एस्ट्रो टर्फ होने से ही मिलेगी दूसरी सबा
छत्तीसगढ़ को दूसरी क्या तीसरी और चौथी सबा भी मिल सकती है, लेकिन इसके लिए प्रदेश में सबसे पहले एस्ट्रो टर्फ लगाना होगा। अपने राज्य में एक नहीं बल्कि कई खिलाड़ियों में प्रतिभा है, लेकिन उनकी प्रतिभा का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। जिस दिन राज्य में एक भी एस्ट्रो टर्फ हो गया उस दिन यह पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी की सबा अंजुम के बाद दूसरी सबा कौन।
ये बातें यहां पर प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सबा अंजुम ने कहीं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव, दुर्ग और रायपुर में एक नहीं कई सबा हैं, लेकिन यह अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि अपने पास एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं है। घोषणाएं तो मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय से हुर्इं हैं, लेकिन दस साल में खिलाड़ियों को एक भी एस्ट्रो टर्फ नसीब नहीं हुआ है। अभी यह बात सुनने को मिल रही है कि राजधानी में एस्ट्रो टर्फ लगने वाला है। यह खिलाड़ियों के लिए अच्छी बात है कि एस्ट्रो टर्फ लगाने की पहल हो रही है। सबा कहती हैं कि आज छत्तीसगढ़ की खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय तो बहुत दूर की बात है राष्ट्रीय स्तर पर सफलता के लिए एस्ट्रो टर्फ में खेलना जरूरी है।
पूछने पर सबा कहती हैं कि मैं तो छत्तीसगढ़ लौटने के लिए कब से बेताब हूं। मैं पिछले दो साल से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से कह रही हूं कि मुझे यहां नौकरी दे दी जाए तो मैं यहां आकर अपने राज्य के खिलाड़ियों के साथ अपने वे सारे अनुभव बांटने का काम करूं जो मैंने दस साल के अंतरराष्ट्रीय खेल जीवन में सीखे हैं। सबा कहती हैं कि मैं प्रदेश की तरूणाई को प्रशिक्षण देने तैयार हूं।
पासपोर्ट क्या है नहीं जानती थी
वह अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताती हैं कि जब मैंने खेलना प्रारंभ किया था तब मुझे यह मालूम नहीं था कि भारत से बाहर खेलने जाने पर पासपोर्ट की जरूरत पड़ती है। वह बताती हैं कि जब उनको पहली बार भारतीय टीम में स्थान मिला था तो उनके परिवार को पासपोर्ट बनाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। किसी भी तरह से पैसों का इंतजाम करके मेरी अम्मी ने पासपोर्स बनवाया तब जाकर मैं भारतीय टीम से खेली। अगर मेरे परिवार ने साथ नहीं दिया होता तो आज मैं उस मुकाम पर नहीं पहुंचती जहां पहुंची हूं। आज अगर मैं भारतीय टीम की कप्तान बनी हूं तो यह मेरे परिवार वालों के साथ मेरे शुभचिंतकों की दुवाओं का असर है।
नजरें ओलंपिक क्वालीफाइंग परसबा पूछने पर कहती हैं कप्तान बनने के बाद टीम के प्रदर्शन से संतुष्ट हूं। अब यह बात अलग है कि हमारी टीम खिताब नहीं जीत सकी है, लेकिन टीम का प्रदर्शन ठीक है। अब हमारी टीम की नजरें भारत में ही होने वाले ओलंपिक क्वालीफाइंग पर है। वह कहती हैं कि यह कहना कठिन है कि टीम क्या कर पाएगी। 4-5 टीमों में एक टीम को मौका मिलना है। अभी तो हमें यह भी मालूम नहीं है कि हमारी टीम किस पूल में है। सबा कहती हैं कि हर टीम जीतने के लिए खेलती है और हम भी जीतने के लिए खेलते हैं। हॉकी में अंतिम एक सैकेंड में पासा पलट जाता है। कई मैचों में सीटी बजने से ठीक पहले गोल हो जाता है, नतीजा मैच किसी और के खाते में चला जाता है।
आदिवासी खिलाड़ियों में प्रतिभा है
सबा पूछने पर कहती हैं कि इसमें कोई मत नहीं है कि प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र बस्तर, सरगुजा, कोरिया, जशपुर में हॉकी की प्रतिभाओं की कमी नहीं है। इन खिलाड़ियों को बस तराशने की जरूरत है। अगर इनको सही मार्गदर्शन और प्रशिक्षण मिल जाए तो ये खिलाड़ी आसानी से भारतीय टीम में स्थान बना सकती हैं। वह कहती हैं कि छत्तीसगढ़ में साई सेंटर खुल गया है तो अब प्रदेश की प्रतिभाओं को मौका मिलेगा। प्रेस से मिलिए कार्यक्रम के अंत में सबा अंजुम का नागरिक संघर्ष समिति के साथ शेरा क्लब ने भी सम्मान किया।
