एसपीओ नक्सली बन गए तो क्या होगा?
छत्तीसगढ़ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हजारों एसपीओ की जान आफत में फंसी गई है। इन एसपीओ पर मौत का खतरा मंडरा रहा है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जहां केन्द्र सरकार अपील करने के पक्ष में है, वहीं कांग्रेस के बड़बोले महासचिव दिग्विजय सिंह इस पक्ष में नहीं हैं। दिग्गी राजा सहित सभी को यह सोचना चाहिए कि जो एसपीओ नक्सलियों के खिलाफ खड़े थे, वहीं अगर मौत के डर से नक्सली बन गए तो क्या होगा?
बस्तर के हजारों एसपीओ सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद सीधी तरह से मौत के दरवाजे पर पहुंच गए हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार को जरूर इनसे सहानुभूति है और सरकार एसपीओ को पुलिस में लेने की प्रक्रिया पर भी अमल कर रही है, लेकिन यहां सोचने वाली बात यह है कि क्या सरकार सभी एसपीओ को पुलिस में भर्ती कर पाएगी। ऐसा संभव नहीं लगता है। सरकार का प्रयास है तो सराहनीय, लेकिन जब तक सरकार का प्रयास सफल होगा, तब तक इन एसपीओ का क्या होगा? एसपीओ तो आज की तारीख में नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इनके हथियार मुक्त होने के बाद अब नक्सलियों के लिए इनको मौत के घाट उतारना आसान हो गया है। ऐसे में जबकि एसपीओ के सामने मौत खड़ी है तो अगर वे इस मौत के डर से नक्सली बनने तैयार हो जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा।
इतना तय है कि अगर एसपीओ नक्सली बन जाते हैं तो नक्सल समस्या और ज्यादा विकराल हो जाएगी। एसपीओ के पास भी पुलिस विभाग की बहुत सारी जानकारियां हैं। अगर ये जानकारियां नक्सलियों को मिल गईं तो पुलिस वालों के लिए भी खतरा बढ़ जाएगा। वैसे तो पहले से ही नक्सलियों के लोग पुलिस में शामिल हैं, ऊपर से एसपीओ उनके साथ हो गए तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि पुलिस वालों का क्या होगा। बस्तर में अगर नक्सली पुलिस वालों की मार-काट मचा दें तो आश्चर्य नहीं होगा।
वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला देने से पहले एक बार भी नहीं सोचा कि उसके फैसले से कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट को कम से कम फैसला देने से पहले राज्य सरकार को मौका देना था कि वह एसपीओ के लिए कुछ व्यवस्था कर दे।
बस्तर के हजारों एसपीओ सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद सीधी तरह से मौत के दरवाजे पर पहुंच गए हैं कहा जाए तो गलत नहीं होगा। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार को जरूर इनसे सहानुभूति है और सरकार एसपीओ को पुलिस में लेने की प्रक्रिया पर भी अमल कर रही है, लेकिन यहां सोचने वाली बात यह है कि क्या सरकार सभी एसपीओ को पुलिस में भर्ती कर पाएगी। ऐसा संभव नहीं लगता है। सरकार का प्रयास है तो सराहनीय, लेकिन जब तक सरकार का प्रयास सफल होगा, तब तक इन एसपीओ का क्या होगा? एसपीओ तो आज की तारीख में नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इनके हथियार मुक्त होने के बाद अब नक्सलियों के लिए इनको मौत के घाट उतारना आसान हो गया है। ऐसे में जबकि एसपीओ के सामने मौत खड़ी है तो अगर वे इस मौत के डर से नक्सली बनने तैयार हो जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा।
इतना तय है कि अगर एसपीओ नक्सली बन जाते हैं तो नक्सल समस्या और ज्यादा विकराल हो जाएगी। एसपीओ के पास भी पुलिस विभाग की बहुत सारी जानकारियां हैं। अगर ये जानकारियां नक्सलियों को मिल गईं तो पुलिस वालों के लिए भी खतरा बढ़ जाएगा। वैसे तो पहले से ही नक्सलियों के लोग पुलिस में शामिल हैं, ऊपर से एसपीओ उनके साथ हो गए तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि पुलिस वालों का क्या होगा। बस्तर में अगर नक्सली पुलिस वालों की मार-काट मचा दें तो आश्चर्य नहीं होगा।
वास्तव में यह सोचने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला देने से पहले एक बार भी नहीं सोचा कि उसके फैसले से कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट को कम से कम फैसला देने से पहले राज्य सरकार को मौका देना था कि वह एसपीओ के लिए कुछ व्यवस्था कर दे।
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