हमें लगा हमने जन्नत पाई...
गुलाब से भी सुंदर तुम्हारी कंचन काया
तुम्हें देखकर गुलों का शबाब भी शरमाया।।
जबसे हमने तुम्हारा प्यारा पाया
सबने हमें खुशनसीब बताया।।
जब भी तुम हमारे पहलू में आई
हमें लगा हमने जन्नत पाई।।
तुम्हें देख दिल की कली मुस्काई
हमने सारे जहांन की खुशियां पाईं।।
क्या खूब है खुदा की खुदाई
जिसने तुमसी हसीना हमें दिलाई।।
तुम्हें देखकर गुलों का शबाब भी शरमाया।।
जबसे हमने तुम्हारा प्यारा पाया
सबने हमें खुशनसीब बताया।।
जब भी तुम हमारे पहलू में आई
हमें लगा हमने जन्नत पाई।।
तुम्हें देख दिल की कली मुस्काई
हमने सारे जहांन की खुशियां पाईं।।
क्या खूब है खुदा की खुदाई
जिसने तुमसी हसीना हमें दिलाई।।
नोट: यह कविता 20 साल पुरानी डायरी की है।
1 टिप्पणियाँ:
राजकुमार भाई ,
उम्मीद कर रहा हूं कि यह रचना टेम्पलेट सजाने वाली मोहतरमा ( अब श्रीमती ग्वालानी ) को समर्पित रही होगी :) सच सच बताइयेगा !
एक टिप्पणी भेजें