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शुक्रवार, सितंबर 03, 2010

तैयार रहे जमाने की खाने लात

बहुत कठिन है जिदंगी को चलाना
ये सब हमने बहुत देर ने जाना
न जाने कितने गम हैं जमाने में
क्या रखा है एक मोहब्बत के फंसाने में
मोहब्बत करके गम ही मिलते हैं
फिर नहीं कभी ये गम सिलते हैं
मोहब्बत से हमेशा दूर रहना यारों
ये एक बात तुम भी हमारी मानो
नहीं मानेंगे गर ये बात
फिऱ तैयार रहे जमाने की खाने लात

एक ताजा तरीन कविता पेश है...

2 टिप्पणियाँ:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" शुक्र सित॰ 03, 10:20:00 am 2010  

हे राम ! शुभ-शुभ बोलो राजकुमार जी ! :)

उम्मतें शुक्र सित॰ 03, 04:02:00 pm 2010  

मुहब्बत को लतिया रहे हैं :) भाभी जान से झगडा तो नहीं किये भाई ?

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