अब और नहीं लिखेंगे हम....
रायपुर ब्लागर मीट पर हम बहुत कुछ लिखना चाहते थे, पर किसी कारणवश मन खट्टा हो गया है, ऐसे में आगे हमने इस पर कुछ भी न लिखने का फैसला किया है।
बस हम तो इतना ही कह सकते हैं कि....
बातें तो बहुत थीं कहने को
पर अब मन ही नहीं लिखने को
जब परवाह ही नहीं अपनों को
तो दोष क्या दें हम गैरों को
25 टिप्पणियाँ:
आपने तो पहले ही हथियार डाल दिये शुभकामनायें
ये क्या हुआ?
मन खट्टा काहे को करते हैं मित्र?...किसी भी बात को दिल से ना लगाएं...और पूर्ण ऊर्जा से लिखते रहें...ब्लोगजगत को आपकी ज़रूरत है
राजीव जी,
हमने रायपुर ब्लागर मीट पर आगे और कुछ न लिखने का फैसला किया है। अपने ब्लाग में तो हम नियमित लिखते रहेंगे फिर इसमें कितनी भी बाधाएं आएं हम डिगने वाले नहीं हैं। हर मुसीबत का सामना करने का साहस है हममें। लेकिन हम किसी ऐसे मामले में क्यों निशाना बनें जो मामला साझा है। इसीलिए हमने रायपुर ब्लागर मीट पर अगली पोस्ट लिखने से किनारा किया है। वैसे हमने इस पर कम से कम 10 पोस्ट लिखने का मन बनाया था।
अरे भैया, 10 ना सही कम से कम 9 तो लिख दीजिये… काहे इतना दिल पर लेते हैं और काहे टेंशन लेते हैं…। :)
ये क्या राजकुमार जी? आप जैसा जिंदादिल आदमी को कैसे टेंशन आ गया?
अरे कहने वाले तो कुछ भी कहते रहते हैं। वो छत्तीसगढ़ी में कहावत है ना कि "हड़ियाँ के मुँह में परइ देबे फेर मनखे के मुँह में का देबे?"
हम तो कहेंगे कि मस्त रहिये और खूब लिखिये।
राजकुमार जी
सादर अभिवादन
भाई ये सब चलता रहता हैं पर आप सभी छतीसगढ़ में ब्लागजगत के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं पढ़कर बड़ी ख़ुशी होती है की आप सभी निरंतर एकजुट हो रहे हैं . खट्टा मीठा तो सब चलता है ... पर आप लिखें जरुर खासकर हम सभी पाठक गणों के लिए . मस्त रहिये और खूब लिखिये
अवधिया जी की टिप्पणी पर ध्यान दिया जाए।
जे का लोचा हुआ, अईसे कईसे मन मार लिए भैया।
लिखने का और खूब लिखने का
Aapki narazgi apni jagah par thik hin hogi..
Na likhne ka faisla bhi kahin na kahin thik hin liya hoga..
Magar is man ka kaya kijiyega jo kalam ke madhyam se kagaz pa pasar jata hay..
kal hin aapke blog ko follow kiya aur aaj hin aapne na likhne ka faisla kar mujh jaise naye logon jo aapko padhna,sikhna chahte hayn ka hosla kam kiya..
AApse anurodh hay is faisle ko wapas le ligiye..PLZ
बढ़िया पोस्ट. बधाई.
अशरफ भाई
आपको समझने में गलती हुई है मित्र। हमने ब्लाग जगत से अलविदा नहीं कहा है। हमने सिर्फ और सिर्फ रायपुर ब्लागर मीट पर आगे न लिखने का फैसला किया है। राजतंत्र के साथ हमारे ब्लाग खेलगढ़ में भी आपको नियमित पढऩे को मिलेगा। हमने इसके पहले भी राजीव जी को संबोधित करते हुए की गई टिप्पणी में इस बात का खुलासा किया है। आपको निराश होने की जरूरत नहीं है, आपको रोज नए-नए विषयों पर पढऩे को मिलेगा इसका हमारा वादा है।
अवधिया जी,
जिंदा दिल आदमी के ही तो दिल पर चोट लगती है, मूर्दा दिल इंसान को क्या फर्क पड़ता है। टेंशन लेने वाली बात है तभी टेंशन लेने का काम हमने किया है। वैसे हम मस्त भी रहेंगे और खूब लिखेेंगे भी लेकिन रायपुर ब्लागर मीट पर नहीं।
राजकुमार जी, क्या हो गया?लिखना ही बंद कर देंगे, तो हमलोग कैसे जान पायेंगे कि क्या हुआ.जो हुआ वही लिखिये. पुरे दस लिखिये.प्लीज.
