अब हम भी करेंगे चर्चा-ललित शर्मा से सीखा संभालना मोर्चा
हमें अब तक तो यही लगता था कि वास्तव में चिट्ठा चर्चा करना बहुत ही कठिन और मुश्किल काम है, लेकिन जिनके पास ललित शर्मा जैसा गुरू हो उनके लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है। ललित जी ने हमें ऐसा गुरू मंत्र दिया है कि अब हम भी चर्चा करने के लिए तैयार हो गए हैं। हम अब ब्लाग 4 वार्ता में नियमित चर्चा करने का प्रयास करेंगे। हम वादा तो नहीं कर सकते हैं, पर प्रयास जरूर करेंगे।
हमने चिट्ठा चर्चा के गुर सीखने के लिए ललित शर्मा के पास अभनपुर जाने का फैसला किया था। हमने बुधवार को अपने अवकाश के दिन उनके पास जाने का कार्यक्रम भी बना लिया था, लेकिन अचानक ललित जी ने रविवार की शाम को बताया कि वे कल यानी सोमवार को रायपुर आ रहे हैं। हमने उनको तत्काल अपने घर आने का न्यौता दे दिया, जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया। बात तय हुई कि वे ठीक 12 बजे आ जाएंगे। हमारी पीठ में दर्द के कारण हमने कल प्रेस की मीटिंग में न जाने का फैसला किया था। हमें बस डॉक्टर के पास जाना था। हमने शर्मा जी से कह दिया कि वे 12 बजे आ जाएं। ललित जी पहले भी हमारे घर आ चुके थे, ऐसे में उनको घर तक पहुंचने में कोई परेशानी नहीं होनी थी। शर्मा जी वादे के मुताबिक 12 बजे पहुंच गए और उन्होंने फोन किया कि हम कहां हैं, हमने उनसे कहा कि आप घर पहुंचे हम भी रास्ते में हैं, आ रहे हैं। हमारे घर पहुंचने से पहले शर्मा जी घर पहुंच गए थे।
हम घर पहुंचे तो शर्मा जी वहां विराजमान थे। इसके बाद हम लोग कम्प्युटर से चिपक गए। इस बीच बहुत सी बातों के बीच उन्होंने हमें चिट्ठा चर्चा का गुरू मंत्र बता दिया। अब हम भी तैयार हो गए हैं चिट्ठा चर्चा करने के लिए। शर्मा जी ने हमें जो मंत्र बताया है उससे चर्चा करने में आसानी होगी। हो सकता है शुरुआत में कुछ गलतियां हों, लेकिन हमारा ऐसा प्रयास रहेगा कि हम कोई गलती न करें। लेकिन हम भी इंसान हैं और गलतियां इंसानों से होती ही हैं। बहरहाल हमें इस बात का गर्व है हमें ललित शर्मा जैसे मित्र और गुरू मिले हैं। उनके आर्शीवाद से हम भी अब हर बुधवार को चिट्टा चर्चा करने का प्रयास करेंगे। इसमें हम कितने सफल होते हैं यह तो वक्त बताएगा। लेकिन हम एक बात यहां पर जरूर कहना चाहेंगे कि जब छत्तीसगढ़ से चिट्ठा चर्चा करने की बात सामने आई थी तो अपने ही कुछ मित्रों ने इस पर सवालिया निशान लगाने का प्रयास किया था कि हम लोग ऐसा नहीं कर पाएंगे। हालांकि उनको अकेले ललित शर्मा जी ने ही करारा जवाब दे दिया है, अब हम भी उनके साथ हैं। वैसे शर्मा जी के साथ हम ही नहीं पूरी ब्लाग बिरादरी है, अब यह बात अलग है कि अपने ही लोग अपने घर की प्रतिभा को नहीं पहचानते हैं। कहा जाता है न कि घर की मुर्गी दाल बराबर। तो जिन्होंने भी घर की मुर्गी को दाल बराबर समझने की भूल की है, उनको हम बता दें कि यहां पर कम से कम घर की मुर्गी दाल बराबर नहीं बल्कि घर की मुर्गी शेर बराबर है।
बहरहाल हमारा मकसद कोई विवाद खड़ा करना नहीं बल्कि यह जताना है कि हम छत्तीसगढ़ के ब्लागरों को कम आंकने की कोई गलती न करे, खासकर अपने बीच के ही ब्लागर मित्र।
6 टिप्पणियाँ:
...बहुत खूब, शुभकामनाएं!!!!
...घर की मुर्गी से याद आया एक कहावत और है "घर का जोगी जोगडा, आन गांव का संत"!!!!
शुभकामनाएँ.
ललित जी जैसे गुरु हों तो पहाड़ भी राई है...सफलता तय है आपकी.
बधाई! हम आपकी चर्चा का इन्तिजार कर रहे हैं।
वाह राज भाई शुभकामनाएं बहुत बहुत मजा आएगा ..
अजय कुमार झा
बढ़िया
शुभकामनाएँ
bahut badhiya bhai saheb, shubhkamnayaien....
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