मंदिरों में दान करने से किसका भला होता है?
सावन का महीना चल रहा है, पूरे देश के मंदिरों में भीड़ का सैलाब उमड़ रहा है। इसी के साथ लोग मंदिरों में दान कर रहे हैं। दान करना गलत नहीं है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिर मंदिर में किए गए दान से किसका भला होता है। मंदिरों में दान करने वालों की मानसिकता क्या होती है? अपने देश में इतनी ज्यादा गरीबी है कि उनकी चिंता किसी को नहीं है। कई किसान भूख से मर जाते हैं, पर उनकी मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आता है, लेकिन मंदिरों में लाखों नहीं बल्कि करोड़ का गुप्त दान किया जाता है। आखिर इस दान से हासिल क्या होता है। किसको मिलता है इसका लाभ।
हम एक बात साफ कर दें कि हम कोई नास्तिक नहीं हैं। भगवान में हमारी भी उतनी ही आस्था है जितनी होनी चाहिए। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या आस्था जताने के लिए मंदिरों में दान करना जरूरी है। अगर नहीं तो फिर जो लोग मंदिरों में बेतहासा दान करते हैं उनके पीछे की मानसिकता क्या है? क्या उनको भगवान से किसी बात का डर रहता है। क्या ऐसे लोगों जो कि काले धंधे करते हैं उनके मन में यह बात रहती है कि वे भगवान के मंदिर में कुछ दान करके अपने पाप से बच सकते हैं। हमें तो लगता है कि ऐसी ही किसी मानसिकता के वशीभूत होकर ये लोग लाखों रुपए दान करते हैं। लेकिन इनके दान से किसका भला होता है? हमारे देश के बड़े-बड़े मंदिरों की हालत क्या है किसी से छुपी नहीं है। लाखों दान करने वालों के साथ वीआईपी और वीवीआईपी के लिए तो इन मंदिरों के द्वार मिनटों में खुल जाते हैं। इनको भगवान के दर्शन भी इनके मन मुताबिक समय पर हो जाते हैं, लेकिन आम आदमी को घंटों लंबी लाइन में लगे रहने के बाद भी कई बार भगवान के दर्शन नहीं होते हैं। कभी-कभी लगता है कि भगवान भी अमीरों के हो गए हैं, खासकर बड़े मंदिरों में विराजने वाले भगवान।
शिरर्डी के साई बाबा के दरबार के बारे में कहा जाता है कि वहां पर सभी को समान रूप में देखा जाता है। लेकिन हमारे एक मित्र ने बताया कि वे जब शिरर्डी गए थे तो वीआईपी पास से गए थे तो उनको दर्शन करने में कम समय लगा। यानी वहां भी बड़े-छोटे का भेद है। संभवत: अपने देश में ऐसा कोई मंदिर है ही नहीं जहां पर बड़े-छोटे का भेद न हो। किसी वीआईपी या फिर अमीर को हमेशा लाइन लगाने से परहेज रहती है। वे भला कैसे किसी गरीब के साथ लाइन में खड़े हो सकते हैं।
लाखों का दान करने वालों को क्या अपने देश की गरीबी नजर नहीं आती है। क्या ऐसा दान करने वाले लोग उन खैराती अस्पतालों, अनाथ आश्रामों में दान करने के बारे में नहीं सोचते हैं जिन आश्रमों में ऐसे बच्चों को रखा जाता है जिन बच्चों में संभवत: ऐसे बच्चे भी शामिल रहते हैं जो किसी अमीर की अय्याशी की निशानी के तौर पर किसी बिन ब्याही मां की कोख से पैदा होते हैं।
क्या लाखों दान करने वालों को अपने देश के किसानों की भूख से वह मौतें नजर नहीं आती हैं। आएगी भी तो क्यों कर वे किसी किसान की मदद करेंगेे। किसी किसान की मदद करने से उनको भगवान का आर्शीवाद थोड़े मिलेगा जिस आर्शीवाद की चाह में वे दान करते हैं। ऐसे मूर्खों की अक्ल पर हमें तो तरस आता है। हम तो इतना जानते हैं कि किसी भूखे ेको खाना खिलाने से लाखों रुपए के दान से ज्यादा का पुन्य मिलता है। किसी असहाय और गरीब को मदद करने से उनके दिल से जो दुआ निकलती है, वह दुआ बहुत काम की होती है।
हम मंदिरों में दान करने के खिलाफ कताई नहीं है, लेकिन किसी भी मंदिर में दान उतना ही करना चाहिए, जितने से उस मंदिर में होने वाले किसी काम में मदद मिले। जो मंदिर पहले से पूरी तरह से साधन-संपन्न हैं उन मंदिरों में दान देने से क्या फायदा। अपने देश में ऐसे मंदिरों की भी कमी नहीं है जिनके लिए दान की बहुत ज्यादा जरूरत है, पर ऐसे मंदिरों में कोई झांकने नहीं जाता है। क्या ऐसे मंदिरों की मदद करना वे दानी जरूरी नहीं समझते नहीं है जिनको दान करने का शौक है।
क्या बड़े मंदिरों में किए जाने वाले करोड़ों के दान का किसी के पास हिसाब होता है। किसी भी गुप्त दान के बारे में कौन जानता है। मंदिरों के ट्रस्टी जितना चाहेंगे उतना ही हिसाब उजागर किया जाएगा, बाकी दान अगर कहीं और चले जाए तो किसे पता है। अब कोई गुप्त दान करने वाला यह तो बताने आने वाला नहीं है कि उसने कितना दान किया है। हमारे विचार से तो बड़े मंदिरों में दान करने से किसी असहाय, लाचार, गरीब का तो भला होने वाला नहीं है, लेकिन मंदिर के कर्ताधर्ताओं का जरूर भला हो सकता है। अगर दानी इनका ही भला करना चाहते हैं तो रोज करोड़ों का दान करें, हमें क्या।
हम एक बात साफ कर दें कि हम कोई नास्तिक नहीं हैं। भगवान में हमारी भी उतनी ही आस्था है जितनी होनी चाहिए। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या आस्था जताने के लिए मंदिरों में दान करना जरूरी है। अगर नहीं तो फिर जो लोग मंदिरों में बेतहासा दान करते हैं उनके पीछे की मानसिकता क्या है? क्या उनको भगवान से किसी बात का डर रहता है। क्या ऐसे लोगों जो कि काले धंधे करते हैं उनके मन में यह बात रहती है कि वे भगवान के मंदिर में कुछ दान करके अपने पाप से बच सकते हैं। हमें तो लगता है कि ऐसी ही किसी मानसिकता के वशीभूत होकर ये लोग लाखों रुपए दान करते हैं। लेकिन इनके दान से किसका भला होता है? हमारे देश के बड़े-बड़े मंदिरों की हालत क्या है किसी से छुपी नहीं है। लाखों दान करने वालों के साथ वीआईपी और वीवीआईपी के लिए तो इन मंदिरों के द्वार मिनटों में खुल जाते हैं। इनको भगवान के दर्शन भी इनके मन मुताबिक समय पर हो जाते हैं, लेकिन आम आदमी को घंटों लंबी लाइन में लगे रहने के बाद भी कई बार भगवान के दर्शन नहीं होते हैं। कभी-कभी लगता है कि भगवान भी अमीरों के हो गए हैं, खासकर बड़े मंदिरों में विराजने वाले भगवान।
शिरर्डी के साई बाबा के दरबार के बारे में कहा जाता है कि वहां पर सभी को समान रूप में देखा जाता है। लेकिन हमारे एक मित्र ने बताया कि वे जब शिरर्डी गए थे तो वीआईपी पास से गए थे तो उनको दर्शन करने में कम समय लगा। यानी वहां भी बड़े-छोटे का भेद है। संभवत: अपने देश में ऐसा कोई मंदिर है ही नहीं जहां पर बड़े-छोटे का भेद न हो। किसी वीआईपी या फिर अमीर को हमेशा लाइन लगाने से परहेज रहती है। वे भला कैसे किसी गरीब के साथ लाइन में खड़े हो सकते हैं।
