मम्मी मुझे इंडिया में ही रहना है यूएस नहीं जाना
एक चार की छोटी सी बच्ची को पहली बार यूएस से इंडिया आने का मौका मिला। यहां पर आकर वह अपने मम्मी-पापा के देश में ऐसे रमी की उसे अब इंडिया छोड़कर जाने का मन ही नहीं हो रहा है। वह अपनी मम्मी से कहती है कि मम्मी मुझे इंडिया में ही रहना है, यूएस नहीं जाता है। मम्मी पूछती है क्यों? तो छोटी सी यह गुडिय़ा कहती है कि वहां मुझे अच्छा नहीं लगता है। वहां मुझे क्यों प्यार भी नहीं करता है, यहां देखों न कितने भईया और बहनें हैं। सब कैसे प्यार से खेलते हैं।
यह किसी फिल्म या फिर नाटक के संवाद नहीं हैं बल्कि हमारे एक मित्र के भाई की चार साल की बेटी की बातचीत है जो उसने अभी यहां पर राजधानी रायपुर में एक दिन पहले की। हमारे मित्र के भाई यूएस में इंजीनियर हैं। उनकी पत्नी भी इंजीनियर हैं। वे पिछले पांच सालों से वहां पर रहे हैं। वहीं पर उनको एक पुत्री हुई। इस पुत्री का नाम आयुषी है। आयुषी को पहली बार भारत आने का मौका मिला है क्योंकि उसके चाचा की शादी थी। यहां पर आने के बाद उसको अपने दादा-दादी और नाना-नानी के घर में जिस तरह का प्यार मिला उसने उसको इतना ज्यादा प्रभावित किया है कि वह अब यूएस लौटना ही नहीं चाहती है। छोटी की यह परी जैसी लड़की अपनी मम्मी से कहती भी है कि मम्मी यूएस में तो कोई मुझे प्यार भी नहीं करता है और कोई खेलने वाला भी नहीं है लेकिन यहां पर कितने भाई और बहनें हैं। वह जिद करने लगती है कि मम्मी प्लीज हम लोग वापस नहीं जाएंगे।
यह एक छोटा सा किस्सा है जो यह बताता है कि वास्तव में अपने देश में लोग कितने प्यार और अपनेपन से रहते हैं। बेशक यूएस जैसे देशों में पैसों की कमी नहीं है, लेकिन वहां जाकर इंसान मशीन बन जाता है और प्यार के लिए तरस जाता है। प्यार की भूख तो हर इंसान को होती है फिर वह चाहे चार साल का बच्चा ही क्यों न हो। ऐसे में भला आयुषी कैसे गंवारा करेगी कि वह एक ऐसे देश में रहे जहां पर प्यार नाम की सय से वह महरूम है।
इसलिए कहते हैं
ईस्ट हो या वेस्ट इंडिया इज द बेस्ट
यह किसी फिल्म या फिर नाटक के संवाद नहीं हैं बल्कि हमारे एक मित्र के भाई की चार साल की बेटी की बातचीत है जो उसने अभी यहां पर राजधानी रायपुर में एक दिन पहले की। हमारे मित्र के भाई यूएस में इंजीनियर हैं। उनकी पत्नी भी इंजीनियर हैं। वे पिछले पांच सालों से वहां पर रहे हैं। वहीं पर उनको एक पुत्री हुई। इस पुत्री का नाम आयुषी है। आयुषी को पहली बार भारत आने का मौका मिला है क्योंकि उसके चाचा की शादी थी। यहां पर आने के बाद उसको अपने दादा-दादी और नाना-नानी के घर में जिस तरह का प्यार मिला उसने उसको इतना ज्यादा प्रभावित किया है कि वह अब यूएस लौटना ही नहीं चाहती है। छोटी की यह परी जैसी लड़की अपनी मम्मी से कहती भी है कि मम्मी यूएस में तो कोई मुझे प्यार भी नहीं करता है और कोई खेलने वाला भी नहीं है लेकिन यहां पर कितने भाई और बहनें हैं। वह जिद करने लगती है कि मम्मी प्लीज हम लोग वापस नहीं जाएंगे।
यह एक छोटा सा किस्सा है जो यह बताता है कि वास्तव में अपने देश में लोग कितने प्यार और अपनेपन से रहते हैं। बेशक यूएस जैसे देशों में पैसों की कमी नहीं है, लेकिन वहां जाकर इंसान मशीन बन जाता है और प्यार के लिए तरस जाता है। प्यार की भूख तो हर इंसान को होती है फिर वह चाहे चार साल का बच्चा ही क्यों न हो। ऐसे में भला आयुषी कैसे गंवारा करेगी कि वह एक ऐसे देश में रहे जहां पर प्यार नाम की सय से वह महरूम है।
इसलिए कहते हैं
ईस्ट हो या वेस्ट इंडिया इज द बेस्ट
12 टिप्पणियाँ:
अपना देश ही है ऐसा , सबको प्यारा लगता है ।
इंडिया इज द बेस्ट
अपने देश जैसा कोई देश हो भी नहीं सकता है।
बच्चे, मन के सच्चे!
बी एस पाबला
राजकुमार वंहा पैसा और यंहा प्यार।
राजकुमार वंहा पैसा और यंहा प्यार।अपने देश जैसा कोई देश हो भी नहीं सकता है।
भाई रिश्तों की जो गर्माहट हमारे देश में है वो और कहीं नही है. बहुत सुंदर संस्मरण लिखा आपने.
रामराम.
अपने देश जैसे कोई देश हो भी नहीं सकता है।
ये मेरा इंडिया, आई लव माई इंडिया
apna desh apna hi hota hain
सही है आज कल मेरी नातिन भी आयी हुई है वो भी यही कहती है असल मे जीवन के जो रंग भारत मे हैं वहाँ कहाँ । शुभकामनायें
आई लव माई इंडिया
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