एक पोस्ट के दस लाख से ज्यादा पाठक
अगर कोई कहे कि उनकी एक पोस्ट के दस लाख से ज्यादा पाठक हैं, तो आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन यह बात पूरी तरह से सच है। हम ही नहीं और भी कई ऐसे ब्लागर हैं जिनकी एक पोस्ट के दस लाख से ज्यादा पाठक हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कैसे संभव है, तो हम खुलासा कर दें कि हम उस पोस्ट की बात नहीं कर रहे हैं जो पोस्ट ब्लाग में रहती है, बल्कि उस पोस्ट की बात कर रहे हैं जो एक अखबार में रहती है। कम से कम हम जिस अखबार दैनिक हरिभूमि में काम करते हैं, उस अखबार में जब हमारी एक खबर छत्तीसगढ़ के संस्करणों में प्रकाशित होती है तो उसको करीब 9 लाख पाठक पढ़ लेते हैं। अभी दो दिन पहले हमारी एक खबर हरिभूमि के सभी संस्करणों में पहले पेज पर प्रकाशित हुई, हमारी इस खबर को पढऩे वालों को संख्या 15 लाख से ज्यादा थी।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि अभी ब्लाग जगत का दायरा उतना बड़ा नहीं है कि उसे लाखों पाठक पढ़ें। वैसे भी हिन्दी ब्लागों की ही संख्या अभी एक लाख में नहीं पहुंची है तो पाठक कैसे एक लाख हो सकते हैं। ब्लाग जगत में ब्लाग की पोस्ट को ज्यादातर पढऩे वाले ब्लागर ही होते हैं। लेकिन अखबार जगत में अखबार खरीदने वालों के साथ अखबार न खरीद पाने वाले भी अखबार पढ़ लेते हैं।
बहरहाल जहां तक हमारी बात है तो हम तो अखबार में 20 साल से काम कर रहे हैं। हमारी खबरों के हमेशा से लाखों पाठक रहे हैं। हमारे कई ब्लागर मित्र भी ऐसे हैं जिनकी रचनाएं हमारे अखबार हरिभूमि के साथ और अखबारों में प्रकाशित होती हैं, ये सारे लेखक इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी एक रचना को पढऩे वालों की संख्या लाखों में होती है। लेकिन अखबार और ब्लाग में एक बड़ा अंतर यह है कि आप अखबार में अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं लिख सकते हैं, लेकिन ब्लाग आपकी अपनी संपत्ति है इसमें कुछ भी लिखने से आपको कोई नहीं रोक सकता है।
हम अपनी जिस खबर की बात कर रहे हैं, उस खबर को हमने अपने ब्लाग में डाला था। जिस खबर को अखबार में 15 लाख से ज्यादा पाठकों ने पढ़ा, उस खबर को ब्लाग बमुश्किल दो सौ ने भी नहीं पढ़ा। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि ब्लाग लेखन ठीक नहीं है। ब्लाग लेखन का अपना एक अलग स्थान है। हमें उम्मीद है कि आगे चलकर ब्लाग भी जरूर अखबारों की शक्ल लेंगे और ब्लागों के भी लाखों पाठक होंगे, लेकिन उसके लिए लंबा समय लगेगा।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि अभी ब्लाग जगत का दायरा उतना बड़ा नहीं है कि उसे लाखों पाठक पढ़ें। वैसे भी हिन्दी ब्लागों की ही संख्या अभी एक लाख में नहीं पहुंची है तो पाठक कैसे एक लाख हो सकते हैं। ब्लाग जगत में ब्लाग की पोस्ट को ज्यादातर पढऩे वाले ब्लागर ही होते हैं। लेकिन अखबार जगत में अखबार खरीदने वालों के साथ अखबार न खरीद पाने वाले भी अखबार पढ़ लेते हैं।
बहरहाल जहां तक हमारी बात है तो हम तो अखबार में 20 साल से काम कर रहे हैं। हमारी खबरों के हमेशा से लाखों पाठक रहे हैं। हमारे कई ब्लागर मित्र भी ऐसे हैं जिनकी रचनाएं हमारे अखबार हरिभूमि के साथ और अखबारों में प्रकाशित होती हैं, ये सारे लेखक इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी एक रचना को पढऩे वालों की संख्या लाखों में होती है। लेकिन अखबार और ब्लाग में एक बड़ा अंतर यह है कि आप अखबार में अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं लिख सकते हैं, लेकिन ब्लाग आपकी अपनी संपत्ति है इसमें कुछ भी लिखने से आपको कोई नहीं रोक सकता है।
हम अपनी जिस खबर की बात कर रहे हैं, उस खबर को हमने अपने ब्लाग में डाला था। जिस खबर को अखबार में 15 लाख से ज्यादा पाठकों ने पढ़ा, उस खबर को ब्लाग बमुश्किल दो सौ ने भी नहीं पढ़ा। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि ब्लाग लेखन ठीक नहीं है। ब्लाग लेखन का अपना एक अलग स्थान है। हमें उम्मीद है कि आगे चलकर ब्लाग भी जरूर अखबारों की शक्ल लेंगे और ब्लागों के भी लाखों पाठक होंगे, लेकिन उसके लिए लंबा समय लगेगा।
12 टिप्पणियाँ:
उम्मीद है आगे ब्लॉग के पाठकों का दायरा भी बढेगा ......
बिलकुल सही कहा राजकुमार जी, वहां के लाखों की अहमियत तो है, लेकिन यहाँ के दो-चार सौ भी बहुत अहमियत रखते हैं. वहां पर लाखों भी हमारा लेख पढ़कर नहीं बताते की कैसा है? अच्छा है या बुरा? लेकिन यहाँ पर कुछ लोग भी पढ़कर बता तो देते हैं कि उन्हें पढ़कर कैसा महसूस हुआ? इसका मज़ा वहां कहाँ?
आपने तो कमाल कर दिया ,साधुवाद !
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
इसका अर्थ यह लगाऊं कि
उसमें प्रकाशित व्यंग्य
के
5 लाख पाठक तो होंगे ही
फिर तो अनुरोध करना होगा
हरिभूमि में प्रकाशित रचनाओं
के लेखकों के ब्लॉग पते भी
प्रकाशित किए जाया करें
ताकि ब्लॉग का भी खूब
प्रचार/प्रसार हो।
जहां आशा है निराशा का क्या काम |आपका विचार एकदम सही है ,अखवार तक आम आदमी की पहुंच है पर ब्लॉग तक कम लोग ही पहुंच पाते हैं |
आशा
धीरे -धीरे रे मना धीरे सब कुछ होए ...शुक्रिया
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अखबार के सर्कुलेशन या पाठक संख्या के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें छपी हर खबर को सभी पाठक पढ़ते ही हैं...
...
आमीन .... जरूर बढेगा दायरा ..
बहुत बहुत बधाईयाँ।
बधाई. सचमुच बहुत बड़ी बात है.
अखबार की तुलना रेडियो और टीवी से भी करना रोचक हो सकता है. वैसे अखबार में लिखा, सिर्फ पढ़ा जाए (ज्यादातर मामलों में बस आज ही) इसलिए होता है. ब्लॉग इतना एकांगी नहीं.
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