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शनिवार, दिसंबर 18, 2010

हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है

इंसानों की बस्ती में भी तंहा हैं हम
वो इसलिए की सबसे जुदा हैं हम
हमें सताते हैं सबके गम
हो जाती हैं हमारी आंखे नम
दुनिया में इतना दर्द देखा है
अपना दर्द बहुत कम लगता है
कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता है
लेकिन हमने ऐसा मर्द नहीं देखा है
जिसके दिल में दर्द न हो
ऐसा दिल भी हमने नहीं देखा है
न जाने क्यों दिल दिया है भगवान ने
हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है
भगवान के पास होता गर दिल
तो दिलों का हाल समझते
न फिर टूटता कोई दिल
और न होती किसी को मुश्किल

5 टिप्पणियाँ:

उम्मतें शनि दिस॰ 18, 06:15:00 pm 2010  

राजकुमार जी ,
क्या यह कविता दर्दमंदों के लिए लिखी है आपने :)

Rahul Singh रवि दिस॰ 19, 07:38:00 am 2010  

बेदिल ही सही, भगवान को देख तो लिया आपने. कभी मिले तो हम भी कर लेंगे जांच-परख.

girish pankaj रवि दिस॰ 19, 10:08:00 am 2010  

वाह-वाह...कविता भी...? बधाई. कभी-कभी यह रूप भी सामने आता रहे.

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