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शुक्रवार, दिसंबर 31, 2010

अलविदा दोस्तों अब मैं वापस नहीं आऊंगा..

अलविदा दोस्तों
अब मैं वापस जा रहा हूं
अब मैं कभी भी आपकी जिंदगी में लौटकर नहीं आऊंगा
मैं हमेशा-हमेशा के लिए आप सबसे विदा चाहता हूं
अब मेरे पास सिर्फ और सिर्फ एक दिन का समय है
इसके बाद मैं आपसे जुदा हो जाऊंगा
वैसे मैं जानता हूं
आप मुझे कभी भूल नहीं पाएँगे
क्योंकि आपके साथ बहुत सी खट्टी-मिट्ठी यादें जुड़ी हैं
जाना तो मैं नहीं चाहता लेकिन क्या करूं मजबूर हूं
अब मैं किसी भी कीमत में रूक नहीं सकता हूं
आपका और मेरा बस इतना ही साथ था
तो चलते हैं अलविदा
अब फिर कभी नहीं मिलेंगे






आपका अपना
2010




सभी ब्लागर मित्रों से आने वाले नए साल की अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं

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गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

इंजतार खत्म, अब मिलेगी नौकरी

प्रदेश सरकार के उत्कृष्ट खिलाड़ियों का एक साल का लंबा इंतजार अब खत्म हो जाएगा। सरकार ने इन खिलाड़ियों के भर्ती नियम जारी करते हुए इसका राजपत्र में प्रकाशन कर दिया है। राजपत्र में प्रकाशन  न होने के कारण ही खिलाड़ियों को नौकरी नहीं मिल पा रही थी।
प्रदेश के खेल विभाग ने पिछले साल राज्य के 70 खिलाड़ियों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया था। इन सभी खिलाड़ियों को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रमाणपत्र भी दिए थे। प्रमाणपत्र मिलने के बाद खिलाड़ियों को लगा था कि उनको अब जल्द नौकरी मिल जाएगी। लेकिन खिलाड़ियों को लंबे समय तक इंतजार करने के बाद भी जब नौकरी नहीं मिली तो खिलाड़ियों ेने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ खेलमंत्री लता उसेंडी के भी दरबार में कई बार गुहार लगाई। इतना होने के बाद भी जब खिलाड़ियों को नौकरी नहीं मिली तो कई खिलाड़ियों ने अपने प्रमाणपत्र वापस करने का मन बना लिया था।  इस संबंध में खेलमंत्री लता उसेंडी से भी लगातार बात की। खेलमंत्री लता उसेंडी ने सामान्य प्रशासन से बात करके खिलाड़ियों के भर्ती नियम तो जारी करवा दिए थे, लेकिन इन नियमों का प्रकाशन राजपत्र में न होने के कारण खिलाड़ियों को नौकरी मिलने में परेशानी हो रही थी। लेकिन अब राज्य सरकार ने भर्ती नियमों का प्रकाशन सात दिसंबर को राजपत्र में कर दिया है। 
राजपत्र में जारी अधिसूचना के अनुसार  'छत्तीसगढ़ राज्य शासकीय सेवा में उत्कृष्ट खिलाड़ी भर्र्ती नियम- 2010' छत्तीसगढ़ उत्कृष्ट खिलाड़ियों को शासकीय सेवा में नियुक्ति करने की नीति 2007 से शासित होंगे। ये नियम राजपत्र में इनके प्रकाशन की तारीख से मान्य होंगे। राज्य शासन के अंतर्गत तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों पर उत्कृष्ट खिलाड़ियों की नियुक्ति के लिए जिला स्तर पर विभाग के जिला प्रमुख, संभाग स्तर पर संभागीय अधिकारी अथवा विभागाध्यक्ष तथा शासन स्तर पर संबंधित विभाग के सचिव नियुक्ति प्राधिकारी होंगे। पात्र उत्कृष्ट खिलाड़ी रिक्त पदों की उपलब्धता के आधार पर, नियुक्ति प्राधिकारी को उस विशिष्ट रिक्त पद के लिए आवेदन प्रस्तुत करेंगे, जिसके साथ शैक्षणिक योग्यता एवं अन्य संबंधित प्रमाण-पत्रों की छायाप्रति संलग्न करनी होगी तथा उसकी एक प्रति आयुक्त खेल एवं युवा कल्याण विभाग को भी अग्रेषित करेंगे। यदि आवेदित पद अभिलेख के अनुसार रिक्त है तो आरक्षण रोस्टर नियम का कठोरता से पालन करते हुए उसके आवेदन की छानबीन करने के बाद रिक्त पद के विरूध्द उत्कृष्ट खिलाड़ी को नियुक्ति आदेश जारी किया जाएगा।
    उत्कृष्ट खिलाड़ी भर्र्ती नियम के अनुसार छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के माध्यम से भरे जाने वाले तृतीय श्रेणी (कायर्पालिक) के पदों के लिए उत्कृष्ट खिलाड़ी संबंधित विभाग के विभागाध्यक्ष को अपना आवेदन प्रस्तुत करेंगे तथा उसकी प्रति आयुक्त खेल एवं युवा कल्याण विभाग को भी देनी होगी। उक्त पद के लिए आवेदक के योग्य होने की दशा में नियुक्त प्राधिकारी राज्य लोक सेवा आयोग से जांच और लिखित अनुमति प्राप्त करने के बाद संबंधित उत्कृष्ट खिलाड़ी के लिए नियुक्ति आदेश जारी कर सकेंगे। जारी नियम के अनुसार ऐसे उत्कृष्ट खिलाड़ी जिन्होंने ओलम्पिक, एशियाड, कामनवेल्थ, एशियन चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में पदक प्राप्त किया है। वे राज्य शासन की सेवा में पुलिस विभाग, (होमगार्ड सहित)वनविभाग, जेल विभाग, वाणिज्यि कर विभाग के अंतर्गत आबकारी विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा विभाग, अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, खेल एवं युवा कल्याण विभाग में द्वितीय श्रेणी के पदों के लिए अपना आवेदन विभागीय सचिव को प्रस्तुत करेंगे। विभाग द्वारा नियमानुसार उत्कृष्ट खिलाड़ियों को विभिन्न पदों पर नियुक्ति रिक्त पदों की उपलब्धता के अनुसार दी जाएगी। उत्कृष्ट खिलाड़ियों की नियुक्ति के लिए पात्रता वही होगी जो छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियम 1961 में निर्धारित है।  राज्य शासकीय सेवा में नियुक्ति के लिए आवेदक  को छत्तीसगढ़ राज्य का निवासी होना अनिवार्य है।
खिलाड़ियों में खुशी की लहर
राज्य शासन द्वारा भर्ती नियम लागू किए जाने के बाद खिलाड़ियों में खुशी की लहर है। बास्केबॉल की खिलाड़ी इशरत जहां, हैंडबॉल खिलाड़ी साइमा अंजुम, इशरत अंजुम, नेटबॉल खिलाड़ी भावना खंडारे, मुक्केबाजी के आर. राजू, भारोत्तोलन के रुस्तम सारंग सहित कई खिलाड़ियों ने एक स्वर में कहा कि खिलाड़ियों को नौकरी मिलने से राज्य में खेलों का तेजी से विकास होगा।

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बुधवार, दिसंबर 29, 2010

डोला सहित एक दर्जन तीरंदाज आएंगे

राजधानी रायपुर में पहली बार हो रही अंतर रेलवे तीरंदाजी में खेलने के लिए अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज डोला बैनर्जी सहित एक दर्जन से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज आएंगे। यहां पर तीन जनवरी से मुकाबले होंगे।
रायपुर रेलवे मंडल के क्रीड़ा अधिकारी आरके सिंह ने बताया कि रेलवे में पहली बार तीरंदाजी की अंतर रेलवे स्पर्धा का आयोजन करने का फैसला रेलवे बोर्ड ने किया और इसकी मेजबानी दक्षिण पूर्व मध्यम रेलवे को दी गई है। यह स्पर्धा रायपुर के डब्ल्यूआरएस के मैदान में तीन जनवरी से आयोजित होगी। पांच जनवरी तक चलने वाली स्पर्धा में देश के 30 नामी  खिलाड़ी आएंगे। इन खिलाड़ियों में एक दर्जन से ज्यादा खिलाड़ी अंतररराष्ट्रीय हैं। इन खिलाड़ियों में अर्जुन पुरस्कार प्राप्त डोला बैनर्जी जिनके नाम विश्व कप में स्वर्ण पदक जीतने के साथ कामनवेल्थ में टीम खेलों में स्वर्ण जीतने का रिकॉर्ड है, उनके साथ मंगल चाम्पिया इनको भी अर्जुन पुरस्कार मिला है। मंगल ने 2008 और 09 के विश्व कप में तीन-तीन स्वर्ण पदक जीते हैं। इसी के साथ वे ओलंपिक में भी खेले हैं। एशियाड में उनके नाम एक स्वर्ण और एक टीम वर्ग में रजत पदक है। इन खिलाड़ियों के साथ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बोमबायला देवी, रीना कुमारी, सुषमा, और राहुल बैनजी ईस्टन रेलवे से खेलने आएंगे। राजू और प्रभात सीएलडब्ल्यू से, प्रतिमा एनएफ रेलवे से खेलेंगी। मेजबान दक्षिण पूर्व मध्यम रेलवे से साकरो बेसरा, नमिता यादव, पल्टन हसदा और मंजुथा सोय खेलेंगे। ये सभी खिलाड़ी भी अंतरराष्चट्रीय स्तर पर खेल कर पदक जीत चुके हैँ।
श्री सिंह ने बताया कि स्पर्धा में रेलवे के पांच जोन  दक्षिण पूर्व मध्यम रेलवे, पूर्व रेलवे, उत्तर सीमांत रेलवे, दक्षिण मध्यम रेलवे और सीएलडब्ल्यू के करीब 30 खिलाड़ी खेलने  आएंगे। स्पर्धा में पहले दिन 3 जनवरी को अभ्यास सत्र होगा। चार और पांच जनवरी को मुकाबले होंगे। सभी मुकाबले रायपुर रेलवे के डब्ल्यबआरएस के मैदान में होंगे। स्पर्धा में रिकर्ब और कंपाऊंड वर्ग के ही मुकाबले होंगे। यही मुकाबले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होते हैं। एक सवाल के जवाब में श्री सिंह ने कहा कि रायपुर मंडल में तीरंदाजी की अकादमी बनाने का प्रस्ताव रेलवे होर्ड को भेजा जाएगा। उन्होंने बताया कि रायपुर मंडल में खेलों की सुविधाएं बढ़ाने के लिए एक स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का निर्माण किया जाना है। इसकी लागत करीब पांच करोड़ होगी। उन्होंने बताया कि स्पर्धा के लिए भारतीय तीरंदाजी संघ से तीन निर्णायक विशेष रूप से आ रहे हैं।
लिम्बाराम  विशेष रूप से आएंगे
श्री सिंह ने बताया कि स्पर्धा में विशेष रूप से पूर्व ओलंपियन और भारतीय टीम के कोच लिम्बाराम को बुलाया गया है।  उन्होंने पूछने पर कहा कि छत्तीसगढ़ के तीरंदाज कोदूराम को बुलाने का प्रयास किया जा रहा है। गोदूराम शब्द भेदी बाण चलाने में माहिर हैं। एक बार यहां जब राष्ट्रीय स्पर्धा में उन्होंने अपने जौहर दिखाए थे, तो उनके सामने लिम्बाराम नतमस्तक हो गए थे।

