छत्तीसगढ़ में लगातार महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण करने का खेल चल रहा है। इस खेल का खुलासा कई मौकों पर होने के बाद भी इस दिशा में शासन ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है जिसके कारण ऐसा घिनौना काम करने वाले लगातार ऐसा करने में लगे हुए हैं। जो मामले सामने आए हैं उन मामलों में स्कूली खेलों में गोवा में हुए कांड के साथ खरोरा का कांड भी शामिल है। लेकिन इन कांडों में शामिल आरोपियों को पहले निलंबित किया गया फिर उनको बहाल भी कर दिया गया है। एक मामला ऐसा भी हुआ था जिसमें भिलाई में कोरबा के जूडो कोच ने अपनी महज 13 साल की खिलाड़ी के साथ बलात्कार करने का काम किया था। इस घटना ने ही सबको सोचने पर मजबूर किया था कि वास्तव में छत्तीसगढ़ में भी खिलाड़ी प्रशिक्षकों की हवस का शिकार हो रही हैं। यह तो भिलाई और गोवा का मामला किसी कारणवश खुल गया था, वरना न जाने कितनी मासूम लगातार प्रशिक्षकों की हवस का शिकार हो रही हैं, और पता ही नहीं चल पाता है। लेकिन यदा-कदा जहां ऐसी चर्चाएं होती रहती हैं, वहीं कुछ समय पहले एक आदिवासी खिलाड़ी ने तो खुलकर अपने कोच पर यौन शोषण करने देने की शर्त पर ही प्रदेश की टीम में शामिल करने का आरोप लगाया था। इस आरोप को जहां संघ ने गंभीरता ने नहीं लिया था और अपने कोच को पाक-साफ साबित कर दिया था, वहीं राज्य महिला आयोग ने इस मामले की जांच की। लेकिन इस कोच को कोई कड़ी सजा नहीं मिल पाई और इसका नतीजा यह रहा कि यौन शोषण का खेल करने वाले अब और ज्यादा बेखौफ होकर यह खेल खेलने में लगे हैं। अब इसे अपने राज्य की खिलाडिय़ों का दुर्भाग्य कहे या उनकी मजबूरी की एक खेल की खिलाड़ी के एक साहसिक कदम के बाद भी कोई और खिलाड़ी सामने नहीं पा रही हैं। वैसे यह बात सब जानते हैं कि खिलाडिय़ों का यौन शोषण लगातार जारी है। इसे रोकने की पहल करने वाला पूरे राज्य में कोई नजर नहीं आता है। हमने ही अपने खेल पत्रिका में इसका पहली बार खुलासा किया था। इसके बाद ही मीडिया में इस पर खबरें प्रकाशित हुईं, लेकिन फिर चंद दिनों बाद यह मामला ठंड़ा पड़ गया और यौन शोषण के दानव फिर से सक्रिय हो गए हैं। ऐसे में हमें फिर से कलम उठाने मजबूर होना पड़ा है। आज जबकि अपने राज्य ही नहीं पूरे देश में महिला खिलाडिय़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। ऐेसे में यह जरूरी हो गया है कि खेल के नाम पर यौन शोषण करने वालों को एकजुट होकर खदेड़ा जाए। हालांकि यह उतना आसान नहीं है क्योंकि यहां तो हर साख पे उल्लू बैठे हैं, अंजामे गुलिस्ता क्या होगा, वाली बात है।
छत्तीसगढ़ के खेल जगत का वह काला दिन था गोवा में खेलने गई स्कूली खिलाडिय़ों से साथ उनके साथ गए प्रशिक्षकों ने छेड़छाड़ की और जोर-जबरदस्ती करने का प्रयास किया। इस घटना से पहले एक घटना भिलाई में तब हुई थी जब राज्य जूडो चैंपियनशप के अंतिम दिन कोरबा के एक कोच ठाकुर बहादुर ने अपने ही शहर की एक महज 13 साल की खिलाड़ी के साथ बलात्कार करने का घिनौना काम किया। उस कोच को ऐसा करने में सफलता मिली थी तो उसके पीछे भी कहानी है। यह तो मामला न जाने किसी कारण से खुल गया, वरना ऐसी न जाने राज्य और देश में कितनी चैंपियनशिप