ब्लाग जगत से हमारा रिश्ता भी तीन साल पुराना है
ब्लाग जगत में भले हमारी पहचान बने हुए एक साल भी नहीं हुआ है, लेकिन हम बता दें कि ब्लाग जगत से हमारा रिश्ता भी करीब तीन साल पुराना है। हमने जुलाई 2007 में पहली बार हरफनमौला नाम से ब्लाग बनाकर ब्लाग जगत में कदम रखा था। इसके बाद एक ब्लाग राजकुमार ग्वालानी नाम से अक्टूबर 2008 में बनाया। लेकिन जहां तक नियमित लेखन का सवाल है तो हमने 3 फरवरी 2009 से खेलगढ़ और इसके बाद 23 फरवरी से राजतंत्र के माध्यम से नियमित लिखना प्रारंभ किया है जो अब तक जारी है और आगे भी हमेशा जारी रहेगा।
आप लोग सोच रहे होंगे कि आज हमें अचानक ब्लाग जगत से अपने पुराने रिश्ते की याद कैसे आ गई। हम इस बात का खुलासा करते भी नहीं लेकिन क्या करें हमारे एक ब्लागर मित्र ने हमें एक दिन जता दिया कि वे ब्लाग जगत में बहुत सीनियर हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि वे सीनियर हैं, लेकिन इसके लिए जताने की क्या जरूरत है। जब उन्होंने जता ही दिया है तो हम भी उनको बताना चाहते हैं कि भाई भले हमने ब्लाग जगत में अभी पहचान बनाई है, लेकिन जहां तक ब्लाग जगत से रिश्ते का सवाल है तो हमारा ब्लाग जगत से तो रिश्ता उसी दिन जुड़ गया था जब हमने हरफनमौला नाम से ब्लाग बनवाया था। हमारा यह ब्लाग बनाने का काम जयप्रकाश मानस जी ने किया था। तब हम वाकई में ब्लाग के बारे में कुछ नहीं जानते थे, उन्होंने ही हमसे कहा था कि आपकी खेलों में इतनी अच्छी पकड़ है और अपना इतना अच्छा लिखते हैं तो क्यों नहीं आप अपने लेखन को अंतरराष्ट्रीय मंच देने का काम करते हैं। यही कहते हुए उन्होंने हमारा ब्लाग बना दिया। अब यह हमारा दुर्भाग्य ही रहा कि हम उस समय कुछ नहीं लिख सके। इसके पीछे कारण यह रहा कि हम यूनिकोड में लिख नहीं पाते थे, और साथ ही हमें समय भी नहीं मिलता था।
इसके बाद हमारी श्रीमती अनिता ग्वालानी ने एक दिन हमारा एक और ब्लाग राजकुमार ग्वालानी के नाम से अक्टूबर 2008 में बना दिया। इस ब्लाग में हमने 13 पोस्ट लिखी। लेकिन इसको भी हम नियमित नहीं रख सके। हमारे ये दोनों ब्लाग याहू की आईडी से बने थे। हमने जब अपनी पत्रिका खेलगढ़ को इंटरनेट पर डालने का मन बनाया तो इसी के लिए खेलगढ़ बनाया गया। यह ब्लाग की संरचना भी हमारी श्रीमती श्रीमती अनिता ग्वालानी ने की। इस ब्लाग का प्रारंभ 3 फरवरी 2009 को किया गया। इसके 20 दिन बाद ही हमने राततंत्र का प्रारंभ किया। अब तो हम इन दोनों ब्लागों में नियमित लिख रहे हैं। एक बात हम भी बता दें कि जब हमने ब्लाग जगत से नाता जोड़ा था तब बमुश्किल एक हजार ब्लागर भी नहीं लिखते थे, और उस समय एक मात्र एग्रीगेटर के रूप में नारद जाने जाते थे।
11 टिप्पणियाँ:
तब तो आप वरिष्ट ही कहलाये, उस श्रेणी में. :)
कोई गिरोह वगैरह?? अरे सॉरी, यहाँ गुट कहते हैं. :) हा हा!!
आप वरिष्ठ!
हम गरिष्ठ!!
आदरणीय समीर लाल जी एवं शास्त्री जी
हमने कोई वरिष्ठ कहलाने के लिए यह पोस्ट नहीं लिखी है। अपने को वरिष्ठ समझने वाले एक ब्लागर मित्र को महज बताने के लिए न चाहते हुए भी इस पोस्ट को लिखना पड़ा। हम जूनियर और सीनियर के चक्कर में कभी नहीं रहते हैं। कई जूनियरों के पास सीनियरों से ज्यादा ज्ञान होता है। एक कहावत भी है कि गुरू गुड़ रह गया और चेला शक्कर हो गया। तो ऐसा भी होता है।
गिरोह!?
उड़न तश्तरी भी कभी चूकती नहीं :-)
बी एस पाबला
विनोदवश कहा है तो विनोदवश ही लेना भाई.. :)
उड़नतश्तरी किसी के वश में!
हुँह, कभी नहीं :-)
बी एस पाबला
भैया सबसे जुनियर हम ही हैं, लगता नही कभी सिनियर हो भी पाएंगे।:)
निसंदेह आप वरिष्ठ हैं बहुतों से, उम्र में भी और लेखन में भी, अब देखिए न, यहां तो लोग सालों रहने के बाद भी हजार पोस्ट नहीं लिख पाते, और आपकी सक्रियता तो वाकई काबिले तारीफ है।
शुभकामनाएं।
वैसे जयप्रकाश मानस जी की यह बात तो माननी पड़ेगी, वे न केवल छत्तीसगढ़ के आदि हिंदी ब्लॉगर कहे जा सकते हैं बल्कि बहुतों को उन्होंने ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित भी किया है। अपन भी उन्हीं के ब्लॉग का एक लेख पढ़ कर ही ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित हुए थे।
@ उड़नतश्तरी की नजर से भला कोई गिरोह या गुट छिप सकता है क्या ;) आखिर उड़नतश्तरी की गिनती तो वरिष्ठतम में शुमार होती है न
@ पाबला जी, उड़नतश्तरी कहां किसी के वश में आने वाली है वह तो वश में करती है। ;)
बधाई हो आपको बहुत-बहुत ।
वरिष्ठ
ग़रिष्ठ
तो
बहुत हो चुका
पर भ्रष्ट कोन
बतलायेगा ?
वाह आपने याद दिलाया ता मुझे याद कि पहला ब्लाग मैंने भी 3 साल पहले ही बनाया था http://www.blogger.com/profile/00998541605207954925
पहिये मैंने भी इसमें बाद में ही लगाए थे :)
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