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सोमवार, दिसंबर 27, 2010

15 दिन भी नहीं चले ट्रेक शूट

राज्य खेल महोत्सव के लिए रायपुर जिले के खिलाड़ियों को दिए गए ट्रेक शूट इतने ज्यादा निम्न स्तर के हैं कि वे 15 दिन भी नहीं चल सके और दम तोड़ने लगे हैं। ट्रेक शूट के साथ दी गई निकर और जर्सी का भी यही हाल है।
राज्य खेल महोत्सव में रायपुर जिले के खिलाड़ियों को दिए गए ट्रेक शूट को लेकर खिलाड़ियो में बहुत नाराजगी है। ये ट्रेक शूट इतने ज्यादा निम्न स्तर के हैं कि अभी राज्य खेल महोत्सव के आयोजन को 15 दिन भी नहीं हुए हैं और ये ट्रेक शूट फटने लग गए हैं। कुछ खेलों के खिलाड़ियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एक तो ये ट्रेक शूट जिस दिन गए थे, उसी दिन इसकी शिकायत क्वालिटी को लेकर राजधानी के वरिष्ठ खेल अधिकारी राजेन्द्र डेकाटे से की गई थी। जिस दिन ट्रेक शूट दिए गए थे, उसी दिन इसकी सिलाई और कपड़े को देखकर समझ में आ गया था कि यह काफी घटिया क्वालिटी का है। लेकिन खिलाड़ियों के पास ट्रेक शूट लेने के अलावा कोई चारा नहीं था। ट्रेक शूट के साथ जो निकर और जर्सी दी गई है, उसकी क्वालिटी भी बहुत खराब है। इसका कपड़ा भी फटने लगा है।
उद्घाटन के दिन मिली थी किट
खिलाड़ियों का कहना है कि जब रायपुर में जोनल स्पर्धा का आयोजन किया गया तो खिलाड़ियों को ट्रेक शूट और किट नहीं दी गई। इसके पीछे तर्क दिया गया कि बारिश के कारण खराब मैदानों में खिलाड़ियों के खेलने से किट खराब हो जाएगी तो राज्य स्तरीय आयोजन में खिलाड़ी क्या पहनेंगे। खिलाड़ियों का अब कहना है कि वास्तव में किट के खराब होने के डर से नहीं बल्कि किट की क्वालिटी के खराब होने के काराण इसे उद्घाटन के दिन दिया गया ताकि खिलाड़ी कुछ न कर सकें। खिलाड़ियों का साफ कहना है कि उनको जो किट रायपुर के जिला खेल विभाग से मिली है, उससे  कहीं अच्छी किट फुटपाथ पर मिल जाती है। इस किट के लिए प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण विभाग से हर जिले को पांच सौ रुपए की राशि दी थी। खेल संघों से जुड़े पदाधिकारी कहते हैं कि अगर उनको पांच सौ रुपए दे दिए जाते तो इससे अच्छी किट हम लोग खिलाड़ियों को दे देते।
छुट्टी से आने पर बताऊंगा
इस मामले में जब जानकारी लेने राजधानी के वरिष्ठ खेलअधिकारी राजेन्द्र डेकाटे से बात की गई तो उन्होंने पहले तो यह कहा कि खेल संचालनालय से उनके विभाग को जो पांच सौ रुपए की राशि मिली थी, उसी राशि में जितनी अच्छी हो सकती थी हमने किट दी है। जब उनके पूछा गया कि कितने की किट दी गई है तो उन्होंने कहा कि अभी छुट्टी में हैं, छुट्टी से आने के बाद बताएंगे और उन्होंने फोन काट दिया।

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शनिवार, दिसंबर 25, 2010

मुख्यमंत्री का सपना साकार कर सकता हूं

अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक रुस्तम सारंग का कहना है कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का वह सपना सपना साकार कर सकते हैं जिसमें मुख्यमंत्री चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ का कोई खिलाड़ी ओलंपिक में पदक जीते। लेकिन इसके लिए मुङो जिन सुविधाओं की दरकार है, उसे उपलब्ध करवाना होगा। रुस्तम से हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत है।
० प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सपने को क्या आप साकार कर सकते हैं?
०० मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के सपने को मैं साकार तो कर सकता हूं, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि मुङो अंतरराष्ट्रीय स्तर की वो सुविधाएं मिल सकें जिससे मैं ओलंपिक तक जा सकूं।
० किस तरह की सुविधाओं की जरूरत होगी?
०० मेरा खेल चूंकि पावर गेम है, ऐसे में इस खेल के लिए पहली प्राथमिकता डाइट होती है। अब किसी खिलाड़ी से दाल-चावल में ओलंपिक का पदक जीतने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। अगर मुङो अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाडिय़ों जैसी डाइट और सुविधाएं मिलें तो मैं जरूर ओलंपिक तक जा सकता हूं।
० अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों की डाइट पर कितना खर्च आता है?
०० अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाडिय़ों के लिए कम से कम एक माह के लिए २५ से ३० हजार का खर्च लग जाता है।
० डाइट में क्या जरूरी होता है?
०० डाइट में जिस तरह की डाइट भारतीय खिलाड़ी लेते हैं उससे कुछ नहीं होता है। विदेशी डाइट में जिस तरह से खान-पान का उपयोग करते हैं, वह करना होगा।
० विदेशियों की डाइट के बारे में बताएं?
०० हमारे खिलाड़ी एक दिन में १० किलो दूध पीने का काम करते हैं, जबकि विदेशी १० किलो दूध की तुलना में उस दूध की तुलना में बनाया गया महज २०० ग्राम का पावडर लेकर दस किलो दूध के बराबर की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। इसी तरह से विदेशी खिलाडिय़ों को यह मालूम रहता है कि कितना कैलशियम और प्रोटीन उनको किससे मिल सकता है। उसके हिसाब से उनका खान-पान होता है। यह खान-पान बहुत महंगा होता है।
० डाइट के अलावा क्या जरूरी है?
०० प्रशिक्षण बहुत ज्यादा मायने रखता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण लेने से ही ओलंपिक का रास्ता मिलेगा। इसी के साथ ज्यादा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेलना जरूरी है।
० कुल मिलाकर कितना खर्च करना होगा?
०० एक साल के लिए कम से कम पांच लाख का खर्च करना होगा। अभी २०१२ ओलंपिक में दो साल का समय है, अगर दो साल के लिए छत्तीसगढ़ सरकार मुङो प्रायोजित करती है, तो जरूर मैं ओलंपिक के पदक तक पहुंच सकता हूं। एक बात और छत्तीसगढ़ सरकार अगर भारतीय भारोत्तोलन संघ को बताकर मेरी मदद करें तो ज्यादा अच्छा होगा।
० इससे क्या फायदा होगा?
०० इससे यह फायदा होगा कि जब भारतीय संघ को मालूम रहेगा कि मुङो छत्तीसगढ़ सरकार की मदद मिल रही है तो मुङो भारतीय संघ से बाहर खेलने जाने का मौका मिलेगा। बिना भारतीय संघ की मदद से कुछ संभव नहीं है। भारतीय संघ की मदद से ही मुङो भारतीय टीम के प्रशिक्षण शिविर में लगातार बने रहने का मौका मिलेगा।
० छत्तीसगढ़ के और किस खिलाड़ी में आपको संभावना दिखती है?
०० मेरा छोटा भाई अजय दीप सारंग भी ओलंपिक में जाने की क्षमता रखता है। वह मुङासे छोटा है और उसके पास मेरे से ज्यादा समय है। उसे अगर लंबे समय के लिए प्रदेश सरकार गोद ले ले तो वह राज्य का नाम ओलंपिक में कर सकता है।
० प्रदेश के खिलाडिय़ों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?
०० मेरा हमेशा से ऐसा मानना रहा है कि अपने राज्य और देश के लिए हर खिलाड़ी को ऐसा काम करना चाहिए जिससे उसे हमेशा याद रखा जाए।

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शुक्रवार, दिसंबर 24, 2010

पत्रिका की ये कैसी पत्रकारिता

अपने राज्य के बिलासपुर में दैनिक भास्कर के एक पत्रकार साथी सुशील पाठक की हत्या हो गई। इस खबर को राज्य के हर अखबार से प्रमुखता से प्रकाशित किया, लेकिन हाल ही में रायपुर से प्रारंभ हुए राजस्थान पत्रिका के पत्रिका संस्करण ने यह बता दिया कि वास्तव में इस अखबार में पत्रकारिता की कितनी घटिया मानसिकता है। इस अखबार में इस खबर को एक युवक की हत्या बता कर छापा गया। कारण यह कि भास्कर पत्रिका का प्रतिद्वंदी है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यह कैसी प्रतिद्वंदिता है जिसके चक्कर में अखबार पत्रकारिता का मूल धर्म भुल गया है। वैसे यह बात भी ठीक है कि आज हर अखबार इतना ज्यादा पेशेवर हो गया है कि उससे किसी भी पत्रकारिता धर्म के निभाने की बात करना बेमानी है, लेकिन अपनी कौम के एक इंसान की हत्या के बाद इस तरह का कृत्य वास्तव में बहुत ज्यादा निदंनीय है। पत्रिका की इस करतूत की चौतरफा आलोचना हो रही है, लेकिन कहीं कुछ कोई लिखने की हिम्मत नहीं कर रहा है। ऐसे में हमने सोचा कि कम से कम अपने ब्लाग में तो जरूर कुछ लिखा जा सकता है।
कल की ही बात है हमारे एक पत्रकार साथी ने बताया कि भईया पत्रिका ने तो सुशील पाठक की हत्या की खबर को एक युवक की हत्या बताते हुए प्रकाशित किया था। हमें यह सुनकर अफसोस हुआ कि पत्रिका में ये कैसी पत्रकारिता हो रही है। हमने वहां काम करने वाले अपने कुछ मित्रों से कहा भी कि अबे तुम लोगों को शर्म नहीं आती है, ऐसे अखबार में काम करते हुए जिस अखबार में हमारे एक पत्रकार साथी कि हत्या की खबर के साथ विकृत मानसिकता का खेल खेला जाता है। भले भास्कर से पत्रिका की प्रतिद्वंदिता है, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि एक पत्रकार की हत्या को दरकिनार कर दिया जाए। बेशक पत्रिका वाले भास्कर का नाम न लिखते, लेकिन इतना तो लिख ही सकते थे कि बिलासपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या। लेकिन नहीं  ऐसा लिखना भी पत्रिका को गंवारा नहीं हुआ।
पत्रिका की इस हरकत से मालूम होता है कि वास्तव में अपनी पत्रकारिता का कितना पतन हो चुका है जो अखबार पत्रकारों के साथ खिलवाड़ कर सकता है, उससे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह आम जनता के लिए लड़ेेगा। जब पत्रिका रायपुर आया था तो बड़ी-बड़ी बातें की गई थीं कि हम रायपुर को ठीक कर देंगे रायपुर की आवाज उठाएंगे। अरे अपनी कौम के एक साथी की हत्या की खबर छापने का दम नहीं दिखा पाए किसी को क्या खाक इंसाफ दिलाएंगे। बातें करना बहुत आसान होता है, उन पर अमल करना कठिन। इतना ही सच्चाई का साथ देने का वास्तव में दम होता तो भास्कर से प्रतिद्वंदिता होने के बाद भी भास्कर के पत्रकार सुशील पाठक की हत्या शीर्षक से खबर प्रकाशित करते तो जरूर पत्रिका की वाहवाही होती और कहा जाता कि वास्तव में पत्रिका सच्चाई के साथ है। लेकिन अब तो पोल खुल गई है।
वैसे हम इस बात का दावा कभी नहीं कर सकते हैं कि कोई भी अखबार पूरी तरह से सच्चाई के साथ होता है, हर अखबार के अपने व्यावसायिक स्वार्थ होते हैं, लेकिन ये स्वार्थ खबरों पर बहुत ज्यादा हावी नहीं होने चाहिए। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि स्वार्थ खबरों पर बहुत ज्यादा हावी हो जाते हैं। हम उन सभी अखबारों का नमन करते हैं जिन्होंने सुशील पाठक की हत्या को प्रमुखता से प्रकाशित किया। हमें कम से कम इस बात का गर्व है हमारे अखबार दैनिक हरिभूमि ने जरूर अपना पत्रकारिता धर्म निभाया और पाठक जी की हत्या की खबर को प्रमुखता से पहले पेज पर प्रकाशित किया और उसमें लिखा भी गया के वे भास्कर के पत्रकार थे। वैसे हम बता दें कि एक मामले में हरिभूमि की हम जरूर तारीफ करेंगे कि दूसरे अखबारों के कार्यक्रमों को भी हमारे अखबार में स्थान मिलता है, लेकिन ऐसा दूसरे अखबार नहीं करते हैं, जबकि किसी भी सार्वजानिक कार्यक्रम की हर खबर को प्रकाशित करना चाहिए फिर चाहे उस कार्यक्रम को करवाने वाला कोई अखबार ही क्यों न हो।