रायपुर ब्लागर बैठक पर न लिखने के कारण का खुलासा कर देते तो अच्छा होता दोस्त
अरशद भाई (नाम ठीक करते हुए)
आपको समझने में गलती हुई है मित्र। हमने ब्लाग जगत से अलविदा नहीं कहा है। हमने सिर्फ और सिर्फ रायपुर ब्लागर मीट पर आगे न लिखने का फैसला किया है। राजतंत्र के साथ हमारे ब्लाग खेलगढ़ में भी आपको नियमित पढऩे को मिलेगा। हमने इसके पहले भी राजीव जी को संबोधित करते हुए की गई टिप्पणी में इस बात का खुलासा किया है। आपको निराश होने की जरूरत नहीं है, आपको रोज नए-नए विषयों पर पढऩे को मिलेगा इसका हमारा वादा है।
कुछ गंभीर मसला ही लग रहा है वर्ना आप ऐसा फ़ैसला क्युं लेते? फ़िर भी मिल बैठकर किसी भी समस्या से निपटा जा सकता है. ये तो कोई हल नही हुआ कि आप नही लिखेंगे?
रामराम.
राजकुमार जी,
आप आहात हैं ज़रूर किसी बात से...
लेकिन आप लिखेंगे तो अच्छा लगेगा..
राज भाई मुझे लग ही रहा था कि देर सवेर ये होगा ही , आपने कुछ सोच समझ कर ही बल्कि बहुत सोच कर ये फ़ैसला किया होगा , और ये सच है कि संजीदा दिलों को ही चोट भी लगती है , मगर राज भाई अब समय आ गया है कि दिल की बात को बाहर निकाला जाए , सारा गुबार बाहर आने दीजीए फ़िर हो जो भी होना है , कम से कम अब मैं तो यही करने वाला हूं , आपको आगे के लिए शुभकामनाए , हजार पोस्टों के लिए बहुत बहुत बधाई , हम आपके साथ हैं और रहेंगे , जल्दी ही करते हैं एक मुलाकात आ रहे हैं गले लगने
ग्वालानी साहब, कोई बात नहीं। ये अक्सर ही हुआ करता है। शायद हम अभी मीट की सही परिभाषा से अवगत नहीं। लेकिन आशा है वक्त के साथ सब बदलेगा। पर आपके दिल को चोट पहुँची, उसका हमें भी रंज हुआ।
सही है ।
चलो राज भाई जैसी आपकी मर्जी, ये सब तो जिंदगी का खेला है, कभी अच्छा कभी बुरा अनुभव।
मन नहीं कर रहा तो मत ही लिखिए। वैसे भी ब्लॉगिंग जबरन ड्यूटी बजानेवाली चीज तो है नहीं। बस एक गुजारिश कि मन को खट्टे की जगह मीठा कर लीजिए। कुछ दिनों के लिए खट्टा-मीठा दोनों कर सकते हैं।.
अजय जी,
खुलकर लिखने का दम तो हम भी रखते हैं, लेकिन हमारा ऐसा मानना है कि अगर घर की बातें-घर में रहें तो ज्यादा अच्छा है। कोई माने न माने हम तो ब्लाग बिरादरी को अपना परिवार मानते हैं, अगर बात परिवार के बीच रहने की होती तो हम खुलकर कुछ भी लिखते, लेकिन ब्लाग में लिखा गया महज ब्लाग परिवार के लिए नहीं होता है, ब्लाग भी एक सार्वजनिक मंच है और घर के आपसी मतभेद को सार्वजनिक करना उचित नहीं है। दिल में गुबार तो बहुत है, लेकिन इस गुबार को हम आपसे जैसे मित्रों के साथ फोन पर भी साझा करते मन हल्का कर लेते हैं। आपने अपने दिल का गुबार लिख कर निकाल लिया अच्छी बात है। बहुत की संतुलित और उम्दा लिखा है आपने। आपके लेखन से लगता है कि कोई अच्छा जानकार और वरिष्ठ ब्लागर लिख रहा है।
आपका पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आ गया!
इसे चर्चा मंच में भी स्थान मिला है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_28.html
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