीं है, लेकिन पहेली से कम भी नहीं है। कल बहुत दिनों बाद जब चिट्ठा जगत की वापसी हुई तो इस वापसी में कुछ गड़बडिय़ों थीं, लेकन आज जब सुबह चिट्ठा जगत देखा तो संतुष्टि हुई कि गड़बडिय़ां ठीक हो गई हैं।
कल जब चिट्ठा जगत खुलने लगा तो हमने अपने ब्लाग को देखा तो मालूम हुआ कि हमारा ब्लाग अचानक 26वें नंबर से 43वें नंबर पर पहुंच गया था। हमारी ही नहीं कई ब्लागों की वरीयता सही नहीं लग रही थी। कारण साफ था कि पिछले चार-पांच दिनों से कुछ भी अपडेट नहीं था। हमने इस बात से संतोष किया कि कुछ भी हो चलो कम से कम चिट्ठा जगत की वापसी तो हो गई। वरना एक समय लग रहा था कि शायद यह भी ब्लागवाणी की तरह हमेशा के लिए बंद तो नहीं हो गया है। पर शुक्र है भगवान का कि ऐसा नहीं हुआ है।
आज जब हमने अपने ब्लाग राजतंत्र देखा तो मालूम हुआ कि यह कल की वरीयता 43 वें नंबर से सीधे 23 वें नंबर पर आ गया है। इसके बाद हमने इसके हवाले खोले तो मालूम हुआ कि पिछले जितने दिनों में हमारी पोस्ट की जहां भी चर्चा हुई है उन प्रविष्ठियों को शामिल कर लिया गया है जिसकी वजह से हमारी वरीयता फिर से ठीक हो गई है। इसके लिए हम चिट्ठा जगत का धन्यवाद करते हैं। हमें याद है कि हमारे साथ जब तीन-चार बार गड़बड़ी की गई तो हमने चिट्ठा जगत के बारे में लिखा था। अब जबकि चिट्ठा जगत ने हमारे साथ अच्छा किया है तो भी लिखना हमारा फर्ज बनता है। इसलिए यह पोस्ट लिख रहे हैं। एक बार फिर से चिट्ठा जगत के प्रबंधन को धन्यवाद देते हैं।

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बुधवार, अक्टूबर 06, 2010

एक मीडिया कर्मी युवती से तीन मीडिया कर्मियों ने किया दुष्कर्म

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इन एक घिनौनी और शर्मनाक खबर की चर्चा है। चर्चा है कि रायपुर से प्रारंभ हुए एक नए नवेले अखबार के प्रबंधन में काम करने वाली एक युवती के साथ उनके तीन सहकर्मियों ने दुष्कर्म किया। मीडिया जगत में इस खबर को लोग चटखारे लेते हुए बताने से भी बाज नहीं आ रहे हैं, जितने लोग उतनी बातें हो रही हैं। खबर यह भी है कि एक प्रतिद्वंदी अखबार तो उस युवती की खोज कर रहा है, ताकि वह अपनी दुश्मनी भुनाने के लिए उसका उपयोग कर सके। इस मामले की पुलिस में रिपोर्ट होने के बाद भी मामले को दबा दिया गया है।
हम पिछले कुछ दिनों से लगातार एक खबर सुने रहे हैं। बहुत सोचा कि इस पर लिखा जाए या नहीं। फिर हमारे जमीर ने कहा कि ऐसा घिनौना और शर्मनाक काम अगर अपने मीडिया जगत में हुआ है और इस खबर को किसी ने प्रकाशित नहीं किया है तो इसे सबके सामने लाने का काम हमें करना ही चाहिए। जो खबरें सुनने को मिल रही हैं, उसके मुताबिक एक अखबार के प्रबंधन में काम करने वाली एक युवती की अपने एक सहकर्मी के साथ दोस्ती थी। बताते हैं कि वह युवती अपने उस सहकर्मी के साथ उनके कमरे तक गई थी। अब वहां वह उसके साथ जो भी कर रही थी, तभी उस सहकर्मी के दो मित्र और आ गए और तीनों ने उस युवती के साथ दुष्कर्म किया। इसकी जानकारी बाद में युवती ने अपने अखबार के आकाओं के साथ पुलिस में भी दी। अखबार के आकाओं ने युवती का साथ देने की बजाए, उन आरापियों को बचाने का काम किया, और पुलिस पर दबाव डालते हुए मामला दबा दिया गया। इस अखबार से जुड़े कुछ लोग बड़ी बेशर्मी से यह भी कहते फिर रहे हैं कि अरे वह युवती को ऐस करने गई थी। अब ऐस एक के साथ हो या तीन के साथ क्या फर्क पड़ता है। वास्तव मेें कम से कम हमें तो शर्म आती है कि कैसे लोग मीडिया जगत में आ गए हैं। इस घटना के बाद से युवती और वे तीनों युवक भी गायब हो गए हैं। बताते हैं कि ये युवक दूसरे राज्य के हैं जिनको वापस भेज दिया गया है।
एक तरफ जहां युवती के साथ हुई घटना को दबा दिया गया है तो दूसरी तरफ एक अखबार इस प्रयास में है कि अगर वह युवती मिल जाए तो उसको लेकर उस अखबार से बदला लिया जाए। आज जिस तरह से अखबार वार चल रहा है, उसमें अखबार वाले किसी भी हद तक जाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। वास्तव में यह स्थिति बहुत ही शर्मनाक तो ही लेकिन भयावाह भी है। हमारा ऐसा मानना है कि उस युवती की मदद सभी मीडिया वालों को करनी चाहिए। लेकिन हम जानते हैं कि ऐसा होगा नहीं। मीडिया से जुड़े लोग बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, पर जब अपने पर आती है तो पीठ दिखा देते हैं।

