सोच बदलने से मिलेगी सफलता
भारतीय खिलाडिय़ों को विश्व कप बॉडी बिल्डिंग जैसी स्पर्धा में सफलता पाने के लिए अपनी सोच बदलनी होगी। जो खिलाड़ी एक बार भारतश्री का खिताब जीत लेते हैं उनको राष्ट्रीय खिताब जीतने के बाद इसका मोह छोड़कर विश्व कप जैसी स्पर्धाओं की तैयारी करने के लिए कम से कम दो साल का समय देना होगा।
ये बातें अंतरराष्ट्रीय निर्णायक और भारतीय टीम के कोच संजय शर्मा ने कहीं। जर्मनी में हुए वाबा विश्व कप में भारतीय टीम के कोच के रूप में शामिल होकर वहां से लौटने के बाद उन्होंने बताया कि विश्व कप में भारतीय खिलाडिय़ों को सफलता न मिलने का एक सबसे कारण यह है कि अपने खिलाड़ी एक ही स्पर्धा पर ध्यान नहीं लगा पाते हैं। बकौल श्री शर्मा विदेशी खिलाड़ी राष्ट्रीय चैंपियन बनने के बाद अपना सारा ध्यान विश्व कप में लगा देते हैं। विश्व कप की तिथि तय रहती है। ऐसे में इस स्पर्धा से पहले विदेशी खिलाडिय़ों को इसी स्तर की कुछ स्पर्धाओं में खेलने का मौका मिल जाता है, लेकिन भारतीय खिलाडिय़ों को नहीं मिल पाता है। श्री शर्मा ने पूछने पर बताया कि भारत के बालाकृष्ण जूनियर वर्ग के मिस्टर यूनिवर्स में पांचवें स्थान पर रहे। छत्तीसगढ़ के पी. सालोमन को स्पर्धा में अपने वर्ग में ८वां स्थान मिला। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भारतीय खिलाडिय़ों को सोच बदलने से ही सफलता मिलेगी।
एक बार भारतश्री का खिताब जीतने के बाद खिलाडिय़ों को इस खिताब का मोह छोड़कर विश्व कप जैसी स्पर्धा के लिए दो साल तैयारी करनी पड़ेगी। ऐसा करने से ही सफलता मिलेगी। उन्होंने माना कि भारतीय खिलाडिय़ों को विदेशी खिलाडिय़ों की तरह विश्व स्तर की स्पर्धाओं में शामिल होने का मौका नहीं मिल पाता है। पिछले साल पहली बार यूरोपियन कप में भारतीय टीम खेली। संजय शर्मा ने बताया कि वे स्पर्धा में जूरी में शामिल थे। श्री शर्मा ऐसे पहले भारतीय निर्णायक है जिनको एशिया पेसिपिक इंडो-पाक चैंपियनशिप, यूरोपियन कप और विश्व कप में निर्णायको की जूरी में शामिल होने का मौका मिला है।
ये बातें अंतरराष्ट्रीय निर्णायक और भारतीय टीम के कोच संजय शर्मा ने कहीं। जर्मनी में हुए वाबा विश्व कप में भारतीय टीम के कोच के रूप में शामिल होकर वहां से लौटने के बाद उन्होंने बताया कि विश्व कप में भारतीय खिलाडिय़ों को सफलता न मिलने का एक सबसे कारण यह है कि अपने खिलाड़ी एक ही स्पर्धा पर ध्यान नहीं लगा पाते हैं। बकौल श्री शर्मा विदेशी खिलाड़ी राष्ट्रीय चैंपियन बनने के बाद अपना सारा ध्यान विश्व कप में लगा देते हैं। विश्व कप की तिथि तय रहती है। ऐसे में इस स्पर्धा से पहले विदेशी खिलाडिय़ों को इसी स्तर की कुछ स्पर्धाओं में खेलने का मौका मिल जाता है, लेकिन भारतीय खिलाडिय़ों को नहीं मिल पाता है। श्री शर्मा ने पूछने पर बताया कि भारत के बालाकृष्ण जूनियर वर्ग के मिस्टर यूनिवर्स में पांचवें स्थान पर रहे। छत्तीसगढ़ के पी. सालोमन को स्पर्धा में अपने वर्ग में ८वां स्थान मिला। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भारतीय खिलाडिय़ों को सोच बदलने से ही सफलता मिलेगी।
एक बार भारतश्री का खिताब जीतने के बाद खिलाडिय़ों को इस खिताब का मोह छोड़कर विश्व कप जैसी स्पर्धा के लिए दो साल तैयारी करनी पड़ेगी। ऐसा करने से ही सफलता मिलेगी। उन्होंने माना कि भारतीय खिलाडिय़ों को विदेशी खिलाडिय़ों की तरह विश्व स्तर की स्पर्धाओं में शामिल होने का मौका नहीं मिल पाता है। पिछले साल पहली बार यूरोपियन कप में भारतीय टीम खेली। संजय शर्मा ने बताया कि वे स्पर्धा में जूरी में शामिल थे। श्री शर्मा ऐसे पहले भारतीय निर्णायक है जिनको एशिया पेसिपिक इंडो-पाक चैंपियनशिप, यूरोपियन कप और विश्व कप में निर्णायको की जूरी में शामिल होने का मौका मिला है।
2 टिप्पणियाँ:
जिस दिन कोई भी खिलाडी या कलाकार अपनी उपलब्धि से संतुष्ट हो गया, वहीं से उसका पराभव शुरु हो जाता है।
बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - विजय दिवस पर विशेष - सोच बदलने से मिलेगी सफलता,चीन भारत के लिये कितना अपनापन रखता है इस विषय पर ब्लाग जगत मौन रहा - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
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