ये बातें यहां पर प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सबा अंजुम ने कहीं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव, दुर्ग और रायपुर में एक नहीं कई सबा हैं, लेकिन यह अपने राज्य का दुर्भाग्य है कि अपने पास एक भी एस्ट्रो टर्फ नहीं है। घोषणाएं तो मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय से हुर्इं हैं, लेकिन दस साल में खिलाड़ियों को एक भी एस्ट्रो टर्फ नसीब नहीं हुआ है। अभी यह बात सुनने को मिल रही है कि राजधानी में एस्ट्रो टर्फ लगने वाला है। यह खिलाड़ियों के लिए अच्छी बात है कि एस्ट्रो टर्फ लगाने की पहल हो रही है। सबा कहती हैं कि आज छत्तीसगढ़ की खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय तो बहुत दूर की बात है राष्ट्रीय स्तर पर सफलता के लिए एस्ट्रो टर्फ में खेलना जरूरी है।
पूछने पर सबा कहती हैं कि मैं तो छत्तीसगढ़ लौटने के लिए कब से बेताब हूं। मैं पिछले दो साल से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से कह रही हूं कि मुझे यहां नौकरी दे दी जाए तो मैं यहां आकर अपने राज्य के खिलाड़ियों के साथ अपने वे सारे अनुभव बांटने का काम करूं जो मैंने दस साल के अंतरराष्ट्रीय खेल जीवन में सीखे हैं। सबा कहती हैं कि मैं प्रदेश की तरूणाई को प्रशिक्षण देने तैयार हूं।
पासपोर्ट क्या है नहीं जानती थी
वह अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताती हैं कि जब मैंने खेलना प्रारंभ किया था तब मुझे यह मालूम नहीं था कि भारत से बाहर खेलने जाने पर पासपोर्ट की जरूरत पड़ती है। वह बताती हैं कि जब उनको पहली बार भारतीय टीम में स्थान मिला था तो उनके परिवार को पासपोर्ट बनाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। किसी भी तरह से पैसों का इंतजाम करके मेरी अम्मी ने पासपोर्स बनवाया तब जाकर मैं भारतीय टीम से खेली। अगर मेरे परिवार ने साथ नहीं दिया होता तो आज मैं उस मुकाम पर नहीं पहुंचती जहां पहुंची हूं। आज अगर मैं भारतीय टीम की कप्तान बनी हूं तो यह मेरे परिवार वालों के साथ मेरे शुभचिंतकों की दुवाओं का असर है।
नजरें ओलंपिक क्वालीफाइंग परसबा पूछने पर कहती हैं कप्तान बनने के बाद टीम के प्रदर्शन से संतुष्ट हूं। अब यह बात अलग है कि हमारी टीम खिताब नहीं जीत सकी है, लेकिन टीम का प्रदर्शन ठीक है। अब हमारी टीम की नजरें भारत में ही होने वाले ओलंपिक क्वालीफाइंग पर है। वह कहती हैं कि यह कहना कठिन है कि टीम क्या कर पाएगी। 4-5 टीमों में एक टीम को मौका मिलना है। अभी तो हमें यह भी मालूम नहीं है कि हमारी टीम किस पूल में है। सबा कहती हैं कि हर टीम जीतने के लिए खेलती है और हम भी जीतने के लिए खेलते हैं। हॉकी में अंतिम एक सैकेंड में पासा पलट जाता है। कई मैचों में सीटी बजने से ठीक पहले गोल हो जाता है, नतीजा मैच किसी और के खाते में चला जाता है।
आदिवासी खिलाड़ियों में प्रतिभा है
सबा पूछने पर कहती हैं कि इसमें कोई मत नहीं है कि प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र बस्तर, सरगुजा, कोरिया, जशपुर में हॉकी की प्रतिभाओं की कमी नहीं है। इन खिलाड़ियों को बस तराशने की जरूरत है। अगर इनको सही मार्गदर्शन और प्रशिक्षण मिल जाए तो ये खिलाड़ी आसानी से भारतीय टीम में स्थान बना सकती हैं। वह कहती हैं कि छत्तीसगढ़ में साई सेंटर खुल गया है तो अब प्रदेश की प्रतिभाओं को मौका मिलेगा। प्रेस से मिलिए कार्यक्रम के अंत में सबा अंजुम का नागरिक संघर्ष समिति के साथ शेरा क्लब ने भी सम्मान किया।
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