टिप्पणियों की कतरनें लिफाफे में, अली जी की भी टिप्पणी शामिल
हमारे नाम से एक लिफाफा आया है जिसमें किसी ब्लाग में की गई टिप्पणियों की कुछ कतरनें हैं। हमें समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इन कतरनों को हमें भेजने का मतलब क्या है। लिफाफा हमारे प्रेस के पते से आया है। इससे एक बात तो साफ है कि यह उस इंसान का काम है जो यह बात अच्छी तरह से जानता है कि हम किस अखबार में काम करते हैं। पता नहीं क्यों कर ऐसा करने से लोगों को मजा आता है। जिसने भी ऐसा किया है, वह कोई बाहर का व्यक्ति नहीं बल्कि अपने शहर का ही है।
कल जब सुबह को प्रेस में नियमित मिटिंग के लिए गए तो हमारी टेलीफोन आपरेटर ने हमें बुलाकार एक लिफाफा दिया, उस लिफाफे को खोल कर देखा तो उसमें किसी ब्लाग में की गई तीन टिप्पियों की कतरनें थीं। एक टिप्पणी किसी बेनामी की थी, जो तीन दिसंबर की है, इसके बाद अपनी अली जी की एक टिप्पणी है जो 4 दिसंबर की है, इसमें अली जी ने बेनामी को संबोधित करते हुए लिखा है कि
बहरहाल हम फिलहाल अली जी से जानना चाहते हैं कि उन्होंने ऐसी टिप्पणी किस ब्लाग में की थी, ताकि हमें भी माजरा समझ में आए कि आखिर माजरा क्या है और इन टिप्पणियों से हमारा क्या सरोकार है।
कल जब सुबह को प्रेस में नियमित मिटिंग के लिए गए तो हमारी टेलीफोन आपरेटर ने हमें बुलाकार एक लिफाफा दिया, उस लिफाफे को खोल कर देखा तो उसमें किसी ब्लाग में की गई तीन टिप्पियों की कतरनें थीं। एक टिप्पणी किसी बेनामी की थी, जो तीन दिसंबर की है, इसके बाद अपनी अली जी की एक टिप्पणी है जो 4 दिसंबर की है, इसमें अली जी ने बेनामी को संबोधित करते हुए लिखा है कि
भाई आज एक अजब इत्तेफाक हुआ आपकी टिप्पणी से लभभग एक घंटे पहले मैंने उनकी ताजातरीन पोस्ट देखी, मसला वही पुराना रोना, धोना एक कोफ्त से हुई ख्याल किया आज रिएक्ट नहीं करूंगा नहीं किया....
इसके बाद एक टिप्पणी और है।
अब ये तो अपने अली जी ही बता सकते हैं उन्होंने यह टिप्पणी किनके ब्लाग में की थी। उन्होंने जिनके भी ब्लाग में टिप्पणी की हो, लेकिन यह बात समझ से परे है कि टिप्पणियों की कतरनें हमें भेजने का क्या मतलब है। जिसने भी ये काम किया है आखिर वह बताना क्या चाहता है। हमें तो लगता है कि जिसने भी हमें टिप्पणी वाली कतरनें भेजीं हैं, उनको मालूम है कि हम दैनिक हरिभूमि में पत्रकार हैं, उन्होंने हमारे प्रेस के पते पर ही लिफाफा भेजा है। एक बात हम और साफ कर दें कि जिस सज्जन ने यह काम किया है, वह कोई बाहर का नहीं बल्कि अपने शहर रायपुर का है। लिफाफे में रायपुर की ही शील लगी है। हमें कुछ-कुछ समझ आ रहा है कि यह काम किसका है। लेकिन उनके ऐसा करने के पीछे मानसिकता क्या है, इस बारे में हम सोच रहे हैं। जो भी मानसिकता होगी, वह अच्छी तो हो नहीं सकती है, अगर अच्छी मानसिकता होती तो ऐसा इंसान जो हमें अच्छी तरह से जानता है, हमसे आमने-सामने बात करता। बहरहाल हम फिलहाल अली जी से जानना चाहते हैं कि उन्होंने ऐसी टिप्पणी किस ब्लाग में की थी, ताकि हमें भी माजरा समझ में आए कि आखिर माजरा क्या है और इन टिप्पणियों से हमारा क्या सरोकार है।
3 टिप्पणियाँ:
राजकुमार जी,
आपके द्वारा उल्लिखित टिप्पणी मेरे अपने ब्लॉग में से है उसके सदुपयोग अथवा दुरूपयोग पर फिलहाल कोई रिएक्शन उचित नहीं लगता ! ये आपको 'बाई पोस्ट' क्यों भेजी गयी हैं ? इस मसले पर मैं भी 'बेनामी जी' का पक्ष जानने का इच्छुक हूँ !
अली जी,
हमने भी अभी-अभी वह टिप्पणी आपके ब्लाग में देखीं। हमने आपकी प्रोफाइल देखी तो मालूम हुआ कि आप जगदलपुर के हैं। हम इतना बता दें कि अपने बीच में ही ऐसे कुछ लोग हैं जो ब्लागर मित्रों के बीच सिर्फ और सिर्फ विवाद करवाने का काम करते हैं। बेनामी नाम से टिप्पणी करने वाले किसी के सगे नहीं होते हैं। इनका काम ही होता है विवाद पैदा करना। हमने इसी वजह से समीर लाल जी की सलाह मानते हुए अपने ब्लाग में मॉडरेशन लगा रखा है ताकि विवाद करने वालों से बचा जा सके। पहले हमने सभी के लिए अपना ब्लाग खुला रखा था। किसी बेनामी की टिप्पणी पर अपने विचार देने का मतलब ही होता है विवाद को बढ़ाना देना। बाकी सबकी अपनी-अपनी समझ है। हर किसी के लेखन के बारे में अपने-अपने विचार हो सकते हैं। जरूरी नहीं है कि हर किसी को हर किसी का लेखन पसंद आए।
राजकुमार जी ,
कभी आपसे भेंट होगी तो इस विषय में चर्चा करेंगे !
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