राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

गुरुवार, मार्च 18, 2010

भक्त से श्रापित चंडिका देव की पीठ की होती है पूजा

भगवानों और साधु-संतों के बारे में इतिहास में यह पढऩे को मिलता है कि इनके द्वारा ही समय-समय पर आम जन को श्रापित किया जाता रहा है। लेकिन ऐसा बहुत ही कम सुनने या फिर पढऩे में आता है कि किसी देवता को किसी भक्त का श्राप लगा हो। लेकिन अपने छत्तीसगढ़ के बागबाहरा में एक गांव है बोडरीदादर यहां पर एक चंडिका देव हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह देवता भक्त द्वारा श्रापित हैं। नवरात्रि के अवसर पर चंडिका देव के दरबार में भी भक्तों का मेला लगा है। भक्त श्रापित इस देवता की पृष्ठ भाग यानी पीठ की पूजा करते हैं। ऐसा संभवत: पूरे देश में और कहीं नहीं होता है कि किसी देवता की पृष्ठभाग की पूजा होती हो।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 100 किलो मीटर की दूरी पर बागबाहरा है। यहां के एक गांव बोडरीदादर में इस समय चंडिका देव के दरबार में भक्तों की भीड़ लग रही है। इस चडिंका देव के बारे में बताया जाता है कि एक भक्त द्वारा श्रापित होने के कारण इनकी पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि कोमाखान रजवाड़े के जमीदार भानुप्रताप सिंह के पूर्वज यहां पर पूजा पाठ करते थे। सिंह रूप वाले इस चंडिका देव को कई बार भानुप्रताप ने ले जाकर कोमाखान में स्थापित करने का प्रयास किया, पर चंडिका देव की मूर्ति अपने स्थान से टस से मस नहीं हुई, लाखों प्रयासों के बाद भी इस मूर्ति को हटाया नहीं जा सका। आज भी यह मूर्ति खुले आसमान में है।

भानुप्रताप सिंह ने देखा कि जब मूर्ति टस से मस नहीं हो रही है तो उन्होंने यहां पर दशहरे के दिन पूजा करने के बाद अपनी कूल देवी सोनई-रूपई पहाड़ी खोल में गोसान गुफा में स्थित अपनी कूल देवी की पूजा करते थे। चंडिका देव के बारे में बताया जाता है कि वहां पर पूर्व में एक गुप्त पूजा स्थल था जहां पर रजवाड़े अपने बैगाओं से पूजा करवाते थे, लेकिन यह स्थल अब बंद है और इसी के साथ चंडिका देव का सामने का भाग भी नहीं दिखता है जिसके कारण उनके पीठ की पूजा की जाती है। संभवत: देश में चंडिका देव अपने तरह के पहले देवता होंगे जिनके पीठ की पूजा की जाती है। बताते हैं कि भानुप्रताप ने ही सामने के उस भाग को बंद करवा दिया था जहां से उनके बैगा पूजा करते थे, ताकि कोई और पूजा न कर सके। लोगों का कहना है कि मूर्ति को न हटवाना पाने के कारण ही भानुप्रताप के श्राप की वजह से मूर्ति की पृष्ठभाग की पूजा होती है, क्योंकि सामने का भाग तो दिखता ही नहीं है।  

4 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा गुरु मार्च 18, 11:21:00 am 2010  

बहुत बढिया पोस्ट्।
अच्छी जानकारी। आभार

Pramendra Pratap Singh गुरु मार्च 18, 11:34:00 am 2010  

भारत ही ऐसा देश है और हिन्‍दू ही ऐसा धर्म है जहाँ भगवान भी भक्‍तो से डरता है, आपकी पोस्‍ट से बात को सिद्ध किया है।

बेहतरीन पोस्‍ट

समयचक्र गुरु मार्च 18, 03:32:00 pm 2010  

बहुत सुन्दर बढ़िया जानकारी दी है
महेन्द्र मिश्र
समयचक्र - चिट्ठी चर्चा .

मनोज कुमार गुरु मार्च 18, 10:43:00 pm 2010  

बहुत अच्छी प्रस्तुति!

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP