डोपिंग के दोषी का अवार्ड छिनवाया
हमारी सक्रियता से सही खिलाड़ी को मिला पुरस्कार
प्रदेश के खेल पुरस्कारों में इस बार शहीद कौशल यादव पुरस्कार डोपिंग के एक दोषी खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा को दे दिया गया था। लेकिन हमारी सक्रियता के कारण अंतत: यह पुरस्कार इस खिलाड़ी से छिनकर सही खिलाड़ी दल्लीराजहरा की अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक अनिता शिंदे को दिया गया।
इस बार जब राज्य के खेल पुरस्कार हमारी सक्रियता की वजह से खेलमंत्री लता उसेंडी से रक्षाबंधन के दिन अवकाश होने के बाद भी घोषित कर दिए तो पुरस्कारों की सूची में डोपिंग के आरोपी सिद्धार्थ मिश्रा का नाम देखकर हमारे साथ हमारे खेल पत्रकार साथी भी चकित रह गए। नेशनल लुक के पत्रकार कमलेश गोगिया ने कहा कि भईया यह तो गलत हो गया है, इसको हम लोगों को रोकना चाहिए। हम भी यह सोच रहे थे लेकिन हमारा पुराना अनुभव कह रहा था कि खेल विभाग के आला अधिकारी हमारी किसी बात को मानने वाले नहीं हंै। ऐसे में हमने सोचा कि किसी भी तरह से राज्य के सम्मानित पुरस्कार को गलत हाथों में जाने से रोकना है। रक्षाबंधन के दिन हम अपने गृहनगर भाटापारा राखी बंधवाने जा रहे थे। लेकिन हमारे मन में लगातार एक गलत खिलाड़ी को पुरस्कार दिए जाने की बात आ रही थी। हमने रास्ते में आते-जाते कई लोगों को फोन करके सबूत जुटाने का काम प्रारंभ किया कि जिस खिलाड़ी को पुरस्कार के लिए चुना गया है, वह गलत है। प्रदेश भारोत्तोलन संघ के पदाधिकारी लगातार झूठ बोलते रहे कि ऐसा कोई मामला नहीं है। एक अधिकारी ने तो यहां तक कहा कि भईया क्यों फालतू में बात को तूल रहे हैं, जिस खिलाड़ी की आप बात कर रहे हैं उस खिलाड़ी का एक टेस्ट जरूर फेल हो गया था, लेकिन अभी मामला पूरी तरह से खुला नहीं है। इस खिलाड़ी के दूसरे टेस्ट की रिपोर्ट 31 अगस्त को आएगी उसके बाद देखा जाएगा। हमने कहा तब तक तो पुरस्कार मिल चुका रहेगा। उस पदाधिकारी ने कहा तो क्या होगा, पुरस्कार तो बाद में वापस हो सकता है।
हमने कहा भाई साहब पुरस्कार वापस होगा लेकिन एक तो शासन को एक लाख रुपए के पुरस्कार राशि का चुना लगेगा और दूसरा यह कि उस खिलाड़ी के स्थान पर जिस पात्र खिलाड़ी को पुरस्कार मिलना था वह खिलाड़ी भी वंचित हो जाएगा। हमने ठान लिया कि हम ऐसा होने नहीं देंगे। हमने राष्ट्रीय फेडरेशन के महासचिव सहदेव यादव का नंबर कहीं से जुगाड़ा। इसके बाद हमने उनके नंबर पर रक्षाबंधन के दिन ही फोन लगाया, पर बात नहीं हो सकी। ऐसे में हमने सोचा चलो यार दूसरे दिन इस मामले को देखते हैं। दूसरे दिन संयोग से यह हुआ कि दल्लीराजहरा की एक पात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अनिता शिंदे रायपुर का पहुंचीं और उन्होंने हमें फोन करके बताया कि वह जूनियर विश्व कप में खेली हैं और पुरस्कार की पात्र होने के बाद भी उनको पुरस्कार न देकर डोपिंग के दोषी खिलाड़ी को पुरस्कार दे दिया गया है। इस खिलाड़ी ने हमसे मदद का आग्रह किया। हमने इनसे कहा कि हम मदद जरूर करेंगे। यह खिलाड़ी अपने पिता और कोच उत्तम शिंदे के साथ खेल विभाग आई थीं।
हम खेल विभाग गए और इस खिलाड़ी से बात की। इस खिलाड़ी अनिता शिंदे ने हम बताया कि राज्य के खेल पुरस्कारों की सूची में मैं अपना नाम न देखकर चकित रह गई कि यह कैसे हो गया। सबसे ज्यादा आश्चर्य मुझे इस बात का हुआ कि जिस खिलाड़ी को डोप टेस्ट में दोषी पाया गया था, उसे पुरस्कार के लिए चुना गया था। ऐसे में मैं रात भर नहीं सो पाई और सुबह होते ही अपने पापा जो कि मेरे कोच भी हैं उनके साथ यहां खेल विभाग आई हूं ताकि मैं अपना दावा पेश कर सकूं और यह जान सकूं कि आखिर मुझे पुरस्कार के लायक क्यों नहीं समझा गया। अनिता शिंदे ने बताया कि जहां उनके नाम दल्ली राजहरा में पिछले साल 17 से 20 सितंबर तक हुई राष्ट्रीय चैंपियनशिप में रजत पदक है, वहीं उन्होंने पिछले साल भारतीय टीम से जूनियर विश्व कप में रोमानिया में हिस्सा लिया था। यह स्पर्धा वहां पर 12 से 21 जून तक हुई थी। इस स्पर्धा में खेलने के कारण उनको उम्मीद थी कि उनको ही शहीद कौशल यादव पुरस्कार मिलेगा। हमारे साथ जब अनिता शिंदे ने अपने पापा और कोच उत्तम शिंदे के साथ खेल संचालक जीपी सिंह ने बात की तो यह बात सामने आई कि अनिता शिंदे को विश्व कप में