तैयार रहे जमाने की खाने लात
बहुत कठिन है जिदंगी को चलाना
ये सब हमने बहुत देर ने जाना
न जाने कितने गम हैं जमाने में
क्या रखा है एक मोहब्बत के फंसाने में
मोहब्बत करके गम ही मिलते हैं
फिर नहीं कभी ये गम सिलते हैं
मोहब्बत से हमेशा दूर रहना यारों
ये एक बात तुम भी हमारी मानो
नहीं मानेंगे गर ये बात
फिऱ तैयार रहे जमाने की खाने लात
ये सब हमने बहुत देर ने जाना
न जाने कितने गम हैं जमाने में
क्या रखा है एक मोहब्बत के फंसाने में
मोहब्बत करके गम ही मिलते हैं
फिर नहीं कभी ये गम सिलते हैं
मोहब्बत से हमेशा दूर रहना यारों
ये एक बात तुम भी हमारी मानो
नहीं मानेंगे गर ये बात
फिऱ तैयार रहे जमाने की खाने लात
एक ताजा तरीन कविता पेश है...
2 टिप्पणियाँ:
हे राम ! शुभ-शुभ बोलो राजकुमार जी ! :)
मुहब्बत को लतिया रहे हैं :) भाभी जान से झगडा तो नहीं किये भाई ?
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