रियायती शटल कॉक देने से निकलेंगे अच्छे खिलाड़ी
बैडमिंटन का खेल इतना ज्यादा महंगा है कि हर किसी के बस में इस खेल में आगे बढ़ना संभव नहीं है। एक माह में दस हजार रुपए से ज्यादा की शटल कॉक लग जाती है। इतनी राशि खर्च कर पाना अमीर घरों के बच्चों के लिए भी संभव नहीं होता है। सरकार चाहती हैं कि देश को साइना नेहवाल और गोपीचंद जैसे खिलाड़ी मिले तो उसे शटक कॉक ज्यादा से ज्यादा रियायती दर पर खिलाड़ियों को उपलब्ध कराना होगा।
यह सोचना है चार दशक से बैडमिंटन का प्रशिक्षण देने वाले साई के एनआईएस कोच शाहनवाज खान का। वे कहते हैं कि आज बैडमिंटन में शटक कॉक का एक डिब्बा सात सौ रुपए से कम का नहीं आता है। एक खिलाड़ी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने के लिए एक माह में 12 से 15 डिब्बों की दरकार होती है। अब सोचने वाली बात यह कि खिलाड़ी दस हजार रुपए की राशि हर माह कॉक खरीदने पर कैसे खर्च कर सकते हैं। होता यह है कि अक्सर खिलाड़ी ज्यादा अभ्यास नहीं करते हैं और वे आगे नहीं बढ़ पाते हैं। देश में साइना नेहवाल और गोपीचंद जैसे खिलाड़ियों को जो सफलता मिली है, उसका कारण यह है कि उनको अपने परिजनों का पूरा सहयोग मिला है। जिन खिलाड़ियों को परिजनों का ेसहयोग मिलता है, वे ही आगे बढ़ जाते हैं, बाकी पीछे रह जाते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि केन्द्र सरकार को खिलाड़ियों को शटल कॉक ज्यादा से ज्यादा कम कीमत में उपलब्ध कराना चाहिए। यह मान कर चलिए जिस दिन शटल कॉक की कीमत कम हो जाएगी, बैडमिंटन में भी ग्रामीण प्रतिभाएं आ कर धूम मचा देंगी।
शाहनवाज खान कहते हैं जहां तक हमारे जमाने के खेल की बात है तो उस समय स्ट्रोक प्ले पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था, आज खेल सिंथेटिक पर होने के कारण खेल तेज हो गया है। सिंथेटिक में थकान कम लगती है। उस समय के खिलाड़ियों में नंदू नाटेकर, सुरेश गोयल, शोभा मूर्ति और दिनेश खन्ना हुआ करते थे। अपने खेल जीवन के बारे में वे बताते हैं कि उनका पूरा परिवार बैडमिंटन से जुड़ा हुआ था। सबसे पहले बड़ी बहन सुरैया खान मप्र में राज्य चैंपियन बनीं। इसके बाद वे 68 में राज्य के चैंपियन बने। छोटी बहन रजिया खान भी इसी साल राज्य चैंपियन बनीं थीं। भाई और बहन ने 72 में संयुक्त विश्व विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। 69 में सेंट्रल इंडिया में एकल के साथ युगल खिताब भी जीतने वाले शाहनवाज खान ने 74 में एनआईएस का कोर्स किया और तब से लेकर आज तक लगातार खिलाड़ियों को तलाशने का काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि वे 93 तक भारतीय टीम के खिलाड़ियों को तराशने का काम करते रहे। 1988 में उनको भारतीय टीम लेकर रसिया जाने का मौका मिला। यहां खेली गई अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में दीपांकर भट्टाचार्य ने रजत और गौरव भाटिया ने कांस्य पदक जीता।
मप्र के बारे में शाहनवाज खान का मानना है कि वहां शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद खेलो का तेजी से विकास हुआ है। मप्र को अकादमियों का भी फायदा मिला है। वे सोचते हैं कि छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों के लिए यहां अकादमियां बनाने से फायदा हो सकता है। लेकिन उसके लिए यह नियम बनाना होगा कि इन अकादामियों में छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों को ही प्रवेश दिया जाएगा। वे कहते हैं कि चाहे बैडमिंटन हो या और कोई खेल, हर खेल में छत्तीसगढ़ में प्रतिभाओं की भरमार है। इन खिलाड़ियों को बस सुविधाओं के साथ कोचिंग दिलाने की जरूरत है।
शाहनवाज खान अपने परिवार के बारे में बताते हैं कि उनके दो बेटों और एक बेटी ने खेल को अपना जीवन नहीं बनाया। बड़ा बेटा शहरीयार खान एमबीए करके लंदन की एक कंपनी में काम रहे हैं। बेटी साजिया खान भी निकाह के बाद लंदन में हैं। छोटे बेटे शाहिल खान ने अभी मार्केटिंग में एमएससी किया है। शाहनवान खान की दिली तमन्ना है कि वे लंदन ओलंपिक में जाए। इसके पीछे दो कारण हैं। पहला खेलों से जुड़ाव के कारण वे खेलों के इस महाकुंभ के साक्षी बनना चाहते हैं और दूसरा यह कि उनके पुत्र और पुत्री लंदन में रहते हैं।
