पत्रकार भी आ गए बाबा के झांसे में
अपने देश में बाबाओं का ही राज चल रहा है। बाबाओं के झांसे से भला कौन बचा सका है। बाबा जिसे चाहे उसे अपनी बातों से फंसा लेते हैं। बाबाओं की वाणी में ऐसा जादू होता है कि कलम के जादूगर भी कभी उनके जाल में फंस ही जाते हैं। ऐसा ही एक वाक्या अपने रायपुर के प्रेस क्लब में तब देखने को मिला जब एक बाबा आए थे पत्रकारवार्ता लेने। इन बाबा का जादू पत्रकारों के सिर ऐसा चढ़ा की शराब छोडऩे के साथ दूसरी बीमीरियों से मुक्त होने के मोह में सभी प्रेस कांफ्रेंस हॉल में जूते और चप्पल तक उतर कर बाबा के प्रवचन में मशगूल हो गए और भूल गए कि बाबा की पत्रकार वार्ता के बाद दूसरी पत्रकार वार्ता भी है।
हुआ कुछ यूं कि दो दिन पहले जब हम प्रेस क्लब गए तो देखा कि वहां पर प्रेस कांफ्रेंस हॉल के बाहर जूते-चप्पलों का अंबार लगा हुआ है। पूछने पर मालूम हुआ कि अंदर एक बाबा पत्रकार वार्ता ले रहे हैं। हमने सोचा यार ये ऐसे कौन से बाबा हैं जिनकी पत्रकार वार्ता में मंदिर की तरह जूते-चप्पल बाहर रखवा दिए गए हैं और हमारे पत्रकार मित्र, जो किसी की बात सुनने को तैयार नहीं रहते हैं अचानक उन बाबा के जादू में कैसे आ गए और जूते और चप्पल बाहर उताकर अंदर गए हैं। इसका राज जानने का प्रयास करने पर मालूम हुआ कि वे बाबा पत्रकारों को शराब छोडऩे के गुर बताने के साथ हर बीमारी से मुक्त होने का ज्ञान देने की बात कहकर अंदर ले गए थे और पत्रकार साथी भी ऐसे पढ़े-लिखे की उनके झांसे में आ गए और आधे घंटे की कांफ्रेंस में बैठ गए उनका प्रवचन सुनते हुए एक घंटे तक। उनको इस बात से भी मतलब नहीं था कि उनके बाद एक और प्रेस कांफ्रेंस है साथ ही प्रदेश के दो खिलाडिय़ों का सम्मान है। पत्रकारों को जैसे-जैसे करने के लिए कहा गया सब करते गए और हमारे पत्रकार मित्र इतने ज्ञानी हैं कि जब उनसे पूछा गया कि कैसा महसूस कर रहे हैं तो सभी को मजबूरी में कहना पड़ा था कि अच्छा महसूस कर रहे हैं। इन बाबा की एक सबसे बड़ी बात यह थी कि वे शराब छुड़ाने की बात कह रहे थे। ऐसे में शराब की लत से जकड़े हुए पत्रकारों को संभवत: लगा होगा कि चलो यार अच्छा मौका है शायद उनको इस लत से छुटकारा मिल जाए।
अब यहां हमें अपने पत्रकारों मित्रों की इस सोच पर तरास आ रहा था। अरे जो लोग अपने घर परिवार की बातों को मानकर शराब से किनारा नहीं कर सकते हैं वे भला किसी बाबा की बात से कैसे शराब से किनारा कर सकते हैं। घर में मां-बाप, भाई-बहन के साथ बीबी बच्चों के कहने के बाद भी तो लोग शराब नहीं छोड़ते हैं फिर किसी बाबा की क्या बिसात कि वे किसी को शराब छुड़वाने में सफल हो जाए। इंसान को अगर शराब जैसी किसी भी बुरी लत से किनारा करना है तो उसके लिए सबसे बड़ी जरूरत आत्म विश्वास की है। अगर आप में आत्मविश्वास है तो आप को दुनिया की कोई भी ताकत किसी भी बुरी सय से किनारा करने से नहीं रोक सकती है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कम से कम हममें इतना आत्मविश्वास है। हम एक बार कोई बात ठान लेते हैं तो उसे करके रहते हैं। हम यहां पर बताना चाहेंगे कि हमें बचपन से चाय पीने की आदत नहीं थी। पर बीच में हमने चाय पीनी प्रारंभ की थी। कुछ साल तक चाय पीने के बाद जब हमें ऐसा लगने लगा कि हमें इससे बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है और जरूरत से ज्यादा चाय हो जाती है तो हमने उसे एक झटके में छोड़ दिया। हम अगर ऐसा करने में सफल हुए तो यह हमारे आत्म विश्वास का ही दम है जिसने हमसे ऐसा करवाया।
