तुम्हारे ब्लाग की औकात ही क्या है?
हमारे एक पत्रकार मित्र हैं, उनको जब हमने कहा कि यार तुम भी ब्लाग लिखना क्यों प्रारंभ नहीं करते हो, तो उन्होंने सीधे से हम पर सवाल दागा कि तुम्हारे ब्लाग की औकात क्या है? कितने लोग पढ़ते हैं उसे, रोज जो उसके लिए इतनी मेहनत करते हो और लगे रहते हो सबको ब्लाग लिखने के लिए प्रेरित करने के लिए। अगर एक साप्ताहिक अखबार में भी कोई खबर छपती है तो उसको पढऩे वाले तुम्हारे ब्लाग से कई गुना ज्यादा लोग होते हैं। फिर तुम यह क्यों भूल रहे हो कि जिस अखबार में तुम या फिर चाहे मैं काम करते हैं उस अखबार की प्रसार संख्या करीब एक लाख है। जब हमारे लिखे को एक लाख लोग पढ़ते हैं तो फिर ये ब्लाग के चक्कर में पडऩे का क्या मतलब है। हमारे उन मित्र की बात ठीक तो है, पर इसका क्या किया जाए कि किसी को हो या न हो पर हमें तो ब्लागिंग का नशा लग ही गया है। हम इतना जानते हैं कि ब्लाग लिखने से कोई नुकसान नहीं है लेकिन फायदा जरूर है कि आपकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनती है। इसी के साथ ब्लाग में आप वो सब लिखने के लिए स्वतंत्र रहते हैं जो अखबार में नहीं लिख सकते हैं।
आज ब्लागिंग को लेकर हम भी पिछले एक साल अच्छे खासे उत्साहित हैं। इस एक साल में हमारे उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। हमें जब भी मौका मिला है हमने अपने मित्रों को ब्लाग लिखने के लिए प्रोत्साहित किया है। हमारे कई मित्रों ने हमारे कहने पर ही ब्लाग लिखने प्रारंभ किए हैं। हम ठीक-ठीक संख्या तो नहीं बता सकते लेकिन बहुत ज्यादा मित्रों ने ब्लाग लिखना हमारे कारण प्रारंभ किया है। हमारे अखबार दैनिक हरिभूमि में ही हमारे ब्लाग लिखने के कारण कम से कम 10 मित्रों ने इस दिशा में गंभीरता से लिखना प्रारंभ किया। अब ब्लाग लिखने से कोई फायदा है या नहीं यह अलग बात है। इसके लिए अपना-अपना नजरिया हो सकता है। जैसे हमारे मित्र ने कह दिया कि तुम्हारे ब्लाग की औकात क्या है? इसमें लिखे गए लेख को कितने लोग पढ़ते हैं? इसमें कोई दो मत नहीं है कि ब्लाग में लिखे गए लेख को पढऩे वालों की संख्या सीमित है। किसी का ब्लाग कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो, उस ब्लाग को ज्यादा से ज्यादा एक हजार लोग पढ़ते होंगे, लेकिन यह बात सत्य है कि एक साप्ताहिक अखबार जिसकी प्रसार संख्या भले एक हजार होती हो अगर उसमें आपने कोई धमाकेदार खबर लिखी है तो उसे पढऩे वाले एक हजार से ज्यादा लोग होंगे।
