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मंगलवार, अगस्त 24, 2010

खिताब भारतश्री का, काम हवलदार का

मध्यमवर्गीय परिवार के होने के बाद भी हवलदार रहते हुए पी. सालोमन ने एक बार नहीं बल्कि दो बार पश्चिम भारतश्री के साथ भारतश्री का खिताब अपने नाम किया है। इतना ही नहीं राज्य का सर्वोच्च खेल पुरस्कार शहीद राजीव पांडे भी उन्हें मिल चुका है, लेकिन इतना सब होने के बाद भी पुलिस विभाग पी. सालोमन को प्रमोशन के लायक नहीं मानता है। लंबे समय से प्रमोशन की राह देख रहे सालोमन को अब उम्मीद है कि संभवत: दूसरी बार भारतश्री का खिताब जीतने के बाद उनको प्रमोशन के लायक समङाा जाए।
अपने राज्य में खेल और खिलाडिय़ों को बढ़ाने के लिए प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह तो काफी कुछ कर रहे हैं, लेकिन इतना सब होने के बाद भी अपने ही घर में उपेक्षित होने वाले खिलाडिय़ों की कमी नहीं है। अब लगातार दूसरी बार भारतश्री का खिताब जीतने वाले भिलाई के पी. सालोमन की ही बात की जाए। २००५-०६ में राष्ट्रीय स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने के बाद राज्य के सर्वोच्च खेल सम्मान शहीद राजीव पांडे से सम्मानित होने के बाद वे लगातार यह प्रयास कर रहे हैं कि उनको पुलिस विभाग में प्रमोशन मिल जाए, लेकिन अब तक उनको प्रमोशन नहीं दिया गया है। यह वास्तव में अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि भारतश्री का खिताब दो बार जीतने वाले खिलाड़ी को हवलदार का काम करना पड़ रहा है। जानकारों की माने तो कायदे से उनको कम से कम अपने राज्य में तो सब इंसपेक्टर तो बना ही देना चाहिए। वैसे सालोमन अगर पंजाब में होते जरूर उनको अब तक इंसपेक्टर बना दिया गया होता। लेकिन यहां वे एक प्रमोशन के लिए तरस गए हैं।
सालोमन के खाते में इस समय राष्ट्रीय स्तर पर पांच स्वर्ण पदक हैं। इनमें से तीन तो उन्होंने पिछले साल जीते थे। एक स्वर्ण फेडरेशन कप में और दो राष्ट्रीय स्पर्धा में जीते। यह स्पर्धा जब भिंवाड़ी में हुई तो वहां दो स्वर्ण के साथ सालोमन ने पश्चिम भारतश्री और भारतश्री का खिताब भी जीता। भिंवाड़ी का ही इतिहास सालोमन ने रायपुर में २१ और २२ अगस्त को दोहराया है। मध्यमवर्गीय परिवार के होने के नाते सालोमन एक राष्ट्रीय बॉडी बिल्डिर को जितनी टाइट मिलनी चाहिए उसका इंतजाम भी नहीं कर पाते हैं। उनको टाइट के लिए विभाग से आर्थिक मदद देने का आदेश भी हो गया है लेकिन यह मदद उनको मिल ही नहीं रही है। पूर्व में एक हजार रुपए मासिक देने का आदेश हुआ था, यह राशि तो कभी नहीं मिल सकी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण जीतने के बाद इस आदेश में संशोधन करते हुए इस राशि को दो हजार रुपए मासिक किया गया है, पर यह राशि भी एक बार भी नहीं मिली है। जहां तक टाइट का सवाल है तो एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को डाइट के लिए प्रतिदिन एक हजार रुपए खर्च करना पड़ता है।

3 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari मंगल अग॰ 24, 07:15:00 am 2010  

जानकारी का आभार.

उम्मतें मंगल अग॰ 24, 08:29:00 am 2010  

व्यवस्था पर सही सवाल उठाये हैं आपने ! हम सहमत हैं !

ASHOK BAJAJ मंगल अग॰ 24, 01:25:00 pm 2010  

रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनाएँ

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