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मंगलवार, अक्टूबर 05, 2010

दिल्ली जाते-जाते रह गए

करीब 22 साल बाद दिल्ली जाने का एक मौका हाथ लगा था, पर वह भी हाथ से निकल गया और दिल्ली जाना स्थगित हो गया। कुछ दिनों से ख्याली पुलाव पक्का रहे थे कि दिल्ली जाएंगे तो ये करेंगे, वो करेंगे। लेकिन सभी अरमानों पर पानी फिर गया।
दिल्ली में अभी कामनवेल्थ खेल हो रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर से अपने राज्य की खेलमंत्री लता उसेंडी ने कहा कि आप और आपके साथी पत्रकार अगर दिल्ली जाना चाहते हैं तो हम व्यवस्था करवा देते हैं। इधर छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के उपाध्यक्ष गुरूचरण सिंह होरा भी बार-बार कहते रहे हैं कि हम लोग दिल्ली आ जाए। तब अचानक कार्यक्रम बना कि हम लोग 10 अक्टूबर को विमान से दिल्ली के लिए रवाना होंगे। लेकिन इसके पहले कि हम लोगों का कारवां दिल्ली के लिए कूच करता, हमने सोचा कि यार पहले एक बार इस बात का पता कर लिया जाए कि आखिर वहां पर व्यवस्था किस तरह की है। जब हमने व्यवस्था के बारे में पता किया तो हमें वह व्यवस्था जमी नहीं। ऐसे में हमने अपने साथी पत्रकारों से बात की को सभी ने एक स्वर में जाने  इंकार कर दिया और हम लोगों को दिल्ली जाना रद्द हो गया।
इस समय दिल्ली में कामनवेल्थ खेलों के कारण इतनी तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था है कि वहां पर किसी खास की भी पूछ-परख नहीं है। एक विदेशी उच्चायुक्त को भी उद्घाटन समारोह में रोक दिया गया था। ऐसे में जबकि कामनवेल्थ खेलों के लिए अब किसी भी तरह के मीडिया पास बनने की संभावना दूर-दूर तक नहीं थी तो वहां जाने से क्या फायदा। वहां एक दर्शक के रूप में हम लोगों का जाने का कोई इरादा नहीं था, हम लोग तो वहां रिपोर्टिंग करने के लिए जाने वाले थे, और रिपोर्टिंग दर्शकदीर्घा में बैठकर तो हो नहीं सकती, यही एक सबसे कारण रहा जिसके कारण हम लोगों ने दिल्ली जाना रद्द कर दिया।

