क्या नेता कानून से बड़े हैं?
हर तरफ जाम लगा है एक रिक्शे में एक मरीज तडफ़ रहा है, रिक्शे वाला बार-बार पुलिस वाले से कहता है कि भाई साहब हमें जाने दे नहीं तो यह मरीज मर जाएगा, लेकिन पुलिस वाला है कि रिक्शे वाले को जाने ही नहीं देता है। कारण साफ है अगर उसने उसे जाने दिया तो उसकी नौकरी पर बन आएगी, क्योंकि सामने से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का कारवां आने वाला है जिनके स्वागत में पूरी भाजपा सरकार जुटी हुई है। अब जब सरकार के आदेश पर रास्ता बंद किया गया तो फिर पुलिस वाले की क्या मजाल की वह किसी को जाने दे। लेकिन हां अगर आप नेता के चमचे हैं या झूठ बोलने का दम है तो रास्ता जरूर मिल जाता है। जिस रास्ते से मरीज वाले रिक्शे को जाने नहीं दिया गया, उस रास्ते से एक बोलेरो जरूर जीप में संगठन महामंत्री और एसपी के होने का झूठ बोलकर निकल गई। सोचने वाली बात यह है कि क्या अपने नेता देश के कानून से भी बड़े हैं जिनके कारण हमेशा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी अनदेखी की जाती है।
यह बहुत आम बात है कि जब भी किसी शहर में कोई बड़ा नेता जाता है तो सारे रास्ते उनके लिए बंद कर दिए जाते हैं, क्योंकि अपने देश में सबसे ज्यादा जान का खतरा तो इन नेताओं को ही है। नेताओं की वजह से आम जनता को होने वाली परेशानी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया है कि अगर नेताओं को अपनी जान का इतना ही खतरा है तो वे बाहर ही न जाए। लेकिन क्या नेता बाहर जाए बिना रह सकते हैं। ऐसे में जबकि वे बाहर जाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को तार-तार कर दिया जाता है। ऐसा ही यहां छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तब हुआ जब यहां पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का आना हुआ। उनके आने की वजह से दो दिनों तक शहर की जनता तस्त्र रही। पहले ही दिन एक रास्ते पर यह नजारा देखने को मिला कि एक रिक्शे में बैठे मरीज को गंभीर होने के बाद भी पुलिस वालों ने जाने नहीं दिया। पुलिस वाले यही करते रहे हैं मरीज मर भी जाए तो हम क्या कर सकते हैं।
एक तरफ मरीज के लिए पुलिस वालों ने रास्ता नहीं दिया, दूसरी तरफ गलत दिशा से एक बोलेरो को सिर्फ इसलिए जाने दिया गया क्योंकि उस बोलेरो में सवार एक युवक ने एक पुलिस वालों से आकर कहा कि जीप में भाजपा के संगठन महामंत्री और एसपी साहब बैठे हैं, इतना सुनते ही पुलिस वालों ने जीप को रास्ता दे दिया। पुलिस वालों ने यह भी जरूरी नहीं समझा कि जाकर देख लें कि वास्तव में उस जीप में एसपी बैठे हैं या नहीं। बाद में रायपुर के एसपी दीपांशु काबरा ने यह माना कि वे इस बोलेरो में नहीं थे।
जहां एक तरफ जाम में एक रिक्शे में मरीज फंसा था, वहीं जाम में एक एम्बुलेंस भी फंसी थी। एम्बुलेंस के लिए नियम है कि उसके लिए सबसे पहले रास्ता देना है। मरीज को ले जाने वाली एम्बुलेंस के लिए तो रेलवे फाटक पर ट्रेन तक को रोकने का प्रावधान है। लेकिन अपने नेताओं के सामने किसी कानून की नहीं चलती है। नेता तो कानून को अपने घर की लौडी समझते हैं। वास्तव में अपने देश का कानून इतना असहाय है कि वह नेताओं के सामने नपुंसक नजर आता है।
यह बहुत आम बात है कि जब भी किसी शहर में कोई बड़ा नेता जाता है तो सारे रास्ते उनके लिए बंद कर दिए जाते हैं, क्योंकि अपने देश में सबसे ज्यादा जान का खतरा तो इन नेताओं को ही है। नेताओं की वजह से आम जनता को होने वाली परेशानी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया है कि अगर नेताओं को अपनी जान का इतना ही खतरा है तो वे बाहर ही न जाए। लेकिन क्या नेता बाहर जाए बिना रह सकते हैं। ऐसे में जबकि वे बाहर जाते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को तार-तार कर दिया जाता है। ऐसा ही यहां छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तब हुआ जब यहां पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का आना हुआ। उनके आने की वजह से दो दिनों तक शहर की जनता तस्त्र रही। पहले ही दिन एक रास्ते पर यह नजारा देखने को मिला कि एक रिक्शे में बैठे मरीज को गंभीर होने के बाद भी पुलिस वालों ने जाने नहीं दिया। पुलिस वाले यही करते रहे हैं मरीज मर भी जाए तो हम क्या कर सकते हैं।
एक तरफ मरीज के लिए पुलिस वालों ने रास्ता नहीं दिया, दूसरी तरफ गलत दिशा से एक बोलेरो को सिर्फ इसलिए जाने दिया गया क्योंकि उस बोलेरो में सवार एक युवक ने एक पुलिस वालों से आकर कहा कि जीप में भाजपा के संगठन महामंत्री और एसपी साहब बैठे हैं, इतना सुनते ही पुलिस वालों ने जीप को रास्ता दे दिया। पुलिस वालों ने यह भी जरूरी नहीं समझा कि जाकर देख लें कि वास्तव में उस जीप में एसपी बैठे हैं या नहीं। बाद में रायपुर के एसपी दीपांशु काबरा ने यह माना कि वे इस बोलेरो में नहीं थे।
जहां एक तरफ जाम में एक रिक्शे में मरीज फंसा था, वहीं जाम में एक एम्बुलेंस भी फंसी थी। एम्बुलेंस के लिए नियम है कि उसके लिए सबसे पहले रास्ता देना है। मरीज को ले जाने वाली एम्बुलेंस के लिए तो रेलवे फाटक पर ट्रेन तक को रोकने का प्रावधान है। लेकिन अपने नेताओं के सामने किसी कानून की नहीं चलती है। नेता तो कानून को अपने घर की लौडी समझते हैं। वास्तव में अपने देश का कानून इतना असहाय है कि वह नेताओं के सामने नपुंसक नजर आता है।
2 टिप्पणियाँ:
जो हो जाए वो कम है-प्रजातंत्र में,नेता राज में।
शिक्षा का दीप जलाएं-ज्ञान प्रकाश फ़ैलाएं
शिक्षक दिवस की बधाई
विचारणीय प्रविष्टि
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