हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है
इंसानों की बस्ती में भी तंहा हैं हम
वो इसलिए की सबसे जुदा हैं हम
हमें सताते हैं सबके गम
हो जाती हैं हमारी आंखे नम
दुनिया में इतना दर्द देखा है
अपना दर्द बहुत कम लगता है
कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता है
लेकिन हमने ऐसा मर्द नहीं देखा है
जिसके दिल में दर्द न हो
ऐसा दिल भी हमने नहीं देखा है
न जाने क्यों दिल दिया है भगवान ने
हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है
भगवान के पास होता गर दिल
तो दिलों का हाल समझते
न फिर टूटता कोई दिल
और न होती किसी को मुश्किल
वो इसलिए की सबसे जुदा हैं हम
हमें सताते हैं सबके गम
हो जाती हैं हमारी आंखे नम
दुनिया में इतना दर्द देखा है
अपना दर्द बहुत कम लगता है
कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता है
लेकिन हमने ऐसा मर्द नहीं देखा है
जिसके दिल में दर्द न हो
ऐसा दिल भी हमने नहीं देखा है
न जाने क्यों दिल दिया है भगवान ने
हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है
भगवान के पास होता गर दिल
तो दिलों का हाल समझते
न फिर टूटता कोई दिल
और न होती किसी को मुश्किल
5 टिप्पणियाँ:
राजकुमार जी ,
क्या यह कविता दर्दमंदों के लिए लिखी है आपने :)
बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - कृपया ध्यान देंवे : अति विशेष सूचना - आलेख प्रतियोगिता और आप - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
बेदिल ही सही, भगवान को देख तो लिया आपने. कभी मिले तो हम भी कर लेंगे जांच-परख.
सुन्दर रचना !
वाह-वाह...कविता भी...? बधाई. कभी-कभी यह रूप भी सामने आता रहे.
एक टिप्पणी भेजें