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सोमवार, अक्टूबर 04, 2010

राजतंत्र में पोस्ट की शतकों का सिक्सर

हमारे ब्लाग राजतंत्र ने कल शतकों का सिक्सर लगाते हुए 600 पोस्ट पूरी कर ली। इसी के साथ हमारे सभी ब्लागों की पोस्ट को मिलाकर अब हमारे कदम 2000 पोस्ट की तरफ बढ़ गए हैं।
राजतंत्र का आगाज हमने फरवरी 2009 में किया था। तब से लेकर अब तक हमने लगातार इसमें पोस्ट लिखने का काम किया है। एक दो अवसरों को छोड़कर हम लगातार लिख रहे हैं। हमें इस बीच पाठकों और ब्लाग बिरादरी का बहुत ज्यादा प्यार और स्नेह मिला है। हमारा ब्लाग राजतंत्र आज की तारीख में चिट्ठा जगत में टॉप 40 में शामिल हैं और समय वरीयता क्रम में 26वें स्थान पर है। हमारे ब्लाग को जहां 45 हजार से ज्यादा पाठक मिले हैं, वहीं हमारी पोस्ट पर 4824 टिप्पणियां मिली हैं।
इधर हमारे सभी ब्लागों को मिलाकर हमारी पोस्ट का आंकड़ा कब का 1900 पार करके 2000 की तरफ बढ़ गया है। संभवत: इस माह हम 2000 के आंकड़े को पार कर जाएंगे। हमारा एक ब्लाग खेलगढ़ में इस समय 1184 पोस्ट हो गई है। एक सांझा ब्लाग ब्लाग 4 वार्ता में हमने 29 पोस्ट लिखी थी। एक और सांझा वार्ता के ब्लाग ब्लाग चौपाल में 117 पोस्ट लिख चुके हैं। राजतंत्र में आजकी पोस्ट के साथ 601 पोस्ट हो गई है। कुल मिलाकर अब तक 1931 पोस्ट हो गई है। हम उम्मीद करते हैं कि हमें पाठकों के साथ ब्लाग बिरादरी का प्यार इसी तरह से मिलते रहेंगे।

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रविवार, अक्टूबर 03, 2010

15 साल बाद हम उतरे खेल के मैदान में

अचानक कल जब हम रविशंकर विवि के मैदान में साफ्टबॉल के चयन ट्रायल में गए तो वहां पर इस खेल को छत्तीसगढ़ में प्रारंभ करवाने वाले हमारे मित्र उपसंचालक (खेल) ओपी शर्मा के आग्रह पर हमें खेल के मैदान में उतरना पड़ा। करीब 15 साल बाद हम मैदान में उतरे थे। 1995 में हमारा सीधा हाथ फ्रेक्चर हो गया था, इसके बाद तो मानो हम खेलना ही भूल गए थे। कल मैदान में उतरे तो खेल का फिर से ऐसा चस्का लगा कि बार-बार खेलने की तमन्ना होने लगी और हमने साफ्टबॉल का बैट थामकर कई बॉलों पर निशाना लगाया, पहले पहल तो कुछ चूके, लेकिन इसके बाद लगातार बॉल निशाने पर आने लगी।
हमने सोचा नहीं था कि हमें इतने साल बाद फिर से किसी खेल के मैदान में उतरने का मौका मिलेगा। लेकिन हम शुक्रगुजार हैं अपने मित्र ओपी शर्मा के जिनके कारण हमको कल एक बार फिर से खेलने का मौका मिला। वैसे 15 साल पहले और इसके पहले स्कूल और कॉलेजों के दिनों में हमारे प्रिय खेलों में शतरंज, कैरम, बैडमिंटन, वालीबॉल, क्रिकेट और टेबल टेनिस थे। वैसे हमारी तमन्ना लॉन टेनिस में हाथ आजमाने की होती थी, लेकिन कभी मौका नहीं मिला। स्कूलों के दिनों में हम कबड्डी और खो-खो भी खूब खेले हैं। बहरहाल लंबे समय बाद खेल के मैदान में उतर कर बहुत ज्यादा ताजगी लगी। एक बार बैट चलाने के बाद लगातार इच्छा हो रही थी कि लंबे समय तक खेला जाए, लेकिन बच्चों का ट्रायल चल रहा था ऐसे में ज्यादा समय खेल पाना संभव नहीं था। ऐसे में हमने ओपी शर्मा के सामने एक सुझाव रखा कि जल्द ही खेल पत्रकारों और उनके संघ के बीच में एक मुकाबला साफ्टबॉल का करवाया जाए। यह खेल वास्तव में बहुत अच्छा है। कम से कम मैच फिक्सिंग जैसी गंदगी में फंस चुके क्रिकेट से तो लाख दर्जा बेहरत है। हारा सुझाव श्री शर्मा ने मान लिया है, अब बहुत जल्द असली मुकाबला होगा। इस मुकाबले से पहले हम सोच रहे हैं कि कुछ दिनों तक खेल का अभ्यास भी कर लिया जाए। मुकाबले से पहले जरूर समय निकाल कर ऐसा करने का प्रयास करेंगे। अंत में एक बार फिर से हम श्री शर्मा जी को धन्यवाद देना चाहते हैं कि जिनके कारण हमको इतने लंबे समय बाद खेलने का मौका मिला है। हमारे साथ हमारे कई साथी पत्रकारों और फोटोग्राफरों ने भी कल साफ्टबॉल में हाथ आजमाने का काम किया।

