पत्रिका की ये कैसी पत्रकारिता
अपने राज्य के बिलासपुर में दैनिक भास्कर के एक पत्रकार साथी सुशील पाठक की हत्या हो गई। इस खबर को राज्य के हर अखबार से प्रमुखता से प्रकाशित किया, लेकिन हाल ही में रायपुर से प्रारंभ हुए राजस्थान पत्रिका के पत्रिका संस्करण ने यह बता दिया कि वास्तव में इस अखबार में पत्रकारिता की कितनी घटिया मानसिकता है। इस अखबार में इस खबर को एक युवक की हत्या बता कर छापा गया। कारण यह कि भास्कर पत्रिका का प्रतिद्वंदी है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यह कैसी प्रतिद्वंदिता है जिसके चक्कर में अखबार पत्रकारिता का मूल धर्म भुल गया है। वैसे यह बात भी ठीक है कि आज हर अखबार इतना ज्यादा पेशेवर हो गया है कि उससे किसी भी पत्रकारिता धर्म के निभाने की बात करना बेमानी है, लेकिन अपनी कौम के एक इंसान की हत्या के बाद इस तरह का कृत्य वास्तव में बहुत ज्यादा निदंनीय है। पत्रिका की इस करतूत की चौतरफा आलोचना हो रही है, लेकिन कहीं कुछ कोई लिखने की हिम्मत नहीं कर रहा है। ऐसे में हमने सोचा कि कम से कम अपने ब्लाग में तो जरूर कुछ लिखा जा सकता है।
कल की ही बात है हमारे एक पत्रकार साथी ने बताया कि भईया पत्रिका ने तो सुशील पाठक की हत्या की खबर को एक युवक की हत्या बताते हुए प्रकाशित किया था। हमें यह सुनकर अफसोस हुआ कि पत्रिका में ये कैसी पत्रकारिता हो रही है। हमने वहां काम करने वाले अपने कुछ मित्रों से कहा भी कि अबे तुम लोगों को शर्म नहीं आती है, ऐसे अखबार में काम करते हुए जिस अखबार में हमारे एक पत्रकार साथी कि हत्या की खबर के साथ विकृत मानसिकता का खेल खेला जाता है। भले भास्कर से पत्रिका की प्रतिद्वंदिता है, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि एक पत्रकार की हत्या को दरकिनार कर दिया जाए। बेशक पत्रिका वाले भास्कर का नाम न लिखते, लेकिन इतना तो लिख ही सकते थे कि बिलासपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या। लेकिन नहीं ऐसा लिखना भी पत्रिका को गंवारा नहीं हुआ।
पत्रिका की इस हरकत से मालूम होता है कि वास्तव में अपनी पत्रकारिता का कितना पतन हो चुका है जो अखबार पत्रकारों के साथ खिलवाड़ कर सकता है, उससे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह आम जनता के लिए लड़ेेगा। जब पत्रिका रायपुर आया था तो बड़ी-बड़ी बातें की गई थीं कि हम रायपुर को ठीक कर देंगे रायपुर की आवाज उठाएंगे। अरे अपनी कौम के एक साथी की हत्या की खबर छापने का दम नहीं दिखा पाए किसी को क्या खाक इंसाफ दिलाएंगे। बातें करना बहुत आसान होता है, उन पर अमल करना कठिन। इतना ही सच्चाई का साथ देने का वास्तव में दम होता तो भास्कर से प्रतिद्वंदिता होने के बाद भी भास्कर के पत्रकार सुशील पाठक की हत्या शीर्षक से खबर प्रकाशित करते तो जरूर पत्रिका की वाहवाही होती और कहा जाता कि वास्तव में पत्रिका सच्चाई के साथ है। लेकिन अब तो पोल खुल गई है।
वैसे हम इस बात का दावा कभी नहीं कर सकते हैं कि कोई भी अखबार पूरी तरह से सच्चाई के साथ होता है, हर अखबार के अपने व्यावसायिक स्वार्थ होते हैं, लेकिन ये स्वार्थ खबरों पर बहुत ज्यादा हावी नहीं होने चाहिए। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि स्वार्थ खबरों पर बहुत ज्यादा हावी हो जाते हैं। हम उन सभी अखबारों का नमन करते हैं जिन्होंने सुशील पाठक की हत्या को प्रमुखता से प्रकाशित किया। हमें कम से कम इस बात का गर्व है हमारे अखबार दैनिक हरिभूमि ने जरूर अपना पत्रकारिता धर्म निभाया और पाठक जी की हत्या की खबर को प्रमुखता से पहले पेज पर प्रकाशित किया और उसमें लिखा भी गया के वे भास्कर के पत्रकार थे। वैसे हम बता दें कि एक मामले में हरिभूमि की हम जरूर तारीफ करेंगे कि दूसरे अखबारों के कार्यक्रमों को भी हमारे अखबार में स्थान मिलता है, लेकिन ऐसा दूसरे अखबार नहीं करते हैं, जबकि किसी भी सार्वजानिक कार्यक्रम की हर खबर को प्रकाशित करना चाहिए फिर चाहे उस कार्यक्रम को करवाने वाला कोई अखबार ही क्यों न हो।
