राजधानी में अखबार-वार
छत्तीसगढ़ की राजधानी में इन दिनों राजस्थान पत्रिका के आगमन को लेकर एक तरह के अखबार वार चल रहा है। इस अखबार वार में वे सारे अखबार कूद पड़े हैं जो अपने को नंबर वन समझते हैं। वास्तव में यह एक दुखद बात है कि आज अखबार पूरी तरह से व्यापार बन गया है। अखबार चलाने के लिए गिफ्ट का सहारा लेना पड़ रहा है। अब लेना भी क्यों न पड़े जब इतने ज्यादा अखबार होंगे तो अखबार के साथ पाठक भी तो अपना फायदा खोजेगा ही।
हम जिस रास्ते से रोज प्रेस जाते हैं, उस रास्ते में ज्यादातर जितने भी घर पड़ते हैं, उन घरों के दरवाजों पर एक साथ कई अखबारों ने बोर्ड लगे नजर आते हैं। एक घर के दरवाजे पर राजस्थान पत्रिका ने कृपया हार्न न बजाए लिखा बोर्ड लगा दिया तो उसी दरवाजे पर कुत्तों से सावधान रहें, वाला बोर्ड नई दुनिया ने लगा दिया। अब भला नवभारत कैसे पीछे रहता उसने भी चिपका दिया नो पार्किग वाला बोर्ड, अब बचा भास्कर कैसे पीछे रहता, उसने भी लगा दिया दरवाजे के सामने गाड़ी खड़ा करना मना है लिखा हुआ बोर्ड। एक तरफ अखबारों का बोर्ड वार चल रहा है तो दूसरी तरफ राजधानी के हर वार्ड में अखबारों के सर्वेयर नजर आ जाते हैं। घर-घर दस्तक देकर जहां वे ये पूछते हैं कि आपके घर कौन सा अखबार आ रहा है, वहीं वे गिफ्ट देते हैं। भले आप अखबार न लें लेकिन कम से कम गिफ्ट लेकर अपना मोबाइल और फोन नंबर तो दे दें ताकि वे अपने दफ्तर जाकर बता सकें कि वे कितने घरों का सर्वे करके आए हैं। इससे कम से कम उन गरीब सर्वेयरों की रोजी-रोटी चलती रहेंगी।
वास्तव में जिस तरह का अखबार वार राजधानी में चल रहा है उसने एक बार फिर से यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आज के अखबार आखिर किस दिशा में जा रहे हैं। इसमें कोई दो मत है कि काफी समय से अखबार एक तरह से व्यापार हो गया है। अखबार के व्यापार होने में परेशानी नहीं है, लेकिन इस व्यापारीकरण में अखबार यह भूल गए हैं कि वे गिफ्ट देकर अखबार नहीं बल्कि रद्दी बेच रहे हैं। जो भी गिफ्ट के लालच में अखबार लेंगे वे अखबार पढ़ेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। हमें याद है कुछ साल पहले भास्कर ने एक कुर्सी योजना चलाई थी। इस योजना ने अखबार को प्रसार संख्या के हिसाब से तो नंबर वन बना दिया, लेकिन उसी समय यह बात भी सामने आई थी कि जिन लोगों ने कुर्सी के लालच में अखबार लिया था, उनमें से जहां काफी लोग अनपढ़ थे, वहीं काफी लोगों को हिन्दी भी नहीं आती थी। उस समय क्या रिक्शे वाले और क्या ठेके वाले और क्या मजदूर सभी कुर्सी के लालच में भास्कर के सामने लाइन लगाए खड़े रहते थे। ऐसे लोगों का मकसद कम कीमत पर कुर्सी लेने के साथ अखबार की रद्दी बेचकर पैसे कमाने के सिवाए कुछ नहीं था।
ऐसा नहीं है कि इन सब बातों से अखबार के मालिक बेखबर हैं, वे भी जानते हैं, लेकिन वे भी क्या करें बाजार में टिके रहना है तो यह सब तो करना पड़ेगा। अब अगर आप नंबर वन की दौड़ में शामिल हैं तो फिर बाजार के हिसाब से चलना ही पड़ेगा फिर चाहे बाजार की मांग पर कम से कम कपड़ों वाली या फिर अश्लील या फिर पूरी नंगी फोटो भी क्यों न छापनी पड़े आपको अखबार में। वैसे अब तक तो हिन्दी अखबार नंगी तस्वीरों से परहेज कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से बाजारवाद अखबारों पर हावी हो रहा है उससे लगता है कि वह दिन भी दूर नहीं जब हिन्दी अखबारों में भी नंगी तस्वीर छपने लगेंगी। जिस दिन ऐसा हुआ वह दिन वास्तव में हिन्दी पत्रकारिता के लिए दुखद होगा और यह तय है कि उस दिन से घरों में हिन्दी अखबारों के लिए प्रवेश बंद हो जाएगा।
