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गुरुवार, जुलाई 14, 2011

साई की मदद से जाएंगे ओलंपिक में

अच्छे प्रशिक्षकों की कमी के कारण हमारे खेल में निखार नहीं पा रहा था। अब जबकि हम लोगों को साई सेंटर में प्रवेश मिल गया है तो हमारा ऐसा मानना है कि हम लोग अब मेहनत करके ओलंपिक तक पहुंच सकती हैं। पहले राष्ट्रीय स्तर पर सीनियर वर्ग में अपने राज्य के लिए स्वर्ण पदक जीतना है, इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश का नाम करना है।
ये बातें यहां पर  चर्चा करते हुए पैदल चाल की राष्ट्रीय एथलीटों कृतिका साहू और ममता कलमे ने कहीं। इन्होंने बताया कि साई सेंटर में आने से पहले दोनों भिलाई के डे-बोर्डिंग में एथलेटिक्स के गुर सीख रही थीं। इन्होंने बताया कि अच्छे प्रशिक्षक की कमी हमें हमेशा खली है। अब हम लोग सोचती हैं कि साई में आ गई हैं तो यहां हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षक मिलेंगे जिनके मार्गदर्शन में हम लोग ओलंपिक में जाने का सपना पूरा कर सकेंगी।
पांच बार राष्ट्रीय स्पर्धा में खेली हैं कृतिका
कृतिका पूछने पर बताती हैं कि वह पांच बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेल चुकीं हैं और एक बार उनको जूनियर वर्ग में कांस्य पदक मिला है। वह बताती हंै कि 2009 में वारंगल में हुई राष्ट्रीय जूनियर चैंपियनशिप की तीन किलो मीटर पैदल चाल में उन्होंने कांस्य पदक जीता। महज तीन साल के अपने खेल जीवन में कृतिका एक बार राष्ट्रीय स्कूली चैंपियनशिप के साथ एक बार अंतर जोन और तीन बार ओपन वर्ग की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेल चुकी हैं। कृतिका कहती हैं कि उनका सपना ओलंपिक में अपने राज्य के लिए पदक जीतना है। कृतिका को यह मालूम नहीं है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को दो करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। इस बारे में जानकारी होने पर वह कहती हैं कि हम जैसी खिलाड़ियों को यह बात मालूम होगी तो हर खिलाड़ी जी-जान से मेहनत करके जरूर ओलंपिक में पदक जीतने का प्रयास करेंगी। कृतिका का कहना है कि वह अपने राज्य के मुख्यमंत्री का सपना जरूर साकार करेंगी और ओलंपिक में पदक जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। वह कहती हैं कि हम खिलाड़ी मेहनत करने से पीछे नहीं हटते हैं, हमें बस ओलंपिक तक पहुंचने वाली सुविधाएं मिलनी चाहिए। कृतिका को मालूम है कि ओलंपिक में 10 और 20 किलो मीटर की पैदल चाल स्पर्धा होती है। वह कहती हैं कि अब वह सीनियर वर्ग में आ गई हैं तो उनको पांच किलो मीटर की स्पर्धा में खेलना पड़ेगा।
पहले राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना है
ममता पूछने पर बताती हैं कि वह चार बार राष्ट्रीय स्पर्धाओं में तीन किलो मीटर पैदल चाल में भाग ले चुकी हैं। ममता के हाथ अब तक पदक तो नहीं लगा है लेकिन वह टॉप में छह में आती रहीं हैं। अब सबसे पहले वह राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना चाहती हैं इसके बाद आगे ओेलंपिक में खेलना उनका भी सपना है। ममता राज्य मैराथन में भी खेल चुकी हैं। जिला स्तर की मैराथन में उनको एक बार तीसरा स्थान भी मिल चुका है।
सिंथेटिक ट्रेक जरूरी
दोनों खिलाड़ियों को इस बात का मलाल है कि प्रदेश में एक भी सिंथेटिक ट्रेक नहीं है। यह कहती हंै कि सिंथेटिक में अभ्यास के बिना राष्ट्रीय स्तर पर सफलता का मिलना संभव नहीं है। इन्होंने बताया कि पैदल चाल की स्पर्धा भी सिंथेटिक पर होती है। इसका कहना है कि रोड़ में अभ्यास करके सिंथेटिक में खेलने से परेशानी होती है। सिंथेटिक में पैरों में दर्द होने लगता है। लेकिन उसमें लगातार अभ्यास करने से कोई परेशानी नहीं होती है। इन्होंने बताया कि भिलाई के डे-बोर्डिंग में सूर्या सेन और राष्ट्रीय खिलाड़ी अनिरूद्ध प्रशिक्षण देते थे।

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