शर्मनाक पत्रकारिता का दौर चल रहा है
काफी समय से हम देख रहे हैं कि अपने छत्तीसगढ़ में शर्मनाक पत्रकारिता का दौर चल रहा है। मीडिया में चल रही गला काट प्रतिस्पर्धा के चलते अब अखबार भी अपनी नैतिकता खोते जा रहे हैं। एक नया अखबार आता है और वह बाजार में छा जाने के लिए पत्रकारिता को ताक पर रख देता है। समझ में नहीं आता है कि आखिर आज पत्रकारिता किस दिशा में जा रही है।
काफी समय से सोचे रहे थे कि शर्मनाक पत्रकारिता पर लिखा जाए। अब समय मिला है तो लिखने बैठे हैं। सबसे पहले आपके मन में सवाल उठ सकता है कि किस तरह की शर्मनाक पत्रकारिता की बात हम कर रहे हैं। तो हम बता दें कि अपनी राजधानी में निकलने वाले कुछ अखबार बड़ी बेशर्मी से किसी दूसरे अखबार में पहले प्रकाशित होने वाली खबरों के बाद खबर प्रकाशित करते हैं और खबर पर कुछ भी होता है तो उसे बड़ी बेशर्मी से अपनी खबर का असर बताने से पीछे नहीं हटते हैं। हम यहां किसी अखबार का नाम नहीं लिखना चाहते हैं, लेकिन बता दें कि रायपुर से प्रकाशित होने वाले एक अखबार को हर खबर में हमारी खबर का असर बताने का रोग लगा हुआ है। पीएमटी का एक बड़ा मामला किसी और अखबार ने उठाया और वाह-वाही लूटने के लिए उसे भी अपनी खबर बता कर हमारी खबर का असर लिख दिया गया। हमारी कई खबरों के बाद इस अखबार में खबर प्रकाशित हुई और बड़ी बेशर्मी से लिख दिया गया हमारी खबर का असर। हद तो तब हो जाती है कि जब छह माह बाद होने वाली किसी कार्रवाई को भी हमारी खबर का असर बता दिया जाता है। यह किस तरह की खबर का असर है जो छह माह बाद होता है। अगर खबर में दम है तो असर होने में छह घंटे भी नहीं लगते हैं और कार्रवाई हो जाती है। न जाने यह अखबार हर खबर में हमारी खबर का असर लिखकर क्या जताना चाहता है।
काफी समय से सोचे रहे थे कि शर्मनाक पत्रकारिता पर लिखा जाए। अब समय मिला है तो लिखने बैठे हैं। सबसे पहले आपके मन में सवाल उठ सकता है कि किस तरह की शर्मनाक पत्रकारिता की बात हम कर रहे हैं। तो हम बता दें कि अपनी राजधानी में निकलने वाले कुछ अखबार बड़ी बेशर्मी से किसी दूसरे अखबार में पहले प्रकाशित होने वाली खबरों के बाद खबर प्रकाशित करते हैं और खबर पर कुछ भी होता है तो उसे बड़ी बेशर्मी से अपनी खबर का असर बताने से पीछे नहीं हटते हैं। हम यहां किसी अखबार का नाम नहीं लिखना चाहते हैं, लेकिन बता दें कि रायपुर से प्रकाशित होने वाले एक अखबार को हर खबर में हमारी खबर का असर बताने का रोग लगा हुआ है। पीएमटी का एक बड़ा मामला किसी और अखबार ने उठाया और वाह-वाही लूटने के लिए उसे भी अपनी खबर बता कर हमारी खबर का असर लिख दिया गया। हमारी कई खबरों के बाद इस अखबार में खबर प्रकाशित हुई और बड़ी बेशर्मी से लिख दिया गया हमारी खबर का असर। हद तो तब हो जाती है कि जब छह माह बाद होने वाली किसी कार्रवाई को भी हमारी खबर का असर बता दिया जाता है। यह किस तरह की खबर का असर है जो छह माह बाद होता है। अगर खबर में दम है तो असर होने में छह घंटे भी नहीं लगते हैं और कार्रवाई हो जाती है। न जाने यह अखबार हर खबर में हमारी खबर का असर लिखकर क्या जताना चाहता है।
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