हम जिस रास्ते से रोज प्रेस जाते हैं, उस रास्ते में ज्यादातर जितने भी घर पड़ते हैं, उन घरों के दरवाजों पर एक साथ कई अखबारों ने बोर्ड लगे नजर आते हैं। एक घर के दरवाजे पर राजस्थान पत्रिका ने कृपया हार्न न बजाए लिखा बोर्ड लगा दिया तो उसी दरवाजे पर कुत्तों से सावधान रहें, वाला बोर्ड नई दुनिया ने लगा दिया। अब भला नवभारत कैसे पीछे रहता उसने भी चिपका दिया नो पार्किग वाला बोर्ड, अब बचा भास्कर कैसे पीछे रहता, उसने भी लगा दिया दरवाजे के सामने गाड़ी खड़ा करना मना है लिखा हुआ बोर्ड। एक तरफ अखबारों का बोर्ड वार चल रहा है तो दूसरी तरफ राजधानी के हर वार्ड में अखबारों के सर्वेयर नजर आ जाते हैं। घर-घर दस्तक देकर जहां वे ये पूछते हैं कि आपके घर कौन सा अखबार आ रहा है, वहीं वे गिफ्ट देते हैं। भले आप अखबार न लें लेकिन कम से कम गिफ्ट लेकर अपना मोबाइल और फोन नंबर तो दे दें ताकि वे अपने दफ्तर जाकर बता सकें कि वे कितने घरों का सर्वे करके आए हैं। इससे कम से कम उन गरीब सर्वेयरों की रोजी-रोटी चलती रहेंगी।
वास्तव में जिस तरह का अखबार वार राजधानी में चल रहा है उसने एक बार फिर से यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आज के अखबार आखिर किस दिशा में जा रहे हैं। इसमें कोई दो मत है कि काफी समय से अखबार एक तरह से व्यापार हो गया है। अखबार के व्यापार होने में परेशानी नहीं है, लेकिन इस व्यापारीकरण में अखबार यह भूल गए हैं कि वे गिफ्ट देकर अखबार नहीं बल्कि रद्दी बेच रहे हैं। जो भी गिफ्ट के लालच में अखबार लेंगे वे अखबार पढ़ेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। हमें याद है कुछ साल पहले भास्कर ने एक कुर्सी योजना चलाई थी। इस योजना ने अखबार को प्रसार संख्या के हिसाब से तो नंबर वन बना दिया, लेकिन उसी समय यह बात भी सामने आई थी कि जिन लोगों ने कुर्सी के लालच में अखबार लिया था, उनमें से जहां काफी लोग अनपढ़ थे, वहीं काफी लोगों को हिन्दी भी नहीं आती थी। उस समय क्या रिक्शे वाले और क्या ठेके वाले और क्या मजदूर सभी कुर्सी के लालच में भास्कर के सामने लाइन लगाए खड़े रहते थे। ऐसे लोगों का मकसद कम कीमत पर कुर्सी लेने के साथ अखबार की रद्दी बेचकर पैसे कमाने के सिवाए कुछ नहीं था।
ऐसा नहीं है कि इन सब बातों से अखबार के मालिक बेखबर हैं, वे भी जानते हैं, लेकिन वे भी क्या करें बाजार में टिके रहना है तो यह सब तो करना पड़ेगा। अब अगर आप नंबर वन की दौड़ में शामिल हैं तो फिर बाजार के हिसाब से चलना ही पड़ेगा फिर चाहे बाजार की मांग पर कम से कम कपड़ों वाली या फिर अश्लील या फिर पूरी नंगी फोटो भी क्यों न छापनी पड़े आपको अखबार में। वैसे अब तक तो हिन्दी अखबार नंगी तस्वीरों से परहेज कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह से बाजारवाद अखबारों पर हावी हो रहा है उससे लगता है कि वह दिन भी दूर नहीं जब हिन्दी अखबारों में भी नंगी तस्वीर छपने लगेंगी। जिस दिन ऐसा हुआ वह दिन वास्तव में हिन्दी पत्रकारिता के लिए दुखद होगा और यह तय है कि उस दिन से घरों में हिन्दी अखबारों के लिए प्रवेश बंद हो जाएगा।
8 टिप्पणियाँ:
सचमुच बाजार वाद इन अखबार वालो पर हावी है | बहुत बढ़िया लिखा है |
इस वार का एक पक्ष पत्रकारों का ध्रुवीकरण है, जो पुरानों में नई चुनौतियां, नई उर्जा(जैसा बताया जाता है नया पैकेज भी) भरता है, नयों के लिए रास्ते खोल रहा है.
व्यापार है सो प्रोपेगेंडा को भी स्वीकार करना पडेगा !
ये भी संभव है कि प्रतिस्पर्धा कुछ अच्छा भी करा दे ! माल अच्छा नहीं होगा तो कब तक बिकेगा ?
... prabhaavashaalee abhivyakti !!!
ऐसे माहोल में ग्राहक का सदा भला होता है.
ऐसे माहोल में ग्राहक का सदा भला होता है.
ग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ .वैसे भी आज पर्युषण पर्व का शुभारम्भ हुआ है ,इस नाते भी पिछले 365 दिनों में जाने-अनजाने में हुई किसी भूल या गलती से यदि आपकी भावना को ठेस पंहुचीं हो तो कृपा-पूर्वक क्षमा करने का कष्ट करेंगें .आभार
क्षमा वीरस्य भूषणं .
ha....ha....ha...sundar....jo bhi ho,is bahane logo ka bhalaa ho raha hai,kuchh patrkaron ka bhi bhla ho raha hai. sethon ka to bhala hoga hi....
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