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गुरुवार, दिसंबर 23, 2010

खिलाडिय़ों के फायदेवाले नियम बनेंगे

प्रदेश का खेल विभाग भी मप्र का अनुशरण करते हुए खिलाडिय़ों को फायदा पहुंचाने वाले अनुदान नियम बनाने की तैयारी में है। अगर ये नियम प्रदेश में लागू हो जाते हैं तो खिलाडिय़ों पर पैसों की बारिश होने लगेगी। मप्र के नियमों का खेल विभाग लगातार अध्ययन कर रहा है। खेल विभाग का एक दल मप्र के दौरे पर भी जाएगा और वहां के नियमों के बारे में और बारिकी से जानकारी लेगा।
खेल विभाग प्रदेश के खिलाडिय़ों ज्यादा से ज्यादा सीधा पहुंचाने की कवायद में लगा है।  ऐसे में खेल संचालक जीपी सिंह ने मप्र से अनुदान नियमों की जानकारी मंगाई है। इन नियमों का अवलोकन करने से साफ मालूम होता है कि ये नियम पूरी तरह के खिलाडिय़ों को फायदा पहुंचाने वाले हैं। इन नियमों में खिलाडिय़ों पर पैसों की बारिश की गई है। मप्र के नियमों पर एक नजर डालने से मालूम होता है कि वहां के खिलाड़ी अगर राष्ट्रीय स्तर के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतते तो हैं उनको कितनी नकद राशि दी जाती है।
अंतरराष्ट्रीय पदक पर लाखों रुपए
मप्र के अनुदान नियमों में यह बात साफ है कि अगर कोई खिलाड़ी क्रिकेट सहित किसी भी अधिकृत खेल की विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतता है तो तीन लाख, रजत जीतता है तो दो लाख और कांस्य पदक जीतता है को एक लाख की नकद राशि दी जाती है। जूनियर और सब जूनियर विश्व कप में स्वर्ण विजेता को दो लाख, रजत विजेता को एक लाख और कांस्य विजेता को पचास हजार की राशि दी जाती है। इसी तरह से कामनवेल्थ खेलों में स्वर्ण विजेता को दो लाख, रजत विजेता को एक लाख पचास हजार और कांस्य विजेता को एक लाख की राशि दी जाती है। एफ्रो एशियन और सेफ के स्वर्ण विजेता को एक लाख, रजत विजेता को ७५ हजार और कांस्य विजेता को पचास हजार रुपए की राशि दी जाती है। जूनियर और सब जूनियर खिलाडिय़ों को स्वर्ण जीतने पर ७५ हजार, रजत जीतने पर ५० हजार और कांस्य जीतने पर ४० हजार की राशि दी जाती है। मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में सीनियर वर्ग में स्वर्ण विजेता को ५० हजार, रजत विजेता को ३० हजार और कांस्य विजेता को २० हजार की राशि दी जाती है। जूनियर वर्ग में स्वर्ण विजेता को ४० हजार, रजत विजेता को २५ हजार और कांस्य विजेता को १५ हजार की राशि मिलती है। राष्ट्रीय खेलों के स्वर्ण विजेता को दो लाख, रजत विजेता को एक लाख ६० हजार, कांस्य विजेता को एक लाख १२ हजार की राशि दी जाती है। टीम खेलों में स्वर्ण विजेता को एक लाख, रजत विजेता को ८० हजार और कांस्य विजेता को ६० हजार की राशि दी जाती है। अधिकृत राष्ट्रीय स्पर्धा में स्वर्ण विजेता को पांच हजार, रजत विजेता को तीन हजार और कांस्य विजेता को दो हजार, टीम खेलों में स्वर्ण विजेता  को तीन हजार, रजत विजेता को दो हजार और कांस्य विजेता को एक हजार की राशि देते हैं।

अच्छे नियमों का अनुशरण करेंगे:खेल संचालक
खेल संचालक जीपी सिंह का कहना है कि मप्र के नियमों का विभाग में अध्ययन चल रहा है। मप्र के नियम निश्चित ही अच्छे हैं, और अच्छे नियमों का अनुशरण करने में बुराई नहीं है। हमारा विभाग भी चाहता है खिलाडिय़ों को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो। उन्होंने बताया कि हमारे विभाग का एक दल जल्द ही मप्र जाएगा और देखेंगे कि वहां का खेल विभाग खिलाडिय़ों के फायदे के लिए  क्या-क्या काम कर रहा है।

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बुधवार, दिसंबर 22, 2010

सपनों की शहजादी

मेरी कल्पना में
मेरे सपनों की शहजादी
सुंदरता की ऐसी देवी
जो सौन्दर्य को भी लजा दे
गोरे मुखड़े पर उभरने वाली आभा
मानो शीशे पर
भास्कर का धीमा प्रकाश
साथ में
माथे पर चांद सी चमकती बिंदियां
नयन ऐसे
मानो मछलियां
अधर इतने मधुर
मानो कोमल गुलाब
की दो पंखुडियां
आपस में आलिंगन कर रही हों
काली कजरारी पलकें
अपनी तरफ आकर्षिक करती
बिखरी हुईं लटें
मानो घने काले बादल हों

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मंगलवार, दिसंबर 21, 2010

देश भर के वकील जुटेंगे राजधानी में

छत्तीसगढ़ की जमीं पर २२ दिसंबर से होने वाली वकील क्रिकेटरों की जंग में खेलने के लिए लंकाई चिते भी आएंगे। स्पर्धा में लंकाई वकीलों की टीम मुख्य आकर्षण होगी। यह टीम २१ दिसंबर की रात को राजधानी पहुंच जाएगी। स्पर्धा में २२ दिसंबर को उद्घाटन के बाद २३ दिसंबर से मुकाबले होंगे। उद्घाटन अवसर पर बालीवुड की गायिका प्रियंका को बुलाया गया है। पहले दिन आधा दर्जन मैच खेले जाएंगे। समापन में चियर्स गल्र्स को बुलाया गया है। देश भर के वकीलों के मनोरंजन के लिए हर रात सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है।
यह जानकारी देते हुए आयोजन सचिव भूपेन्द्र जैन ने बताया कि स्पर्धा के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है। स्पर्धा में खेलने वाली टीमों का आगमन २१ दिसंबर से होने लगेगा। उन्होंने बताया कि स्पर्धा में यूं तो देश के नामी वकीलों की कई टीमें आ रही हैं, लेकिन श्रीलंका की टीम विशेष रूप से खेलने आ रही है। इस टीम में श्रीलंका का कोई स्टार खिलाड़ी भले नहीं है, लेकिन श्रीलंका के वकीलों का इस स्पर्धा में खेलने अपने आप में बड़ी उपलिब्ध है। उन्होंने बताया कि यह टीम २१ दिसंबर की रात को गरीब रथ से रात को ९ बजे आ जाएगी।
स्पर्धा में १४ टीमों में होगी जंग
स्पर्धा में मेजबान छत्तीसगढ़ की दो टीमों के साथ कुल १४ टीमें खेलेंगी। छत्तीसगढ़ की टीमों में एक टीम छत्तीसगढ़ के वकीलों की होगी जो कि सीएसीए के नाम से खेलेगी और दूसरी टीम बिलासपुर हाई कोर्ट की होगी जो टीम सीएसीएबी के नाम से खेलेगी। स्पर्धा की १४ टीमों को चार पूलों में बांटा गया है। ए पूल में इलाहाबाद, इंदौर, कर्नाटक, बी पूल में ग्वालियर, सुप्रीम कोर्ट, मुंबई, सी पूल में श्रीलंका, सीएसीए, जबलपुर, एपी, डी पूल में लखनऊ, औरंगाबाद, उड़ीसा और सीएसीएबी की टीमें रखी गई हैं। स्पर्धा में उद्घाटन के दिन कोई मैच नहीं होगा, लेकिन २३ दिसंबर से रोज छह मैच खेले जाएंगे। ये मैच अलग-अलग मैदानों में होंगे। २३ दिंसबर को होने वाले मैचों में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में इलाहाबाद और कर्नाटक, डब्ल्यूआरएस में ग्वालियर-मुंबई, राजकुमार कॉलेज में सीएसीए-श्रीलंका, सेक्टर एक भिलाई में जबलपुर और एपी, सेक्टर १० भिलाई में औरंगाबाद और सीएसीएबी, स्पोट्र्स कॉम्पलेक्स रायपुर में लखनऊ और उड़ीसा का मैच होंगे। सभी मैच ४०-४० ओवर के होंगे।
उद्घाटन में आएंगी गायिका प्रियंका 
स्पर्धा का आगाज २२ दिसंबर को सुबह ११ बजे अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में होगा। उद्घाटन कार्यक्रम के मुख्यअतिथि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मुकुंदकम शर्मा और श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्ष शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल करेंगे। इस अवसर पर हाईकोर्ट बिलासपुर के जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और मनीन्द श्रीवास्तव भी उपस्थित रहेंगे। उद्घाटन अवसर पर बॉलीवुड की गायिका प्रियंका को बुलाया गया है।
समापन में रहेंगी चियर्स गल्र्स
समापन के दिन २९ दिसंबर को आधा दर्जन चियर्स गल्र्स को बुलाया गया है। इसके बारे में भूपेन्द्र जैन ने बताया कि इन चियर्स गल्र्स में तीन अपने राज्य छत्तीसगढ़ की होंगी जो यहां की संस्कृति के अनुरूप परिधानों में रहेंगी। बाकी चीन चियर्स गल्र्स बंगाल से आएंगी जो बंगाली संस्कृति के अनुरुप परिधानों में रहेगी। चियर्स गल्र्स में किसी भी तरह का विदेशी पन नहीं  होगा।
हर रोज होंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम
श्री जैन ने बताया कि रोज होने वाले मैचों के बाद हर रोज रात को सांस्कृति कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके लिए अलग-अलग कलाकारों को बुलाया जा रहा है। २२ दिसंबर को जहां बॉलीवुड की गायिका प्रियंका का कार्यक्रम होगा, वहीं २३ दिसंबर के सुनहरी यादें नाम से आयोजित कार्यक्रम में नए-पुराने गानें छत्तीसगढ़ के कलाकार प्रस्तुत करेंगे। इसी तरह से हर दिन अलग-अलग कलाकार अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। ये सारे कार्यक्रम अलग-अलग स्थानों पर होंगे।