लाखों का दान करने वालों को क्या अपने देश की गरीबी नजर नहीं आती है। क्या ऐसा दान करने वाले लोग उन खैराती अस्पतालों, अनाथ आश्रामों में दान करने के बारे में नहीं सोचते हैं जिन आश्रमों में ऐसे बच्चों को रखा जाता है जिन बच्चों में संभवत: ऐसे बच्चे भी शामिल रहते हैं जो किसी अमीर की अय्याशी की निशानी के तौर पर किसी बिन ब्याही मां की कोख से पैदा होते हैं।
क्या लाखों दान करने वालों को अपने देश के किसानों की भूख से वह मौतें नजर नहीं आती हैं। आएगी भी तो क्यों कर वे किसी किसान की मदद करेंगेे। किसी किसान की मदद करने से उनको भगवान का आर्शीवाद थोड़े मिलेगा जिस आर्शीवाद की चाह में वे दान करते हैं। ऐसे मूर्खों की अक्ल पर हमें तो तरस आता है। हम तो इतना जानते हैं कि किसी भूखे ेको खाना खिलाने से लाखों रुपए के दान से ज्यादा का पुन्य मिलता है। किसी असहाय और गरीब को मदद करने से उनके दिल से जो दुआ निकलती है, वह दुआ बहुत काम की होती है।
हम मंदिरों में दान करने के खिलाफ कताई नहीं है, लेकिन किसी भी मंदिर में दान उतना ही करना चाहिए, जितने से उस मंदिर में होने वाले किसी काम में मदद मिले। जो मंदिर पहले से पूरी तरह से साधन-संपन्न हैं उन मंदिरों में दान देने से क्या फायदा। अपने देश में ऐसे मंदिरों की भी कमी नहीं है जिनके लिए दान की बहुत ज्यादा जरूरत है, पर ऐसे मंदिरों में कोई झांकने नहीं जाता है। क्या ऐसे मंदिरों की मदद करना वे दानी जरूरी नहीं समझते नहीं है जिनको दान करने का शौक है।
क्या बड़े मंदिरों में किए जाने वाले करोड़ों के दान का किसी के पास हिसाब होता है। किसी भी गुप्त दान के बारे में कौन जानता है। मंदिरों के ट्रस्टी जितना चाहेंगे उतना ही हिसाब उजागर किया जाएगा, बाकी दान अगर कहीं और चले जाए तो किसे पता है। अब कोई गुप्त दान करने वाला यह तो बताने आने वाला नहीं है कि उसने कितना दान किया है। हमारे विचार से तो बड़े मंदिरों में दान करने से किसी असहाय, लाचार, गरीब का तो भला होने वाला नहीं है, लेकिन मंदिर के कर्ताधर्ताओं का जरूर भला हो सकता है। अगर दानी इनका ही भला करना चाहते हैं तो रोज करोड़ों का दान करें, हमें क्या।
3 टिप्पणियाँ:
दिव्य विचार। साधुवाद।
"वो तो खेत में मिलेगा, खलिआन में मिलेगा
भगवान तो ए बंदें इन्सान में मिलेगा"
बहुत सही सवाल उठाया जी आपने
मन्दिर में ही दान करना है तो उन मन्दिरों में भी किया जा सकता है जहां जरुरत है। जहां मन्दिर तक पहुंचने के मार्ग और अन्य सुविधाओं का अभाव है।
वैसे असली दान तो वही है जो किसी जरुरतमंद के काम आये।
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ek arase baad ekadam sahi disha mey sochane valaa lekh dekh kar khushi hui. ''daan'' aur kuchh nahi apne paapon se mukti kaupaay bhi samajhate hai seth log...mandir ko daan dene se koi laabh nahi, kisi gareeb ko daan kare, kisi samajik sansthaa ko bhi madad kare, lekin ham logon ki mansikataa hi kuchh aur hai.
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