नक्सली हैं हमारे रोल मॉडल
जो नक्सली आज अपने देश के लिए नासूर बन चुके हैं उनको अगर कोई कहे कि वे हमारे रोल मॉडल हैं, तो वास्तव में यह दुखद बात होगी या नहीं? लेकिन इसका क्या किया जाए कि बस्तर के बच्चे नक्सलियों को ही अपना रोल मॉडल मानते हैं। नक्सलियों के बाद नंबर आता है शिक्षा कर्मियों को।
कल की ही बात है हम एक आईपीएस अधिकारी के पास बैठे थे तो चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि बस्तर में करवाए गए एक सर्वे में यह चौकाने वाली बात सामने आई कि वहां के अधिकांश बच्चे नक्सलियों को ही अपना रोल मॉडल मानते हैं। जब अफसर ने यह बात बताई तो उसी समय वहां पर उपस्थित एक अन्य अधिकारी ने ये यह बात बताई कि इसमें कुछ नया नहीं है। उन्होंने बताया कि जिस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तो वहां के बच्चे जब कुछ खेल खेलते थे तो उस खेल में आंतकवादी और पुलिस वालों का रोल ज्यादा होता था। उन्होंने कहा कि यह तो बच्चों की मानवीय प्रवृति है कि उनके आस-पास जो घटता है या उनको बार-बार जिनके बारे में सुनने को मिलता है तो उसे ही वे अपना रोल मॉडल समझने लगते हैं। अब बस्तर के बच्चों को पैदा होने के बाद जब होस संभालने का मौका मिलता है तो उनके कानों में हर वक्त बस एक ही आवाज सुनाई पड़ती है और वह आवाज होती है नक्सलियों की।
कल की ही बात है हम एक आईपीएस अधिकारी के पास बैठे थे तो चर्चा के दौरान यह बात सामने आई कि बस्तर में करवाए गए एक सर्वे में यह चौकाने वाली बात सामने आई कि वहां के अधिकांश बच्चे नक्सलियों को ही अपना रोल मॉडल मानते हैं। जब अफसर ने यह बात बताई तो उसी समय वहां पर उपस्थित एक अन्य अधिकारी ने ये यह बात बताई कि इसमें कुछ नया नहीं है। उन्होंने बताया कि जिस समय पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तो वहां के बच्चे जब कुछ खेल खेलते थे तो उस खेल में आंतकवादी और पुलिस वालों का रोल ज्यादा होता था। उन्होंने कहा कि यह तो बच्चों की मानवीय प्रवृति है कि उनके आस-पास जो घटता है या उनको बार-बार जिनके बारे में सुनने को मिलता है तो उसे ही वे अपना रोल मॉडल समझने लगते हैं। अब बस्तर के बच्चों को पैदा होने के बाद जब होस संभालने का मौका मिलता है तो उनके कानों में हर वक्त बस एक ही आवाज सुनाई पड़ती है और वह आवाज होती है नक्सलियों की।
ऐसे में अगर बस्तर के बच्चे नक्सलियों को अपना रोल मॉडल मनाते हैं तो इसमें आश्चर्य वाली बात नहीं है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि बस्तर के आदिवासी अपने बच्चों के दिलों से नक्सलियों को नहीं निकाल सकते हैं। इसके लिए तो पूरी तरह से सरकार दोषी है। अगर बस्तर में पुलिस ने ऐसा काम किया होता जिससे नक्सलियों का सफाया हो जाता तो आज बस्तर के बच्चों के नक्सली नहीं पुलिस के जवान रोल मॉडल होते। लेकिन लगता नहीं है कि कभी ऐसा हो पाएगा।
नक्सलियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की न तो सरकार के पास ताकत है और न ही उनकी औकात है। नक्सलियों के पास जैसे और जितने हथियार हैं वैसे हथियार उनसे लडऩे वाले जवानों के पास न तो हैं और हो सकते हैं। हमें तो लगता है कि सरकार की मानसिकता ही नहीं है कि नक्सलियों का सफाया हो। बहरहाल यहां पर नक्सलियों के सफाए का सवाल नहीं सवाल है बस्तर के उन मासूम बच्चों का जो नक्सलियों को अपना रोल मॉडल समझते हैं। इन बच्चों के लिए कुछ करना जरूरी है, नहीं तो आगे चलकर वे जिनको अपना रोल मॉडल समझते हैं उनके बताए रास्ते पर ही चलने लगेंगे। इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि बस्तर के युवा आज नक्सलियों की ताकत बनते जा रहे हैं। इस ताकत को समाप्त करने के लिए कुछ न कुछ रास्ता निकालना ही होगा।
नक्सलियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की न तो सरकार के पास ताकत है और न ही उनकी औकात है। नक्सलियों के पास जैसे और जितने हथियार हैं वैसे हथियार उनसे लडऩे वाले जवानों के पास न तो हैं और हो सकते हैं। हमें तो लगता है कि सरकार की मानसिकता ही नहीं है कि नक्सलियों का सफाया हो। बहरहाल यहां पर नक्सलियों के सफाए का सवाल नहीं सवाल है बस्तर के उन मासूम बच्चों का जो नक्सलियों को अपना रोल मॉडल समझते हैं। इन बच्चों के लिए कुछ करना जरूरी है, नहीं तो आगे चलकर वे जिनको अपना रोल मॉडल समझते हैं उनके बताए रास्ते पर ही चलने लगेंगे। इसमें भी कोई दो मत नहीं है कि बस्तर के युवा आज नक्सलियों की ताकत बनते जा रहे हैं। इस ताकत को समाप्त करने के लिए कुछ न कुछ रास्ता निकालना ही होगा।
11 टिप्पणियाँ:
कुछ बच्चों ने या किसी एक बच्चे ने ऐसा कहा हो या न भी कहा हो तो यह सोचनीय है लेकिन क्या इसे सामान्य रूप से सारे बच्चों पर घटा कर देखना ठीक होगा.
राहुल जी,
बस्तर में किसी एक बच्चे ने नहीं बल्कि ज्यादातर बच्चों ने ऐसा कहा है वहां एक सर्वे करवाया गया है।
चिंता की बात है
कब तक सोती रहोगी सरकार
आदिवासियों को जगाने की जरूरत है
बस्तर में खेलों पर ध्यान दें सब ठीक हो जाएगा
प्रणव, नेहा, राजेश जी की बातों में दम है
राजकुमार जी नक्सली की ब्याख्या मैं इस तरफ करता हूँ नक्(नाक) + सली ( शिल्पकार ) याने जो नाक के शिल्पकार है , अर्थात महाबेशर्म !! लेकिन अगर गौर करे तो इन नक्सलियों ने दिल्ली के ताजोतख्त पर भी कब्ज़ा किया ह़ा है और जब दिल्ली के ताजोतख्त पर बैठे नक्सली लोगो के रोल मॉडल हो सकते है तो वस्त्र के नक्सली क्यों नहीं ?
Sorry,वस्त्र को बस्तर पढ़े
समस्या बहुआयामी / सार्थक विमर्श और पहल से हल होगी इसके खात्में के लिये कोई एकांगी मार्ग नहीं है !
बहुत चिंताजनक है ये सब
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