इस दुनिया में आत्मविश्वास से बड़ी कोई संजीवनी नहीं है। जिसके पास आत्मविश्वास की पूंजी है वही दुनिया का सबसे बड़ा धनी है और उसके आगे सारी बातें गौण हैं।
बहरहाल बाबा के प्रवचन का हमारे किसी पत्रकार मित्र को कोई फायदा होगा इसमें पूरा-पूरा संदेह है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि इन बाबा ने जो पर्चा प्रेस क्लब में दिया था उसमें एक बात यह भी लिखी हुई थी कि उनकी बताई बातों को अपनाने वाले उस व्यक्ति पर ही इसका असर होगा जिन पर भगवान की कृपा होगी। अगर भगवान की कृपा पर ही सब निर्भर है तो फिर बाबा की बातों का क्या मलतब है? भगवान की कृपा जिस पर होगी वह वैसे भी हर तरह के रोग से मुक्त हो जाएगा। यह बात भी इस बात का सबूत है कि किसी भी बाबा के बस में कुछ नहीं होता है, सब लोगों को बेवकूफ बनाने का काम करते हैं। अनपढ़ों की बातें ही छोड़ दें हमारे देश के नेता-मंत्री और पढ़े-लिखे लोगों के साथ पत्रकारों की कौम भी इनके झांसे में आ जाती है। कहते भी हैं कि जब तक इन दुनिया में बेवकूफ जिंदा हैं अक्लमंद कभी भूख नहीं मर सकते हैं। अपने देश के सारे बाबा वास्तव में अक्लमंद हैं जिनके आगे सभी बेवकूफ बन जाते हैं। एक बड़ी मिसाल सामने हैं। पता नहीं लोग कब ऐसे बाबाओं से किनारा करना सीखेंगे। भगवान ऐसे लोगों को सतबुद्धि दे, यही कामना करते हैं।
11 टिप्पणियाँ:
बाबा ने कोई शर्त तो रखी होगी जैसे हर इतवार सम्पादक का ध्यान भूले से भी नही करना वरना मेरा नुस्खा गलत हो जायेगा । अब कौन बेचारा बच सकता है .हा हा हा ।
"इस दुनिया में आत्मविश्वास से बड़ी कोई संजीवनी नहीं है। जिसके पास आत्मविश्वास की पूंजी है वही दुनिया का सबसे बड़ा धनी है और उसके आगे सारी बातें गौण हैं।"
सबसे बडी बात तो यही है आगे बाबा और पत्रकार जाने
नहीं नहीं राज भाई ...दरअसल इन बाबा लोगों के पास सब चीज़ का इलाज होता है..करते भी हैं..जैसे शराब, शबाब, असफ़ल प्यार, और पता नहीं क्या क्या.....बस मंतर-जंतर ..भूख गरीबी जैसी छोटी समस्याओं पर काम नहीं करता ..
मुड़ मुडाय तीन सुख,सिर की मिट जाए खाज
खाने को मेवा मेले, लोग कहे पै लागी महाराज
जय हो-राम-राम,
कभी शरद भाई और हम लोग मिल कर ऐसा ही
फ़ाईव स्टार शो रुम खोलेंगे-बिना गोली दवाई के
हर मर्ज का इलाज- हा हा हा हा
बाबाओं के झांसे में पत्रकारों का आना कोई नई बात नहीं है। पत्रकार तो वैसे भी किसी के झांसे में आ जाते हैं और कुछ
पत्रकारों को तो बेवकूफ बनाना सबसे आसान है
अजय झा ने जो कहा उस का जवाब नहीं।
अजय कुमार झा की बात अच्छी लगी .. भूख गरीबी जैसी छोटी समस्याओं पर बाबा जी का तंत्र मंत्र काम कर जाए .. तो सारी समस्या ही समाप्त हो जाए !!
राजकुमार वो लोग किसी बाबा के झांसे मे नही आये थे।बाबा के आग्रह पर जूते-चप्पल उतार कर प्रेस कान्फ़्रेंस अटैण्ड की और शाम होने के बाद पहुंच गये दारूवाले बाबा की शरण मे।देखा तो था अखण्ड शराबी प्रभूदीन ने तो बाबा के लाख पूछ्ने पर भी ये माना ही नही था कि वो शराब पीता है।उनमे से दो तीन लोगो ने बीमारी के लिये ट्राई करके देखा और कान्फ़्रेंस खतम होते ही अपने अपने काम मे लग कर बाबा को भूल भी गये।पत्रकार है वो और अपने भाई भी,सो इतने बेवकूफ़ भी नही है।हां उन्होने एक समाज विशेष के धार्मिक मान्यता प्राप्त व्यक्ति के आग्रह का सम्मान कर दिया तो उसमे कोई बुराई भी नही है।
पत्रकारों की जय हो गुरू
पत्रकार भी इन्सान होते हैं और फिर बाबे लोग तो बाबे होते ही हैं
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