यह सोचना है चार दशक से बैडमिंटन का प्रशिक्षण देने वाले साई के एनआईएस कोच शाहनवाज खान का। वे कहते हैं कि आज बैडमिंटन में शटक कॉक का एक डिब्बा सात सौ रुपए से कम का नहीं आता है। एक खिलाड़ी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने के लिए एक माह में 12 से 15 डिब्बों की दरकार होती है। अब सोचने वाली बात यह कि खिलाड़ी दस हजार रुपए की राशि हर माह कॉक खरीदने पर कैसे खर्च कर सकते हैं। होता यह है कि अक्सर खिलाड़ी ज्यादा अभ्यास नहीं करते हैं और वे आगे नहीं बढ़ पाते हैं। देश में साइना नेहवाल और गोपीचंद जैसे खिलाड़ियों को जो सफलता मिली है, उसका कारण यह है कि उनको अपने परिजनों का पूरा सहयोग मिला है। जिन खिलाड़ियों को परिजनों का ेसहयोग मिलता है, वे ही आगे बढ़ जाते हैं, बाकी पीछे रह जाते हैं। मेरा ऐसा मानना है कि केन्द्र सरकार को खिलाड़ियों को शटल कॉक ज्यादा से ज्यादा कम कीमत में उपलब्ध कराना चाहिए। यह मान कर चलिए जिस दिन शटल कॉक की कीमत कम हो जाएगी, बैडमिंटन में भी ग्रामीण प्रतिभाएं आ कर धूम मचा देंगी।
शाहनवाज खान कहते हैं जहां तक हमारे जमाने के खेल की बात है तो उस समय स्ट्रोक प्ले पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था, आज खेल सिंथेटिक पर होने के कारण खेल तेज हो गया है। सिंथेटिक में थकान कम लगती है। उस समय के खिलाड़ियों में नंदू नाटेकर, सुरेश गोयल, शोभा मूर्ति और दिनेश खन्ना हुआ करते थे। अपने खेल जीवन के बारे में वे बताते हैं कि उनका पूरा परिवार बैडमिंटन से जुड़ा हुआ था। सबसे पहले बड़ी बहन सुरैया खान मप्र में राज्य चैंपियन बनीं। इसके बाद वे 68 में राज्य के चैंपियन बने। छोटी बहन रजिया खान भी इसी साल राज्य चैंपियन बनीं थीं। भाई और बहन ने 72 में संयुक्त विश्व विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। 69 में सेंट्रल इंडिया में एकल के साथ युगल खिताब भी जीतने वाले शाहनवाज खान ने 74 में एनआईएस का कोर्स किया और तब से लेकर आज तक लगातार खिलाड़ियों को तलाशने का काम कर रहे हैं। वे बताते हैं कि वे 93 तक भारतीय टीम के खिलाड़ियों को तराशने का काम करते रहे। 1988 में उनको भारतीय टीम लेकर रसिया जाने का मौका मिला। यहां खेली गई अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में दीपांकर भट्टाचार्य ने रजत और गौरव भाटिया ने कांस्य पदक जीता।
मप्र के बारे में शाहनवाज खान का मानना है कि वहां शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद खेलो का तेजी से विकास हुआ है। मप्र को अकादमियों का भी फायदा मिला है। वे सोचते हैं कि छत्तीसगढ़ में होने वाले 37वें राष्ट्रीय खेलों के लिए यहां अकादमियां बनाने से फायदा हो सकता है। लेकिन उसके लिए यह नियम बनाना होगा कि इन अकादामियों में छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों को ही प्रवेश दिया जाएगा। वे कहते हैं कि चाहे बैडमिंटन हो या और कोई खेल, हर खेल में छत्तीसगढ़ में प्रतिभाओं की भरमार है। इन खिलाड़ियों को बस सुविधाओं के साथ कोचिंग दिलाने की जरूरत है।
शाहनवाज खान अपने परिवार के बारे में बताते हैं कि उनके दो बेटों और एक बेटी ने खेल को अपना जीवन नहीं बनाया। बड़ा बेटा शहरीयार खान एमबीए करके लंदन की एक कंपनी में काम रहे हैं। बेटी साजिया खान भी निकाह के बाद लंदन में हैं। छोटे बेटे शाहिल खान ने अभी मार्केटिंग में एमएससी किया है। शाहनवान खान की दिली तमन्ना है कि वे लंदन ओलंपिक में जाए। इसके पीछे दो कारण हैं। पहला खेलों से जुड़ाव के कारण वे खेलों के इस महाकुंभ के साक्षी बनना चाहते हैं और दूसरा यह कि उनके पुत्र और पुत्री लंदन में रहते हैं।
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