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रविवार, दिसंबर 19, 2010

रुस्तम सारंग भी कर सकते हैं छत्तीसगढ़ से पलायन

प्रदेश के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भारोत्तोलक रुस्तम सारंग भी अब प्रदेश से पलायन करने की तैयारी में हैं। काफी प्रयासों के बाद भी सीएएफ से जिला पुलिस में न लिए जाने के कारण अब उन्होंने बाहर से मिलने वाले ऑफरों की तरफ ध्यान देना प्रारंभ नहीं किया है। इतना होने के बाद भी वे कहते हैं कि मेरी पहली प्र्रथमिकता अपना राज्य है। अगर प्रदेश सरकार मुङो जिला पुलिस में नौकरी दे देती है, तो मैं अपना राज्य छोड़कर नहीं जाऊंगा। नौकरी न मिलने की स्थिति में राज्य से बाहर जाना मेरी मजबूरी होगी।
कामनवेल्थ से लेकर एशियाड में देश का परचम लहराने वाले प्रदेश के भारोत्तोलक रुस्तम सारंग का दर्द यह है कि उनके पिता विक्रम पुरस्कार प्राप्त बुधराम सारंग द्वारा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के भी दरबार में फरियाद करने के बाद रुस्तम को जिला पुलिस में नहीं लिया जा रहा है। बुधराम सारंग कहते हैं कि उनके पुत्र ने एक नहीं बल्कि पांच बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है और मलेशिया के कामनवेल्थ भारोत्तोलन के साथ सैफ खेलों में भी पदक जीता है। राष्ट्रीय स्तर पर वह लगातार पदक जीत रहा है, लेकिन इतना होने के बाद भी उसकी पदोन्नति नहीं हो रही है। रुस्तम को राज्य के तीन खेल पुरस्कार शहीद कौशल यादव, शहीद राजीव पांडे के साथ गुंडाधूर भी मिल चुका है। रुस्तम राज्य के उत्कृष्ट खिलाड़ी भी घोषित हो चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी उनको जिला पुलिस में नहीं लिया जा रहा है। श्री सारंग कहते हैं कि अगर सीएएफ से जिला पुलिस में लेने का प्रावधान नहीं है तो रुस्तम को सीधे जिला पुलिस में लिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि हरियाणा में मुक्केबाज दिनेश कुमार और जितेन्द्र कुमार को शैक्षणिक योग्यता कम होने के बाद भी डीएसपी बनाया गया है। श्री सारंग कहते हैं कि रुस्तम को जिला पुलिस में कम से कम सब इंस्पेक्टर तो लिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि राज्य के मुक्केबाजों आर. राजू और टी सुमन को राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धि पर पुलिस में हवलदार बनाया गया है तो रुस्तम की अंतरराष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियों को देखते हुए उनको क्यों कर सब इंस्पेक्टर बनाया जा सकता है।  रुस्तम सारंग ने पूछने पर बताया कि उनके पास बाहर से कई ऑफर हैं, लेकिन फिलहाल मैं किसी ऑफर पर ध्यान नहीं दे रहा हूं। उन्होंने कहा कि मेरी पहली प्राथमिकता अपना राज्य है, लेकिन जब मुङो लगेगा कि यहां कुछ नहीं हो सकता है तो जरूर मुङो मजबूरीवश बाहर का रूख करना पड़ेगा। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि प्रदेश सरकार में नौकरी न मिलने के कारण ही बास्केटबॉल, हैंडबॉल, हॉकी, कराते और कई खेलों के खिलाडिय़ों को छत्तीसगढ़ छोड़कर बाहर जाना पड़ा है। अगर रुस्तम की तरफ भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो एक और प्रतिभा से राज्य को हाथ धोना पड़ सकता है।

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शनिवार, दिसंबर 18, 2010

हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है

इंसानों की बस्ती में भी तंहा हैं हम
वो इसलिए की सबसे जुदा हैं हम
हमें सताते हैं सबके गम
हो जाती हैं हमारी आंखे नम
दुनिया में इतना दर्द देखा है
अपना दर्द बहुत कम लगता है
कहते हैं मर्द को दर्द नहीं होता है
लेकिन हमने ऐसा मर्द नहीं देखा है
जिसके दिल में दर्द न हो
ऐसा दिल भी हमने नहीं देखा है
न जाने क्यों दिल दिया है भगवान ने
हमने तो भगवान को बेदिल ही देखा है
भगवान के पास होता गर दिल
तो दिलों का हाल समझते
न फिर टूटता कोई दिल
और न होती किसी को मुश्किल

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शुक्रवार, दिसंबर 17, 2010

टिप्पणियों की कतरनें लिफाफे में, अली जी की भी टिप्पणी शामिल

हमारे नाम से एक लिफाफा आया है जिसमें किसी ब्लाग में की गई टिप्पणियों की कुछ कतरनें  हैं। हमें समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इन कतरनों को हमें भेजने का मतलब क्या है। लिफाफा हमारे प्रेस के पते से आया है। इससे एक बात तो साफ है कि यह उस इंसान का काम है जो यह बात अच्छी तरह से जानता है कि हम किस अखबार में काम करते हैं। पता नहीं क्यों कर ऐसा करने से लोगों को मजा आता है। जिसने भी ऐसा किया है, वह कोई बाहर का व्यक्ति नहीं बल्कि अपने शहर का ही है।
कल जब सुबह को प्रेस में नियमित मिटिंग के लिए गए तो हमारी टेलीफोन आपरेटर ने हमें बुलाकार एक लिफाफा दिया, उस लिफाफे को खोल कर देखा तो उसमें किसी ब्लाग में की गई तीन टिप्पियों की कतरनें थीं। एक टिप्पणी किसी बेनामी की थी, जो तीन दिसंबर की है, इसके बाद अपनी अली जी की एक टिप्पणी है जो 4 दिसंबर की है, इसमें अली जी ने बेनामी को संबोधित करते हुए लिखा है कि
भाई आज एक अजब इत्तेफाक हुआ आपकी टिप्पणी से लभभग एक घंटे पहले मैंने उनकी ताजातरीन पोस्ट देखी, मसला वही पुराना रोना, धोना एक कोफ्त से हुई ख्याल किया आज रिएक्ट नहीं करूंगा नहीं किया....
इसके बाद एक टिप्पणी और है।
अब ये तो अपने अली जी ही बता सकते हैं उन्होंने यह टिप्पणी किनके ब्लाग में की थी। उन्होंने जिनके भी ब्लाग में टिप्पणी की हो, लेकिन यह बात समझ से परे है कि टिप्पणियों की कतरनें  हमें भेजने का क्या मतलब है। जिसने भी ये काम किया है आखिर वह बताना क्या चाहता है। हमें तो लगता है कि जिसने भी हमें टिप्पणी वाली कतरनें भेजीं हैं, उनको मालूम है कि हम दैनिक हरिभूमि में पत्रकार हैं, उन्होंने हमारे प्रेस के पते पर ही लिफाफा भेजा है। एक बात हम और साफ कर दें कि जिस सज्जन ने यह काम किया है, वह कोई बाहर का नहीं बल्कि अपने शहर रायपुर का है। लिफाफे में रायपुर की ही शील लगी है। हमें कुछ-कुछ समझ आ रहा है कि यह काम किसका है। लेकिन उनके ऐसा करने के पीछे मानसिकता क्या है, इस बारे में हम सोच रहे हैं। जो भी मानसिकता होगी, वह अच्छी तो हो नहीं सकती है, अगर अच्छी मानसिकता होती तो ऐसा  इंसान जो हमें अच्छी तरह से जानता है, हमसे आमने-सामने बात करता।
बहरहाल हम फिलहाल अली जी से जानना चाहते हैं कि उन्होंने ऐसी टिप्पणी किस ब्लाग में की थी, ताकि हमें भी माजरा समझ में आए कि आखिर माजरा क्या है और इन टिप्पणियों से हमारा क्या सरोकार है।

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गुरुवार, दिसंबर 16, 2010

सोच बदलने से मिलेगी सफलता

भारतीय खिलाडिय़ों को विश्व कप बॉडी बिल्डिंग जैसी स्पर्धा में सफलता पाने के लिए अपनी सोच बदलनी होगी। जो खिलाड़ी एक बार भारतश्री का खिताब जीत लेते हैं उनको राष्ट्रीय खिताब जीतने के बाद इसका मोह छोड़कर विश्व कप जैसी स्पर्धाओं की तैयारी करने के लिए कम से कम दो साल का समय देना होगा।
ये बातें अंतरराष्ट्रीय निर्णायक और भारतीय टीम के कोच संजय शर्मा ने कहीं। जर्मनी में हुए वाबा विश्व कप में भारतीय टीम के कोच के रूप में शामिल होकर वहां से लौटने के बाद उन्होंने बताया कि विश्व कप में भारतीय खिलाडिय़ों को सफलता न मिलने का एक सबसे कारण यह है कि अपने खिलाड़ी एक ही स्पर्धा पर ध्यान नहीं लगा पाते हैं। बकौल श्री शर्मा विदेशी खिलाड़ी राष्ट्रीय चैंपियन बनने के बाद अपना सारा ध्यान विश्व कप में लगा देते हैं। विश्व कप की तिथि तय रहती है। ऐसे में इस स्पर्धा से पहले विदेशी खिलाडिय़ों को इसी स्तर की कुछ स्पर्धाओं में खेलने का मौका मिल जाता है, लेकिन भारतीय खिलाडिय़ों को नहीं मिल पाता है। श्री शर्मा ने पूछने पर बताया कि भारत के बालाकृष्ण जूनियर वर्ग के मिस्टर यूनिवर्स में पांचवें स्थान पर रहे। छत्तीसगढ़ के पी. सालोमन को स्पर्धा में अपने वर्ग में ८वां स्थान मिला। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि भारतीय खिलाडिय़ों को सोच बदलने से ही सफलता मिलेगी।
एक बार भारतश्री का खिताब जीतने के बाद खिलाडिय़ों को इस खिताब का मोह छोड़कर विश्व कप जैसी स्पर्धा के लिए दो साल तैयारी करनी पड़ेगी। ऐसा करने से ही सफलता मिलेगी। उन्होंने माना कि भारतीय खिलाडिय़ों को विदेशी खिलाडिय़ों की तरह विश्व स्तर की स्पर्धाओं में शामिल होने का मौका नहीं मिल पाता है। पिछले साल पहली बार यूरोपियन कप में भारतीय टीम खेली। संजय शर्मा ने बताया कि वे स्पर्धा में जूरी में शामिल थे। श्री शर्मा ऐसे पहले भारतीय निर्णायक है जिनको एशिया पेसिपिक इंडो-पाक चैंपियनशिप, यूरोपियन कप और विश्व कप में निर्णायको की जूरी में शामिल होने का मौका मिला है। 

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बुधवार, दिसंबर 15, 2010

विजेन्दर के साथ फोटो खींच गई और मालूम भी नहीं हुआ

दो दिन पहले की बात है, अपने राज्य की राजधानी में ओलंपियन मुक्केबाज विजेन्दर का आना हुआ। उनके साथ कुछ और मुक्केबाजों का यहां सम्मान समारोह था। समारोह के बाद जब हम और हमारे साथी पत्रकार उनसे बात करने बैठे तो हमें मालूम नहीं था कि हमारा फोटोग्राफर क्या कलाकारी कर रहा है। उसने विजेन्दर के साथ हमारे भी कई फोटो खींच लिए और हमें मालूम ही नहीं हुआ। वैसे अंत में हमारे साथी पत्रकार जब विजेन्दर के साथ फोटो खींचवाने लगे तो हमें भी बुलाया तो हम भी खड़े हो गए। बाद में हमारे फोटोग्राफर ने हमारे और विजेन्दर के फोटो दिखाकर हमें अचरज में डाल दिया। वैसे हम अपने पत्रकारिता जीवन में बिग बी अमिताभ बच्चन से लेकर कई फिल्म स्टारों और सचिन तेंदुलकर, कपिल देव से लेकर कई क्रिकेटरों और कई जानी-मानी हस्तियों से मिल चुके हैं, लेकिन कभी किसी के साथ फोटो खींचवाने की इच्छा नहीं हुई है।
जब हम विजेन्दर सिंह के साथ उनका साक्षात्कार लेने अपने साथी पत्रकारों के साथ होटल बेबीलोन में बैठे थे तो हमारे मन में कहीं भी यह ख्याल नहीं था कि हमें उनके साथ फोटो खींचवानी है। कारण यह कि हमने अपने पत्रकारिता जीवन के 20 सालों में कभी किसी स्टार के साथ फोटो खींचवाने का मोह नहीं किया। हमें अमिताभ बच्चन से लेकर सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, मो. अजहरूद्दीन, मनोज प्रभाकर, नयन मोंगिया, दिलीप वेंगसरकर से लेकर न जाने कितने स्टार क्रिकेटरों से मिलने का मौका मिला है, लेकिन कभी किसी के साथ हमने फोटो नहीं खींचवाई है। इसी के साथ और कई खेलों के स्टार खिलाडिय़ों से मिले हैं। फिल्म स्टारों से भी मिलने का मौका मिला है, लेकिन हमने कभी नहीं सोचा कि किसी के साथ फोटो खींचवाई जाए। ऐसे में विजेन्दर के साथ बात करते हुए भी मन में कोई ख्याल नहीं था। बाद में हमारे फोटाग्राफर रमन हलवाई ने बताया कि उन्होंने हमारे कुछ फोटो खींच ली हैं। उन तस्वीरों में से चंद तस्वीरें पेश हैं।