होती हैं जहां पर प्रशिक्षक आसानी से अपनी खिलाडिय़ों का यौन शोषण करने में सफल हो जाते हैं और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं होती है। भिलाई वाले कांड की बात करें तो वहां पर कोच ने जिस तरह से रात को 12 बजे खिलाड़ी को प्रमाणपत्र देने के बहाने से अपने कमरे में बुलाया और अपनी हवस पूरी की, उससे एक बात का तो खुलासा हो गया कि किसी भी कोच द्वारा अपनी खिलाडिय़ों को रात को कमरे में बुलाना आम बात है। और जब खिलाड़ी कोच के साथ कमरे में रात को अकेले रहती हैं तो वह कोच आसानी से अपनी मनमर्जी करने लगते हैं। ऐसे समय में जब खिलाड़ी द्वारा विरोध किया जाता है तो उसे जहां राष्ट्रीय फिर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने और नौकरी आदि लगाने का प्रलोभन दिया जाता है, वहीं बात न बनने पर डराने का भी काम किया जाता है। यहां पर ज्यादातर खिलाड़ी समझौता कर लेती हैं, काफी कम खिलाड़ी ऐसी होती हैं जो वैसा साहस दिखा पाती है जैसा साहस दिखाने का काम कोरबा की उसी छोटी सी खिलाड़ी ने दिखाया। अब कोरबा की उस खिलाड़ी ने ऐसा साहस किया है तो इससे यौन शोषण का शिकार होने वाली खिलाडिय़ों को भी सबक लेते हुए अपने उन सफेदपोश प्रशिक्षकों को बेनकाब करने का काम करना चाहिए जो उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर अपनी हवस की आग बुझाने का काम करते हैं। वैसे कोरबा की खिलाड़ी वाला मामला तो एक तरह से बलात्कार का मामला है और ऐसा करने वाले कोच को जेल की हवा भी खानी पड़ी है। अब अगर ऐसे मामलों की बात करें तो खुल कर सामने नहीं आ पाते हैं तो वो भी एक तरह से बलात्कार के ही मामले हैं, पर चूंकि वे मामले सामने नहीं आ पाते हैं ऐसे में उन पर बलात्कार की धारा नहीं लग पाती है, लेकिन वास्तव में है तो वो भी बलात्कार। सोचने वाली बात है कि ऐसा क्या कारण है जो खेल और खिलाडिय़ों के साथ बलात्कार करने वालों को समाज के सामने करने का साहस खिलाड़ी नहीं दिखा पा रही हैं।
वैसे आज देखा जाए तो खेल जगत में ज्यादातर महिला खिलाडिय़ों का किसी न किसी रूप में यौन शोषण हो रहा है, यह बात जग जाहिर है। लेकिन यहां पर सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होता है उनमें से काफी कम खिलाड़ी ऐसी होती हैं जो खुले रूप में इसको सामने करने का साहस कर पाती हैं। भारत में ऐसे काफी कम मौके आए हैं, जब किसी खिलाड़ी ने ऐसे आरोप से अपने कोच या फिर साथी खिलाड़ी पर आरोप लगाए हैं। अपने पड़ोसी देश श्रीलंका की धाविका सुशांतिका ने जब काफी साल पहले एक मंत्री पर यौन शोषण का आरोप लगाया था, तब काफी हंगामा हुआ था। जहां तक विदेशों की बात है तो वहां पर तो ऐसा होना आम बात है। फिर यहां पर एक बात यह भी है कि विदेशों में तो फ्री सेक्स वाली संस्कृति है। ऐसे में वहां पर ऐसे मामलों का कोई मतलब नहीं होता है, लेकिन ऐसे मामले जब सामने आते हैं तो यह जरूर सोचना पड़ता है कि जिस देश में सेक्स को गलत नहीं माना जाता है, वहां पर ऐसे मामलों का क्या मतलब। लेकिन कहते हैं कि अगर कोई भी काम किसी को डरा धमका कर या फिर उसकी सहमति के बिना किया जाए तो वह काम गलत होता है। और हर ऐसे काम का विरोध तो होना ही चाहिए। लेकिन