राजनीति के साथ हर विषय पर लेख पढने को मिलेंगे....

शुक्रवार, अगस्त 13, 2010

ऐसी दीवानगी देखी नहीं कहीं...

शहीद भगत सिंह चौक से जैसे ही मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने बैटन को रवाना किया, प्रारंभ हो गया उसका ६ किलोमीटर का सफर इस सफर में रास्ते में जिस तरह ही दीवानगी खिलाडिय़ों और लोगों में देखने को मिली, वैसी दीवानगी पहले कभी राजधानी में देखने को नहीं मिली। पूरी राजधानी बैटन रिले के जश्न में इस तरह से डूब गई कि ६ किलोमीटर का सफर मिनटों में समाप्त हो गया ऐसा लगा। छत्तीसगढ़ में बैटन का जिस तरह का स्वागत हुआ उसने राज्यपाल शेखर दत्त से लेकर खेलमंत्री लता उसेंडी और रिले टीम के साथ आई अलका लांबा को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा।
शहीद भगत सिंह चौक में सरकार के कई मंत्रियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों, खिलाडिय़ों और स्कूली विद्यार्थियों के बीच जब मंच पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पहुंचे और उनको बैटन थमाई गई तो हर तरफ उत्साह और उमंग का माहौल दिखने लगा। मुख्यमंत्री बैटन को लेकर जब मंच से नीचे उतरे तो उनके साथ सभी अतिथि और खेल संघों के पदाधिकारी भी थे। मुख्यमंत्री ने बैटन को आगे बढ़ाया और फिर मंत्रियों के साथ खेल संघों के हाथों से होते हुए बैटन पहुंची पहले धावक विसेंट लकड़ा के पास और प्रारंभ हो गया, ६ किलोमीटर का कारवां। यह कारवां जाकर सप्रे स्कूल में शाम को ४.३० बजे तब थमा जब अंतरराष्ट्रीय विकलांग तैराक अंजली पटेल ने बैटन ले जाकर मंच पर राज्यपाल शेखर दत्त को सौंपी।
छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा
समापन समारोह में राज्यपाल शेखर दत्त ने कहा कि राजधानी में जिस तरह का माहौल बैटन रिले में नजर आया उसने यह साबित कर दिया कि वास्तव में छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा है। उन्होंने बताया कि इसके पहले जब २००२ में मैनेचेस्टर में कामनवेल्थ खेल हुए थे तो वे भारतीय दल के साथ गए थे। तब भारतीय दल को विदेशों में भी प्रशिक्षण दिलाया गया था। उस समय भारतीय दल ने सबसे ज्यादा ६९ पदक जीते थे। यह एक रिकॉर्ड है। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है इस बार भारत अपनी मेजबानी में इन पदकों के रिकॉर्ड को पार करके इससे ज्यादा पदक जीतने में सफल होगा।  इसके पहले जहां खेलमंत्री लता उसेंडी ने भी यह बात कही कि छत्तीसगढ़ में रिले का जैसा स्वागत हुआ है वह इस बात का परिचायक है छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। ठीक यही बात रिले टीम के साथ आई अलका लांबा ने भी कही। उन्होंने भी कहा कि यहां जैसे स्वागत रिले की हुआ है वैसा और कहीं नहीं हुआ है। सांसद रमेश बैस ने भी राजधानीवासियों की तारीफ करते हुए राजधानीवासियों ने दिखा दिया कि उनमें खेलों के लिए कितना प्यार और सम्मान है।
दीवानगी में हद से गुजर गए
बैटन रिले के लिए खेल संघों के पदाधिकारियों के साथ राजनेताओं की दीवानगी इतना ज्यादा रही कि इस दीवानगी में तो कई हद से गुजर गए। बैटन के रास्ते में कई ऐसे हादसे सामने आए जिसने यह साबित कर दिया रिले के लिए की गई सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से असफल थी। सुरक्षा में लगे अधिकारी भी बैटन पकडऩे में इतने ज्यादा मशगूल थे उनको सुरक्षा से कोई मतलब ही नहीं था।
शहीद भगत सिंह चौक से लेकर गांधी उद्यान तक तो सुरक्षा कर्मी पूरी मुस्तैदी से लगे थे। लेकिन जैसे ही वीआईपी का पाइंट समाप्त हुआ अव्यवस्था ने अपने पैरे पसारे दिए। विसेंट लकड़ा के आगे जैसे ही बैटन दूसरी धावक प्रीति बंछोर और फिर इसके बाद फुटबॉल की सबसे छोटी खिलाड़ी निकिता स्विसपन्ना के पास पहुंची तो इस छोटी खिलाड़ी को कुछ ही कदम बैटन लेकर चलने दिया गया इसके बाद उनसे बैटन एक कांग्रेसी नेता सलाम रिजवी ने छीन ली और लेकर दौडऩे लगे। सलाम रिजवी का नाम कही भी बैटन लेकर दौडऩे वाले धावकों में नहीं था। किसी तरह से उनसे बैटन लेकर दूसरे धावक को दी गई। अव्यवस्था का आलम यह था कि धावक के हाथ में बैटन कम और सुरक्षा अधिकारियों के साथ खेल संघों के पदाधिकारियों के हाथों में ज्यादा दिख रही थी।