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मंगलवार, दिसंबर 14, 2010

शेर की खाल पहनने से कुत्ता शेरा नहीं हो जाता

एक कहावत है हाथी चले बाजार, कुत्ते भोंके हजार। यह कहावत पूरी तरह से उन नामाकुलों पर खरी उतरती है जो बिना वजह दूसरों के फटे में टांगे अड़ाने का काम करते हैं। न जाने क्यों कर अच्छे खासे ब्लाग जगत को गंदा करने के लिए कुत्तों की फौज खड़ी हो गई है। अब ये कुत्ते कितनी भी गंदगी करें और भोंके इससे क्या फर्क पड़ता है उन हाथियों को जो लेखन में मस्त रहते हैं। एक तरफ हमारे ब्लागर मित्र लेखन में मस्त हैं तो दूसरी तरफ उनसे जलने वाले इतने ज्यादा पस्त हैं कि वे अपनी भड़ास निकालने के लिए रोज नए-नए नामों से कुत्तागिरी करने आ जाते हैं ब्लागों में गंदगी फैलाने के लिए। लेकिन ऐसे कुत्तों से खबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भले कोई अपना नाम छत्तीसगढ़ शेर रख ले लेकिन यह सच्चाई है कि कोई शेर की खाल पहनने से शेर नहीं बन जाता है, कुत्ता को कुत्ता ही रहता है।
हम नहीं चाहते थे कि किसी भी तरह की असभ्य भाषा के साथ कुछ लिखे, लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि ऐसे लोग सभ्य भाषा को हम लोगों की कमजोरी समझ लेते हैं। ब्लाग में मॉडरेशन लगाने के बाद अब हमें थोड़ी सी राहत तो मिली है, लेकिन कुत्तागिरी करने वाले बाज नहीं आए हैं। हम जानते हैं कि ये बाज भी नहीं आएंगे। कहते हैं कि कुत्तों की एक खास आदत होती है, वे उसी खास आदत से ही अपने शरीर का पानी का छोड़ते हैं। अब उस आदत को अगर वे छोड़ दें तो उनको कुत्ता कौन कहेगा। कुत्ते तो कुत्तागिरी ही करेंगे, उनसे गांधीगिरी की उम्मीद कैसे की जा सकती है। अब कल की ही बात करें तो एक जनाब छत्तीसगढ़ शेर के नाम से हमारे ब्लाग में आए और अपनी गंदगी फैलाने के लिए छोड़ गए थे अपने गंदे शब्दों का कचरा। अब कोई कचरा छोड़ेगा तो उस कचरे का हश्र भी तो कचरा ही होगा, सो हमने भी उसे डाल दिया कचरा पेटी में।
अपने को शेर कहने का इतना ही दम है तो क्यों नहीं अपने असली नाम से सामने आते हैं ऐसे कुत्तेबाज। इस जनाब की कोई प्रोफाइल ही नहीं है। यानी एक और फर्जीबाज सामने आए हैं। खैरे ऐसे फर्जीबाजों की कुत्तागिरी से कुछ होने वाला नहीं है। न जाने क्यों ऐसे कुत्तेबाज ब्लाग जगत को गंदा करने के लिए आ जाते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जब भी किसी ब्लागर के लेखन की तारीफ होने लगती है तो ऐसे कुत्तेबाज आ जाते हैं, कुत्तागिरी करने। वैसे हम इतना जानते हैं कि हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन इसके बाद भी न जानें क्यें कर ऐसे लोगे हमारे पीछे पड़े रहते हैं। इसका तो हमें एक ही कारण नजर आता है कि हमने गुटबाजी से जबसे किनारा किया है, ऐसे कुत्तों की फौज हमारे पीछे पड़ गई है। लेकिन ऐसे कुत्तों से हमें निपटना अच्छी तरह से आता है। हम किसी की कुत्तागिरी से अपना काम छोडऩा वाले नहीं है। हमने जो काम प्रारंभ किया है, उसे जब तक संभव होगा जारी रखेंगे। काफी कम समय होने के बाद भी हम अपना काम कर रहे हैं और करते रहेंगे।

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सोमवार, दिसंबर 13, 2010

खिलाडिय़ों को पेशेवर बनाने की पहल हो

अंतरराष्ट्रीय हॉकी निर्णायक और पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी नीता डुमरे का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार का राज्य खेल महोत्सव का आयोजन एक अच्छी पहल है। लेकिन इस पहल के साथ सरकार को एक और पहल खिलाडियों को पेशेवर बनाने की करनी चाहिए। इस महोत्सव से ही इसकी शुरुआत करते हुए खिलाडिय़ों को नकद राशि देने की पहल भी करनी चाहिए। सरकार को एक और काम खिलाडिय़ों के भले के लिए यह करना चाहिए कि इनामी राशि भी ज्यादा दी जाए जिससे खिलाडिय़ों में प्रतिस्पर्धा ज्यादा हो। उनसे हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं।
० छत्तीसगढ़ राज्य खेल महोत्सव के बारे में आप क्या सोचती हैं?
०० प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की यह एक अच्छी पहल है। इस पहल से राज्य में खेलों का माहौल तो बन रहा है, पर इस माहौल को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए सरकार को और कुछ कदम उठाने चाहिए।
०कैसे कदम?
०० सबसे पहले तो सरकार को खिलाडिय़ों को पेशेवर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
० खिलाडिय़ों को पेशेवर बनाने क्या होना चाहिए?
०० खिलाडिय़ों को पेशेवर बनाने के लिए यह जरूरी है कि हर खेल के खिलाडिय़ों को खेल में पैसे मिलने चाहिए। राज्य खेल महोत्सव एक अच्छा अवसर है, इसका फायदा उठाते हुए इस महोत्सव में शामिल हर खिलाड़ी को सरकार को कुछ न कुछ नकद राशि जरूर देनी चाहिए। ऐसा करने से गांव-गांव तक यह बात जाएगी कि खेलने से पैसे मिलते हैं।
० इनामी राशि के बारे में आप क्या सोचती है?
०० मेरा ऐसा मानना है कि किसी भी खेल में जितनी ज्यादा इनामी राशि होती है, उसमें उतनी की प्रतिस्पर्धा होती है। मैंने देखा है कि खिलाडिय़ों में इनामी राशि जीतने की एक अलग ही ललक होती है। राज्य खेल महोत्सव की इनामी राशि पर्याप्त नहीं है। इतने बड़े आयोजन में महज एक हजार की राशि बहुत ही कम है।
० खिलाडिय़ों को दिए जाने वाले ट्रेक शूट के बारे में आप क्या सोचती है?
०० यह एक अच्छी पहल है। मुङो याद है कि जब हम लोग खेलते थे, तो एक ट्रेक शूट के लिए तरस जाते थे, आज तो एक-एक खिलाड़ी को एक नहीं कई ट्रेक शूट मिल जाते हैं। राज्य महोत्सव में खिलाडिय़ों को ट्रेक शूट मिलेंगे तो वे इसको याद रखेंगे। लेकिन इसी के साथ यह भी जरूरी है कि उनको नकद राशि भी दी जाए।
० एशियाड में भारतीय दल को मिली सफलता पर क्या सोचती हैं?
०० भारतीय दल को पहले कामनवेल्थ और अब एशियाड में जो सफलता मिली है, उसके पीछे लंबी मेहनत है। अब अपने देश में भी खिलाडिय़ों के लिए लंबे समय के प्रशिक्षण शिविर लग रहे हैं जिसका नतीजा सामने आ रहा है।
० एशियाड में महिला हॉकी टीम को पदक क्यों नहीं मिल सका?
०० मेरा ऐसा मानना है कि टीम में नए कोच के कारण खिलाडिय़ों और उनके बीच सही तालमेल नहीं बन पाया। इसी के साथ खिलाडिय़ों में भी तालमेल की कमी रही जिसके कारण अपनी टीम पदक से वंचित हो गई और उसे चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा।
० पुरुष हॉकी के बारे में क्या सोचना है?
०० पुरुष हॉकी टीम ने अपने हाथ से फाइनल में पहुंचने का मौका गंवाया। टीम सेमीफाइनल में मलेशिया से अपनी गलती से हारी। मैच समाप्त होने के दो मिनट पहले तक भारत ३-२ से आगे था। बचे दो मिनट को न बचा पाने के कारण उसे हार का सामना करना पड़ा। एशियाड के इतिहास में भारत की गलती के कारण मलेशिया को पहली बार फाइनल में स्थान मिला।
० खिलाडिय़ों को जब सफलता मिल रही है को सरकार को क्या करना चाहिए?
०० खिलाड़ी देश के लिए पदकों की बारिश कर रहे हैं तो सरकार को खिलाडिय़ों के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने चाहिए। खिलाडिय़ों को खेल कोटे में निजी कंपनियों में भी काम देने की पहल होनी चाहिए।
० महिला खिलाडिय़ों की सफलता पर क्या कहना चाहेंगी?
०० यह अपने देश के लिए गौरव की बात है कि आज महिला खिलाडिय़ों को कामनवेल्थ के बाद एशियाड में भी सफलता मिली है। मैंने १९८२ के दिल्ली एशियाड के बाद ही हॉकी की शुरुआत की थी, उस समय बहुत कम लड़कियां खेलों में जाती थीं, लेकिन आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला खिलाडिय़ों का दबदबा है। एशियाड के एथलेटिक्स में पदक जीतने वाली एक महिला खिलाड़ी को जब राष्ट्रपति से मिलने का मौका मिला था, उसे खुशी हुई थी कि अब क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों की भी पूछ-परख होने लगी है। अब यह कहा जा सकता है कि दूसरे खेल खेलने वाले खिलाड़ी भी सम्मानित होने लगे हैं।

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रविवार, दिसंबर 12, 2010

समीरलाल के साथ ट्रेन में लंबा सफर

हम करीब 15 दिनों से बाहर थे। दिल्ली पहुंचे तो एक बार सोचा कि चलो यार यहां के ब्लागरों को फोन किया जाए और कम से कम अजय कुमार झा और राजीव तनेजा से मिल लिया जाए। फिर इरादा बदल दिया और सीधे पकड़ ली रायपुर जाने वाली ट्रेन। ट्रेन में देखा कि अपने समीरलाल यानी उडऩ तश्तरी भी बैठे हैं। हमने तो उनको पहचान लिया, लेकिन उन्होंने हमें नहीं पहचाना। हम उनके साथ दिल्ली से रायपुर तक का लंबा सफर तय करके आए, पर उनसे कोई बात नहीं हो सकी।
ट्रेन में समीर लाल जी के साथ लंबा सफर तय करने के बाद जब ट्रेन हमारे शहर रायपुर पहुंची और समीर लाल जी भी ट्रेन से उतर गए तो हम उनके पीछे-पीछे गए और उनसे पूछा कि समीर भाई हमें पहचान रहे हैं क्या?
उन्होंने जवाब में किसी का नाम लिया।
हमने कहा नहीं थोड़ी सी कोशिश करें।
उन्होंने फिर कोई और नाम लिया।
हमने कहा अब भी आप पहचान नहीं पा रहे हैं। अंत में हमने उनसे कहा कि क्या यहां के किसी प्रिंस ( हमारी मित्र मंडली हमें इसी नाम से पुकारती है) की याद है। तब उन्होंने कहा कि अरे राजकुमार जी आप हैं।
हमने कहा बिलकुल हम हैं।
हमारे इतना कहते हैं समीर भाई आकर हमारे गले लग गए और जादू की झपी दे दी।
इतना होने के बाद अचानक जोर का झटका हाय जोरों से लगा और हमारी नींद खुल गई। हमने देखा तो सुबह के छह बजे थे। इसके बाद हमने फिर से यह सोचकर सोने की कोशिश की कि शायद हमारे सपने की अगली कड़ी जुड़ जाए, लेकिन कहां जनाब सपने की भी भला कभी कोई अगली कड़ी जुड़ती है, अंत मेें हमें एक घंटे तक नींद का इंतजार करने के बाद उठना पड़ा।
अब इसका क्या किया जाए कि अपने समीर भाई छत्तीसगढ़ आने का सपना दिखाकर अचानक मिस्टर इंडिया बनकर गायब हो गए हैं। खैर समीर लाल जी न सही भगवान तो हम पर जरूर मेहरबान हो गए हैं जिन्होंने हकीकत में न सही सपने में ही सही अपने समीर भाई से मुलाकात तो करना दी है। लेकिन उनसे हकीकत में मुलाकात के लिए हम इंतजार करेंगे।
अंत में हम यही कहेंगे....
हम इंतजार करेगा उनका कयामत तक
खुदा करे के कयामत हो और समीर लाल आएं