जो खिलाड़ी यौन शोषण का शिकार होती हैं, उनमें से ज्यादातर अपने कैरियर के कारण इसका खुलासा नहीं कर पाती हैं। और यह बात जहां विदेशी खिलाडिय़ों पर लागू होती है, वहीं भारतीय खिलाडिय़ों पर भी। भारतीय खिलाडिय़ों पर तो यह बात ज्यादा लागू होती है। कारण साफ है यहां पर खिलाडिय़ों के चयन में जिस तरह की राजनीति होती है उससे किसी भी खिलाड़ी का किसी भी खेल की टीम में आसानी से चुना जाना आसान नहीं होता है। ऐसे में जब महिला खिलाडिय़ों को ज्यादातर उनके कोच इस बात का प्रलोभन देते हैं कि वे उनके कोच हैं और उनको राज्य ही नहीं देश की टीम से खिलाकर उनका भविष्य बना सकते हैं तो ऐसे में ज्यादातर महिला खिलाड़ी झांसे में आ जाती हैं और सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हो जाती हैं।
यहां पर यह भी बताना लाजिमी होगा कि अपने देश में इतनी ज्यादा बेरोजगारी है कि रोजगार पाने के लिए हर कोई कुछ भी करने को तैयार रहता है। रोजगार के लिए आज पढ़ाई से ज्यादा महत्व खेल का हो गया है। ऐसे में जो खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल लेती हैं उनको नौकरी मिलने में आसानी हो जाती है। इन सबको देखते हुए ही जब किसी खिलाड़ी के सामने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर या फिर राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका सामने आता है और उसके लिए उसके सामने ऐसी कोई शर्त रखी जाती है जिससे उसका यौन शोषण हो तो भी खिलाड़ी इसके लिए तैयार हो जाती हैं। हमें याद है हमें एक बार एक खेल से जुड़े कुछ दिग्गजों ने बताया था कि उनके खेल में जिनके कहने पर भारतीय टीम का चयन होता है वे उसी लड़की को टीम में रखने को तैयार होते हैं जो कम से कम एक बार उनके साथ यौन संबंध बनाने को तैयार होती हैं। शायद यही कारण है कि इस खेल में अपने राज्य की ज्यादा महिला खिलाडिय़ों को देश से खेलने का मौका नहीं मिल पाया है। ऐसे और कई खेल हैं जिनके आका ऐसा ही काम करते हैं और महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण किए बिना उनको टीम में स्थान नहीं देते हैं। कई मामलों में यह भी होता है कि राज्य के खेल संघों के पदाधिकारी या फिर कोच राष्ट्रीय खेल संघों में अपने संबंधों के आधार पर उन खिलाडिय़ों का चयन करवाने का काम करते हैं जो उनके साथ यौन संबंध बनाने को तैयार रहती हैं। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि भारतीय टीम में स्थान दिलाने के लिए कुछ खेलों के कोच और प्रदेश संघ के पदाधिकारी जहां खिलाडिय़ों का स्वयं यौन शोषण करते हैं वहीं खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय संघ के पदाधिकारियों के पास भी भेजने का काम करते हैं। खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के मोह में सब कुछ सहना पड़ता है। कुछ खिलाड़ी जहां समझौता कर लेती हैं, वहीं कुछ को डरा धमका कर भी ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है। अपने प्रदेश में कुछ खेलों की ऐसी खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने ऐसा काम करने से मना कर दिया तो जहां उनको राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा खेलने के मौके नहीं मिले, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने की क्षमता होने के बाद भी उनको खेलने नहीं दिया गया। यही नहीं कई खिलाडिय़ों को तो अपने खेल से किनारा भी करना पड़ा। कुछ खेलों की खिलाडिय़ों से अपना मूल खेलकर छोड़कर दूसरे ऐसे खेलों से भी नाता जोड़ा है जिन खेलों में उनका यौन शोषण न होने की पूरी गारंटी है।