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शनिवार, अक्टूबर 02, 2010

महात्मा गांधी से क्या लेना-देना

आज गांधी जयंती है, इस अवसर पर हम एक बार फिर से याद दिलाना चाहते हैं कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दर्शन करने का मन आज के युवाओं में है ही नहीं। यह बात बिना वजह नहीं कही जा रही है। कम से कम इस बात का दावा छत्तीसगढ़ के संदर्भ में तो जरूर किया जा सकता है। बाकी राज्यों के बारे में तो हम कोई दावा नहीं कर सकते हैं, लेकिन हमें लगता है कि बाकी राज्यों की तस्वीर छत्तीसगढ़ से जुदा नहीं होगी। आज महात्मा गांधी का प्रसंग इसलिए निकालना पड़ा है क्योंकि आज महात्मा गांधी की जयंती है और हमें याद है कि इस साल ही हमारे एक मित्र दर्शन शास्त्र का एक पेपर गांधी दर्शन देने गए थे। जब वे पेपर देने गए तो उनको मालूम हुआ कि वे गांधी दर्शन विषय लेने वाले एक मात्र छात्र हैं। अब यह अपने राष्ट्रपिता का दुर्भाग्य है कि उनके गांधी दर्शन को पढऩे और उसकी परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी मिलते ही नहीं हैं। गांधी जी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वालों की अपने देश में कमी नहीं है, लेकिन जब उनके बताएं रास्ते पर चलने की बात होती है को कोई आगे नहीं आता है। कुछ समय पहले जब एक फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस आई थी तो इस फिल्म के बाद युवाओं ने गांधीगिरी करके मीडिया की सुर्खियां बनने का जरूर काम किया था।

हमारे एक मित्र हैं सीएल यादव.. नहीं.. नहीं उनका पूरा नाम लिखना उचित रहेगा क्योंकि उनके नाम से भी मालूम होता है कि वे वास्तव में पुराने जमाने के हैं और उनकी रूचि महात्मा गांधी में है। उनका पूरा नाम है छेदू लाल यादव। नाम पुराना है, आज के जमाने में ऐसे नाम नहीं रखे जाते हैं। हमारे यादव जी रायपुर की नागरिक सहकारी बैंक की अश्वनी नगर शाखा में शाखा प्रबंधक हैं। बैंक की नौकरी करने के साथ ही उनकी रूचि अब तक पढ़ाई में है। उनके बच्चों की शादी हो गई है लेकिन उन्होंने पढ़ाई से नाता नहीं तोड़ा है। पिछले साल जहां उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा दी थी, वहीं इस बार उन्होंने दर्शन शास्त्र पढऩे का मन बनाया। यही नहीं उन्होंने एक विषय के रूप में गांधी दर्शन को भी चुना। लेकिन तब उनको मालूम नहीं था कि वे जब परीक्षा देने जाएंगे तो उनको परीक्षा हाल में अकेले बैठना पड़ेगा। जब वे परीक्षा देने के लिए विश्व विद्यालय गए तो उनके इंतजार में सभी थे। दोपहर तीन बजे का पेपर था। उनको विवि के स्टाफ ने बताया कि उनके लिए ही आज विवि का परीक्षा हाल खोला गया और 20 लोगों का स्टाफ काम पर है। उन्होंने परीक्षा दी और वहां के स्टाफ के साथ बातें भी कीं। यादव संभवत: पहले परीक्षार्थी रहे हैं जिनको विवि के स्टाफ ने अपने साथ दो बार चाय भी पिलाई।