खैर हमने ब्लाग लिखना इसलिए प्रारंभ नहीं किया था कि हमें यहां भी अखबारों जितने पाठक मिलेंगे। हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि हम जो कुछ ब्लाग में लिख सकते हैं, वह अखबार में कभी नहीं लिख सकते हैं। अखबार में कई तरह से प्रतिबंध होते हैं। आप जो लिखते हैं उसे छपने के लायक अखबार के मालिक या संपादक समझे यह जरूरी नहीं है। लेकिन ब्लाग में आप मालिक भी खुद हैं और संपादक भी खुद हैं। इससे अच्छा अपने विचारों को व्यक्त करने का माध्यम क्या हो सकता है।
वैसे ब्लाग को ठीक उसी तरह से समझा जा सकता है कि एक कलाकार जिस तरह से सच्ची तारीफ का भूख रहता है और उसकी तारीफ अगर सच्चे दिल से चंद लोग भी कर दें को काफी होती है। ब्लाग में आपके लिखे की तारीफ सच्चे दिल से होती है। अखबार में आपके लिखे को पढऩे वाले तो हजारों हो सकते हैं, पर उन हजारों में तारीफ करने वाले नहीं होते हैं। जो आपको व्यक्तिगत रूप से जानता है वह तो आपकी तारीफ कर सकता है, फोन करके, लेकिन जो नहीं जानता है उसका क्या। लेकिन ब्लाग जगत में कोई भी अंजान पाठक आपके लेखन की तारीफ टिप्पणी देकर कर सकता है।
हमें इतना मालूम है कि आने वाले समय में ब्लाग का स्थान बहुत ऊंचा होने वाला है। इसको आज पांचवें स्तंभ के रूप में देखने की शुरुआत हो चुका है। अगर भविष्य में ब्लाग अखबारों के लिए खतरा बन जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। ऐसे में ब्लाग लिखना फायदेमंद है, इसकी औकात की बात करना गलत है। एक अखबार की औकात भी प्रारंभ में छोटी होती है, फिर आगे वह अपने अच्छे लेखन के कारण लोकप्रिय हो जाता है। अगर आपके लेखन में दम है तो आपके ब्लाग की औकात एक अखबार से कम नहीं हो सकती है।
28 टिप्पणियाँ:
"तुम्हारे ब्लॉग की औकात ही क्या"
पढ़ा. आपके मित्र अपनी जगह सही हो
सकते हैं. पर उन्हें भी मालूम है कि प्रत्येक
व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति हमेशा अख़बार में
नहीं छपवा सकते. आपकी प्रतिक्रिया बहुत
सटीक है. स्वागत है. आशा है इससे प्रेरणा लेकर लोग
ब्लॉग लेखन जारी रखेंगे. राज्कुमार भाई कुछ लोगों को
तो छत्तीसगढ़ ब्लोगर्स की बढती लोकप्रियता हजम नहीं
हो रही है.
आने वाले समय में ब्लाग का स्थान बहुत ऊंचा होने वाला है-बस!!! यही जज़्बा चाहिये..आगे बढ़ते रहिये!! शुभकामनाएँ.
अब तो अखबारों को भी ब्लॉग्स के लिए जगह बनानी पड़ रही है। चाहे वह प्रिंट में हो या फिर ऑनलाईन संस्करण में हो।
इससे किसकी औकात पता चल रही, यह बखूबी दिख रहा।
बी एस पाबला
बधाई हो राजकुमार भाई,आज आपका ब्लाग अंडर फ़ोर्टी मे 39वें नम्बर पर पहुँच गया है। फ़िर पुछते हो तुम्हारे ब्लाग की औकात क्या है?
.... ब्लागिंग एक अंतर्राष्ट्रिय मंच है...छुटभईये इसके महत्व को अभी समझ नही पा रहे हैं जब समझेंगे खुद-व-खुद "सलाम" ठोकने लगेंगे.... लगे रहो मेरे भाई .... आप कमाल का लिख रहे हो..... बधाई व शुभकामनाएं !!!!