वैसे अपने राज्य में ऐसी खिलाडिय़ों की भी कमी नहीं है जो खुद यौन संबंध बनाने के ऑफर के साथ अपने को खेल के उस मुकाम पर ले जाना चाहती हैं जहां पर पहुंच कर उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। ऐसी खिलाड़ी स्कूल स्तर से लेकर कॉलेज और फिर ओपन वर्ग में भी मिल जाएगीं। हमको आज भी एक घटना याद है। जब छत्तीसगढ़ नहीं बना था और मप्र था तो रायपुर के पुलिस मैदान में राज्य की टीमें बनाने के लिए स्कूली खेल हो रहे थे। इन खेलों में खेलने आईं एक बालिका खिलाड़ी ने चयन करने वालों तक यह खबर अपने ही खेल शिक्षक से भिजवाई की अगर उनका चयन मप्र की टीम में कर लिया जाता है तो वो जो चाहेंगे वह करने को तैयार है। इस बारे में तब कुछ जानकारों ने बताया था कि यह तो आम बात है स्कूली खेलों में जहां ज्यादातर छोटी उम्र की खिलाडिय़ों का यौन शोषण उनके शिक्षक करते हैं, वहीं उनका चयन टीम में करवाने के लिए उनको चयनकर्ताओं के सामने भी परोस देते हैं। ऐसा ही कुछ कॉलेज स्तर पर भी होता है। वैसे ओपन वर्ग में ऐसे मामले ज्यादा होते हैं। इसका कारण यह है कि ओपन वर्ग कीराष्ट्रीय चैंपियनशिप का ज्यादा महत्व होता है।
खैर यह बात तो उस समय मप्र के रहते की है, पर अपना राज्य बनने के बाद भी ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं। अक्सर खिलाडिय़ों के साथ ही खेल से जुड़े लोगों और प्रशिक्षकों के बीच यह बातें सुनने को मिलती रहती हैं कि उस प्रशिक्षक के उस खिलाड़ी से संबंध हैं। और ये संबंध कोई प्यार के नहीं बल्कि मजबूरी के होते हैं जो उस खिलाड़ी को प्रलोभन देकर या फिर डरा धमका कर भी बनाए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि खिलाडिय़ों और कोच में प्यार के संबंध नहीं होते हैं। किसी खिलाड़ी और कोच तथा किसी खिलाड़ी का खिलाड़ी से प्यार भी आम बात है। और ऐसे कई उदाहरण है कि अपने सच्चे प्यार को साबित करने के लिए किसी खिलाड़ी ने कोच से शादी की तो किसी खिलाड़ी ने खिलाड़ी को वरमाला पहना दी। यह सब तो जायज भी है। पर खेल जगत में जायज से ज्यादा नाजायज काम हो रहे हैं। नाजायज काम किस तरह से होते हैं खिलाडिय़ों को किस तरह से डराया धमकाया और प्रलोभन दिया जाता है इसका खुला उदाहरण कुछ साल पहले तब सामने आया था जब बिलासपुर में एक राष्ट्रीय बेसबॉल चैंपियनशिप का आयोजन हुआ। वहां पर उड़ीसा के एक कोच को एक कम उम्र की बालिका के साथ खुलेआम गलत हरकत करते देखा गया। इस कोच के बारे में खुलासा हुआ कि वह खिलाडिय़ों को जहां उनका भविष्य बनाने का प्रलोभन देता था, वहीं डराता भी था कि वह उनका कोच है और वही उनका भविष्य बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इस कोच को लेकर पुलिस में रिपोर्ट भी हुई, पर बेसबॉल से जुड़े राष्ट्रीय स्तर के साथ ही प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों ने इस मामले को गंभीरता से लिया ही नहीं। इसका मलतब साफ है कि खेल संघ के पदाधिकारियों को भी मालूम है कि उड़ीसा के कोच ने जो भी किया वह आम बात है। यह जो मामला था वह हुआ अपने राज्य में, पर मामला दूसरे राज्य का था, लेकिन इस मामले से ठीक पहले राजधानी रायपुर में स्कूली खेलों की राज्य चैंपियनशिप के समय भी एक मामला हुआ था, तब यहां पर एक टीम के साथ आए टीम के कोच को समापन समारोह में कई लोगों ने खुलेआम एक छोटी उम्र की खिलाड़ी को अपनी गोद में बिठाकर गलत हरकत करते देखा। जब उस कोच की हरकतें हदें पार करने लगीं तो खेलों से जुड़े कुछ वरिष्ठ लोगों ने उस कोच को काफी फटकार लगाई।
इस एक घटना ने यह साबित कर दिया कि वास्तव में स्कूली खेलों में क्या होता है। स्कूली खेलों का कितना बुरा हाल रहता है यह बताने वाली बात नहीं है। स्कूली खेलों में अगर सबसे ज्यादा भ्रष्टïचार और कदाचार होता है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। क्या उस दिन जो घटना राजधानी के पुलिस मैदान में खुले आम हुई उसकी जानकारी बड़े आधिकारियों को नहीं हुई, लेकिन उन्होंने भी इस दिशा में कोई कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा। स्कूली खेलों में तो कई स्कूलों के खेल शिक्षक खुले आम मदिरापान करके वहां पहुंच जाते हैं जहां पर बालिकाओं के मैच होते रहते हैं। और ऐसे लोगों की उस समय हरकतें देखने लायक रहती हैं जब वे बालिका खिलाडिय़ों को अपने पास बुलाकर बेटा-बेटा कहते हुए उनके शरीर में इधर-उधर हाथ फिराने लगते हैं। यहां पर जहां ऐसे लोगों की ऐसी हरकतों पर गुस्सा आता है, वहीं यह सोचकर घिन भी आती है कि ये लोग जिन खिलाडिय़ों को बेटा-बेटा कह रहे हैं उनके साथ कैसी ओछी हरकतें कर रहे हैं और बाप-बेटी के रिश्ते को भी कलंकित कर रहे हैं। तब ऐसा लगता है कि ऐसे लोगों की तो सरे आम पिटाई होनी चाहिए ताकि ऐसे लोगों को सबक मिल सके कि ऐसी हरकतें करने का क्या अंजाम होता है। ऐसी ओछी हरकते करने वालों के कई किस्से हैं जो लोग सुनाते रहते हैं। ये लोग जब टीमें लेकर बाहर जाते हैं तब इनकी हरकतें जहां काफी बढ़ जाती हैं, वहीं सीमाएं भी पार कर जाती हैं। ऐसे में उन असहाय लड़कियों पर तरस आता है जो अपने भविष्य के साथ अपनी बदनामी का ख्याल करके कुछ नहीं कह पाती हैं। लेकिन कुछ खिलाड़ी जरूर साहस के साथ ऐसे मामलों को सामने लाने का काम करतीं हैं। ऐसा ही साहस एक खेल की आदिवासी खिलाड़ी ने किया था। तब इस खिलाड़ी ने खुले आम अपने कोच पर यौन शोषण की शर्त पर ही प्रदेश की टीम में स्थान देने का आरोप लगाया था। इस मामले की जब प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह से लेकर खेल मंत्री और खेल संचालक से शिकायत हुई तो उस समय के खेल संचालक राजीव श्रीवास्तव ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले को राज्य महिला आयोग को सौंप दिया था। इस पूरे मामले की राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुधा वर्मा ने जांच भी करवाई। इस दौरान इस मामले की अखबारों में खुब चर्चा रही। जांच में कोच को काफी हद तक दोषी भी पाया गया। वैसे कोच ने मीडिया के सामने आकर अपने को पाक-साफ साबित करने का भी प्रयास