ग्रामीण खिलाडिय़ों के हक पर डाका
राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों में खेलने गई प्रदेश की फुटबॉल टीमों में ग्रामीण खिलाडिय़ों के स्थान पर शहरी खिलाडिय़ों का चयन करके भेजा गया है। इन खिलाडिय़ों ने द्वारा गांवों में रहने की फर्जी जानकारी दी गई है जिसके कारण इनका चयन किया गया है। अक्सर ग्रामीण नेशनल में खेलने जाने वाली टीमों में ज्यादातर खिलाड़ी शहरी ही होते हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि खेल संचालक को भी नियमों की जानकारी नहीं है।
भोपाल में १० जनवरी से होने वाले राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों में खेलने जाने वाले प्रदेश की बालिका एवं बालक टीमों के खिलाडिय़ों को खेल एवं युवा कल्याण विभाग के संचालनालय में खेल संचालक द्वारा ट्रेक शूट दिए गए। इसी के साथ पहली बार खिलाडिय़ों को डीए के पैसे नकद दिए गए। इस टीम के खिलाडिय़ों से जब खेल संचालक जीपी सिंह का परिचय कराया जा रहा था तो बालिका टीम की कई खिलाडिय़ों ने खुद ही यह बताया कि वे एमजेएम स्कूल की हैं। इस टीम में शांति नगर स्कूल की भी खिलाड़ी हैं। यही हाल बालक टीम का भी है। बालक टीम में रायपुर के खिलाड़ी तो कम हैं, पर जिन जिलों के खिलाड़ी हैं, उनके बारे में भी जानकारों का कहना है कि वे ग्रामीण खिलाड़ी नहीं बल्कि शहरी खिलाड़ी हैं।
ऐसा पहली बार हो रहा है ऐसा नहीं है जब भी ग्रामीण खेलों के लिए टीमें बनती हैं तो उसमें ज्यादातर शहरी खिलाडिय़ों को रखा जाता है। इन खिलाडिय़ों को टीमों में रखे जाने के बारे में अधिकारियों का यही कहना है कि उनके पास खिलाड़ी ग्राम पंचायतों के प्रमाणपत्र लेकर आते हैं कि वे वहां के रहने वाले हैं। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि खिलाड़ी गांव के किसी रिश्तेदार का पता देकर फर्जी प्रमाणपत्र बनवाने में सफल हो जाते हैं। जब खिलाड़ी गांवों के प्रमाणपत्र लेकर आते हैं तो खेल अधिकारियों को उनको टीम में रखने की मजबूरी हो जाती है, हालांकि सारे खेल अधिकारी यह बात जानते हैं कि जिन खिलाडिय़ों को टीम में रखा जा रहा है, वे शहर के हैं।
पाइका योजना पर सवालिया निशान
केन्द्र सरकार ने ग्रामीण खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर पर मौका देने के लिए जो पाइका योजना प्रारंभ की है, उस योजना पर खिलाडिय़ों के फर्जीवाड़े से सवालिया निशान लग गए हैं कि कैसे इस योजना का लाभ ग्रामीण खिलाडिय़ों को मिलेगा। जब सारे खेलों में शहरी खिलाड़ी ही खेलने जाएंगे तो ग्रामीण खिलाड़ी कैसे खेल पाएंगे। ग्रामीण खेलों की अलग से विकासखंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक स्पर्धाएं करवाने का मकसद ही ग्रामीण खिलाडिय़ों को निखारना है, लेकिन उनके हक पर लगातार डाका पड़ रहा है।
खेल संचालक को ही नियम मालूम नहीं
खेल भवन में टीम को किट बांट रहे खेल संचालक से जब पूछा गया कि राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों में खेलने जा रही इस टीम में तो ज्यादातर खिलाड़ी शहरी हैं, तो उन्होंने कहा कि इससे क्या होता है, ऐसा कोई नियम नहीं है कि शहरी खिलाड़ी नहीं खेल सकते हैं। जब उनको बताया गया कि ग्रामीण नेशनल का मतलब ही यह है कि इसमें गांव के खिलाड़ी रखे जाएंगे, शहरी खिलाडिय़ों के लिए तो अलग से स्पर्धा होती है। तब उन्होंने टीम के कोच और मैनेजर से पड़ताल की कि क्या वाकई टीम में शहरी खिलाड़ी हैं। उनको कोच और मैनेजर ने भी पहले तो गलत जानकारी देने का प्रयास किया, फिर संचालक से कहा गया कि ये खिलाड़ी पढ़ते शहर में हैं लेकिन हैं गांव के। संचालक जीपी सिंह का कहना है कि अगर उनके पास किसी तरह की शिकायत आती है तो वे कार्रवाई करेंगे।
एमजेएम के खिलाड़ी हैं टीम में
इधर एमजेएम स्कूल के खेल शिक्षक अखिलेश दुबे ने संपर्क करने पर कहा कि उनके पास भी जानकारी है कि भोपाल ग्रामीण नेशनल में खेलने गई बालिका फुटबॉल टीम में उनके स्कूल की कुछ खिलाड़ी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इसके बारे में न तो खेल विभाग से कोई जानकारी स्कूल भेजी गई है कि उनके स्कूल की खिलाडिय़ों को टीम में रखा गया है और न ही खिलाडिय़ों ने स्कूल को कोई जानकारी दी है। श्री दुबे का बयान भी यह साबित करता है कि इस स्कूल की खिलाडिय़ों ने फर्जी जानकारी के आधार पर टीम में स्थान बनाया है, तभी तो न तो खिलाडिय़ों ने स्कूल को जानकारी दी और न ही खेल विभाग ने।
1 टिप्पणियाँ:
दोषियों को दण्डित किया जाना चाहिए!
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