आज एक यादव जी के कारण यह बात खुलकर सामने आई है कि वास्तव में अपने देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कितनी कदर की जाती है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि राष्ट्रपिता से आज की युवा पीढ़ी को कोई मतलब नहीं रह गया है। युवा पीढ़ी की बात ही क्या उस पीढ़ी के जन्मादाताओं का भी गांधी जी से ज्यादा सरोकार नहीं है। एक बार जब कॉलेज के शिक्षाविदों से पूछा गया कि महात्मा गांधी की मां का नाम क्या था। तो एक एक प्रोफेसर ने काफी झिझकते हुए उनका नाम बताया पुतलीबाई। यह नाम बिलकुल सही है।


एक तरफ जहां कॉलेज के प्रोफेसर नाम नहीं बता पाए थे, वहीं अचानक एक दिन हमने अपने घर में जब इस बात का जिक्र किया तो हमें उस समय काफी आश्चर्य हुआ जब हमारी छठी क्लास में पढऩे वाली बिटिया स्वप्निल ने तपाक से कहा कि महात्मा गांधी की मां का नाम पुतलीबाई था। हमने उससे पूछा कि तुमको कैसे मालूम तो उसने बताया कि उनसे महात्मा गांधी के निबंध में पढ़ा है। उसने हमें यह निबंध भी दिखाया। वह निबंध देखकर हमें इसलिए खुशी हुई क्योंकि वह अंग्रेजी में था। हमें लगा कि चलो कम से कम इंग्लिश मीडियम में पढऩे वाले बच्चों को तो महात्मा गांधी के बारे में जानकारी मिल रही है। यह एक अच्छा संकेत हो सकता है। लेकिन दूसरी तरफ हमारी युवा पीढ़ी जरूर गांधी दर्शन से परहेज किए हुए हैं। हां अगर गांधी जी के नाम को भुनाने के लिए गांधीगिरी करने की बारी आती है तो मीडिया में स्थान पाने के लिए जरूर युवा गांधीगिरी करने से परहेज नहीं करते हैं। एक बार हमने अपने ब्लाग में भी गांधी की मां का नाम पूछा था हमें इस बात की खुशी है ब्लाग बिरादरी के काफी लोग उनका नाम जानते हैं।

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शुक्रवार, अक्टूबर 01, 2010

ये जाति बनाई किसने पापा..

कल दिन भर अध्योया को लेकर बातें होती रहीं। हर टीवी चैनल पर बस एक ही बात हिन्दु और मुसलमानों की। ऐसे में अचानक हमारी 12 साल की बिटिया स्वप्निल से एक सवाल दागा कि पापा ये जाति बनाई किसने। अब हम इसका क्या जवाब देते।
उनसे फिर एक और सवाल दागा कि हम सब तो इंसान हैं फिर ये हिन्दु और मुसलमान की बातें क्यों?
इसी के साथ उसने यह भी कहा कि अगर अध्योया में मंदिर और मस्जिद एक साथ बन जाए तो क्या गलत है? ये सब बातें अदालत का फैसला आने के ठीक एक घंटे पहले हो रही थी। इसके बात जब फैसला आया तो यही आया कि मंदिर-मस्जिद एक साथ रहेंगे।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि हम सब इंसान के रूप में पैदा हुए हैं और जात-पात में बांटने का काम हम इंसान ही करते हैं।
स्वप्निल ने एक बात और यह भी कही कि मंदिर और मस्जिद बनाने को लेकर अगर विवाद है तो वहां स्कूल बना दिया जाए, स्कूल में तो हिन्दु, मुसलमान के साथ सभी धर्म के बच्चे पढऩे आते हैं। वास्तव में देखा जाए को बच्चों का दिमाग भी कितना चलता है। लेकिन इसका क्या किया जाए कि समाज में हिन्दु और मुसलमान की दीवार सत्ता में बैठे चंद लालची नेताओं ने कुछ ज्यादा ही बड़ी कर रखी है। अन्यथा अपने देश के हिन्दु और मुसलमान यह हमेशा दिखाते हैं कि उनमें कितना भाई-चारा है। कल के फैसले के बाद जिस तरह से अपना देश शांत रहा वह इस बात का सबूत है कि अध्योया के फैसले से आम जनता को ज्यादा सरोकार नहीं था। जनता खामोश थी, लेकिन नेता बिनावजह शांति की अपील किए जा रहे थे।

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