खिलाड़ियों की डोपिंग के लिए साई दोषी नहीं
साई सेंटर में खिलाड़ी अगर डोपिंग में पकड़े जाते हैं तो इसके लिए साई कदापि दोषी नहीं होता है। किसी भी सेंटर में खिलाड़ियों को प्रवेश से पहले उनसे शपथपत्र लिया जाता है। खिलाड़ियों को कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह के बिना न लेने कहा जाता है, इसके बाद भी कोई खिलाड़ी अगर अपनी मर्जी से दवाएं लेता है तो इसमें साई और सेंटर के प्रशिक्षक क्या कर सकते हैं।
ये बातें यहां पर राजधानी के साई सेंटर के प्रभारी शाहनवाज खान ने कहीं। वे कहते हैं कि भारतीय खेल प्राधिकरण के हमारे रायपुर सेंटर में भी जितने खिलाड़ियों को प्रवेश दिया गया है, उनसे डग्स न लेने का शपथपत्र लिया गया है। इस शपथपत्र पर प्रशिक्षक के भी हस्ताक्षर होते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे सेंटर के किसी भी खिलाड़ी को बीमार होने की स्थिति में बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा लेने की मनाही है। उन्होंने बताया कि हम खिलाड़ियों को डॉक्टरों के पास भेजते हैं। एक खिलाड़ी के लिए साल में साई से 300 रुपए की राशि मिलती है जो पर्याप्त होती है। ज्यादातर खिलाड़ी बीमार होते नहीं हैं।
प्रशिक्षण शिविरों में होती है जांच
श्री खान ने बताया कि नाडा की टीम साई से उन सेंटर में जाकर जांच करती है जहां पर भारतीय टीम का प्रशिक्षण शिविर लगता है। भोपाल में तीन खेलों का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है, इसलिए नाडा की टीम वहां जांच करने गई थी। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। वैसे नाडा की टीम साई के हर सेंटर में साल में एक बार जाती है और कुछ खिलाड़ियों के पेशाब और खून के नमूने लेकर उनको जांच के लिए भेज देती है। श्री खान कहते हैं कि डोपिंग का टेस्ट इतना महंगा होता है कि सेंटर के हर खिलाड़ी की जांच संभव नहीं होती है। नाडा की टीम के सदस्य ही तय करते हैं कि किन खिलाड़ियों का सैंपल लेना है। उन्होंने बताया कि भारत अभी दो साल से ही डोपिंग टेस्ट सेंटर प्रारंभ हुआ है, इसके पहले सैंपल लेकर आस्ट्रेलिया और सिंगापुर भेजना पड़ता था। वे पूछने पर कहते हैं कि रायपुर के सेंटर में भी नाडा की टीम कभी भी आ सकती है।
ये बातें यहां पर राजधानी के साई सेंटर के प्रभारी शाहनवाज खान ने कहीं। वे कहते हैं कि भारतीय खेल प्राधिकरण के हमारे रायपुर सेंटर में भी जितने खिलाड़ियों को प्रवेश दिया गया है, उनसे डग्स न लेने का शपथपत्र लिया गया है। इस शपथपत्र पर प्रशिक्षक के भी हस्ताक्षर होते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे सेंटर के किसी भी खिलाड़ी को बीमार होने की स्थिति में बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा लेने की मनाही है। उन्होंने बताया कि हम खिलाड़ियों को डॉक्टरों के पास भेजते हैं। एक खिलाड़ी के लिए साल में साई से 300 रुपए की राशि मिलती है जो पर्याप्त होती है। ज्यादातर खिलाड़ी बीमार होते नहीं हैं।
प्रशिक्षण शिविरों में होती है जांच
श्री खान ने बताया कि नाडा की टीम साई से उन सेंटर में जाकर जांच करती है जहां पर भारतीय टीम का प्रशिक्षण शिविर लगता है। भोपाल में तीन खेलों का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है, इसलिए नाडा की टीम वहां जांच करने गई थी। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। वैसे नाडा की टीम साई के हर सेंटर में साल में एक बार जाती है और कुछ खिलाड़ियों के पेशाब और खून के नमूने लेकर उनको जांच के लिए भेज देती है। श्री खान कहते हैं कि डोपिंग का टेस्ट इतना महंगा होता है कि सेंटर के हर खिलाड़ी की जांच संभव नहीं होती है। नाडा की टीम के सदस्य ही तय करते हैं कि किन खिलाड़ियों का सैंपल लेना है। उन्होंने बताया कि भारत अभी दो साल से ही डोपिंग टेस्ट सेंटर प्रारंभ हुआ है, इसके पहले सैंपल लेकर आस्ट्रेलिया और सिंगापुर भेजना पड़ता था। वे पूछने पर कहते हैं कि रायपुर के सेंटर में भी नाडा की टीम कभी भी आ सकती है।
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