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शनिवार, दिसंबर 11, 2010

छेड़छाड़ से एक छात्रा की जान चली गई और मंत्री कहते हैं छेड़छाड़ मामूली बात है

हमारे शहर रायपुर में एक छात्रा की छेड़छाड़ के कारण जान चली गई। इस छात्रा नेहा भाटिया को इतना ज्यादा परेशान किया गया कि अंत में उसको अपनी जान देनी पड़ी। जब अपने शहर में यह हादसा हुआ तो हमें अपने राज्य के उन शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की वह बात याद आई जिसमें उन्होंने कहा था कि छेड़छाड़ तो मालूमी बात है। क्या छेड़छाड़ इतनी मामूली बात है कि एक छात्रा को जान देकर उसकी कीमत चुकानी पड़ी। क्या ऐसे में ऐसे मंत्रियों को शर्म नहीं आती है। अब इनको शर्म आएगी भी तो कैसे, जब शर्म होगी तब आएगी न।
अपना पूरा शहर इस बात से नाराज है कि शहर की कानून व्यवस्था इतना ज्यादा लचर हो गई है कि एक स्कूली छात्रा को छेड़छाड़ से तंग आकर जान देनी पड़ी। इस छात्रा नेहा भाटिया को उनके स्कूल के ही छात्र परेशान करते थे। इस छात्रा ने इसकी शिकायत लगातार अपने स्कूल में की, लेकिन स्कूल प्रबंधन ने इस दिशा में ध्यान ही नहीं दिया। अंत में यह गरीब छात्रा इतनी ज्यादा परेशान हो गई कि उसने आत्महत्या कर ली। जिंदगी और मौत से एक दिन जूझने के बाद उसने दम तोड़ दिया। लेकिन उसके दम तोडऩे के बाद अब भी कई सवाल सामने खड़े हैं।
सोचने वाली बात है कि क्यों कर छेड़छाड़ को मामूली बात समझ लिया जाता है। जिस राज्य के शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जैसे लोग होंगे तो वहां तो छेड़छाड़ को मामूली बात ही समझा जाएगा। हमें याद है कि कुछ दिनों पहले ही जब स्कूली खेलों की एक राष्ट्रीय स्पर्धा का उद्घाटन हुआ था तो वहां पर पंजाब के लड़कों ने अपनी टीम के साथ तख्ती लेकर चलने वाली छत्तीसगढ़ के एक स्कूल की एक छात्रा के साथ छेड़छाड़ की थी, जब इस मामले को मीडिया ने शिक्षा मंत्री ने सामने रखा था तो उन्होंने इस बात को हवा में उड़ाते हुए कह दिया था कि छेड़छाड़ तो मामूली बात है, यह सब होते रहता है। अब हमारे शिक्षा मंत्री को जवाब देना चाहिए कि अगर छेड़छाड़ मामूली बात है तो क्यों कर एक स्कूल की छात्रा को जान देनी पड़ी। जब तक अपने समाज में ऐसे मंत्री और ऐसी सोच वाले लोग रहेंगे जिनकी नजर में छेड़छाड़ मामूली बात है तो अपने देश के हर शहर में नेहा भाटिया जैसी छात्राओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।

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शुक्रवार, दिसंबर 10, 2010

कांग्रेसियों ने काटा तिरंगा

अपने देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का अपमान करने का काम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कांग्रेसियों ने किया। अपनी नेता सोनिया गांधी के जन्मदिन के जश्न में ये कांग्रेसी नेता इस कदर मशगुल हो गए कि वे ये भी भूल गए कि वे क्या कर रहे हैं। इन नेताओं ने तिरंगे वाला केट काटा। इतना करने के बाद भी कांग्रेसियों को इस बात का मलाल नहीं है और वे कहते हैं कि यह तो मामूली बात है, इसे मीडिया बेवजह तूल देने का काम कर रहा है। वैसे अपने देश में तिरंगे का अपमान करना नई बात नहीं है। चाहे वह सानिया मिर्जा का तिरंगे की तरफ पैर रखकर बैठने का मामला हो या फिर मंदिरा बेदी का साड़ी के निचले हिस्से में तिरंगे लगाने का मामला हो।
रायपुर के कांग्रेस भवन में कल जब सोनिया गांधी का जन्म दिन मनाया गया तो वहां पर कांग्रेसियों ने तिरंगे वाला केट काटा। इतना होने के बाद भी कांगे्रेसियों को इस बात का कोई अफसोस नहीं है। कांग्रेसी इस मामले में कहते हैं कि छोटी सी बात का बतगड़ बनाने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस के इस कृत्य पर भाजपाई जरूर खफा हैं और इनका मानना है कि कांगे्रेसियों की नजर में देश से बड़ा गांधी परिवार है। कानून के जानकार साफ कहते हैं कि इस मामले में ऐसा करने वाले कांग्रेसियों के खिलाफ अधिनियम 1971 की धारा 2 के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। इसमें तीन साल की सजा का प्रावधान है।
छत्तीसगढ़ में जो तिरंगे का अपमान किया गया है, वह अपने देश के लिए नया मामला नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं। सानिया मिर्जा एक बार तिरंग की तरफ पैरे करके बैठीं थीं। मंदिरा बेदी ने अपनी साड़ी के निचले हिस्से में तिरंगा लगा लगा था। और ऐसे कई मामले हो चुके हैं। जिस तिरंग को देश अपनी शान समझता है उसके साथ ऐसा खिलवाड़ करने वालों को तो सजा मिलनी ही चाहिए।

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गुरुवार, दिसंबर 09, 2010

अखबार में लेखकों के पते होने पर प्रतिक्रिया आती है

हमारी एक पोस्ट एक पोस्ट के 10 लाख से ज्यादा पाठक में एक ब्लागर मित्र ने सवाल उठाया कि अखबार में प्रकाशित लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं आती है, जबकि ब्लाग में तुरंत प्रतिक्रिया सामने आती है। लेकिन ऐसा नहीं है। आज अखबारों में जहां पत्रकारों की विशेष खबरों के साथ उनके ई-मेल और मोबाइल नंबर दिए जाने लगे हैं, वहीं लेखकों के भी ई-मेल पते दिए जाते हैं। ऐसे में उन लेखकों को प्रतिक्रियाएं जरूरी मिलती हैं। इसी के साथ पत्रकरों को भी उनकी अच्छी खबरों पर प्रतिक्रिया मिलती है।
ब्लागर मित्र शहनवाज ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि अखबार में छपे लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं मिल पाती है। लेकिन आज का जमाना हाईटेक हो गया है, ऐसे में जबकि अखबारों में लेखक अपने लेख ई-मेल से भेजने लगे हैं, तो अखबारों में भी लेखकों के लेख ई-मेल के साथ प्रकाशित होने लगे हैं। देश के कई बड़े अखबार अब अपने पत्रकारों की खबरों को उनके ई-मेल और मोबाइल नंबर के साथ प्रकाशित करने लगे हैं। इससे फायदा यह होता है कि अगर पत्रकार की खबर अच्छी है तो उसे शाबासी मिलती है, अगर खबर पसंद नहीं आती है तो पत्रकारों को गालियां भी मिलती हैं। पत्रकार तो इन बातों के आदी हो जाते हैं। ब्लाग जगत में भी अच्छी पोस्ट के लिए शाबासी और पसंद न आने वाली पोस्ट के लिए गालियां मिलती हैं।
बहरहाल हमारा मानना है कि जो भी लेखक अखबारों में लिखते हैं उनको उन अखबारों से आग्रह करना चाहिए कि कम से कम उनके ई-मेल पते जरूर प्रकाशित करें इससे उनको अपने लेख पर प्रतिक्रिया जरूर मिलेगी। कई अखबार लेखकों के पते भी प्रकाशित करते हैं। हमें याद हैं जब हम बरसों पहले राजस्थान पत्रिका में लिखते थे तो उसमें हमारे लेखों के साथ हमारा पता भी प्रकाशित होता था, वह जमाना ई-मेल का नहीं था। ऐसे में हमारे अच्छे लेखों के लिए बहुत पत्र आते थे। कई बार तो दुबई से भी पत्र आए। ऐसा नहीं है कि अखबारों में प्रकाशित लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं आती है। पाठकों को अपनी प्रतिक्रिया देने का साधन मिल जाए तो वे जरूर प्रतिक्रिया भेजते हैं। कई पर अखबारों के पत्र कालम में कई लेखों की सराहना वाले पत्र भी प्रकाशित होते हैं।
अविनाश वाचस्पति जी ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यानी इसका मतलब है कि हमारे लेख कम से कम पांच लाख पाठक पढ़ते होंगे। अगर आपका लेख वास्तव में अच्छा है तो उसको पांच नहीं पचास लाख पाठक मिलेंगे, औैर यह फिलहाल तो अखबार में ही संभव है। हमने अपनी पोस्ट के बारे में इसलिए लिखा था कि क्योंकि वह पोस्ट नहीं बल्कि एक ऐसी खबर थी जो सिर्फ और सिर्फ हमारे पास थी। ऐसी खबरों को हर पाठक पढऩा पसंद करता है जो खबर अच्छी हो और किसी विशेष अखबार में हो।

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बुधवार, दिसंबर 08, 2010

जिंदा रखेंगे राज्य ओलंपिक संघ

भारतीय ओलंपिक संघ के मंसूबों को हम लोग किसी भी कीमत में पूरे होने नहीं देंगे। जिस तरह से संविधान में संशोधन के नाम पर राज्य ओलंपिक संघों को समाप्त करने का काम करने की तैयारी है, उसका देश का हर राज्य संघ विरोध करेगा और सामान्य सभा में किसी भी कीमत में प्रस्ताव पारित होने नहीं दिया जाएगा। हम लोगों का एकमात्र लक्ष्य राज्य ओलंपिक संघों को जिंदा रखना है।
ये बातें आन्ध्र प्रदेश ओलंपिक संघ के सचिव के. जगदीश्वर यादव ने कहीं। श्री यादव भिलाई में खेली गई राष्ट्रीय कबड्डी में शामिल होने आए थे। उन्होंने पूछने पर बताया कि वे तो लंबे समय से अपने राज्य से खेलों के कारण बाहर हैं। लेकिन उनको इस बात की जानकारी है कि भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) से क्या पत्र आया है। श्री यादव ने कहा कि संविधान में संशोधन के हम विरोधी नहीं हैं, लेकिन राज्य संघों को मतदान से वंचित करना ठीक नहीं है। आईओए राज्य संघों को मतदान से ही वंचित नहीं कर रहा है, बल्कि आईओए की बैठक में राज्य संघों का जाना प्रतिबंध रहेगा, यही नहीं राज्य संघों को उससे मान्यता भी नहीं रहेगी। ऐसे में राज्य संघों का क्या मतलब होगा? जब किसी भी राज्य संघ की आईओए से मान्यता ही नहीं रहेगी तो राज्य के खेल संघ क्यों कर राज्य ओलंपिक संघ से मान्यता लेंगे और उसकी बात मानेंगे। राज्य में खेल संघ ओलंपिक संघ के कंट्रोल से बाहर हो जाएंगे।
श्री यादव ने कहा कि हमारे राज्य का ओलंपिक संघ करीब तीन दशक से है। हमारे अलावा और राज्यों के संघों से भी कभी आईओए को परेशानी नहीं हुई है, तो अचानक आईओए ने यह कदम क्यों उठाया है, यह समङा से परे है। उन्होंने कहा कि सभी राज्य एक-दूसरे के संपर्क में हैं, और हमारी जितने भी राज्यों के पदाधिकारियों से बात हो रही है, सभी का एक मत से ऐसा मानना है कि राज्य संघों को जिंदा रखने सामान्य सभा में आईओए के प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया जाएगा। श्री यादव ने कहा कि आखिर आईओए का संविधान में संशोधन करने के लिए आधार क्या है, इसका खुलासा करना चाहिए।
श्री यादव ने बताया कि राज्य संघों को जो पत्र भेजा गया है, उसमें राज्य कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर उसमें संविधान संशोधन का मुद्दा रखने कहा गया है। हम लोग कार्यकारिणी की बैठक बुलाएंगे और आईओए के फैसले के खिलाफ प्रस्ताव पारित करके आईओए को अवगत कराया जाएगा कि हमारा राज्य इस प्रस्ताव के खिलाफ है। इसके बाद जब भी दिल्ली में सामान्य सभा की बैठक होगी तो वहां भी इसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने पूछने पर कहा कि राज्य ओलंपिक संघ के अस्तित्व को बचाने के लिए आईओए के सामने यह बात रखी जाएगी कि बेशक हमारे मतदान का अधिकार कम किया जाए, लेकिन मतदान का अधिकार कायम रखने के साथ बैठक में शामिल होने का अधिकार और मान्यता भी दी जाए। उन्होंने कहा कि भले दो के स्थान पर एक मत का अधिकार दिया जाए।

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मंगलवार, दिसंबर 07, 2010

एक पोस्ट के दस लाख से ज्यादा पाठक

अगर कोई कहे कि उनकी एक पोस्ट के दस लाख से ज्यादा पाठक हैं, तो आपको यकीन नहीं होगा। लेकिन यह बात पूरी तरह से सच है। हम ही नहीं और भी कई ऐसे ब्लागर हैं जिनकी एक पोस्ट के दस लाख से ज्यादा पाठक हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कैसे  संभव है, तो हम खुलासा कर दें कि हम उस पोस्ट की बात नहीं कर रहे हैं जो पोस्ट ब्लाग में रहती है, बल्कि उस पोस्ट की बात कर रहे हैं जो एक अखबार में रहती है। कम से कम हम जिस अखबार दैनिक हरिभूमि में काम करते हैं, उस अखबार में जब हमारी एक खबर छत्तीसगढ़ के संस्करणों में प्रकाशित होती है तो उसको करीब 9 लाख पाठक पढ़ लेते हैं। अभी दो दिन पहले हमारी एक खबर हरिभूमि के सभी संस्करणों में पहले पेज पर प्रकाशित हुई, हमारी इस खबर को पढऩे वालों को संख्या 15 लाख से ज्यादा थी।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि अभी ब्लाग जगत का दायरा उतना बड़ा नहीं है कि उसे लाखों पाठक पढ़ें। वैसे भी हिन्दी ब्लागों की ही संख्या अभी एक लाख में नहीं पहुंची है तो पाठक कैसे एक लाख हो सकते हैं।  ब्लाग जगत में ब्लाग की पोस्ट को ज्यादातर पढऩे वाले ब्लागर ही होते हैं। लेकिन अखबार जगत में अखबार खरीदने वालों के साथ अखबार न खरीद पाने वाले भी अखबार पढ़ लेते हैं।
बहरहाल जहां तक हमारी बात है तो हम तो अखबार में 20 साल से काम कर रहे हैं। हमारी खबरों के हमेशा से लाखों पाठक रहे हैं। हमारे कई ब्लागर मित्र भी ऐसे हैं जिनकी रचनाएं हमारे अखबार हरिभूमि के साथ और अखबारों में प्रकाशित होती हैं, ये सारे लेखक इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी एक रचना को पढऩे वालों की संख्या लाखों में होती है। लेकिन अखबार और ब्लाग में एक बड़ा अंतर यह है कि आप अखबार में अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं लिख सकते हैं, लेकिन ब्लाग आपकी अपनी संपत्ति है इसमें कुछ भी लिखने से आपको कोई नहीं रोक सकता है।
हम अपनी जिस खबर की बात कर रहे हैं, उस खबर को हमने अपने ब्लाग में डाला था। जिस खबर को अखबार में 15 लाख से ज्यादा पाठकों ने पढ़ा, उस खबर को ब्लाग बमुश्किल दो सौ ने भी नहीं पढ़ा। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि ब्लाग लेखन ठीक नहीं है। ब्लाग लेखन का अपना एक अलग स्थान है। हमें उम्मीद है कि आगे चलकर ब्लाग भी जरूर अखबारों की शक्ल लेंगे और ब्लागों के भी लाखों पाठक होंगे, लेकिन उसके लिए लंबा समय लगेगा।

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सोमवार, दिसंबर 06, 2010

आज आ गई फिर तुम याद

हो गया दिल का गुलशन आबाद।।
छा गई खूशियां दिल के आंगन में
महकने लगी कलियां मन मधुबन में।।
चाहत के अरमान मचलने लगे दिल में
दिल करने लगा मिलने की फरियाद।।
आज आ गई फिर तुम याद
हो गया दिल का गुलशन आबाद।।
दूरियों के दर्द अब मिट जाएंगे
अरमानों के द्वार खुल जाएंगे।।
मन वीणा केतार बजेंगे तब
जब हम तुम फिर मिल जाएंगे।।
फिर न रहेगा मन में कोई अवसाद
आज आ गई फिर तुम याद
हो गया दिल का गुलशन आबाद।।

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रविवार, दिसंबर 05, 2010

राज्य ओलंपिक संघ समाप्त होंगे!

भारतीय ओलंपिक संघ ने देश के सभी राज्यों के ओलंपिक संघ को समाप्त करने की कवायद प्रारंभ कर दी है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ से मार्गदर्शन लेने के बाद संघ ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर उनके मत मांगे हैं कि क्या करना चाहिए। संघ की सामान्य सभा में इस बात का फैसला किया जाएगा कि क्या होना चाहिए। संघ ने राष्ट्रीय खेल संघों के मतदान के अधिकार भी कम करने की मानसिकता बनाई है। संघ की मानसिकता के खिलाफ पूरे देश में विरोध के स्वर उठने लगे हैं। छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ ने भी इस बात का विरोध करते हुए भारतीय ओलंपिक संघ को पत्र लिखा है।
भारतीय ओलंपिक संघ ने छत्तीसगढ़ सहित सभी राज्यों को एक पत्र भेजा है जिसमें लिखा गया है कि संघ अपने संविधान में संशोधन करना चाहता है। नए संविधान में राज्य के ओलंपिक संघों को किसी भी तरह के मतदान के अधिकार से वंचित करते हुए संघ को ही समाप्त करने का प्रस्ताव है। इसी के साथ राष्ट्रीय खेल संघों के मतदान के अधिकार में भी कटौती की बात है। अब तक राष्ट्रीय खेल संघों को भारतीय ओलंपिक संघ के चुनाव में तीन मत देने का अधिकार है। इसे कम करके एक किया जा रहा है।   संघ के ऐसा करने के पीछे के कारण के बारे में जानकार बताते हैं कि संघ के अध्यक्ष के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ही भारतीय ओलंपिक संघ ने अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ को एक पत्र भेजकर मार्गदर्शन मांगा था कि वह अपने संविधान में इस तरह का संशोधन करना चाहता है। अंतरराष्ट्रीय फेडरेशन ने इसके जवाब में भारतीय ओलंपिक को लिखा कि वह सामान्य सभा बुलाकर बहुमत के आधार पर संशोधन कर सकता है।
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ से मिले मार्गदर्शन के बाद भारतीय ओलंपिक संघ ने अपने संविधान में परिवर्तन करने का मन बनाया और सभी राज्यों को पत्र लिख कर उनके विचार मांगे हैं कि क्या होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ ने जताया विरोध
भारतीय ओलंपिक संघ ने जो फैसला करने का मन बनाया है, उसका छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ ने विरोध करते हुए पत्र लिखा है। संघ के सचिव बशीर अहमद खान ने बताया कि भारतीय ओलंपिक संघ के संविधान में कहीं नहीं है कि राज्य संघों की मान्यता समाप्त की जाएगी। उन्होंने बताया कि हमने सुङााव दिया है कि राज्य ओलंपिक संघ को समाप्त करने की बजाए उसको दो के स्थान पर एक ही मत का अधिकार दिया जाए। अभी राज्य ओलंपिक संघों को दो मतों का अधिकार है। इसी के साथ खेलों के राष्ट्रीय फेडरेशन को तीन मतों को अधिकार है, इसे दो कर दिया जाए। उन्होंने बताया कि ओलंपिक संघ के संविधान में यह है कि खेल संघों से राज्य ओलंपिक संघों को कम मतों का अधिकार होना चाहिए। मप्र ओलंपिक संघ के सचिव एसआर देव ने भी बताया कि उनके राज्य संघ को भी भारतीय ओलंपिक संघ का पत्र मिला है।
पूरे देश में हो रहा है विरोध
ओलंपिक संघ से जुड़े पदाधिकारी बताते हैं कि भारतीय ओलंपिक संघ के इस कदम का पूरे देश में विरोध हो रहा है कि सभी राज्यों के ओलंपिक संघ एक हो गए हैं। जब भी दिल्ली में सामान्य सभा की बैठक होगी तो संविधान में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूर होने नहीं दिया जाएगा।
राष्ट्रीय खेलों का क्या होगा?
अगर राज्य के ओलंपिक संघों को समाप्त कर दिया जाता है तो राष्ट्रीय खेलों का क्या होगा। राष्ट्रीय खेलों के आयोजन का जिम्मा राज्य ओलंपिक संघों का होता है। राज्य संघ की मेजबानी लेकर सरकार के साथ मिलकर इसका आयोजन करते हैं।
भारतीय ओलंपिक भी समाप्त हो
राज्य ओलंपिक संघ ही नहीं रहेगा तो भारतीय ओलंपिक संघ की क्या जरूरत रहेगी। खेलों से जुड़े लोग कहते हैं कि अगर राज्य ओलंपिक संघ समाप्त किए जाते हैं तो फिर भारतीय ओलंपिक संघ की क्या जरुरत है। राज्य ओलंपिक संघों में इस बार तो लेकर बहुत नाराजगी है कि भारतीय ओलंपिक संघ अपनी मनमर्जी कर रहा है और राज्य संघों को समाप्त करने की साजिश कर रहा है।