किया, पर मीडिया के सामने वे ठहर नहीं पाए, क्योंकि यह बात मीडिया से भला बेहतर कौन जानता है कि खेलों के नाम पर खेलों से जुड़े लोग कैसा खेल खेलते हैं। बहरहाल इस मामले में कोच पर ऐसी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई जिससे खेलों को गंदा करने वाले ऐसे लोगों में डर जैसी भावना आती। संभवत: यह उसी का नतीजा है कि आज इस एक साहसिक कदम के बाद कोई दूसरी खिलाड़ी ऐसा साहस नहीं कर पाई और प्रदेश में काफी तेजी से खिलाडिय़ों का यौन शोषण होने लगा है। यौन शोषण करने वाले इतने बेखौफ हैं कि वे मीडिया वालों से यह भी कहते हैं कि अगर कोई सबूत है तो आप बेशक खबर प्रकाशित करें। अब यह तो तय है कि जो लोग इतनी हिम्मत से ऐसी बात कहते हैं वे यह जानते हैं कि उनका खिलाडिय़ों पर इतना ज्यादा खौफ है कि कोई सामने आने की हिम्मत नहीं करेगी। भले यौन शोषण का शिकार हो रहीं खिलाड़ी खुले रूप में सामने नहीं आ रही हैं, लेकिन इन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होते देखने वाले खेलों से जुड़े ऐसे लोग तो जरूर इन बातों की चर्चा करते हैं जिनको खेलों की इस गंदगी से नफरत है। पर इन लोगों की यह मजबूरी है कि इनको यौन शोषण में लिप्त लोगों के साथ काम करना है, ऐसे में वे इनका विरोध भी नहीं कर पाते हैं। विरोध करने का मतलब होगा इनका खेलों से आउट होना। इधर मीडिया की एक मजबूरी यह है कि बिना किसी ठोस सबूत के वह भी किसी पर कम से कम सीधे आरोप नहीं लगा सकता है। लेकिन मीडिया इस मामले में जरूर भाग्यशाली है कि वह बिना किसी का नाम प्रकाशित किए भी ऐसे मामले लोगों को इशारों से समाज के सामने लाने का काम कर सकता है। और वहीं काम हम कई सालों से लगातार किया है। हालांकि हमारे इस काम से प्रदेश की खेल बिरादरी से जुड़े लोग काफी नाराज हैं। लेकिन उनकी महज नाराजगी के लिए ऐसे कृत्य पर पर्दा डालने का काम करना कम से कम हमें कताई पसंद नहीं है।
इसलिए हम लगातार इस मामले को समाज के सामने करते रहे हैं और करते रहेंगे। बहरहाल हम बात करें ऐसे कुछ मामलों की जो यह बताते हैं कि किस तरह से प्रदेश की महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण हो रहा है। जब जगदलपुर में एक बार स्कूली खेलों की राज्य चैंपियनशिप का आयोजन किया गया तो वहां पर टीम के साथ गए हॉकी टीम के कुछ खिलाडिय़ों ने हॉकी टीम की बालिका खिलाडिय़ों के साथ बस में खुले आम गंदी हरकतें कीं। इन सबकी शिकायत होने पर जांच हुई और दोषी खिलाडिय़ों के खेलने पर प्रतिंबध लगा दिया गया। शिक्षा विभाग का यह काम तारीफ के काबिल तो था, पर उस समय शिक्षा विभाग के अधिकारियों को क्यों सांप सूंघ जाता है जब ऐसे मामलों में उनके विभाग से जुड़े लोग शामिल रहते हैं। तब ऐसे लोगों पर क्यों कार्रवाई नहीं की जाती है। गोवा कांड के सामने आने के बाद कुछ खेल शिक्षकों पर कार्रवाई हुई, फिर इनकी बहाली के साथ ही मामला दबा दया गया। ऐसे लोगों पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई न होने के बारे में मालूम किया गया तो यह बातें सामने आईं कि ऐसे लोगों पर इसलिए भी कार्रवाई नहीं होती है क्योंकि ऐसे लोग अपने अधिकारियों के लिए भी वह सब इंतजाम कर देते हैं जिसकी उनको