कितनी औकात है, ये तो भविष्य ही बतायेगा, परंतु ब्लॉगर को फ़ायदा ही होगा, नुक्सान होने की संभावना तो नजर नहीं आती है।
ललित जी,
मेहनत का फल हमेशा मिलता है, अपने ब्लाग को कौन टॉप 40 में देखना नहीं चाहता है। वैसे तुम्हारे ब्लाग की औकात क्या है? ये हम नहीं पूछ रहे हैं, अपने एक मित्र का कथन हमने सामने रखा है। हमारे ही नहीं हम सारे ब्लागों के बारे में जानते हैं सभी एक-एक अखबार से कम नहीं है।
उन मित्र को बताएँ, कि माना कि अखबार की खबर को एक लाख लोग पढ़ते हैं, मगर उसमें या तो बाई-लाइन (माने क्रेडिट)नहीं होती, या होती भी है तो उसे कौन पढ़ता है?
और, कम से कम हमारे ब्लॉगों की औकात हिन्दी के उन प्रकाशित पुस्तकों से तो ज्यादा है जो स्वयं के खर्चे पर छपवाए जाते हैं वो भी महज 500 प्रतियों में और पाठकों का मुँह जोहते रहते हैं और कहीं किसी बुकशेल्फ में उपलब्ध भी नहीं होते.
"अखबार की प्रसार संख्या करीब एक लाख है"
प्रसार संख्या एक लाख है इसका मतलब यह तो नहीं है कि आपके अखबार के पूरे एक लाख पाठक सिर्फ आपको ही पढ़ते हैं। यह भी तो हो सकता है कि आपको एक भी आदमी न पढ़ता हो।
ब्लॉग तो अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन है जिसे पढ़ने वालों की संख्या करोड़ों से अरबों तक जा सकती है। यदि पोस्ट में सामग्री (content) अच्छी हो तो आपके लेख को करोड़ों पाठक मिल सकते हैं।
Instant response from global readers hi blog ki khaaseeyat hai.
शायद इन अखबार वालों को अपनी औकात नहीं पता। अखबार बिकती होगी एक लाख मगर जरूरी नहीं सभी उसके हर लेखक को पढें । कई बार पढ कर गालियाँ निकालने का मन भी होता है। फिर स्वतन्त्र अभिव्यक्ति कहां होती है उन मे आकाओं की बोली बोली जाती है दास्ता का जीवन लोगों को अधिक पसंद है शायद । आप अपना जज़्बा बनाये रखें शुभकामनायें
ब्लोगींग और अखबार की क्या तुलना. ब्लॉग्गिंग तो दोस्तों में बैठकर चर्चा करने जैसा माध्यम है. आपने लिखा, हमने पढ़ा, टिप्पणी भी की, आपने या दुसरे पाठकों ने उसके उत्तर में टिप्पणी की या आपने एक और पोस्ट लिखी. यह आत्मीयता और इंटरएक्शन ही इसकी बड़ी खूबी है अखबार की कीमत कितनी भी रख लें यह बात उसमें आ नहीं सकती है.
भाई ब्लाग ब्लाग है और अखबार अखबार है. ब्लाग की औकात देखना है तो थोडा सा इंतजार किजिये.
रामराम.
शायद आपके मित्र ब्लॉग की औकात से परिचित नहीं हैं . अखबार पढ़कर फाड़ दिया जाता हैं अथवा फेंक दिया जाता है और एक या दो शहरों तक सीमित रहते हैं जबकि ब्लॉग सारी दुनिया के द्वारा पढ़े जाते है .
राजकुमार भाई, ब्लॉग की औकात न होती तो बेचारे रवीश, पुण्यप्रसून जैसे कथित स्टार लोग ब्लाग लिखने के लिये क्यों मरे जा रहे हैं यह उस पत्रकार मित्र से पूछिये…। ब्लॉग की कीमत वही जान सकता है जो "विचारधारा" आधारित ब्लॉग लिखता है, खासकर उस स्थिति में जब किसी नेता के हाथों अपना ईमान गिरवी रख चुका कोई सम्पादक अपनी मर्जी की खबर नहीं छाप सकता और वह जानबूझकर ब्लॉग लेखक को अपनी खबर लीक कर देता है…। :) जल्दी ही वे पत्रकार महोदय (यदि पत्रकार हैं और ईमान बाकी है) तो खुद भी ब्लॉग लिखने लगेंगे…
अपने मित्र को पूछ लीजिये कि मीडिया के चहेते माने जाने वाले अमर सिंह जैसी राजनीतिक शख्सियत द्वारा अपना इस्तीफा ब्लॉग पर जारी किया जाना किसकी औकात बता रहा है!?