खेलने का जो प्रमाणपत्र मिला है उससे जूरी के सदस्य समझ ही नहीं पाए। खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि जूरी के एक सदस्य ने समिति के सामने यह बात रखी कि प्रमाणपत्र में अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन फेडरेशन के अध्यक्ष का नाम तो लिखा है, पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं। ऐसे में इसके बारे में जानकारी लेने के लिए प्रदेश संघ के सचिव सुखलाल जंघेल से बात की गई तो उन्होंने जूरी को बताया भी कि विश्व कप में भागीदारी करने वाले खिलाडिय़ों के प्रमाणपत्रों में हस्ताक्षर नहीं किए जाते हैं। इतना सब जानने के बाद भी जूरी ने यह नहीं माना कि यह खिलाड़ी विश्व कप में खेली हैं और इनको दावेदारों से अलग करके राष्ट्रीय स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाले डोपिंग में दोषी पाए गए खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा का नाम पुरस्कार के लिए चुन लिया गया। तब जूरी को जरूर यह बात मालूम नहीं थी कि श्री मिश्रा डोप टेस्ट में दोषी पाए गए हैं। अनिता शिंदे ने भी खेल संचालक के सामने यह बात रखी कि श्री मिश्रा तो डोप टेस्ट में दोषी पाए गए हैं तो फिर उनको पुरस्कार कैसे दे दिया गया। अनिता शिंदे से यह बात जरूर रखी लेकिन सबूत उनके पास भी नहीं था।
राष्ट्रीय फेडरेशन के सचिव से करवाई बात
हम यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि खेल संचालक यह बात कभी नहीं मानेंगे कि डोप टेस्ट के खिलाड़ी को उनके विभाग ने पुरस्कार के लिए चुन लिया है। कारण साफ था एक तो प्रदेश संघ ने खेल विभाग को अंधेरे में रखा था दूसरे खेल विभाग अपने नियमों से मजबूर था कि जब तक कोई सबूत नहीं होता है वे किसी खिलाड़ी को पुरस्कार से वंचित नहीं कर सकते हैं। खेल संचालक के दफ्तर में सभी खेल पत्रकार पहुंच गए थे। ऐसे में हमने तत्काल राष्ट्रीय फेडरेशन के सचिव सहदेव यादव को फोन लगाया और उनसे जब पूछा कि क्या छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी सिद्धार्थ मिश्रा डोप टेस्ट में फेल हो गए थे तो उन्होंने बताया कि यह बात ठीक है कि श्री मिश्रा डोप टेस्ट में फेल ही नहीं हुए थे बल्कि उनको निलंबित भी किया गया है और 50 हजार रुपए का जुर्माना राज्य संघ पर लगाया गया है। ऐसे में हमने तुरंत उनकी बात खेल संचालक से करवाई। श्री यादव से जानकारी लेने के साथ खेल संचालक ने उनके वे पत्र फैक्स करने के लिए कहे जो उन्होंने प्रदेश संघ को भेजे थे। इसी के साथ पात्र खिलाड़ी अनिता शिंदे के विश्व कप में खेलने की पुष्टि करने वाला पत्र भी मंगवाया।
दूसरे दिन हम जिस अखबार दैनिक हरिभूमि में काम करते हैं उसी के साथ सारे अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया कि किस तरह से राज्य संघ के कारण शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए एक डोपिंग के दोषी का चयन कर लिया गया है।
इधर राष्ट्रीय फेडरेशन से पत्र आने के बाद खेल विभाग ने फिर से पुरस्कारों की जूरी की दूसरे दिन यानी 26 अगस्त को बैठक बुलाई और इस बैठक में डोपिंग के दोषी खिलाड़ी को बाहर का रास्ता दिखाते हुए पात्र खिलाड़ी अनिता शिंदे को पुरस्कार देने का फैसला किया। यह सब इसलिए संभव हो सका क्योंकि एक तो हम और हमारे सारे खेल पत्रकार सक्रिय थे और दूसरे यह कि इस बार खेलमंत्री लता उसेंडी ने भी हमारे आग्रह पर सक्रियता दिखाते हुए खेल पुरस्कारों की सूची जल्दी जारी कर दी थी, अन्यथा आज तक खेल विभाग पुरस्कार दिए जाने एक एक या दो दिन पहले ही पुरस्कार वालों की सूची जारी करते रहा है। कई बार ऐसा हुआ है कि कुछ नामों को लेकर विरोध रहा है, लेकिन समय न होने के कारण हम मीडिया वाले भी कुछ नहीं कर पाते थे। लेकिन जब से प्रदेश में खेलमंत्री लता उसेंडी बनी है उनकी ऐसी मानसिकता रही है कि कुछ भी गलत नहीं होना चाहिए। बहरहाल हमें इस बात की खुशी है कि हमारी सक्रियता से एक पुरस्कार गलत हाथों में जाने से बच गया।
3 टिप्पणियाँ:
अनिता शिंदे को बधाई !
अच्छा काम करने के लिए आप भी बधाई स्वीकारें !
ऐसा काम तो आप जैसा पत्रकार ही कर सकता है
उम्दा पोस्ट-सार्थक लेखन के लिए आभार
प्रिय तेरी याद आई
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
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