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शनिवार, दिसंबर 04, 2010

छत्तीसगढ़ दोहरे खिताब के करीब

राष्ट्रीय शालेय नेटबॉल में मेजबान छत्तीसगढ़ अपना विजयक्रम जारी रखते हुए बालक के साथ बालिका वर्ग के भी सेमीफाइनल में स्थान बना लिया है। अब मेजबान टीम दोहरे स्वर्ण से बस दो ही जीत दूर है।
नेताजी स्टेडियम में चल रही स्पर्धा में दोपहर के सत्र में बालिका वर्ग में छत्तीसगढ़ का सामना क्वार्टर फाइनल में कर्नाटक से हुआ। इस मैच में मेजबान टीम ने जोरदार खेल दिखाते हुए एकतरफा मुकाबले में २१-६ से जीत प्राप्त की। विजेता टीम के लिए प्रियंका सोनवानी ने १८ और अनुपमा मसीह ने तीन अंक बनाए। बालिका वर्ग के अन्य क्वार्टर फाइनल मैचों में पंजाब ने तमिलनाडु को २४-०३, हरियाणा ने महाराष्ट्र को २७-१२ और दिल्ली ने चंडीगढ़ को १७-०५ से मात देकर सेमीफाइनल में स्थान बनाया। इसके पहले सुबह के सत्र में हुए लीग मैचों में हरियाणा ने नवोदय को २०-००, महाराष्ट्र ने मप्र को १६-१३, तमिलनाडु ने जम्मू-कश्मीर को १४-०१ से हराया। चंडीगढ़ और उप्र का मुकाबला १३-१३ से ड्रा रहा।
बालक वर्ग से क्वार्टर फाइनल में मेजबान छत्तीसगढ़ ने एकतरफा मुकाबले में महाराष्ट्र को २७-०२ से परास्त किया। विजेता टीम पहले हॉफ में १४-०४ से आगे थी। विजेता टीम के विक्की शुक्ला, बादल डे, उत्तम, टी. प्रतीक औैर पलाश का खेल सराहनीय रहा। अन्य क्वार्टर फाइनल मैचों में पंजाब ने जम्मू कश्मीर को २१-०२ और कर्नाटक ने नवोदय को २३-०९ से मात दी। पहली बार ही खेलने आई नवोदय की टीम ने पहली बार में क्वार्टर फाइनल में स्थान बना लिया। खिलाड़़ी अनुभव की कमी के कारण ही क्वार्टर फाइनल में कर्नाटक से हार गए। इसके पहले सुबह को लीग मैचों में हरियाणा ने तमिलनाडु को २१-०४, नवोदय ने मप्र को २९-०५ और महाराष्ट्र ने उप्र को १४-०६ से मात दी।
ये कैसी खेल भावना ...
राष्ट्रीय शालेय नेटबॉल स्पर्धा में सुबह के सत्र में नेटबॉल संघ के पदाधिकारियों ने इस बात को लेकर बवाल मचा दिया कि शिक्षा विभाग ने मीडिया को यह जानकारी दे दी कि विभाग ने दस तकनीकी अधिकारी रखने के लिए कहा था और संघ ने ज्यादा रख लिए हैं। संघ के पदाधिकारियों ने खबर के प्रकाशित होने के बाद शिक्षा विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। करीब डेढ़ घंटे तक मैच प्रारंभ नहीं किया गया। बाद में जिला शिक्षा अधिकारी आर. बाम्बरा के आने के बाद मैच प्रारंभ करवाए गए। मैच में सभी अधिकारियों ने काली पट्टी लगाकर अपना विरोध जताया। यह विरोध पहले सत्र तक ही रहा। आर. बाम्बरा ने संघ के पदाधिकारियों के सामने ही पूछने पर कहा कि हमारे विभाग ने दस तकनीकी अधिकारियों का ही मानदेय देने की बात कही है, क्योंकि इससे ज्यादा का बजट नहीं है। विभाग ने यह नहीं कहा है कि आप ज्यादा अधिकारी नहीं रख सकते हैं। संघ चाहे तो जितने अधिकारी रखे, लेकिन सभी को मानदेय देना संभव नहीं होगा। इधर संघ के उपाध्यक्ष सुधीर वर्मा के साथ अंपायर प्रवीण रिछारिया का कहना है कि राष्ट्रीय आयोजन दस अधिकारियों में होना संभव नहीं इसके लिए कम से कम २० अधिकारी चाहिए। जिला शिक्षा अधिकारी के दस अधिकारियों की बात कह जाने के बाद संघ के पदाधिकारियों ने सुबह के सत्र में एक मैदान में मैच करवाने बंद कर दिए थे, शाम के सत्र में उन्होंने खेल भावना का हवाला देते हुए दोनों मैदानों में मैच करवाने प्रारंभ किए। उनकी इस हरकत पर बाहर से आए राज्यों के खिलाडिय़ों में चर्चा होती रही कि ये कैसी खेल भावना दिखाई जा रही है। इस मामले में भारतीय स्कूल फेडरेशन से आए पर्यवेक्षक आरके यादव से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आयोजन को लेकर उनके पास अब तक किसी भी खिलाड़ी और राज्य से शिकायत नहीं आई है, यहां जो भी मामला है वह आपसी खींच-तान का लगता है। उन्होंने कहा कि उनके पास अगर किसी भी तरह की शिकायत आती है देखेंगे कि क्या किया जा सकता है।

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शुक्रवार, दिसंबर 03, 2010

चिट्ठा जगत बीमार है, इलाज करें

हमें लगता है कि चिट्ठा जगत में जरूर कोई तकनीकी समस्या आ गई है जिसकी वजह से बहुत सारी गड़बडिय़ां हो रही हैं। अब ये बात अलग है कि इसके संचालक इन गड़बडिय़ों के बारे में बता नहीं रहे हैं। इनके न बताने की वजह से ही ब्लागरों के मन में तरह-तरह की बातें आने लगती हैं कि कहीं हमारे साथ पक्षपात तो नहीं हो रहा है। हमें भी लगातार ऐसा लगा है।
आज सुबह जब उठे तो देखा कि हमारे चिट्ठा जगत के वरीयता क्रमांक में गड़बड़ी है। गड़बड़ी इस तरह से कि ब्लाग में वरीयता कुछ है तो चिट्ठा जगत में कुछ है। हमारे राजतंत्र में वरीयता 25 है, तो चिट्ठा जगत में 21 है। इसी तरह से ललित डाट काम का वरीयता क्रमांक चिट्ठा जगत में 23 है तो उनके ब्लाग में चिट्ठा जगत के वीजिट में 27 है। इसी तरह से और कई ब्लागों के साथ हो रहा था। इनको देखने के बाद हमें यह बात समझ आ गई कि हो न हो चिट्ठा जगत की तकनीकी में कुछ बीमारी यानी खराबी आ गई है। हमने कुछ दिनों पहले देखा था कि एक हमारे ही ब्लाग नहीं बल्कि कई ब्लागों में हवालों की प्रविष्ठियां नहीं जुड़ पा रही हंै। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। जब भी ऐसा होता है तो हम जैसे तकनीकी के पैदल लोगों को तो यही लगता है कि हमारे साथ गलत हो रहा है। ऐसे समय में जब भी कुछ गड़बड़ लगती है ते चिट्ठा जगत के संचालकों को इसका खुलासा करना चाहिए कि कुछ तकनीकी समस्या आ गई है जिसे सुधारा जा रहा है। हमें याद है ब्लागवाणी में जब भी कुछ गड़बड़ होती थी तो बकायदा वहां लिखा रहते था कि तकनीकी समस्या है काम चल रहा है। ऐसे लिखने में क्या जाता है। ऐसा करने से कम से ब्लाग जगत में जो भ्रम की स्थिति आती है। हम उम्मीद करते हैं कि चिट्ठा जगत के संचालक इस दिशा में ध्यान देंगे। 

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गुरुवार, दिसंबर 02, 2010

मंत्री कहते हैं- छेड़छाड़ मालूमी बात...

अगर किसी मंत्री के पास इस बात की शिकायत की जाए कि किसी के साथ छेड़छाड़ हुई है और वह मंत्री यह कह दे कि यह तो मालूमी बात है, तो उस मंत्री की मानसिकता को आसानी से समझा जा सकता है कि उनकी मानसिकता क्या होगी। ऐसे मंत्री के बारे में क्या सोचा जा सकता है। ये मंत्री और कोई नहीं बल्कि अपने राज्य छत्तीसगढ़ के सबसे लोकप्रिय माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल हैं। जब उनके सामने कल मीडिया ने यह बात रखी कि मेजबान छत्तीसगढ़ की एक छात्रा के साथ पंजाब के खिलाडिय़ों ने छेड़छाड़ की है तो उन्होंने इस बात का हंसी में उड़ाते में कह दिया कि ऐसा तो होते रहते हैं, यह मामूली बात है। यही नहीं मंत्री महोदय ने पलट कर मीडिया से ही कह दिया कि चलिए आप रहते तो क्या करते। अब सोचने वाली बात है कि ऐसे मंत्रियों के हाथों में देश की बागडोर रहेगी तो कैसे अपने देश की महिलाओं की इज्जत सुरक्षित रह सकती है।
राजधानी रायपुर में जब कल राष्ट्रीय नेटबॉल का आगाज हुआ तो यहां पर मार्च पास्ट के समय पंजाब टीम की तख्ती लेकर टीम के सामने चलने वाली छत्तीसगढ़ की एक स्कूली छात्रा के साथ पंजाब टीम के खिलाडिय़ों ने इतनी ज्यादा छेड़छाड़ की कि वह लड़की रोते हुए मैदान से भागी। हम लोगों ने जब उस लड़की से बात की तो उस लड़की ने बताया कि पहले तो पंजाब की एक लड़की ने उसके सारे बॉल बिखरा दिए, फिर पंजाब के लड़के गंदे-गंदे फिकरे कसने के साथ अश्लील बातें करने लगे। लड़की ने कहा कि पहले पहल तो मैंने इन बातों की तरफ इसलिए ध्यान नहीं क्योंकि पंजाब टीम हमारी मेहमान है, लेकिन जब लड़कों की हरकतें हद पार कर गईं तो मैं अपने को नहीं रोक पाई और वहां से भाग आई।
लड़की की हालत बहुत खराब थी। इस लड़की की तरफ ध्यान देने के लिए शिक्षा विभाग के किसी भी अधिकारी के पास फुरसत नहीं थी क्योंकि सभी मंत्री और अतिथियों की आवभगत में व्यस्त थे। इस मामले में जब पंजाब टीम के मैनेजर प्रेम मित्तल से बात की गई तो उन्होंने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया और कहा कि देखते हैं क्या बात है। उद्घाटन के बाद जब छात्रा से हुई छेड़छाड़ का मामला मीडिया ने शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के सामने रखा तो उन्होंने टालते हुए कहा कि ऐसा तो ऐसे आयोजनों में होते रहता है, इसको तूल देने की जरूरत नहीं है, यह बहुत मामूली बात है। जब उनसे हमने कहा कि यह कोई छोटी घटना नहीं है, छात्रा के साथ बहुत ज्यादा गलत हरकत की गई है, उन्होंने हमसे ही पूछा कि चलिए आप होते तो क्या करते। मंत्री को क्या यह सवाल करना शोभा देता है?
माना कि पंजाब के लड़के हमारे मेहमान हैं, लेकिन मेहमानों को क्या अपने घर की बेटियों के साथ कुछ भी हरकतें करने की छूट दी जा सकती है। ऐसे मंत्री को शर्म नहीं आई जो यह कहते हैं कि छेड़छाड़ मामूली बात है। हमने मंत्री से पलट कर कहा कि हम रहते तो पहले तो पंजाब टीम को ही स्पर्धा से बाहर कर देते। हमारे इतना कहने के बाद मंत्री महोदय अपनी कार में बैठकर चले गए।
वास्तव में कल जो कुछ भी हुआ वह शर्मनाक है। सबसे शर्मनाक है मंत्री का जवाब। ऐसे मंत्रियों के साथ अब क्या किया जा सकता है। जिस देश की कमान ऐसे मंत्रियों के हाथों में होगी, उस देश में महिलाओं की इज्जत कैसे सुरक्षित रह सकती है।

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बुधवार, दिसंबर 01, 2010

पैसा ही अब सबका ईमान है

जमाने में कहा वफा है
हर कोई लगता बेवफा है।।
हमने हसीनों को भी देखा है
उनके चेहरे में भी फरेब छिपा है।।
बेवफाई उनकी अदा है
धोखा उनका काम है।।
आशिकी का यही इनाम
तभी तो प्यार बदनाम है।।
आज के प्रेमी नाकाम
सारे झूठे इसांन हैं।।
प्यार का घट गया मान है
पैसा ही अब सबका ईमान है।।
पैसे की खातिर करते हैं सब प्यार
पैसों की खातिर बदल लेते हैं यार।।

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