महापौर लेकर दौडऩे लगी बैटन
जयस्तंभ चौक में जब बैटन पहुंची तो यहां पर हनुमान सिंह पुरस्कार प्राप्त संजय शर्मा धावक के रूप में मौजूद थे। उनको बैटन को लेकर दौडऩा था। संजय शर्मा बैटन लेकर कुछ दूर चले जरूर लेकिन इसके बाद उनसे बैटन महापौर किरणमयी नायक और निगम के सभापति संजय श्रीवास्तव ने ले ली और बैटन लेकर दौडऩे लगे। महापौर और सभापति भी बैटन की दीवानगी में यह भूल गए कि रास्ते में बैटन लेकर दौडऩे का जिम्मा सिर्फ खिलाड़ी धावकों को दिया गया था।
बैटन छीनने का प्रयास
बैटन का कारवां जब लाखेनगर चौक में पहुंचा तो पहले तो बैटन का हिन्दु स्पोर्टिंग के पदाधिकारियों ने जोरदार स्वागत किया, लेकिन इसके बाद जब बैटन को छीनने का प्रयास किया गया तो वहां पर भगदड़ की स्थिति आ गई। बड़ी मुश्किल से सुरक्षाकर्मियों ने इस प्रयास को विफल करके बैटन को धावक के हाथों में दे कर आगे बढ़ाया। लाखे नगर में सुरक्षा कर्मियों को लाठियां भी लहरानी पड़ीं।
मार्ग बदलने का प्रयास
बैटन जब बूढ़ापारा के आउटडोर स्टेडियम के पास पहुंची तो सुरक्षा व्यवस्था में लगे अधिकारियों ने बैटन को आउटडोर स्टेडियम में ले जाने का प्रयास किया। उनके इस प्रयास का बैटन रिले दल के सदस्यों ने विरोध किया और उनको बताया कि बैटन का मार्ग बदला नहीं जा सकता है। अधिकारी बैटन को आउटडोर स्टेडियम में इसलिए ले जाना चाहते थे क्योंकि बैटन वहां तक चार बजे पहुंच गई थी और वहां से सप्रे स्कूल का फासला महज १० मिनट में तय हो जाना था और राज्यपाल को समापन में ४.३० बजे आना था। ऐसे में बैटन को नियमों के विपरीत रास्ते में कई बार रोक दिया गया, जबकि बैटन रिले के एक बार प्रारंभ होने के बाद बैटन को रास्ते में रोका नहीं जाता उसको लेकर धावकों को चलते रहना पड़ता है। लेकिन रिहर्सल के बाद भी खेल विभाग के आला अधिकारियों सहित अधिकारी यह तय नहीं कर पाए थे कि कितने समय बैटन की शुरुआत करने से बैटन सही समय पर सप्रे स्कूल पहुंचेगी। बैटन को गांधी उद्यान से २.४५ को निकलना था, लेकिन वहां से वह ३.०० बजे निकली अगर २.४५ को बैटन निकल जाती तो वह ३.४५ को ही सप्रे स्कूल पहुंच जाती। रिहर्सल में महज ५५ मिनट का ही समय लगा था और इस समय को ध्यान में रखते हुए बैटन रिले का प्रारंभ नहीं किया गया।
खेल संघ के पदाधिकारियों की दादागिरी
सप्रे स्कूल में बैटन के प्रवेश करने के बाद एक खिलाड़ी से एक खेल संघ के पदाधिकारी से बैटन छीन ली और खुद लेकर दौडऩे लगे। ऐसा नजारा रास्ते में भी कई स्थानों में नजर आया जब खिलाडिय़ों को किनारे करते हुए उनके साथ संघों के पदाधिकारी बैटन लेकर दौड़ते रहे।
स्कूली बच्चे भूखे-प्यासे रहे
बैटन रिले के मार्ग में ६० स्कूलों के २० हजार से ज्यादा स्कूली बच्चों को दोपहर १२ बजे से बुलाकर खड़े करवा दिया गया था। इन बच्चों को शाम तक भूखे-प्यासे रखा गया। सभी बच्चे एक स्वर में शिकायत करते रहे कि  उनका ख्याल ही नहीं रखा गया। यही बात रिले में दौडऩे वाले ज्यादातर धावकों ने भी कहीं कि उनको एक बजे से अपने-अपने पाइंट में बुला लिया गया, लेकिन पानी तक की व्यवस्था नहीं की गई।
हर कोई दीवानगी में डूबा
एक तरफ जहां अव्यवस्था का आलम रहा, वहीं दूसरी तरफ बैटन के मार्ग में राजधानीवासियों की दीवानगी देखते ही बनी। पूरे रास्ते भर राजधानीवासी बैटन रिले का स्वागत करते रहे। इस स्वर्णिम अवसर को देखने का मौका जहां किसी ने नहीं गंवाया वहीं रास्ते भर सभी अपने-अपने मोबाइल से इन सुनहरे पलों को कैद करते नजर आए। रिले का हर किसी ने रास्ते में अपने अंदाज में स्वागत किया।
दिखी छत्तीसगढ़ की संस्कृति की झलक
बैटन के मार्ग में संस्कृति की झलक कदम-कदम पर नजर आई। अलग-अलग पाइंट पर अलग-अलग जिलों के नर्तक दल अपने-अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे। गांधी उद्यान के आगे देशभक्ति गीतों का जलवा भी था। रिले के सामने स्कैटिंक करते खिलाड़ी भी थे। सप्रे स्कूल के अंदर लाइन से कलश ली महिला मंडली खड़ी थी।

1 टिप्पणियाँ:

arvind शुक्र अग॰ 13, 12:49:00 pm 2010  

ये दीवानगी है या पागलपन....कोमनवेल्थ का...?

Related Posts with Thumbnails

ब्लाग चर्चा

Blog Archive

मेरी ब्लॉग सूची

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP