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सोमवार, मार्च 22, 2010

आस्था के नाम की मची है लूट

कई दिनों से लगातार एक टीवी चैनल के एक विज्ञापन पर नजरें पड़ती हैं। शिव शक्ति कवच। हर मर्ज की दवा है यह शिव शक्ति कवच। इस कवच को लेने वालों को दिखाया जाता है कि कैसे उनको इस कवच को धारण करने के बाद परेशानियों से मुक्ति मिली है। यह बात तो तय है कि अपने देश में सबसे ज्यादा आसान है तो धर्म और आस्था के नाम पर लूटना। आस्था के नाम पर अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग उल्लू बन जाते हैं।

अपने देश में भगवान पर आस्था रखने वाले अगर सबसे ज्यादा हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। भगवान पर आस्था रखना गलत नहीं है लेकिन इस आस्था को इतना भी अपने ऊपर हावी होने नहीं देना चाहिए कि इसके नाम से आपको जो चाहे लूट ले। आज अगर अपने देश में सबसे ज्यादा किसी नाम से लूट होती है तो वह है आस्था के नाम से। जिस भी टीवी चैनल में देखो लोगों की आस्था का फायदा उठाकर कुछ न कुछ बेचने का कारोबार किया जा रहा है। एक टीवी चैनल पर हमारी हमेशा नजरें पड़ती हैं। जब दोपहर को घर खाना खाने आते हैं, तो बच्चे टीवी देखते रहते हैं। ऐसे में कार्यक्रम के बीच में जरूर एक विज्ञापन शिव शक्ति कवच का देखने को मिल जाता है। इस विज्ञापन को देखकर साफ लगता है कि यह विज्ञापन लोगों को आस्था के नाम से एक तरह से ब्लैकमेल करके अपना कवच का बेचने का माध्यम है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस विज्ञापन के जरिए जरूर ऐसा कवच बेचने में कवच बनाने वालों को सफलता मिलती होगी तभी तो वे इतना महंगा विज्ञापन देते हैं।

अब यह कवच खरीदने वालों को कौन समझाएं कि कवच से अगर सुरक्षा हो जाती तो पूरे देश के लोग ऐसे कवच धारण कर लेते। इसमें भी शक नहीं है कि अपने देश में लोग अंध विश्वास में ऐसे जकड़े हैं कि उनको लगता है कि अगर कोई ताबीज या कवच या फिर और कोई टोटका अपने गले में लटका लेंगे तो उनकी परेशानी समाप्त हो जाएगी।
सोचने वाली बात यह है कि क्या पढ़े लिखे लोग यह नहीं जानते हैं कि जब-जब जो होना है वह तो हो के रहेगा। कहा जाता है कि सबसे बड़ी चीज होती है किस्मत, नसीब, तकदीर। कहते हैं कि जिसकी किस्मत में ब्रम्हा ने जो लिख दिया है, वह पत्थर की लकीर है। अगर वास्तव में ऐसा है तो फिर यह क्यों नहीं सोचा जाता है कि जो किस्मत में होगा वहीं होगा  फिर क्यों कोई ऐसा कवच और ताबीज धारण करता है। हमें लगता है कि कहीं न कहीं इंसान के मन में आस्था के साथ एक डर भी रहता है जिस डर का फायदा ऐसा कवच बेचने वाले लोग उठाते हैं। पता नहीं कब अपने देश के लोग अंधविश्वास से मुक्त होंगे और ऐसे कवच बेचने वालों का बहिष्कार करेंगे। हमे नहीं लगता है कि कभी ऐसा संभव होगा। 

5 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari सोम मार्च 22, 06:41:00 am 2010  

हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.

RAJNISH PARIHAR सोम मार्च 22, 07:33:00 am 2010  

आपने शायद ये एक ही विज्ञापन देखा है,टी वी पर इनकी बाढ़ सी आई हुई है.!जब तक लोग कर्म ही पूजा है का मूल मंत्र नहीं सीखेंगे तब तक ये प्रोडक्ट बिकते ही रहेंगे!आज हर कोई शोर्ट कट चाहता है..!शुभकामनाएँ!!!

Bhavesh (भावेश ) सोम मार्च 22, 07:39:00 am 2010  

भगवान में आस्था अपनी जगह सही है लेकिन अन्धविश्वास के चक्कर में लोग ये भूल जाते है कि वो जो बोयेंगे वैसा ही काटेंगे. जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल मिलेगा. कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करही सो तस फल चाखा ये धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले लोग इन अंधविश्वासी लोगो के भरोसे ही फल फूल रहे है.

विजयप्रकाश सोम मार्च 22, 11:07:00 am 2010  

यह कोई छोटी बात नहीं है, आस्था का व्यापार करोड़ों का होता है.समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है.

Urmi सोम मार्च 22, 01:52:00 pm 2010  

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

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