सरकार देशी खेलों को बढ़ावा दे
सांसद रमेश बैस का कहना है कि प्रदेश सरकार को अपने पारंपरिक देशी खेलों को बढ़ाने का काम करना चाहिए। प्रदेश के खिलाडिय़ों को निखारने के लिए बाहर से प्रशिक्षक भी बुलाने की जरूत है। क्रिकेट के कारण दूसरे खेलों की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता है। दूसरे खेलों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देने का भी काम सरकार को करना चाहिए। खेल मंत्री लता उसेंडी ने कहा कम से कम अपने राज्य छत्तीसगढ़ में तो महिला खिलाडिय़ों का दबदबा है।
रमेश बैस ने कहा एक जमाना वह था जब देश में महिलाओं का कोई स्थान नहीं था, लेकिन आज तो हर क्षेत्र में महिलाओं का दबदबा है। अपने राज्य में जहां खेल मंत्री महिला हैं, वहीं देश की राष्ट्रपति भी एक महिला हैं। कांग्रेस में जिनके हाथों में राष्ट्रीय स्तर पर कमान है, वह भी महिला हैं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी ने तो महिलाओं को ५० प्रतिशत आरक्षण दे रखा है। श्री बैस ने कहा कि खिलाड़ी सिखने से नहीं होता है, उसमें आत्मविश्वास के साथ लगन होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि महिला खिलाड़ी खेलों में आगे आएं इसके लिए परिवार की सोच भी बदलनी चाहिए। आज अगर स्कूल या कॉलेज गई कोई लड़की आधे घंटे देर से घर पहुंचती हैं तो उनके परिजन परेशान हो जाते हैं। खेलों के लिए तो बहुत ज्यादा समय देना पड़ता है।
श्री बैस ने क्रिकेट पर वार करते हुए कहा कि आज क्रिकेट के कारण दूसरे खेल दब गए हैं। आज केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को दूसरों खेलों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से कहा कि राज्य में पारंपरिक खेलों की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। अपने राज्य में पारंपरिक खेलों के खिलाड़ी ज्यादा हैं। उन्होंने अन्य खेलों के लिए बाहर से अच्छे कोच बुलाने की बात कही। उन्होंने बताया कि वे तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष हैं और जब उनको मालूम हुआ कि तीर-कमान की कीमत डेढ़ लाख रुपए है तो वे भी सोच में पड़ गए कि अपने राज्य के गरीब खिलाड़ी इतनी कीमत के तीर-कमान कहां से खरीद सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं खिलाडिय़ों को देने के प्रयास करने चाहिए।
प्रदेश की खेलमंत्री ने कहा कि इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज खेलों के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका अहम हो गई है। हर खेल में महिलाएं आगे आ रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाडिय़ों की सूची पर गौर किया तो मालूम हुआ कि जिन ७० खिलाडिय़ों को उत्कृष्ट खिलाड़ी घोषित किया गया है, उसमें ने ५९ महिला खिलाड़ी हैं। यह इस बात का सबूत है कि कम से कम छत्तीसगढ़ में महिला खिलाडिय़ों का दबदबा है। उन्होंने कहा छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर जिन खेलों चाहे वह बास्केटबॉल, हैंडबॉल, नेटबॉल या और किसी भी खेल में सफलता मिल रही है तो इनमें महिला खिलाडिय़ों की सफलता ज्यादा है। उन्होंने कहा कि दो दिनों की संगोष्ठी में जो भी विचार सामने आए हैं उन विचारों से अवगत होने के बाद छत्तीसगढ़ में महिला खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाने की दिशा में जो किया जाना है वह जरूर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हर खेल में महिला खिलाडिय़ों की भागीदारी दो इसके लिए उनको सुविधाएं देने का काम हमारी सरकार करेगी।
खेल संचालक जीपी सिंह ने कहा कि संगोष्ठी की सफलता तभी होगी जब इसके निष्कर्ष पर अमल किया जा सके। उन्होंने कहा कि यह बात तय है कि खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। फिर भी जागरूकता की जरूरत है। उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक अंजली शुक्ला ने कहा कि रविशंकर शुक्ल विवि के दीक्षांत समारोह में जिनको डिग्रियां दी गईं उनमें ८० प्रतिशत महिलाएं थीं।
स्कूली स्तर से ध्यान दें
भारतीय खेल प्राधिकरण के पूर्व डीन डॉ. एमएल कमलेश ने कहा कि भारत आज ओलंपिक में अगर पदक नहीं जीत पाता है तो उसके कई कारण हैं। इनमें प्रमुख कारण यह है कि भारत की नींव ही कमजोर है। उन्होंने कहा कि खेलों की नींद का काम स्कूल करते हैं, लेकिन स्कूलों में खेलों की स्थिति क्या है सब जानते हैं। स्कूल स्तर के साथ कॉलेज स्तर पर भी खेलों को मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पदक जीतने के लिए वातावरण के साथ फिटनेस का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। भारतीय खिलाडिय़ों की फिटनेस विदेशी खिलाडिय़ों की तुलना में बहुत कमजोर है। संगोष्ठी में और भी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि कैसे महिला खिलाडिय़ों की भूमिकाओं को खेलों में बढ़ाने का काम करना चाहिए।
संगोष्ठी के औचित्य पर भी सवाल
इस संगोष्ठी का आयोजन यूजीसी से मिले एक लाख के अनुदान के साथ डिग्री गल्र्स कॉलेज ने किया। संगोष्ठी पर करीब डेढ़ लाख का खर्च होने की बात आयोजन समिति के सचिव अतुल शुक्ला ने कही है। आयोजन में शामिल खेलों से जुड़े कई लोग यह कहते रहे कि आखिर इस संगोष्ठी का औचित्य क्या है? क्या ऐसी किसी संगोष्ठी से खेलों का परिदृश्य बदल सकता है। मंच पर मात्र भाषण देने से कुछ नहीं होता है। आज भारतीय ओलंपिक संघ के साथ केन्द्र सरकार के पास ऐसी कोई भी योजना नहीं है जिससे ओलंपिक में भारत को पदक मिल सके। अगर ऐसी संगोष्ठियों के आयोजन से खेलों का भला होता तो हर राज्य में संगोष्ठियों की बाढ़ आ जाती। यह तो यूजीसी से अनुदान लेकर महज खानापूर्ति करना मात्र है।
2 टिप्पणियाँ:
अच्छी प्रस्तुति। महिलाओं का पदों पर होना कुछ अंतर लाता है। लेकिन परिदृश्य में बदलाव के लिए सचेत प्रयत्न की जरूरत है।
आजकल बच्चे मैदान में कम और कम्प्युटर में ज्यादा खेल रहे हैं . अब तो इनमे देशी खेल भी आ गए हैं जैसे गिल्ली डंडा.
गिल्ली डंडा पर याद आया की ये खतरनाक गिल्ली कई लोगों की आँख फोड़ चुकी है . इसलिये अच्छा हो लोग इसे कम्प्युटर पर ही खेलें
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