जरूरत रहती है। इन जरूरतों में पैसों से लेकर शराब और शबाब भी शामिल है। ऐसे में यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि जिन खिलाडिय़ों का यौन शोषण होता है वो इसलिए भी सामने नहीं आतीं क्योंकि उनको मालूम रहता है कि उनका जो यौन शोषण कर रहे हैं उनकी पहुंच ऊपर तक है। जो बातें स्कूली खेलों में हैं वहीं कॉलेज और ओपन वर्ग में भी हैं। ओपन वर्ग में यह ज्यादा है। कारण साफ है जहां ओपन वर्ग का महत्व ज्यादा है, वहीं ओपन वर्ग में टीमें भेजने का काम खेल संघ करते हैं और खेल संघों पर कोई सरकारी लगाम नहीं होती है। स्कूली और कॉलेज स्तर पर तो सरकारी लगाम के कारण कुछ खौफ रहता है, पर ओपन वर्ग में किसी कोच या खेल संघ का पदाधिकारी का सरकार क्या कर लेगी। आज यही कारण है कि खेलों में महिला खिलाडिय़ों की कमी होती जा रही है। कोई भी पालक आज अपनी लड़कियों को खेलने भेजने की मंजूरी नहीं देते हैं। ज्यादातर जो लड़कियां खेलों में आ रही हैं उनके साथ पालक हर पल साथ लग रहते हैं, या फिर उनको अपनी लड़की या फिर जिसके संरक्षण में वे उसको दे रहे हैं उन पर उनको पूरा भरोसा है। हमारे इस लेख का यह मतलब कदापि नहीं है कि खेलों से जुड़े सभी कोच, खेल संघों से जुड़े लोग या फिर पुरुष खिलाड़ी यौन शोषण करने वाले ही होते हैं। पर ऐसे लोग समाज में हैं तो जरूर। वैसे भी यह प्रकृति का नियम है कि अच्छाई के साथ बुराई भी होती है। ऐसे में खेल जगत इससे कैसे अछूता रह सकता है। खेलों में जहां खेलों को गंदा करने वाले हैं, वहीं ऐसे भी कई कोच, खेलों से जुड़े लोग और खिलाड़ी हैं जो वास्तव में खेल और खिलाडिय़ों के लिए कुछ करना चाहते हैं। यही कारण है कि खेलों में भारी गंदगी होने के बाद भी खेल जिंदा हैं और ऐसे जिंदा दिल लोग भी जिंदा हैं जो सब कुछ जानने के बाद भी अपनी लड़कियों को खेलों में भेजने का साहस करते हैं। ऐसे सभी लोग साधूवाद और सलाम के पात्र हैं। हम ऐसे लोगों को सलाम करते हैं और साथ ही यह भी चाहते हैं कि ऐसी खिलाडिय़ों को जरूर सामने आना चाहिए जिनका यौन शोषण किया जाता है। एक तो सबसे पहले इसका विरोध होना चाहिए। अगर इसका विरोध नहीं होगा तो वह दिन दूर नहीं जब अपने राज्य ही क्या पूरे देश में महिला खिलाडिय़ों का अकाल पड़ जाएगा। और ऐसा हो भी रहा है। आज लगातार देश में महिला खिलाडिय़ों की कमी होती जा रही हैं। और इनमें अपना राज्य भी शामिल है। अब इससे पहले की महिला खिलाडिय़ों का पूरी तरह से अकाल पड़ जाए, कुछ तो करना होगा। जब यह बात जगजाहिर है कि यौन शोषण करने वालों के अलावा अच्छे लोग भी खेलों से जुड़े हुए हैं तो क्या ऐसे में अब ऐसे लोगों को भी उस आदिवासी खिलाड़ी की तरह सामने आने का साहस नहीं करना चाहिए जिस खिलाड़ी ने अपने कोच पर आरोप लगाया था। अगर उस खिलाड़ी की तरह से और कुछ खिलाड़ी और यौन शोषण की जानकारी रखने वाले सामने आ जाए तो यह बात तय है कि खेलों को गंदा करने वालों को आसानी से खेलों से आउट किया जा सकता है। बस जरूरत है एक साहसिक पहल की। इसी आशा के साथ की ऐसा साहस जरूर अपने राज्य की खिलाड़ी दिखाएंगी उनको ऐसा साहस करने की हिम्मत भगवान दे ऐसी दुआ करते हैं।
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