अखबार में लेखकों के पते होने पर प्रतिक्रिया आती है
हमारी एक पोस्ट एक पोस्ट के 10 लाख से ज्यादा पाठक में एक ब्लागर मित्र ने सवाल उठाया कि अखबार में प्रकाशित लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं आती है, जबकि ब्लाग में तुरंत प्रतिक्रिया सामने आती है। लेकिन ऐसा नहीं है। आज अखबारों में जहां पत्रकारों की विशेष खबरों के साथ उनके ई-मेल और मोबाइल नंबर दिए जाने लगे हैं, वहीं लेखकों के भी ई-मेल पते दिए जाते हैं। ऐसे में उन लेखकों को प्रतिक्रियाएं जरूरी मिलती हैं। इसी के साथ पत्रकरों को भी उनकी अच्छी खबरों पर प्रतिक्रिया मिलती है।
ब्लागर मित्र शहनवाज ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि अखबार में छपे लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं मिल पाती है। लेकिन आज का जमाना हाईटेक हो गया है, ऐसे में जबकि अखबारों में लेखक अपने लेख ई-मेल से भेजने लगे हैं, तो अखबारों में भी लेखकों के लेख ई-मेल के साथ प्रकाशित होने लगे हैं। देश के कई बड़े अखबार अब अपने पत्रकारों की खबरों को उनके ई-मेल और मोबाइल नंबर के साथ प्रकाशित करने लगे हैं। इससे फायदा यह होता है कि अगर पत्रकार की खबर अच्छी है तो उसे शाबासी मिलती है, अगर खबर पसंद नहीं आती है तो पत्रकारों को गालियां भी मिलती हैं। पत्रकार तो इन बातों के आदी हो जाते हैं। ब्लाग जगत में भी अच्छी पोस्ट के लिए शाबासी और पसंद न आने वाली पोस्ट के लिए गालियां मिलती हैं।
बहरहाल हमारा मानना है कि जो भी लेखक अखबारों में लिखते हैं उनको उन अखबारों से आग्रह करना चाहिए कि कम से कम उनके ई-मेल पते जरूर प्रकाशित करें इससे उनको अपने लेख पर प्रतिक्रिया जरूर मिलेगी। कई अखबार लेखकों के पते भी प्रकाशित करते हैं। हमें याद हैं जब हम बरसों पहले राजस्थान पत्रिका में लिखते थे तो उसमें हमारे लेखों के साथ हमारा पता भी प्रकाशित होता था, वह जमाना ई-मेल का नहीं था। ऐसे में हमारे अच्छे लेखों के लिए बहुत पत्र आते थे। कई बार तो दुबई से भी पत्र आए। ऐसा नहीं है कि अखबारों में प्रकाशित लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं आती है। पाठकों को अपनी प्रतिक्रिया देने का साधन मिल जाए तो वे जरूर प्रतिक्रिया भेजते हैं। कई पर अखबारों के पत्र कालम में कई लेखों की सराहना वाले पत्र भी प्रकाशित होते हैं।
अविनाश वाचस्पति जी ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यानी इसका मतलब है कि हमारे लेख कम से कम पांच लाख पाठक पढ़ते होंगे। अगर आपका लेख वास्तव में अच्छा है तो उसको पांच नहीं पचास लाख पाठक मिलेंगे, औैर यह फिलहाल तो अखबार में ही संभव है। हमने अपनी पोस्ट के बारे में इसलिए लिखा था कि क्योंकि वह पोस्ट नहीं बल्कि एक ऐसी खबर थी जो सिर्फ और सिर्फ हमारे पास थी। ऐसी खबरों को हर पाठक पढऩा पसंद करता है जो खबर अच्छी हो और किसी विशेष अखबार में हो।
ब्लागर मित्र शहनवाज ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि अखबार में छपे लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं मिल पाती है। लेकिन आज का जमाना हाईटेक हो गया है, ऐसे में जबकि अखबारों में लेखक अपने लेख ई-मेल से भेजने लगे हैं, तो अखबारों में भी लेखकों के लेख ई-मेल के साथ प्रकाशित होने लगे हैं। देश के कई बड़े अखबार अब अपने पत्रकारों की खबरों को उनके ई-मेल और मोबाइल नंबर के साथ प्रकाशित करने लगे हैं। इससे फायदा यह होता है कि अगर पत्रकार की खबर अच्छी है तो उसे शाबासी मिलती है, अगर खबर पसंद नहीं आती है तो पत्रकारों को गालियां भी मिलती हैं। पत्रकार तो इन बातों के आदी हो जाते हैं। ब्लाग जगत में भी अच्छी पोस्ट के लिए शाबासी और पसंद न आने वाली पोस्ट के लिए गालियां मिलती हैं।
बहरहाल हमारा मानना है कि जो भी लेखक अखबारों में लिखते हैं उनको उन अखबारों से आग्रह करना चाहिए कि कम से कम उनके ई-मेल पते जरूर प्रकाशित करें इससे उनको अपने लेख पर प्रतिक्रिया जरूर मिलेगी। कई अखबार लेखकों के पते भी प्रकाशित करते हैं। हमें याद हैं जब हम बरसों पहले राजस्थान पत्रिका में लिखते थे तो उसमें हमारे लेखों के साथ हमारा पता भी प्रकाशित होता था, वह जमाना ई-मेल का नहीं था। ऐसे में हमारे अच्छे लेखों के लिए बहुत पत्र आते थे। कई बार तो दुबई से भी पत्र आए। ऐसा नहीं है कि अखबारों में प्रकाशित लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं आती है। पाठकों को अपनी प्रतिक्रिया देने का साधन मिल जाए तो वे जरूर प्रतिक्रिया भेजते हैं। कई पर अखबारों के पत्र कालम में कई लेखों की सराहना वाले पत्र भी प्रकाशित होते हैं।
अविनाश वाचस्पति जी ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यानी इसका मतलब है कि हमारे लेख कम से कम पांच लाख पाठक पढ़ते होंगे। अगर आपका लेख वास्तव में अच्छा है तो उसको पांच नहीं पचास लाख पाठक मिलेंगे, औैर यह फिलहाल तो अखबार में ही संभव है। हमने अपनी पोस्ट के बारे में इसलिए लिखा था कि क्योंकि वह पोस्ट नहीं बल्कि एक ऐसी खबर थी जो सिर्फ और सिर्फ हमारे पास थी। ऐसी खबरों को हर पाठक पढऩा पसंद करता है जो खबर अच्छी हो और किसी विशेष अखबार में हो।
4 टिप्पणियाँ:
... baat men dam hai ... saarthak post !!!
सही कह रहे हैं …………सहमत हूँ।
सही कहा।
जितने लोग अखबार पढ़ते हैं उतनों को पहले ब्लाग पढ़ने तो दो भाई...कमेंट भी मार देंगे लोग
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