कल की ही बात है हमारे एक पत्रकार साथी ने बताया कि भईया पत्रिका ने तो सुशील पाठक की हत्या की खबर को एक युवक की हत्या बताते हुए प्रकाशित किया था। हमें यह सुनकर अफसोस हुआ कि पत्रिका में ये कैसी पत्रकारिता हो रही है। हमने वहां काम करने वाले अपने कुछ मित्रों से कहा भी कि अबे तुम लोगों को शर्म नहीं आती है, ऐसे अखबार में काम करते हुए जिस अखबार में हमारे एक पत्रकार साथी कि हत्या की खबर के साथ विकृत मानसिकता का खेल खेला जाता है। भले भास्कर से पत्रिका की प्रतिद्वंदिता है, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि एक पत्रकार की हत्या को दरकिनार कर दिया जाए। बेशक पत्रिका वाले भास्कर का नाम न लिखते, लेकिन इतना तो लिख ही सकते थे कि बिलासपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या। लेकिन नहीं ऐसा लिखना भी पत्रिका को गंवारा नहीं हुआ।
पत्रिका की इस हरकत से मालूम होता है कि वास्तव में अपनी पत्रकारिता का कितना पतन हो चुका है जो अखबार पत्रकारों के साथ खिलवाड़ कर सकता है, उससे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह आम जनता के लिए लड़ेेगा। जब पत्रिका रायपुर आया था तो बड़ी-बड़ी बातें की गई थीं कि हम रायपुर को ठीक कर देंगे रायपुर की आवाज उठाएंगे। अरे अपनी कौम के एक साथी की हत्या की खबर छापने का दम नहीं दिखा पाए किसी को क्या खाक इंसाफ दिलाएंगे। बातें करना बहुत आसान होता है, उन पर अमल करना कठिन। इतना ही सच्चाई का साथ देने का वास्तव में दम होता तो भास्कर से प्रतिद्वंदिता होने के बाद भी भास्कर के पत्रकार सुशील पाठक की हत्या शीर्षक से खबर प्रकाशित करते तो जरूर पत्रिका की वाहवाही होती और कहा जाता कि वास्तव में पत्रिका सच्चाई के साथ है। लेकिन अब तो पोल खुल गई है।
वैसे हम इस बात का दावा कभी नहीं कर सकते हैं कि कोई भी अखबार पूरी तरह से सच्चाई के साथ होता है, हर अखबार के अपने व्यावसायिक स्वार्थ होते हैं, लेकिन ये स्वार्थ खबरों पर बहुत ज्यादा हावी नहीं होने चाहिए। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि स्वार्थ खबरों पर बहुत ज्यादा हावी हो जाते हैं। हम उन सभी अखबारों का नमन करते हैं जिन्होंने सुशील पाठक की हत्या को प्रमुखता से प्रकाशित किया। हमें कम से कम इस बात का गर्व है हमारे अखबार दैनिक हरिभूमि ने जरूर अपना पत्रकारिता धर्म निभाया और पाठक जी की हत्या की खबर को प्रमुखता से पहले पेज पर प्रकाशित किया और उसमें लिखा भी गया के वे भास्कर के पत्रकार थे। वैसे हम बता दें कि एक मामले में हरिभूमि की हम जरूर तारीफ करेंगे कि दूसरे अखबारों के कार्यक्रमों को भी हमारे अखबार में स्थान मिलता है, लेकिन ऐसा दूसरे अखबार नहीं करते हैं, जबकि किसी भी सार्वजानिक कार्यक्रम की हर खबर को प्रकाशित करना चाहिए फिर चाहे उस कार्यक्रम को करवाने वाला कोई अखबार ही क्यों न हो।
2 टिप्पणियाँ:
घोर निंदनीय है।
प्रतिद्वंदिता ने संवेदनाहीन बना दिया है।
... patrakaaritaa ko patrakaar hi sharmsaar karne men mast hain ... jay ho !!!
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