पहले तो लोग अपने मन की बात पत्रों के माध्यम से लिखते थे, जिसे केवल एक परिवार या एक व्यक्ति ही पढ़ता था। आज आम व्यक्ति को ब्लाग की सुविधा मिली है। कभी अपनी बात पोस्ट करता है और कभी टिप्पणी करता है। भारत के कितने लोग अखबारों में लिख सकते हैं? यह प्रश्न भी उनसे पूछ लेना। आम आदमी का लेखन के प्रति रुझान ब्लाग के माध्यम से बढ़ेगा और वह अपनी अभिव्यक्ति से सशक्त बनेगा। अभिव्यक्ति मे सशक्त बनते ही भारत का बौद्धिक स्तर सुधरेगा।
अधूरा ज्ञान हमेशा खतरनाक होता है . उन्हे बतायें अपने शहर के विभाष ने इस पर कार्य करके क्या निष्कर्ष निकाला है .
ये शायद मृणाल पांडे से प्रभावित लगते हैं.
असल में आज बाकी चार स्तंभों में यह डर व्याप्त हो रहा है की पाँचवा खम्बा कहीं इन्हे उखाड़ न फेके .
पिछले अमेरिकी चुनाव में ब्लॉग जगत ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है
सीधे शब्दों में कहूं तो हैरत होती है ऐसा कहने वाले पत्रकार साथी की सोच पर।
वैसे कोई नयी बात नहीं है हर नयी विधा का विरोध होता है .
थोड़ा सा अन्तर बस यह है कि हमारे यहाँ अभी स्थानीय भाषाओं में शैशवकाल है, विश्व में तो इसने अपना स्थान बना लिया है
are blog ki aukat hai tabhi to logon ko mirchi lag rahi hai......aage adhte rahi .......blogging ka bhavishya ujjwal hai.
लोग परिवर्तन को आसानी से पचा नहीं पाते हैं। यही वजह है कि ब्लॉग्स को लेकर भी इस तरह की बातें हो रही हैं। ये सभी बेवजह है, जिसे आगे बढ़ना है वो तो बढ़ेगा ही।
taaliyannnnnnnnnnnn अरे कहने दीजिये जो .जो भी कहता है ...डर गए होंगे ब्लॉग्गिंग कि ताक़त से..खुद ही समझ जायेंगे आने वाले समय में....
बजा फ़रमाया ग्वालानी जी आपने। ब्लॉग की औकात सबको एक ना एक दिन पता चल ही जाएगी। हा हा। और हम सब मिलकर ब्लॉग का रुतबा सिद्ध करके ही छोड़ेंगे।
इसीलिए कहा जाता है कि मन की बात अपनों को बता देने से शकुन मिलता है व यह बात हम सभी ब्लॉगर्स के मन में कहीं न कहीं चल रही थी, जिसे आपने बखूबी शब्द व अंजाम दिया है।
ब्लॉग आने वाले समय में जिस ऊँचाई पर पहुँचने वाला है, उसका अनुमान ही तथाकथित लोगों को अब विरोध करने पर मजबूर कर रहा है।
पोस्ट बहुत अच्छी लगी। कृपया साधुवाद स्वीकार करें।
इतना सब कुछ लिखा दमदारी से तो राजकुमार उस साथी का नाम भी लिख देते जो औकात पूछ रहा था?
उनसे बस इतना ही पूछ लेते की आपके अखबार के दो दिन पुराने इशु को कितने लोग पलटते हैं?
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